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घटे पापहारिणी का संताप

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Jun 13, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 13 Jun 2016 14:41:02

गंगा भारत की राष्ट्रीय नदी ही नहीं इसकी सांस्कृतिक पहचान भी है। बढ़ते जनदबाव और कल कारखानों के प्रदूषण ने इस पहचान को जो ठेस पहुंचाई है, उसे समय रहते ठीक करना जरूरी 

पूनम नेगी
गंगा विश्व की अकेली ऐसी नदी है जिससे भारत ही नहीं, दुनियाभर के हिन्दू धर्मावलम्बियों की आस्था  गहराई से जुड़ी है। इन्हीं मां गंगा के धराधाम पर अवतरण का परम पुनीत पर्व है-गंगा दशहरा। मां गंगा देवाधिदेव शिव की जटाओं से होते हुए ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को धरती पर अवतरित हुईं। उस दिन दस योग थे। ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, दिन बुध, हस्त नक्षत्र, आनन्द योग तथा कन्या राशि में चंद्रमा तथा वृष राशि में सूर्य। इसीलिए गंगावतरण के इस शुभ दिन को 'गंगा दशहरा' यानी दस पापों का हरण करने वाला माना गया।  

उद्गम
हिमालय के गंगोत्री हिमखण्ड के गोमुख नामक स्थान से निकलकर गंगा भागीरथी, अलकनंदा के रूप में अपनी सहायक नदियों- धौली, विष्णु गंगा तथा मंदाकिनी के साथ आगे बढ़ती है। करीब 200 किमी. का संकरा पहाड़ी रास्ता तय करके गंगा ऋषिकेश से होते हुए प्रथम बार हरिद्वार के रास्ते मैदानी भाग में प्रवेश करती है।
यमुना गंगा की प्रमुख सहायक नदी है जो हिमालय की बंदरपूंछ चोटी के आधार पर यमुनोत्री हिमखण्ड से निकलती है।

अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान
देश के तकरीबन 40 करोड़ लोगों की आजीविका आज भी गंगा पर निर्भर है। कृषि, पर्यटन तथा उद्योगों के विकास में गंगा का महत्वपूर्ण योगदान है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। गंगा के ऊपर बने पुल, बांध और नदी परियोजनाएं भारत की बिजली, पानी और कृषि से संबंधित जरूरतों को पूरा करती हैं।
2525 किमी. तक भारत तथा उसके बाद बंगलादेश में अपनी लंबी यात्रा तय करते हुए गंगा अपनी उपत्यकाओं में भारत और बंगलादेश के कृषि आधारित अर्थतंत्र में भारी सहयोग करती है, साथ ही यह अपनी सहायक नदियों सहित इस बड़े क्षेत्र के लिए सिंचाई का बारहमासी स्रोत भी मानी जाती है। इन क्षेत्रों में उगाई जाने वाली प्रधान उपज में मुख्यत: धान, गन्ना, दाल, तिलहन, आलू एवं गेहूं हैं जो भारतीय कृषि  की प्रमुख फसलें हैं। गंगा के तटीय क्षेत्रों में दलदल एवं झीलों के कारण मिर्च, सरसों, तिल, गन्ना और जूट की अच्छी फसल होती है। खेती के अलावा गंगा नदी में चलने वाला मत्स्य उद्योग भी बहुत से लोगों की आजीविका का साधन है। इसमें लगभग 375 मत्स्य प्रजातियां उपलब्ध हैं। वैज्ञानिकों द्वारा उत्तर प्रदेश व बिहार में 111 मत्स्य प्रजातियों की उपलब्धता बताई गई है। इसके तट पर ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तथा प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर कई पर्यटन स्थल हैं जो राष्ट्रीय आय का महत्वपूर्ण स्रोत हैं। गंगा में नौकायन व राफ्टिंग शिविरों का आयोजन किया जाता है।

जैव विविधता का संरक्षण
मां गंगा का वाहन मकर माना गया है। इस नदी में मछलियों तथा सपोंर् की अनेक प्रजातियां तो पाई ही जाती हैं, मीठे पानी वाली दुर्लभ डालफिन भी मिलती हैं। साक्ष्यों  के अनुसार 17वीं शताब्दी तक गंगा-यमुना प्रदेश घने वनों से ढका हुआ था। गंगा का तटवर्ती क्षेत्र अपने शांत व अनुकूल पर्यावरण के कारण आज भी अपने आंचल में कई प्रकार के दुर्लभ पक्षियों का संसार संजोए हुए है।

बढ़ता प्रदूषण  
गंगा नदी विश्वभर में शुद्धिकरण की अपनी क्षमता के कारण जानी जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि गंगाजल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते। गंगा के जल में प्राणवायु (ऑक्सीजन) की मात्रा को बनाए रखने की असाधारण क्षमता है। मगर दुर्भाग्य है कि आज यह दुनिया की दस सबसे प्रदूषित नदियों में गिनी जाने लगी है।  गंगा के तट पर घने बसे औद्योगिक नगरों  की गंदगी व नगरीय आबादी के मल-मूत्र के सीधे  नदी में मिलने से गंगा का प्रदूषण आज खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। औद्योगिक कचरे के साथ-साथ प्लास्टिक कचरे की बहुतायत ने भी गंगाजल को बेहद प्रदूषित किया है। कानपुर का जाजमऊ  इलाका जो अपने चमड़ा उद्योग के लिए मशहूर है, तक आते-आते गंगा का पानी इतना गंदा हो जाता है कि डुबकी लगाना तो दूर, वहां खड़े होकर सांस तक नहीं ली जा सकती। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार गंगा में 2 करोड़ 90 लाख लीटर कचरा प्रतिदिन गिर रहा है। उत्तर प्रदेश की 20 प्रतिशत बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगाजल है। स्थिति यह है कि ऋषिकेश-हरिद्वार के आगे  मैदानी क्षेत्र का गंगाजल आज नहाने योग्य तक नहीं रहा। रासायनिक कीटनाशकों की बहुतायत के कारण अब इसका पानी खेती की सिंचाई के योग्य भी नहीं बचा है।

क्या हुआ गंगा एक्शन प्लान का? 

गंगा के पराभव का अर्थ होगा, हमारी समूची सभ्यता व संस्कृति का अन्त। गंगा की इसी दशा को देख कर मैग्सेसे पुरस्कार विजेता व मशहूर अधिवक्ता एम.सी. मेहता ने 1985 में गंगा के किनारे लगे कारखानों और शहरों से निकलने वाली गंदगी को रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की थी। तब अदालत के निर्देश पर केन्द्र सरकार ने गंगा सफाई का बीड़ा उठाया और गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत की। मगर 20 वर्ष में 1,200 करोड़ रु. खर्च करने के बाद भी कोई खास सुधार नहीं आया।

सरकार की सकारात्मक पहल
गंगा की इस पीड़ा को महसूस करते हुए केन्द्र की मोदी सरकार ने कुछ प्रभावी कदम उठाये हैं। ज्ञात हो कि गंगा सफाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में नवंबर, 2008 में भारत सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी तथा इलाहाबाद और हल्दिया के बीच (1,600 किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया। गंगा को राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर 'गंगा एक्शन प्लान' व 'राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना' लागू  होने पर भी इसकी दिशा-दशा में अभी बहुत ज्यादा सुधार नहीं आया है। लेकिन सालों बाद गंगा की सुध ली तो देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने। उन्होंने गंगा के प्रदूषण पर नियंत्रण करने और इसकी सफाई के लिए जुलाई, 2014 में 'नमामि गंगे' परियोजना शुरू की व इसके लिए देश के आम बजट में 2,037 करोड़ रु. का प्रावधान भी किया। इसके तहत भारत सरकार ने गंगा के किनारे स्थित औद्योगिक इकाइयों को बन्द करने का आदेश दिया है। शहरों की गंदगी व सीवेज ट्रीटमेंट के लिए संयंत्र लगाये जा रहे हैं। उद्योगों के कचरे को नदी में गिरने से रोकने के लिए भी कड़े कानून बने हैं। इसके अलावा 100 करोड़ रु. की राशि केदारनाथ, हरिद्वार, कानपुर, वाराणसी, इलाहाबाद, पटना और दिल्ली में घाटों के सौंदर्यीकरण के लिए आवंटित की है।

'क्लीन गंगा' मिशन
केंद्र सरकार की क्लीन गंगा मिशन परियोजना 2018 तक पूरी हो जाएगी। इसके तहत पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन, शिपिंग, पर्यटन, शहरी विकास, पेयजल और स्वच्छता एवं ग्रामीण विकास आदि मंत्रालयों के सहयोग से एक विस्तृत कार्ययोजना बनाकर चरणबद्ध रूप से काम किया जा रहा है। 30 शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की योजना है, ताकि गंदे पानी को नदी में जाने से रोका जा सके। इस समय 24 प्लांट काम कर रहे हैं जबकि 31 का निर्माण किया जा रहा है। साथ ही 2,500 किलोमीटर लंबी गंगा की सफाई के लिए नदी के तट पर118 नगरपालिकाओं की शिनाख्त की गई है जहां 'वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट' और 'सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट' के साथ गंगा की पूरी साफ-सफाई का लक्ष्य हासिल किया जाएगा। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने यमुना में पूजा और निर्माण सामग्री तथा अन्य कचरा डाले जाने पर 50,000 रुपये तक का जुर्माना लगाने का निर्देश दिया है। ठोस कचरे को साफ करने के लिए वाराणसी, इलाहाबाद, कानपुर, पटना में 'ट्रैश स्किमर' लगाये गये हैं जो पानी में रहकर उसे साफ करते हैं। इस मशीन से हर दिन 3 टन से 11 टन तक कचरा निकाला जाता है।

 क्या कहते हैं पर्यावरण वैज्ञानिक  
मशहूर पर्यावरण वैज्ञानिक और नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी (एनजीआरबीए) के विशेषज्ञ सदस्य प्रोफेसर बी.डी. त्रिपाठी ने निष्क्रिय पड़ी अथॉरिटी को सक्रिय बनाने की मांग की है। पिछले चार दशक से अधिक समय से गंगा की समस्याओं पर शोध कर रहे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान और तकनीक केंद्र के समन्वयक प्रोफेसर त्रिपाठी का कहना है कि नई समितियां बनाने की बजाय एनजीआरबीए को ही सक्रिय करना होगा। केंद्र सरकार ने 2009 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के साथ एनजीआरबीए का गठन किया था जिसका मकसद था गंगा को अविरल और निर्मल बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार का साथ मिलकर काम करना। डॉ़ त्रिपाठी के मुताबिक सिर्फ नदी का प्रवाह बढ़ने से प्रदूषण की समस्या 60 से 80 प्रतिशत तक खुद-व-खुद खत्म हो जाएगी।

 

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