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नई दिल्ली। 12 जून को कांस्टीट्यूशन क्लब में भारतीय शिक्षण मंडल और भारत नीति की ओर से नई शिक्षानीति पर एक गोष्ठी आयोजित की गयी। वरिष्ठ शिक्षाविद और एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक प्रो. जगमोहन सिंह राजपूत ने कहा कि शिक्षा केवल रोजगार केन्द्रित नहीं होनी चाहिए बल्कि उसमें जड़ों से जुड़ने और संस्कार देने की भी क्षमता होनी चाहिए।
गोष्ठी के मुख्या वक्ता श्री मुकुल कानितकर ने कहा कि भारत ज्ञान का मुख्य केंद्र रहा है इसलिए जगद्गुरु होने के नाते हमारी शिक्षा प्रणाली भारतीय मूल्यों की आधारभूमि पर खड़ी होकर विज्ञान और तकनीकी से युक्त वैश्विक स्वरूप वाली होनी चाहिए। शिक्षा आनंद देने वाली होनी चाहिए,तनाव देने वाली नहीं।
मुख्य अतिथि केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि हम सब लोकतंत्र के सिपाही हैं़, हर एक की राय दूसरे व्यक्ति से भिन्न होती है। हम विचार और संवाद का स्वागत करते हैं वास्तव में शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो जीवन का संबल बन सके। यह भाजपा-कांग्रेस मात्र का नहीं बल्कि एक बड़ा राष्ट्रीय विषय है। शिक्षा को दुरुस्त करने के लिए समाज की सहभागिता महत्वपूर्ण है। इसमें सबसे बड़ी और अहम कड़ी शिक्षक ही है।
श्री जावड़ेकर ने कहा कि नई शिक्षा नीति में समाज के सब लोगों की राय होगी, नवोन्मेष एवं शोध पर विशेष जोर होगा।
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री श्री मुरलीधर राव ने कहा कि आज संस्कृत भाषा बीज रूप में ही बची है। प्राचीन ज्ञान की पोषक इस भाषा के साथ शिक्षा व्यवस्था में प्रांतीय भाषाओं की भूमिका की भी अनदेखी नहीं होनी चाहिए और भाषाओं को प्रोत्साहन मिलना चाहिए। गोष्ठी में कई शिक्षाविद और मीडियाकर्मी उपस्थित थे। -प्रतिनिधि
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