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आजाद ने कहा था, 'मैं आजाद था, आजाद हूं और आजाद रहूंगा। जब तक मेरे पास मेरी यह पिस्तौल है, अंग्रेजों की पुलिस मुझे छू भी नहीं सकती।' आज भी गूंजती है अल्फ्रेड पार्क में आजाद की दास्तां
सुनील राय
भारत की जंग-ए-आजादी मे अंग्रेजों की पुलिस से लड़ते -लड़ते शहीद हुए चन्द्रशेखर आजाद ने कभी सोचा नहीं होगा कि उन्हीं के देश में इस बात के सरकारी कागजात तक सुरक्षित नहीं रह पायेंगे जिसके आधार पर उनकी शहीद होने की कथा, आने वाली पीढियों को मालूम हो सके। जिस अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद ने देश के लिये अपने प्राण न्योछावर कर दिये, वहा के लोग वह दस्तावेज भी नहीं सहेज सके जो उनके शौर्य का एक अहम् साक्ष्य थे, उर्दू भाषा में पुलिस के अपराध रजिस्टर में दर्ज विवरण के आधार पर यह कह पाना मुश्किल है कि आजाद, स्वयं गोली मार कर शहीद हुए थे। इतिहास में पढ़ाया गया विवरण पुलिस की कहानी से मेल नहीं खाता है।
आज भी कोई अपराधी पुलिस मुठभेड़ में मारा जाता है तो पुलिस उस मुठभेड़ का विवरण ठीक उसी तरह दर्ज करती है, जैसा उस समय अंग्रेजों की पुलिस किया करती थी। पुलिस अपराध रजिस्टर में मुकदमा अपराध संख्या, अभियुक्त का नाम व धारा 307 (कातिलाना हमला) और परिणाम में अंतिम रिपोर्ट का विवरण अंकित करती है। इसका तात्पर्य यह है कि अभियुक्त ने पुलिस बल पर कातिलाना हमला किया जिसके जवाब में पुलिस ने गोली चलाई और पुलिस ने आत्म रक्षार्थ जो गोली चलाई उसमें अभियुक्त की मृत्यु हो गयी।
इलाहाबाद संग्रहालय में उपलब्ध विवरण के मुताबिक 27 फरवरी 1931 को जब अल्फ्रेड पार्क में चन्द्रशेखर आजाद, जामुन के पेड़ के नीचे एक साथी के साथ कुछ मंत्रणा कर रहे थे, तभी एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस अधीक्षक, ठाकुर विश्वेश्वर सिंह एवं पुलिस अधीक्षक सर जान नाट बावर ने 80 जवानों के साथ पूरे पार्क को घेर लिया था ़पुलिस अधीक्षक सर जॉन नाट बावर ने पेड़ की आड़ लेकर 455 बोर की एक गोली चन्द्रशेखर आजाद पर चलायी जो उन्की जांघ को चीर कर निकल गयी, दूसरी गोली विश्वेश्वर सिंह ने चलायी जो उनकी दाहिनी बांह में लगी। गंभीर रूप से घायल होने के बाद चन्द्र शेखर आजाद, लगातार बाएं हाथ से गोली चलाते रहे। चन्द्रशेखर आजाद ने जवाबी हमले मे गोली चलायी थी, जो पुलिस उपाधीक्षक विश्वेश्वर सिंह के जबड़े मे लगी। चन्द्रशेखर आजाद ने अन्य किसी भारतीय सिपाही पर गोली नही चलायी।
अंग्रेजों की पुलिस से लड़ते लड़ते, जब मात्र एक गोली बची, सुबह के करीब 10 बजकर 20 मिनट हुए थे तब उन्होंने स्वयं को गोली मार ली। अब इस विवरण पर अगर भरोसा करें तो सरकारी रिकार्ड इसकी पुष्टि नहीं करता। अंग्रेजों के जमाने के रिकार्ड जो अभिलेखागार फौजदारी में होने चाहिये थे, वह वहां से नदारद हैं। अभिलेखागार, फौजदारी कार्यालय जो जिलाधिकारी इलाहाबाद के परिसर में स्थित है वहां पर सम्पर्क करने पर ज्ञात हुआ कि अभिलेखागार में वर्ष 1970 के पहले के कोइ भी कागजात उपलब्ध नहीं हैं।
भारतीय दंड संहिता की धारा 307 जो किसी पर जानलेवा हमला करने पर लगायी जाती है, यह धारा चन्द्रशेखर आजाद के खिलाफ थाना कर्नलगंज में लगायी गयी थी। इस लिहाज से अंग्रेजों की पुलिस ने चन्द्रशेखर आजाद को पुलिस बल पर जान लेवा हमला करने का अपराधी मानते हुए उन पर अभियोग पंजीकृत किया था। इसके अतिरिक्त और कोई सरकारी रिकार्ड मौजूद नहीं है ।
पुलिस के पास अपराध रजिस्टर है, जिसमे विवरण दर्ज है। घटना का दिनांक 27 फरवरी 1931 लिखा हुआ है, भारतीय दंड संहिता की धारा 307 और उसके बाद प्रतिवादी के तौर पर चन्द्रशेखर आजाद और एक व्यक्ति जिसका नाम पता अज्ञात था ़पुलिस के इस विवरण के अनुसार यह प्रतीत होता है कि चन्द्रशेखर आजाद अपनी गोली से नहीं शहीद हुए थे बल्कि पुलिस की गोली लगने के बाद वीरगति को प्राप्त हुए थे। अगर उस समय की पुलिस इस तथ्य को स्वीकारती कि आजाद ने स्वयं गोली मार ली थी तब यह आत्महत्या का मामला बनता, आत्महत्या के मामले में अपराध रजिस्टर में मुठभेड़ दर्शाने का फिर कोई औचित्य न होता आज भी पुलिस मुठभेड़ उसी तरह से अपराध रजिस्टर में दर्ज की जाती है, जैसे चन्द्रशेखर आजाद की मुठभेड़ दर्ज की गयी थी।
इलाहाबाद संग्रहालय में उपलब्ध विवरण के मुताबिक, चन्द्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को, मध्य प्रदेश के जनपद झबुआ, ग्राम भवरा में हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमती जगरानी देवी एवं इनके पिता का नाम सीताराम तिवारी था। प्राथमिक शिक्षा के लिये इनके पिता ने इन्हें बनारस भेजा था।
वर्ष1921 में गांधी जी के सत्याग्रह आन्दोलन ने चन्द्रशेखर आजाद को प्रभावित किया। बनारस के सत्याग्रह का दमन पुलिस निर्ममतापूर्वक कर रही थी, तभी 15 वर्ष की अल्प आयु में ही एक पुलिस अधिकारी पर चन्द्रशेखर आजाद ने पत्थर से प्रहार किया। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया, जांच के दौरान पुलिस ने जब उनका नाम पूछा तो उन्हांेने अपना नाम आजाद बताया था। इसी के बाद वे क्रांतिकारी दल, हिन्दुस्तानी रिपब्लिकन एसोशिएशन के सदस्य बने।
वर्ष 1928 में जब इसका नाम हिन्दुस्तानी रिपब्लिकन एसोशिएशन रखा गया, उस समय, भगत सिंह को दल का नेता चुना गया और दल की सेना का कमांडर चन्द्रशेखर आजाद को चुना गया़ चर्चित काकोरी काण्ड और उसके बाद 8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली में हुए बम विस्फोट की घटना के बाद अंग्रेजों की पुलिस बौखला उठी थी और घोषणा की गयी थी कि चन्द्रशेखर आजाद को जिन्दा या मुर्दा पकड़ा जाय। ़इलाहाबाद की फूलपुर संसदीय सीट से सांसद एवं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य का कहना है कि चन्द्रशेखर आजाद हर नागरिक के मन में व देश के सम्मान हैं। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री जी जब इलाहबाद आये तो उन्होंने प्रोटोकॉल तोड़कर शहीद चन्द्र शेखर आजाद की प्रतिमा को नमन किया। इलाहाबाद के पुलिस आयुक्त राजन शुक्ला का कहना है कि हम लोगों के स्तर से इसमें कुछ विशेष नहीं हो पायेगा। इलाहबाद विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते है कि चन्द्रशेखर आजाद, थोड़ा भारी भरकम शरीर के थे। बावजूद उसके बहुत फुर्तीले थे एक बार भगत सिंह ने उनसे मजाक में कहा था कि आजाद अंग्रेजों को तुम्हे फासी लगाने के लिए डबल रस्सी लगानी पडेगी। इस पर आजाद ने कहा था, ''मैं आजाद था, आजाद हूं और आजाद रहूंगा। जब तक मेरे पास मेरी यह पिस्तौल है अंग्रेजों की पुलिस मुझे छू भी नहीं सकती।''
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