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कराची मौत का शहर दिवास्वप्नों की कब्रगाह

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Jul 4, 2016, 12:00 am IST
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दिंनाक: 04 Jul 2016 13:06:21

पाकिस्तान की आर्थिक राजधानी कराची अब अपराधियों के लिए जानी जाने लगी है। अमजद साबरी की हत्या से इस्लामवाद का  खोखला चेहरा दुनिया के सामने आया 

 

 प्रशांत बाजपेई
एक और नामचीन हत्या। आज कराची को हिलाने के लिए शायद यह नाकाफी हो, लेकिन अमजद साबरी पाकिस्तान के संगीत का जाना-मना नाम थे। भारत में  भी उन्हें सुनने वाले अच्छी संख्या में रहे हैं। साबरी की कब्बालियों को इस्लाम की तौहीन मानने वालों की कमी नहीं रही और आखिरकार एक तालिबानी मुजाहिदीन ने अपनी गोलियां इस 39 वर्षीय गायक के सिर में उतार दीं। भयभीत अमजद अपने छोटे-छोटे बच्चों के नाम की दुहाई देते रह गए। हत्यारों का दावा है कि उन्होंने अमजद साबरी को 'पैगंबर की शान के खिलाफ गुस्ताखी की सजा' दी है। साबरी की हत्या के पहले के 48 घंटों में कराची में उच्च न्यायाधीश सज्जाद अली शाह के बेटे बैरिस्टर ओवैस अली शाह का अपहरण हुआ और एक अहमदी डॉक्टर की हत्या की गई थी। तीनांे घटनाओं का संबंध कराची में जारी नस्लीय-मजहबी खूंरेजी से है। मौत के सिलसिले में नई कडि़यां जुड़ने का सिलसिला जारी है।
  कराची  पाकिस्तान की आर्थिक राजधानी है, यह नस्लीय रंजिशों और खून की सियासत वाली बस्ती है, यह सात दशकों से सुलग रहा शहर है। शहरों में यह दुनिया की दूसरी बड़ी मुस्लिम बसाहट है। कराची पाकिस्तान को जन्म देने वाले द्विराष्ट्र  सिद्धांत की कब्रगाह है।
कराची में प्रतिदिन 7-8 हत्याएं हो रही हैं। 2014 में यहां 2,023 लोग नस्लीय हिंसा और लक्षित हिंसा के शिकार हुए थे, जबकि इसी साल पूरे पाकिस्तान में हिंसा और आतंकवाद से संबंधित घटनाओं में 7,622 लोग मारे गए थे। 2015 में इनमें कमी आई और अब 2016 में आंकड़े फिर तेजी से बढ़ रहे हैं। कराची का इतिहास भी कम हिंसक नहीं रहा है। 1986 से 1996 के बीच कराची की राजनीतिक-नस्लीय हिंसा ने 10 हजार जिंदगियों को खाक में मिला दिया था। खूंखार आतंकी संगठनों के काफिले भी सड़कों पर  दनदनाते घूमते हैं। लश्करे झांगवी, अलकायदा, पंजाबी तालिबान, तहरीके तालिबान पाकिस्तान, अल मुख्तार, खरूज, अल फुरकान, बदर मंसूर, जुंदुल्लाह…सब फल-फूल रहे हैं। शियाओं और पख्तूनों पर हमले हो रहे हैं। सिंधी और मुहाजिर एक-दूसरे के खिलाफ तलवारें खींचे खड़े हैं। पंजाबी मुस्लिम, सिंधी मुस्लिम, बलूच, पठान.़.़ फिरकों के नाम और लाशें गिनते जाइए। गिनती खत्म नहीं होती। मादक पदार्थ, फिरौती , डाकाजनी बेतहाशा बढ़ गई है। भूमाफिया, पानी टैंकर माफिया, रेत-बजरी-ईंट-गिट्टी माफिया, ट्रांसपोर्ट माफिया का चलन है। हर साल गंदे पानी से पैदा हुई बीमारियां 25-30 हजार कराची वालों की जान ले लेती हैं। आज लगभग ढाई करोड़ आबादी वाले कराची की आबादी 2000 से 2010 के बीच 80 प्रतिशत बढ़ी। यह किसी शहर में एक दशक में चेन्नै की आबादी से कहीं ज्यादा आबादी जोड़ने जैसा है। लेकिन सिर्फ सड़कें और बस्तियां ही तंग नहीं हुईं, लोगों के दिल और भी तंग होते चले गए। इस तंगदिली का सिलसिला बहुत पुराना है।
1943 तक सिंध के ज्यादातर मुस्लिम जमींदार मुस्लिम लीग से जुड़ चुके थे। इसी बरस 'जिए सिंध' तहरीक के प्रवर्तक गुलाम मुर्तजा शाह सैयद ने भारतभर के मालदार मुसलमानों को बुलावा भेजा कि वे अपना पैसा और व्यापार लेकर आएं और सिंध को मुस्लिम प्रभुत्व  वाले इलाके में परिवर्तित करने में सहायता करें। आह्वान था-''यदि मुंबई और गुजरात के हिंदू सीमांत में जाकर हिंदू प्रभुत्व स्थापित कर सकते हैं तो क्या हम ऐसा नहीं कर सकते? यह इलाका (सिंध) मुख्यत: किसानों का है। व्यापार उद्योग नगण्य है। आपका (मुस्लिम व्यापारी) पैसा और अनुभव इस कमी को दूर कर सकता है।''
विडंबना कहिए या प्रकृति का न्याय, उन्हीं गुलाम मुर्तजा शाह को 1972 में 'जिए सिंध कौमी महाज' नामक दल बनाकर 'कराची सिंधी मुस्लिमों के लिए' का नारा बुलंद करना पड़ा। पर हाथ से सब कुछ निकल चुका था। पाकिस्तान निर्माण का झंडा बुलंद करने वाले सिंधी मुस्लिम, मुहम्मद अली जिन्ना नामक एक मोहाजिर के नेतृत्व में चल पड़े थे, लेकिन पाकिस्तान बनने के चंद घंटों के अंदर ही उनका दु:स्वप्न शुरू हो गया जो फिर कभी खत्म नहीं हुआ।  उनके सबसे महत्वपूर्ण शहर कराची को पाकिस्तान की राजधानी बनाकर केंद्र शासित बना दिया गया। वे कराची जाने के सदमे से उबरते, उससे पहले मोहाजिरों की बाढ़ ने कराची को डुबोना शुरू कर दिया। फिर, पाकिस्तान की पहली मुस्लिम लीग काउंसिल के 300 मनोनीत सदस्यों में से160 मोहाजिर थे।

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