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गांधी जी की हत्या में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम घसीटने के लिए कांगे्रस के पूर्व अध्यक्ष सीताराम केसरी को माफी मांगनी पड़ी थी। यदि राहुल गांधी इतिहास से सबक लेते तो इस तरह नहीं फंसते।
सतीश पेडणेकर
हमारे देश के कई कांग्रेसी, सेकुलर और वामपंथी नेता जर्मनी के प्रचार मंत्री गोयबल्स की इस बात में यकीन रखते हैं कि किसी झूठ को बार-बार दोहराओ तो वह लोगों को सच लगने लगता है। ऐसे तत्वों के लिए गांधी हत्याकांड ऐसी दुधारू गाय है जिसे जब चाहो, दुह लो। गांधी हत्या के नाम पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर झूठे आरोप लगाकर उसे हमेशा के लिए कठघरे में खड़ा कर दो। अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह और कम्युनिस्ट नेताओं का तो यह प्रिय शगल रहा। ऐसे नेताओं में एक नाम और जुड़ गया है-कांग्रेस के उपाध्यक्ष और नेहरू खानदान के चश्मोचिराग राहुल गांधी का। लेकिन इस बार राहुल गांधी का झूठ को सच बताने का काला जादू भारी पड़ता जा रहा है। संघ के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर चल रहे मानहानि मुकदमे में19 जुलाई को राहुल गांधी को सर्वोच्च न्यायालय से झटका लगा। सर्वोच्च न्यायालय ने राहुल से कहा है कि या तो वे इस मामले पर माफी मांगें या फिर मुकदमे का सामना करें। साथ ही न्यायालय ने यह भी कहा कि जब आप किसी व्यक्ति विशेष के बारे में बोलते हैं तो आपको सतर्क रहना चाहिए। उस दिन न्यायालय में राहुल की उस याचिका पर सुनवाई हो रही थी, जिसमें उन्होंने अदालत से गुहार लगाई थी कि उनके खिलाफ महाराष्ट्र की एक निचली अदालत में चल रहे आपराधिक मानहानि से जुड़े मामले को खारिज किया जाए। उल्लेखनीय है कि राहुल ने 2014 में एक चुनावी रैली में कहा था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने गांधी जी की हत्या की थी।
अदालत ने कहा कि आप किसी की सामूहिक निंदा नहीं कर सकते। हम सिर्फ यह जांच कर रहे हैं कि राहुल गांधी ने जो बयान दिया था, क्या वह मानहानि के दायरे में आता है या नहीं। अगली सुनवाई 27 जुलाई को होगी। न्यायालय ने कहा कि नाथूराम गोडसे ने गांधी जी को मारा और संघ के लोगों ने गांधी जी को मारा, इन दोनों बातों में बहुत फर्क है।
राहुल पर यह मुकदमा भिवंडी (महाराष्ट्र) के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता राजेश कुंटे ने दायर किया है। राजेश का कहना है कि राहुल ने सोनाले में 2014 में एक चुनावी रैली में कहा था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने गांधी जी की हत्या की थी। राहुल का यह बयान संघ की प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाता है।
अब राहुल गांधी के समर्थक कांग्रेसी छाती ठोककर कह रहे हैं कि वे माफी नहीं मांगेंगे और मुकदमे का सामना करेंगे, लेकिन कांग्रेस उपाध्यक्ष को समझ लेना चाहिए कि ऐसा करके वे राजनीतिक खुदकुशी ही करेंगे। अच्छा होता वे गांधी हत्या के बारे में अदालत का फैसला पढ़ लेते।
पूरी संभावना है कि कुछ समय बाद राहुल कांग्रेस के अध्यक्ष बन जाएंगे। उन्हें कांग्रेस का इतिहास पढ़कर भलीभांति जान लेना चाहिए कि सोनिया गांधी से पहले कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके सीताराम केसरी ने भी संघ पर गांधी हत्या का आरोप लगाया था, मगर उन्हें माफी मांगनी पड़ी थी। कम से कम राहुल उस इतिहास से तो सबक लेते और ऐसा अनर्गल आरोप लगाने से बाज आते। प्रसिद्ध स्तंभकार ए.जी. नूरानी को भी 'द स्टैटसमैन' अखबार में प्रकाशित एक लेख के लिए माफी मांगनी पड़ी थी। लेकिन लगता है कि राहुल इतिहास से कोई सबक लेने को तैयार नहीं हैं। वैसे जो लोग इतिहास से सबक नहीं लेते वे इतिहास को दोहराने के लिए बाध्य होते हैं। यानी अब देर-सवेर राहुल को माफी मांगनी ही पड़ेगी।
राजेश कुंटे ने बताया कि राहुल के इस बयान से आहत होकर ही उन्होंने उनके विरुद्ध भिवंडी की एक अदालत में मुकदमा दायर किया। उस मुकदमे को खारिज करवाने के लिए राहुल ने उच्च न्यायालय में अर्जी दाखिल की थी, किन्तु न्यायालय ने उसे रद्द कर दिया था। फिर राहुल गांधी ने सर्वोच्च न्यायालय में अर्जी लगाकर मामले की आपराधिक धारा को चुनौती दी। यहां बता दें कि मानहानि के मामले में सामान्य और आपराधिक दोनों धाराएं लगती हैं।
यहां उल्लेखनीय है कि जयललिता द्वारा किए गए मानहानि के मुकदमे में सुब्रह्मण्यम स्वामी ने आपराधिक प्रक्रिया एक्ट के तहत सजा देने के प्रावधान को चुनौती दी थी और कहा था कि सजा संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है। इस आधार पर उन्हें राहत मिल गई थी। इसी आधार पर एक ऐसे ही मामले में अरविंद केजरीवाल को राहत मिली हुई है। इन दोनों के आधार पर राहुल गांधी ने अपील की और उन्हें भी राहत मिल गई। बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने इन तीनों याचिकाओं को मिला दिया और मई में उनके बारे में फैसला दिया और कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं है कि आप कुछ भी गलतबयानी कर सकते हैं। न्यायालय ने यह भी कहा कि गोडसे संघ का स्वयंसेवक था या नहीं, इस बारे में निचली अदालतें ही सुनवाई करेंगी। दो महीने पहले भी अदालत ने राहुल गांधी से कहा था कि यदि आप खेद प्रगट करने को तैयार हैं तो हम सहमति के आधार पर कोई फैसला दे सकते हैं।
इस तरह गांधी हत्या के लिए संघ को दोषी ठहराने का खेल अब भी जारी है। कुछ अरसा पहले बीबीसी फीचर सेवा के एक लेख में कहा गया था, ''कुछ वर्ष पहले तक यह धारणा व्याप्त थी कि गांधी जी की हत्या से संघ का कोई संबंध था।'' यह इतिहास का पहला कारगर और राजनीति प्रायोजित मिथक था। गोडसे के नाम की राजनीतिक महत्ता इसलिए है कि उसे एक वैचारिक पहचान देने और उस पहचान में समूचे हिन्दुत्व को लपेट देने भर से सेकुलरों की मंशा पूरी हो जाती है। बहुत सीधा सा रास्ता है – गोडसे से सावरकर, सावरकर से दाएं-बाएं होते हुए संघ, और संघ तक पहुंचते ही अगला पड़ाव भाजपा। इसी के साथ ही कांग्रेसियों, वामपंथियों और अन्य सेकुलरों की बौद्धिक यात्रा अपने गंतव्य पर पहुंच जाती है। तर्क-सबूत भला किसे चाहिए?
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