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इन दिनों देश के अनेक भागों से अनुसूचित जाति के लोगों की पिटाई और उनके साथ दुर्व्यवहार करने की खबरें आ रही हैं। जुलाई महीने में ही तमिलनाडु, कर्नाटक, बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में इन लोगों की पिटाई हुई। सभ्य समाज को चिन्तित कर देने वाली इन घटनाओं को किसी भी सूरत में उचित नहीं ठहराया जा सकता। इनकी जितनी भी निन्दा की जाए, कम होगी। हर किसी का कहना है कि सरकार इन घटनाओं के दोषियों को कड़ी सी कड़ी सजा दिलाए। सभी राज्य सरकारें ऐसा कर भी रही हैं। पुलिस ने ज्यादातर दोषियों को पकड़ा भी है।
लेकिन इन घटनाओं की आड़ में सेकुलर नेता, वामपंथी बुद्धिजीवी और कुछ पत्रकार जैसा व्यवहार कर रहे हैं, वह संदेह के घेरे में है। उनके इस रवैए से कई सवाल उठ रहे हैं। यदि कोई घटना किसी भाजपा शासित राज्य में होती है, तो सेकुलर नेता सड़क से संसद तक हंगामा करते हैं, घटनास्थल का दौरा करने लगते हैं। दूसरी ओर इनके इशारे पर काम करने वाले पत्रकार घटनास्थल से लेकर न्यूज रूम तक एकतरफा रिपोर्टिंग करते हैं। इसकी असलियत जानने के लिए 12 जुलाई की दो घटनाएं ही काफी हैं। इस दिन गुजरात के ऊना में अनुसूचित जाति के दो लोगों की पिटाई हुई और तमिलनाडु की राजधानी चेन्नै में इसी वर्ग के तीन लोगों को पुलिस ने बहुत ही बर्बरतापूर्वक पीटा। लेकिन गुजरात की घटना पर संसद बाधित हो गई और तमिलनाडु की घटना दब गई या दबा दी गई। बसपा अध्यक्ष मायावती ने सीधे प्रधानमंत्री पर हमला बोला और भाजपा को अनुसूचित जाति विरोधी बता दिया। राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, वृंदा करात जैसे नेता गुजरात पहुंच गए। लेकिन इन लोगों ने तमिलनाडु की घटना की कहीं कोई चर्चा नहीं की। वहां के पीडि़तों से तो मिलने की बात छोड़ ही दें।
ये लोग बिहार में मुजफ्फरपुर, भभुआ और नरकटियागंज भी नहीं गए। मुजफ्फरपुर में 22 जुलाई को दो युवकों को बुरी तरह पीटा गया और उनमें से एक के मुंह पर पेशाब कर दिया गया। इन्हीं दिनों भभुआ में महादलित समुदाय की एक 16 वर्षीया लड़की के साथ चार लोगों ने बलात्कार किया और उसकी हत्या कर दी। नरकटियागंज में अश्लील वीडियो बनाकर अनुसूचित जाति की एक युवती का तीन महीने तक यौन शोषण किया गया। इस मामले में पुलिस ने 23 जुलाई को तौकीर आलम नामक एक युवक को गिरफ्तार किया है।
सेकुलर नेता केरल भी नहीं गए, जहां 11 जून को अखिला और अंजना नाम की दो बहनों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। ये दोनों भी अनुसूचित जाति की हैं। इनका दोष सिर्फ इतना था कि इनके पिता एन. राजन ने कांग्रेस के टिकट पर माकपा के विरुद्ध चुनाव लड़ने की हिमाकत की थी। हालांकि वे चुनाव हार गए। उनकी हार के बाद माकपा के गुंडे दोनों बहनों को प्रताडि़त करते थे। इसकी शिकायत के लिए दोनों बहनें माकपा कार्यालय गई थीं, लेकिन वहां उन पर तोड़फोड़ का आरोप लगाकर गिरफ्तार करवा दिया गया था।
मेरठ के सामाजिक कार्यकर्ता अजय मित्तल कहते हैं, ''मायावती, राहुल गांधी,अरविंद केजरीवाल, वृंदा करात जैसे नेता गुजरात पर तो शोर मचा रहे हैं, पर उन्हें दिल्ली से मात्र पौने दो सौ किलोमीटर दूर आगरा की घटना क्यों नहीं दिखी, जहां मुसलमानों ने 25 फरवरी को अनुसूचित जाति के अरुण माहौर की दिनदहाड़े हत्या कर दी थी। क्या यह माना जाए कि हत्यारा मुसलमान था इसलिए ये लोग चुप रहे?''
अमदाबाद में लोगों को न्याय दिलाने के लिए कार्य करने वाली संस्था 'जस्टिस ऑफ ट्रायल' के अध्यक्ष एस.एन. सोनी कहते हैं, ''जो नेता आजकल अनुसूचित जाति के लोगों के नाम पर हंगामा कर रहे हैं, उनमें से किसी में भी उनके प्रति हमदर्दी नहीं है। उनकी नजर केवल वोट पर है। जहां उन्हें राजनीतिक फायदा दिखता है वे वहीं जाते हैं।'' सोनी ने यह भी कहा, ''अनुसूचित जाति के लोग हिन्दू समाज के ही अंग हैं, लेकिन हिन्दू ही अपने कुकर्मों से उन्हें अपने से दूर कर रहे हैं। हिन्दुओं को अभी तक यह ज्ञान नहीं हुआ कि उनके ऐसे ही बुरे बर्तावों से मुसलमानों ने यहां करीब 800 वर्ष तक राज किया है।''
आई.पी.एस. अधिकारी रहे किशोर कुणाल अनुसूचित जाति के लोगों पर हो रहे अत्याचार से बहुत दु:खी हैं। वे कहते हैं, ''हिन्दू धर्म के विकास में अनुसूचित जाति के लोगों का बहुत बड़ा योगदान है। हम उत्साह और आवेग में कुछ ऐसा न करें जिससे कि हिन्दू विरोधी ताकतों को बल मिले। ये ताकतें देश में वंचित और मुस्लिम गठबंधन बनाने के लिए कार्य कर रही हैं।'' उन्होंने यह भी कहा, ''देश की राजनीति और नौकरियों में इस वर्ग के लोगों को तो पर्याप्त जगह मिली है, पर सामाजिक स्तर पर उनके साथ भेदभाव जारी है। इसे मिटाने के लिए ही मैंने पटना के श्री महावीर मंदिर में पहली बार अनुसूचित जाति के एक विद्वान को पुजारी बनाया था। इसके बाद लगभग 20 मंदिरों में इस वर्ग के पुजारी नियुक्त किए गए हैं। देश के अन्य मंदिरों में भी अनुसूचित जाति के लोगों को पुजारी बनाना चाहिए। संगत-पंगत की परिपाटी चलाई जानी चाहिए। पूरा समाज एक साथ सत्संग और भोजन क्यों नहीं कर सकता? संगत-पंगत से ही समरसता आएगी।''
सामाजिक कार्यकर्ता और 'मानुषी' पत्रिका की संपादक मधु किश्वर कहती हैं, ''देश में कुछ ऐसे तत्व हैं जो नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहते। इसके लिए वे हिन्दू वोट को विभाजित करना चाहते हैं। अनुसूचित जाति के लोगों पर हो रही हिंसा ने ऐसे तत्वों को सिर उठाने का मौका दिया है।'' किश्वर यह भी कहती हैं, ''हजारों दंगे कराकर भी कांग्रेस आज सेकुलर बनी हुई है और एक मामूली घटना से भी भाजपा की छवि सांप्रदायिक बन जाती है। ऐसा क्यों हो रहा है, यह भाजपा वालों को सोचना चाहिए? छवि सुधारने में उनसे चूक हो रही है।''
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता विजय सोनकर शास्त्री कहते हैं, ''इन दिनों अनुसूचित जाति के लोगों के अत्याचार के नाम पर भाजपा को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। विरोधियों को यह बर्दाश्त नहीं हो रहा है कि भाजपा के पीछे राष्ट्रवादी ताकतें खड़ी रहें। इसलिए वे हिन्दू वोट को तोड़ने के लिए अनुसूचित जाति के लोगों के बीच भाजपा की छवि खराब कर रहे हैं, साथ ही उनमें जो राष्ट्रवाद का ज्वार है उसे खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं।'' उन्होंने यह भी कहा, ''भाजपा की छवि खराब करने के पीछे भी कारण है। लंबे अरसे बाद 2014 के आम चुनाव में वामपंथियों को कड़ी शिकस्त मिली थी। यह हार उन्हें बर्दाश्त नहीं है। पहले ये वामपंथी कांग्रेस के सहारे हर जगह मनमानी करते थे, अब उनकी एक नहीं चल रही है। इसलिए वे इस सरकार और भाजपा के पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हैं।''गुरुग्राम के सामाजिक कार्यकर्ता विक्रम सिंह यादव कहते हैं, ''देश में एक समूह पैदा हो गया है जिसका एक ही काम है भाजपा को बदनाम करना। उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार है, लेकिन अखलाक की हत्या पर केन्द्र सरकार को घेरा गया। किसी ने उत्तर प्रदेश सरकार को इसके लिए दोषी नहीं माना। इसका मतलब समझा जा सकता है।''
यादव जैसे लाखों लोग हैं जिनका मानना है कि इन दिनों भारत में एक गहरी साजिश चल रही है। दलितों के नाम पर वे लोग अपनी बंजर हुई राजनीतिक जमीन को उपजाऊ बनाना चाहते हैं। इसके लिए वे भारतहित की भी बलि देने के लिए तैयार हैं। -अरुण कुमार सिंह-
विरोधियों को यह बर्दाश्त नहीं हो रहा है कि भाजपा के पीछे राष्ट्रवादी ताकतें खड़ी रहें। इसलिए वे हिन्दू वोटों को तोड़ने के लिए अनुसूचित जाति के लोगों के बीच भाजपा की छवि को खराब कर रहे हैं, साथ ही उनमें जो राष्ट्रवाद का ज्वार है , उसे खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं।
— विजय सोनकर शास्त्री, राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा
देश में कुछ ऐसे तत्व हैं जो नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहते। इसके लिए वे हिन्दू वोटों को विभाजित करना चाहते हैं। अनुसूचित जाति के लोगों पर हो रही हिंसा ने ऐसे तत्वों को सिर उठाने का मौका दिया है।
—मधु किश्वर, संपादक, मानुषी
देश में एक समूह पैदा हो गया है जिसका एक ही काम है भाजपा को बदनाम करना। उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार है, लेकिन अखलाक की हत्या पर केन्द्र सरकार को घेरा गया। किसी ने उत्तर प्रदेश सरकार को इसके लिए दोषी नहीं माना। इसका मतलब समझा जा सकता है।
– विक्रम सिंह यादव
सामाजिक कार्यकर्ता, गुरुग्राम
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