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– जेके त्रिपाठी –
प्रधानमंत्री का चार अफ्रीकी देशों का पांच दिवसीय दौरा भारत के लिए एक महत्वपूर्ण अध्याय की शुरुआत रहा। भारत द्वारा अफ्रीकी देशों से संबंध प्रगाढ़ करने की इच्छा का संकेत तो विगत अक्तूबर से ही मिल गया था जब भारत ने भारत-अफ्रीका फोरम शीर्ष सम्मेलन-3 का आयोजन नई दिल्ली में किया था।
विश्व के 20 प्रतिशत भूभाग और भारत के बराबर आबादी वाले सबसे बड़े अफ्रीका महाद्वीप को हम इक्का-दुक्का उदाहरणों को छोड़कर सामान्य रूप से उपेक्षित करते रहे हैं। या यूं कहा जाए कि हमने अफ्रीका के साथ अपने संबंधों पर उतना ध्यान नहीं दिया जितना अपेक्षित था। मिस्र, नाइजीरिया, द. अफ्रीका को छोड़कर शेष अफ्रीकी देश हमारे लिए दुर्भाग्य से हाशिए पर ही रहे। इस सोच को बदलने का प्रयास पिछले दो भारत-अफ्रीका शीर्ष सम्मेलनों में हुआ, जो अफ्रीका संघ के मुख्यालय अदीस अबाबा में हुए। यह विडम्बना थी कि एक ऐसे महाद्वीप को, जिसकी जनसंख्या 2050 में 2.37 अरब हो जाने का अनुमान है, जहां भविष्य में आबादी की औसत आयु 20 वर्ष होगी और जो खनिज सम्पदा का अकूत भंडार है, महत्व नहीं दिया गया। विगत अक्तूबर से यह सब बदल गया, यह संतोष की बात है।
इस यात्रा के लिए सिर्फ मोजाम्बिक, द. अफ्रीका, तंजानिया और केन्या को ही क्यों चुना गया, यह विचारणीय है। पहला कारण है कि अफ्रीका के विशाल पूर्वी तट का बहुत बड़ा भाग इन्हीं चार देशों की सीमाओं द्वारा बना है। अरब सागर में समुद्री डकैती की चिंताजनक समस्या इन देशों के सक्रिय सहयोग के बिना नहीं सुलझ सकती। दूसरे, अरब सागर में चीन की बढ़ती पैठ को रोकने के लिए भारत को अधिक सक्रिय होने की आवश्यकता है। इस दिशा में भारत- ईरान के चाबहार बन्दरगाह के विकास के बाद अफ्रीका के पूर्वी तट के इन देशों का सहयोग अपरिहार्य हो जाता है। तीसरे, इन देशों में भारतीय मूल के लोगों की बड़ी तादाद बसती है, उनसे मुखातिब होना और उनसे जुड़ाव का संदेश देना भी आवश्यक है।
चौथा प्रमुख कारण है, इन देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार। अफ्रीका के साथ हमारा द्विपक्षीय व्यापार बढ़ते हुए 2014-15 में 7.2 अरब डॉलर हो गया है जिसे और बढ़ाने की आवश्यकता है। 32 व्यक्ति प्रति किमी. के औसत जनसंख्या घनत्व वाले मोजम्बिक की 90 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि बेकार पड़ी है क्योंकि कृषकों के पास मशीनें, बीज, खाद, तकनीकी इत्यादि के लिए पैसे नहीं हैं। ऐसे में दाल की कमी से जूझ रहे भारत के लिए यहां की जमीन को दाल के लिए प्रयोग कराना एक अच्छा विकल्प था। दो सरकारों के बीच हुए समझौते के तहत मोजाम्बिक को उपरोक्त साधन मुहैया कराए जाएंगे जिससे वहां के किसान सहकारी खेती से दाल उगाएंगे। भारत ने प्रतिवर्ष 1,00,000 टन दाल निर्धारित न्यूनतम मूल्य पर खरीदने की गारण्टी दी है जो बढ़कर चार वर्षों में 2,00,000 टन हो जाएगी।
द. अफ्रीका पूरे महाद्वीप में हमारे लिए बहुत अहम है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता के लिए द. अफ्रीका, एशिया से सुरक्षा परिषद में हमारी भागीदारी का समर्थन कर रहा है और हम अफ्रीका से उसकी उम्मीदवारी का। यात्रा के दौरान हुए आठ व्यापारिक समझौतों में दो रक्षा उत्पादन संबंधी समझौते विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं जिससे इस क्षेत्र में अधिक आत्मनिर्भरता मिलेगी। तंजानिया को हमने सस्ती दरों पर कई ऋण प्रदान किए हैं। सूचना, प्रसारण तकनीकी, व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा जंजीबार से जलापूर्ति में सहयोग के लिए भी समझौते हुए हैं। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हाल ही में तंजानिया में हुए सर्वेक्षण से 2,170 अरब घन फुट प्राकृतिक गैस की संभावना बताई गई है। ऐसे में हमारा तंजानिया को सहयोग देते रहना हमारी भविष्य की ऊर्जा आवश्यकता की दृष्टि से जरूरी हो जाता है।
केन्या के साथ हुए 7 समझौतों में अरब सागर में रक्षा सहयोग, द्विपक्षीय दोहरे कराधान को रोकने का प्रावधान अति महत्वपूर्ण है।
हम यह कह सकते हैं कि इस यात्रा से हमने काफी कुछ प्राप्त किया है और भविष्य में कई और लाभप्रद सहयोग-समझौतों के लिए जमीन भी तैयार की है। तंजानिया और द. मोजाम्बिक में तो 35 वर्षों के बाद हुई किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा ने इन देशों में भारत के प्रति नया उत्साह जगाया है और भविष्य के लिए द्वार खोला है। आशा है कि प्रधानमंत्री अफ्रीका के और देशों, खास तौर पर मध्य अफ्रीकी देशों में जहां कभी कोई भारतीय प्रधानमंत्री नहीं गया है, में जाएंगे और सहयोग की नई दिशाएं खोलेंगेे।
(लेखक जिम्बाब्वे में भारत के राजदूत रहे हैं)
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