|
-अश्वनी मिश्र-
आप यकीन करेंगे कि आने वाले समय में गाय का गोबर सीएनजी की तर्ज पर पेट्रोल और डीजल का नया विकल्प बन सकता है। तो इसका जवाब होगा बिल्कुल यह विकल्प बन सकता है। हरियाणा के हिसार जिले में इस परियोजना पर काम शुरू हो गया है। पेशे से इंजीनियर डॉ. बी.एस नेगी 21 वर्ष से गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया से जुड़े रहे। दो वर्ष पूर्व उन्होंने हिसार के पास हांसी में ऐसा ही संयंत्र लगाया है। वे अपने अनुभव को साझा करते हुए कहते हैं, ''अगर पूरे भारत में जितना भी गोबर है, उससे गैस बननी शुरू हो जाए तो इससे भारत की सभी गाडि़यां चल जाएंगी।''
डॉ. नेगी की बात बिल्कुल सही है और इस दिशा में कुछ कदम बढ़ भी चुके हैं। वे अपने संयंत्र से गोबर गैस उत्पादित करते हैं और उसे छोटी-छोटी औद्योगिक इकाइयों, ढाबों को बड़ी कम कीमत पर उपलब्ध कराते हैं।
गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया में कार्य करने के दौरान प्राप्त अनुभवों को साझा करते हुए डॉ. नेगी कहते हैं, 'हमने देश ही नहीं' विदेशों में भी गोबर गैस से चलने वाले संयंत्रों को बहुत निकट से देखा और समझा है। अपने 21 वर्ष की अनुभव को हम बेकार नहीं जाने देना चाहते थे। सेवा के दौरान ही विचार था कि सेवानिवृत्त होने के बाद इस क्षेत्र में कुछ विशेष काम किया जाए।'' वे कहते हैं,'आज देश में ऊर्जा की मांग दिनोंदिन बढ़ रही है लेकिन हम उतना उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि हमारे पास संसाधन नहीं हैं, हमारे पास संसाधन हैं पर हम उनका ठीक ढंग से उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। ऊर्जा की जरूरत को कई देश अच्छी तरह पूरा कर रह रहे हैं पर भारत इस दिशा में अभी काफी पीछे है।''
डॉ. नेगी गैस संयंत्र लगाने के अपने विचार के बारे में बताते हैं, ''सेवा के दौरान हमारा कई देशों में जाना रहा। इस दौरान देखने में आया कि कैसे बहुत से देशों में गोबर गैस का लाभ लिया जा रहा है। इसे देखकर ही विचार आया कि कुछ करना चाहिए। क्योंकि मैं पहले ही जानता था कि गैस की खपत भारत में ज्यादा है और उसका उत्पादन हमारे यहां उतना नहीं हो पाता। धरती पर डीजल, पेट्रोल, गैस व कोयला के भंडार सीमित मात्रा में हैं। इनका दोहन जिस गति से हो रहा है वह ज्यादा दिन नहीं चलने वाले। हमारी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में गोधन बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। क्योंकि जब तक हम गाय पालते रहेंगे, तब तक हमें गोबर प्राप्त होता रहेगा। इसका भंडार कभी समाप्त होने वाला नहीं है। हमारे पास चीजें हैं, सभी संसाधन हैं तो क्यों न हम ही कुछ काम करना शुरू करें। इसी कड़ी के रूप में हमने मथुरा में साल 2012 में गोवर्धन नाम से बॉयोगैस संयंत्र की शुरुआत की।''
दरआसल डॉ. नेगी जब मथुरा के गैस संयंत्र पर काम कर रहे थे तभी उन्हें हांसी संयंत्र के बारे में जानकारी हुई। इसको लगाने वाले कुछ अप्रवासी भारतीय थे जो इसे बेचना चाहते थे। उन्होंने अपने 8 साथियों के साथ 2014 में इसे 95 लाख रुपये में खरीद लिया।' हांसी संयंत्र की विशेषता बताते हुए नेगी कहते हैं, ''यहां पर हमने जो संयंत्र विकसित किया है वह अमेरिका की आधुनिक तकनीक से सुसज्जित है। इस संयंत्र से अन्य सामान्य तकनीक के मुकाबले 7 दिन में ही गोबर से खाद बन जाती है। जबकि सामान्य तकनीक में 3 सप्ताह में खाद बन पाती है। हांसी संयंत्र की क्षमता प्रतिदिन 20 टन गोबर लेने की है। अगर इतना गोबर मिल जाता है तो हम प्रतिदिन 10 हजार क्यूबिक मीटर बॉयोगैस, 5 टन बायोकंपोस्ट खाद और 5 टन तरल जैविक खाद का उत्पादन कर लेते हैं।'' संयंत्र के प्रबंधक महेन्द्र सिंह खाती बताते हैं कि वर्तमान में गोबर की पूरी तरह से आपूर्ति न होने के कारण इसका आधा उत्पादन हो पा रहा है, जिससे थोड़ी समस्या हो जाती है।
हांसी में स्थापित गैस संयंत्र श्री हरियाणा गोशाला से गोबर लेता है। संयंत्र में गोबर की कमी न हो और गोशाला इसके लिए चिंता करती रहे, इस उद्देश्य से संयंत्र के निदेशक गोशाला को अनुबंध से अलग प्रतिवर्ष गायों के संरक्षण और देखभाल के लिए 5 लाख रु. देते हैं। इस संयंत्र का सबसे महत्वपूर्ण पहलू इस ऊर्जा से होने वाला उत्पादन है। इस पर बी.एस. नेगी कहते हैं, ''जो उत्पादन होता है उसको हम होटल, छोटे-छोटे ढाबों, छोटी औद्योगिक इकाइयों को बेचते हैं। हम 10 किलो का सिलेंडर सिर्फ 300 रुपये में उपलब्ध कराते हैं। साथ ही इससे जो खाद निकलती है उसकी हरियाणा सहित पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बिक्री की जाती है।''
हौसले से भरे नेगी कहते हैं कि जैसा मैं सोच रहा था, हमारा वह सपना धीरे-धीरे पूरा हो रहा है। आज हमारे संयंत्र की बदौलत लोग जैविक खाद खरीदते हैं जिससे यूरिया की खपत में कमी देखी गई है। हमारा उद्देश्य है कि हर क्षेत्र में बॉयोगैस का अधिक से अधिक उत्पादन शुरू हो। क्योंकि लोग इसकी उपयोगिता को अभी भी नहीं जानते। जहां यह गैस अन्य ऊर्जा स्रोतों की अपेक्षा कम खर्चीली है वहीं पर्यावरण के लिए पूर्णरूप से हितकारी भी है। वे एक उदाहरण देते हुए बताते हैं कि अगर किसी परिवार में 5 गाय हैं तो प्रतिदिन उसकी रसोई इससे उत्पन्न होने वाली गैस से तैयार हो जाएगी। यानी उसे एलपीजी नहीं लेनी पड़ेगी।
भविष्य में इस दिशा में काम के बारे में वे कहते हैं, ''हमारा उद्देश्य पैसा कमाना नहीं है। हम लोगों को इसके बारे में अधिक से अधिक जागरूक कर रहे हैं और सुझाव दे रहे हैं। इस दिशा में हम व हमारे साथी बराबर लगे हुए हैं। मथुरा, बरसाना और वृंदावन में ऐसे ही संयंत्रों को लगाने की योजना है और बहुत जल्द हम वहां अपना कार्य खड़ा कर देंगे। मथुरा पर तो काफी काम हो चुका है। जैसे हमें हांसी संयंत्र को चलाने में पहले थोड़ी दिक्कत आई क्योंकि यहां से जो उत्पादन हुआ पहले पहल उसे खरीदने वाला कोई नहीं मिला। इससे सीख लेते हुए हम जो मथुरा में गोवर्धन संयंत्र शुरू करने जा रहे हैं वहां हमने पहले से ही गैस बेचने और गोबर देने का अनुबंध कर लिया है। इससे हमें संयंत्र चलाने में कोई दिक्कत नहीं आएगी और यहां से जो उत्पादन होगा वह आसानी से बिक जायेगा।''
भारत में जिस रफ्तार से जनसंख्या में बढ़ोतरी हो रही है उसी रफ्तार से ऊर्जा की मांग बढ़ रही है। गोबर गैस जैसी ऊर्जा का हम अभी तक भरपूर लाभ नहीं ले पा रहे हैं। हम अभी तक परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर ही निर्भर हैं जबकि कई देश अन्य ऊर्जा स्रोतों का भरपूर लाभ लेकर जहां संसाधनों की बचत कर रहे हैं, वहीं पर्यावरण को भी राहत दे रहे हैं। ल्ल
भारत में बॉयोगैस के बारे में लोगों को जागरूक करना चाहिए। क्योंकि इस ऊर्जा के एक नहीं, अनेक फायदे हैं। गोबर से जहां हमें ऊर्जा मिलती है वहीं इससे कंपोस्ट खाद, गैस भी मिलती है। साथ ही हमारा गोवंश भी संरक्षित होता है। आज विश्व के कई देश इसका लाभ ले रहे हैं।
– डॉ. बी.एस. नेगी, निदेशक,हांसी गैस संयंत्र
काम तो अच्छा है ही हम जैसे ग्राहकों के लिए सेवा भी बहुत अच्छी है, जब जितने सिलेंडर मंगाते हैं मिल जाते हैं।
-जितेन्द्र सैनी
पैराडाइज होटल के संचालक, हांसी
मुझे ढाबा चलाने के लिए अधिक गैस की जरूरत रहती है। पर उतनी एलपीजी मिल नहीं पाती। पर जब से गोबर गैस के सिलेंडर प्रयोग करने लगा हूं, तब से आधी समस्या सुलझ गई है। समय से गैस उपलब्ध हो जाती है वह भी कम दाम पर।
-पुष्कर भयाना, भाईजी ढाबा के मालिक, हांसी
टिप्पणियाँ