मन चंगा, मांगे वही गंगा
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मन चंगा, मांगे वही गंगा

by
Jul 18, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 18 Jul 2016 14:53:22

पतित पावनी गंगा अब लोगों की उपेक्षा के चलते कई स्थानों पर नाले सी दिखती है। इसके पानी के अनुपम औषधीय गुण भी घटतेे जा रहे हैं। सरकारी प्रयासों के अलावा लोगों को भी सोच ठीक रखते हुए गंगा को फिर से अविरल और निर्मल बनाने में सहयोग देना होगा

अविरलता से ही आएगी निर्मलताल्ल
 गंगा के मौजूदा हाल को बयां करने वाली पुस्तक 'दर-दर गंगे' के लेखक अभय मिश्र एवं पंकज रामेन्द्रु से पाञ्चजन्य संवाददाता अश्वनी मिश्र की बातचीत के प्रमुख अंश:-    

गंगा के उद्गम स्थल गोमुख से लेकर बंगाल की खाड़ी तक गंगा की क्या हालत है?
गोमुख से लेकर गंगोत्री और उसके 50 किमी. आगे तक गंगा बहती है। जैसे-जैसे वह पहाड़ से नीचे मनुष्य के संपर्क में आती है, अपना मूल स्वरूप खोने लगती है। हरिद्वार में गंगा को नहर का रूप दे दिया गया है। आगे नरौरा में बैराज के कारण वह अपने प्राण त्याग चुकी होती है, क्योंकि इसका अधिकतर पानी पश्चिमी उ.प्र. में सिंचाई के लिए और पीने के लिए दिल्ली भेज दिया जाता है। मुख्य धारा में नाममात्र का ही पानी गंगा में रहता है। इसके बाद कानुपर पहुंचते-पहुंचते उसमें गंगा के नाम पर शहर का गंदा पानी बहता है। उत्तर प्रदेश में गंगा सबसे लंबा सफर तय करती है लेकिन यहीं पर पानी की इतनी कमी है कि इसमें बहाए गए शव कुछ दूर बहकर खुद किनारे आ लगते हैं। कन्नौज के पास काली नदी नाम के अनुसार ही गंगा में जहर घोलने का काम करती है। सबसे ज्यादा नुकसान पहला बड़ा शहर कानपुर ही पहुंचाता है। कुछ हद तक यह बात ठीक है, लेकिन सच यह भी है कि इससे पहले ही हम गंगा का दम घोट चुके होते हैं।
ल्ल    आप दोनों ने गंगा पर केन्द्रित पुस्तक लिखने की क्यों ठानी? इसके पीछे कोई खास कारण था?
हम दोनों अपने एक मित्र के साथ बैठे हुए थे कि तय हुआ गंगा यात्रा करेंगे। असल में हम गंगा पर एक डाक्युमेंटरी बनाना चाहते थे, साथ ही मन में घूमने जाने की भी इच्छा थी। लेकिन जब हमने गंगा के उद्गम स्थल से यात्रा शुरू की और धीरे-धीरे उसके साथ नीचे आते गए तो उसकी हालत देखकर एक विचार उत्पन्न हुआ। हमने दो-तीन चरणों में गंगा की यात्रा की। लौटकर आए तो आपस में बात की कि आखिर हम गंगा के लिए क्या कर सकते हैं। दोनों ने तय किया कि हम गंगा को मानते हैं और कम से कम हमारे बस में जो है वह करें। लिखना तो हमारे बस में था ही। बस यहीं से लिखना शुरू हुआ जो किताब की शक्ल में आज हमारे सामने है।
ल्ल     गंगा की असल समस्या क्या है ?
गंगा में प्रदूषण प्रमुख समस्या तो है ही, लेकिन इससे बड़ी समस्या गंगा को जगह-जगह बांध देने की है। गंगा को रोकते ही उसका दम घुटने लगता है। गंगा किनारे जितने भी गांव और शहर हैं, उनसे निकलने वाला सीवर और प्रदूषित पानी बिना शोधित हुए सीधा नदी में गिरता है। गंगा में किसी भी तरह का प्रदूषित पानी न मिले इसकी पूरी चिंता करनी होनी और सख्ती भी दिखानी होगी। दूसरे हमने कभी गंगा किनारे रहने वाले लोगों को गंगा की अविरलता और निर्मलता के प्रति जागरूक नहीं किया। समाज में एक धारणा है कि गंगा जल में इतनी शक्ति है कि उसमें कितना भी गंदा पानी मिला दो वह स्वच्छ ही रहेगा। लेकिन गंगा को आखिर उसका सम्मान तो देना ही होगा। अधिक दोहन से वह समाप्त हो जाएगी या फिर अपना स्वरूप खो देगी। सरकार के सामने समाज को समझाने की एक चुनौती है। अगर हम उन लोगों को जागरूक कर देंगे तो बहुत हद तक समस्या का समाधान हो जाएगा।
ल्ल    आपकी नजर में गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए क्या कदम उठाये जाने चाहिए?
पानी तब तक ही निर्मल रहता है जब तक वह अविरल रहता है। गंगा की अविरलता बहुत जरूरी है। लेकिन गंगा की अविरलता के लिए पानी चाहिए जो हम उसे उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं। मुसीबत बस यही है। पहले आप उसे निर्बाध रूप से बहने दीजिए फिर बाकी प्रयास काम आएंगे।
ल्ल    नमामि गंगे योजना पर क्या कहेंगे?
यह केन्द्र सरकार की बहुत ही महत्वपूर्ण योजना है। सरकार ने गंगा के लिए अलग मंत्रालय बनाया है तो साफ है कि सरकार का गंगा की ओर ध्यान है। बजट भी सरकार ने इसे भरपूर दिया है ताकि काम सुचारू रूप से हो सके। रही बात सरकार की नीयत की, तो उस पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता। यह इतना बड़ा विषय है कि सरकार इसे महीने-दो महीने में नहीं कर सकती। हमें धीरज से काम लेना होगा। 

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