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हैदराबाद के निजाम द्वारा अरब सैनिकों का संगठन
मुसलमानों की राष्ट्रविघातक कार्यवाहियां पुन: सक्रिय
निज प्रतिनिधि द्वारा।
नई दिल्ली :मुसलमानों की राष्ट्रघातक मनोवृत्ति कुछ दिनों से दबी हुई प्रतीत होती थी किन्तु अब वह पुन: जोर-शोर के साथ उमड़ने लगी है। वे पुन: भारत में इस्लामी राज्य की स्थापना का स्वप्न देखने लगे हैं। मुस्लिम जमात के अध्यक्ष पद से फर्रूखाबाद में कलकत्ता के भूतपूर्व मेयर बर्दरुद्दज्जा द्वारा दिया गया विषाक्त भाषण 'पाञ्चजन्य' में प्रकाशित हो चुका है। अब हैदराबाद के निजाम के घातक मनसूबों की कहानी भी प्रकाश में आई है।
हैदराबाद के एडवोकेट श्री बी. जी. केसकर ने वहीं के एक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में निजाम साहब की मनसूबं का रहस्योद्घाटन करते हुए शिकायत की है कि वे (निजाम साहब) स्वयं की सशस्त्र सेना तैयार कर रहे हैं। श्री केसकरने न्यायालय के समक्ष एक दस्तावेज भी प्रस्तुत किया है। जिसमें भारतीय दण्ड विधि संहिता की धारा 19 के अन्तर्गत उन अपराधों की जानकारी दी गयी है, जो शस्त्रात्र कानून के अन्तर्गत आते हैं। दस्तावेज में बताया गया है कि नगर भर में निदाम की जो सम्पत्ति है उसकी देख-रेख के लिे नियमित1000 पुलिस सिपाही हैं जो तरह-तरह की गैरकानूनी बन्दूकों से सज्जित हैं। ये सिपाही सर्फ-ए-खास के भीतर अपराधियों पर मुकदमें चलाते हैं और उन्हें दण्ड भी देते हैं। श्री केसकर ने यह भी बताया है कि निजाम की इस सेना में अनेक अरब सैनिक भी भर्ती किए गए हैं। ये अरब सैनिक पहले निजाम की 'मैसराम पल्टन' में थे।
श्री केसकर द्वारा आरोप लगाया गया है कि बन्दूक आदि शस्त्रास्त्रों का प्रशिक्षण देने के लिए सरकारी पुलिस का प्रयोग किया जाता है। निजाम साहब ने विशालकाय सेना तैयार करने के लिए हिटलरी तरीकों को अपनाया है। पुराने शिक्षार्थियों को, शिक्षा समाप्त होते ही, निकाल दिया जाता है और उनके स्थान पर नए सिपाहियों को भर्ती कर लिया जाता है। श्री केसकर का आगे कहना है कि भारत के अन्दर राज्य सरकार की आंखों के सामने इस प्रकार सेना तैयार होती चली जा रही है और उस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। आपने इस सैनिक संगठन को भारत-विरोधी तथा पंचमांगी भी
बताया है।
कांग्रेस राज्य का नूमनाबिना वारंट के संघ-प्रचारक की गिरफ्तारी
निज प्रतिनिधि द्वारा।
जालंधर। कांग्रेस शासन के अन्तर्गत किस प्रकार नागरिकों को बिना वारंट के हिरासत में रखकर परेशान किया जा सकता है, इसका ज्वलंत उदाहरण अभी पंजाब के जालंधर जिले में जनता के सामने आया है।
रा.स्व.संघ के जालंधर विभाग के प्रचारक श्री जगदीश चन्द्र अब्राल ने 5 जून को होशियारपुर जिले का दौरा प्रारंभ किया। 5 जून को वह दसूया में थे और 7 जून की शाम को नागल में। सायंकाल में उन्होंने संघ-शाखाओं का निरीक्षण किया, रात्रि में कार्यकर्ताओं से बातचीत की और दूसरे दिन दिनभर संगठन संबंधी विचार-विमर्श करते रहे। दोपहर में वह भाखड़ा पधारे। उसी दिन गृहमंत्री पं. पंत कोटला विद्युत गृह का उद्घाटन करने कोटला पधारने वाले थे। उद्घाटन समारोह बड़े जोर-शोर से होने वाला था। अत: अब्रोल ने भी वहां पहुंचने का निश्चय किया। अपने एक मित्र के द्वारा उन्हें चार लोगों का पास भी मिल गया। इसी बीच 8 बजे प्रात: से एक सी.आई.डी. उनकी गतिविधियों का निरीक्षण कर रहा था। उन्होंने उसको देखा भी था। किन्तु उस पर अधिक विचार नहीं किया। उनके एक मित्र ने उन्हें इसी समय बतलाया कि शायद सी.आई.डी. वालों को यह खतरा है कि कहीं उनके द्वारा कोटला में विरोध प्रदर्शन का आयोजन न किया जाए। इस बात का तुरंत अनुभव होते ही श्री अब्रोल ने नागल के सी.आई.डी. इंचार्ज के पास सूचना भिजवाई कि रा.स्व.संघ एक सांस्कृतिक तथा गैरराजनैतिक संगठन होने के नाते महापंजाब आन्दोलन अथवा प्रदर्शनों में उस प्रकार का जनसंघ, हिन्दू महासभा और रामराज्य परिषद् आदि दल ले रहे हैं। अत: उनके तथा उनके सहयोगियों के संबंध में किसी प्रकार की शंका नहीं की जानी चाहिए। इसके उत्तर में सी.आई.डी. इंचार्ज ने उन्हें सूचित कर दिया गया है और अब किसी प्रकार की कोई निगरानी आपके प्रति नहीं रहेगी।
दिशाबोध
मानवतावाद का पक्षधर बनना साहसिक कार्य
''मानवतावाद की कल्पना कहने को बड़ी सरल है। नितांत स्वार्थी व्यक्ति भी बहस में 'सत्यं जगन्मिथ्या' की भाषा बोल सकता है। किन्तु आज के संसार में मानवता की ओर प्रस्थान करना बहुत कठिन हो बैठा है। दी मैस्त्रे का निम्न निरीक्षण इस दृष्टि से उद्बोधक है, 'अपने जीवनकाल में मैंने फ्रांसीसी, इतावली और रूसी लोग देखे हैं। मांटेस्क्यू की कृपा से मैं यह भी समझ पाया हूं कि कोई व्यक्ति प्रशियन भी हो सकता है। किन्तु जहां तक 'मानव' का संबंध है, मैं प्रकट रूप से बताता हूं कि अपने जीवन में मेरी उससे भेंट कहीं नहीं हुई। यदि वह कहीं अस्तित्व में होगा भी, तो उसकी मुझे कोई जानकारी नहीं। आधुनिक संस्कृति का मार्ग मानवता से राष्ट्रीयता की ओर होता हुआ पशुता की ओर जाता है।' (ग्रिल पार्झर, 1848)। इस वातावरण में मानवतावाद का पक्ष धर बनना साहसिक कार्य ही है। उसमें भी धर्माष्ठित मानवतावाद का दार्शनिक एवं साहित्यिक आंदोलन कार्य था।''
—पं. दीनदयाल उपाध्याय
(पं. दीनदयाल उपाध्याय विचार-दर्शन, खण्ड-1, पृष्ठ संख्या-75)
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