खेलकट्टरवाद के खिलाफ था आखिरी मुक्का
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खेलकट्टरवाद के खिलाफ था आखिरी मुक्का

by
Jun 20, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 20 Jun 2016 13:08:51

नामी मुक्केबाज मुहम्मद अली ने दौलत और शोहरत कमाई। सफलता के नशे में चूर अली उग्र भी हुए लेकिन समय के साथ वे संभल और अनुभवों ने उन्हें विनम्र बनाया

'जोल्ल प्रशांत बाजपेई

इनसान पचास की उम्र में भी दुनिया को वैसे ही देखता है जैसा कि बीस की उम्र में देखता था, तो उसने अपनी जिंदगी के तीस साल बरबाद कर दिए।' अभूतपूर्व मुक्केबाज मुहम्मद अली (जनवरी 1942 – जून 2016 ) के ये शब्द जीवंत हो गए हैं उनके खुद के जीवन से। अली ने जीवन में बेशुमार नाम कमाया। बेधड़क फैसले लिए। गलतियां भी कीं और एहसास हुआ तो राह बदलने में देर भी नहीं लगाई। अमेरिका के लुएवल का यह लड़का कैसियस क्ले (मूल नाम) विद्यालय की बस में अपना बस्ता रखकर स्वयं दौड़ते हुए दूरी तय करता था। धुन रंग लाई। 12 बरस की आयु में मुक्केबाजी शुरू की और 18वें बरस में ओलम्पिक स्वर्ण पदक जीता। 'तितली की तरह तिरो और मधुमक्खी की तरह डंक मारो।' कैसियस की मुक्केबाजी की परिभाषा थी। इस बीच ईसाइयत छोड़कर इस्लाम अपना लिया। नया नाम था -मुहम्मद अली। तीन बार हैवीवेट चैंपियन बनकर कीर्तिमान बनाया। घूंसे घन की तरह पड़ते थे, अब जुबान भी कोड़े बरसाने लगी- 'अगर तुमने मुझे हराने का सपना भी देखा तो तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा कि जाग जाओ और माफी मांगो।'

उन्होंने नामी मुक्केबाज और चैम्पियन सनी लिस्टन को बेहद बदसूरत कहा तो स्वयं को मुफलिसी और बदनामी के दौर से उबारने वाले और आर्थिक मदद देने वाले महान मुक्केबाज जोए फ्रेजियर को 'गोरिल्ला' अंकल टम (अश्वेत व्यक्ति के लिए एक गाली) और दुश्मन का एजेंट कहा। फ्रेजियर ने अगले मैच में ही अली को जमीन सूंघाकर हिसाब चुकता कर दिया। इस व्यवहार के लिए फ्रेजियर अपने अंतिम समय में ही अली को माफ कर सके। अली ने भी फ्रेजियर को श्रद्घांजलि देते हुए उनके प्रति अपना सम्मान व्यक्त किया। श्वेतों के विरुद्ध नफरत से उबलते हुए कैसियस क्ले ने प्रतिक्रियावाद की विरोधाभास से भरी राह पकड़ी। पहले उसने अपने नाम से क्ले हटाया जो कि पैतृक संपत्ति के रूप में मिले 40 अश्वेतों को, जिसमें इस मुक्केबाज के पूर्वज भी थे, मुक्त करने वाले सुधारक कैसियस मार्सेलस क्ले के नाम पर था। 'नेशन ऑफ इस्लाम' के सम्मोहन में बहते हुए जब मुहम्मद अली ने एक टीवी कार्यक्रम में कहा कि श्वेत लोग भूरे बालों , नीली आंखों वाले राक्षस हैं, तो वे ये भूल गये कि उन्हें बॉक्सिंग का ककहरा सिखाने वाले प्रथम गुरु जोए ई मार्टिन भी एक श्वेत ही थे। और उनके शक्तिशाली प्रहारों पर तालियां बजाने वाले करोड़ांे अमेरिकियों में से अधिकांश श्वेत थे। अमेरिका में बड़े पैमाने पर अश्वेतों को इस्लाम की तरफ मोड़ने वाले नेशन ऑफ इस्लाम से जुड़ने के बाद अली का क्रोध अमेरिका और उसके श्वेत एस्टेब्लिशमेंट पर उबलने लगा। इस संगठन के नेता एलिजा मुहम्मद की मृत्यु के बाद मुहम्मद अली का झुकाव परंपरागत सुन्नी इस्लाम की तरफ हुआ। संभवत: यह अतीत में अश्वेतों को दास बनाने वाले श्वेतों से बगावत थी, परंतु कई लोग प्रश्न उठाते हैं कि अमेरिका ने तो 1863 में ही गुलाम प्रथा को समाप्त कर दिया जबकि अश्वेतों को दास बनाने की प्रथा तो अरब जगत में उस समय भी जारी थी जब नेशन ऑफ इस्लाम और मुहम्मद अली अमेरिका पर तंज कस रहे थे।

समय के साथ ये कड़वाहट जाती रहीं। शांति की खोज में अली भारत के महान संगीतकार और संत इनायत खान (1882-1927) के दर पर जा पहुंचे। इनायत खान कहते थे '' एक ही पवित्र किताब है, प्रकृति। एक ही मजहब है, आत्मा को मुक्त करने वाले प्रकाश की दिशा में निरंतर चलना। एक ही कानून है, परस्पर आदान-प्रदान। एक ही भाईचारा है मानवता। एक ही नैतिकता है ईश्वर और इंसानियत को समर्पित प्रेम।'' अली को सुकून मिला। जीवन के अनुभवों ने विनम्रता सिखाई। कुल 61 मुकाबलों में से 56 जीतने वाले अली ने एक बार कहा था 'मेरे जैसे सफल व्यक्ति के लिए विनम्र होना कठिन है। मैं महानतम से भी महान हूं'। उसी अली ने जीवन की संध्या में कहा कि मैं उस व्यक्ति की तरह याद किया जाना पसंद करुंगा जिसने दुनिया में अपना प्यार लुटाया। अली की पहली शादी टूटी थी क्योंकि वो अपनी पत्नी को अन्य मुस्लिम महिलाओं की तरह पर्दे में रखना चाहते थे। समय के साथ उन्होंने खुद को बदला। बेटी लैला ने मुक्केबाजी की दुनिया में धूम मचाई। अली ने दुनिया भर में मानवता की सेवा के लिए तन, मन और धन समर्पित किया, और बक्सिंग रिंग से बाहर आने के बाद 32 साल तक पार्किंसन रोग से मुकाबला किया। 

 

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