'2020 तक रेल से जोड़ दिया जाएगा पूर्वोत्तर राज्यों की राजधानियों को'
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रेलवे की इतनी ज्यादा अनदेखी हुई है कि आजादी के बाद से लेकर अब तक केवल 11,000 किलोमीटर रेल लाइन बिछाई जा सकी है। उस समय आबादी लगभग 30 करोड़ थी। अब आबादी एक अरब 27 करोड़ के आसपास है। रेलवे पर इतना बोझ बढ़ गया है कि वह खुद ही पटरी से उतर गई है। उसे पटरी पर लाने का अथक प्रयास कर रहे हैं रेल मंत्री श्री सुरेश प्रभु। रेलवे में हो रहे कार्यांे के संबंध में अरुण कुमार सिंह ने श्री सुरेश प्रभु से बातचीत की। उसके प्रमुख अंश यहां प्रस्तुत हैं-
चलती रेलगाड़ी में किसी सवारी को कोई मदद पहुंचाने से आपकी बड़ी तारीफ हो रही है। आपको कैसा महसूस हो रहा है?
देखिए, यह मेरा कर्तव्य है। मैं इसे कोई बड़ा काम नहीं मानता। ऐसा काम तो पहले ही होना चाहिए। मैं हर यात्री की शिकायत को दूर करने की कोशिश में लगा हूं। रेलगाड़ी आम आदमी के लिए चलती है। आम आदमी की अनदेखी किसी हालत में नहीं की जाएगी। इसलिए मैंने हर शिकायत को ऑनलाइन दूर करने की शुरुआत की है।
रेलवे की सबसे बड़ी समस्या है यात्रियों को आरक्षण नहीं मिलना। इसके लिए आप क्या कर रहे हैं?
मांग और आपूर्ति में भारी अंतर होने की वजह से लोगों को आरक्षण नहीं मिल पाता। 10 लोगों की जगह पर हजारों लोग जाना चाहते हैं। मांग और आपूर्ति को पाटने के लिए वर्षों से कुछ काम ही नहीं किया गया। रेलगाडि़यों की कमी है। पटरियों की भी क्षमता सीमित है। हर मार्ग पर यातायात का भारी दबाव है। जब तक नई पटरियां नहीं बिछाई जाएंगी, तब तक कोई नई गाड़ी नहीं चलाई जाएगी। पटरियां बिछाने का काम चल रहा है। इसका पहला चरण 2020 में पूरा हो जाएगा। उम्मीद है कि 2020 तक आरक्षण से संबंधित समस्याओं का समाधान हो जाएगा। 2020 तक पूर्वी और पश्चिमी डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर बन जाएंगे और इन्हीं पर मालगाडि़यां चलाई जाएंगी और वर्तमान में जो पटरियां हैं, उन पर सिर्फ सवारी गाडि़यां चलेंगी। ऐसा होने से गाडि़यों की कमी नहीं होगी और हर किसी को आरक्षण मिल पाएगा।
प्रधानमंत्री मोदी पर्यटन को बढ़ावा देने पर बहुत जोर देते हैं। इस क्षेत्र में आपके मंत्रालय ने कुछ किया है क्या?
पर्यटन के लिए हम सभी धार्मिक स्थलों के रेलवे स्टेशनों को ठीक कर रहे हैं, संवार रहे हैं। हमने आई.आर.सी.टी.सी. की तरफ से भारत यात्रा का एक कार्यक्रम शुरू किया है। बुद्धिस्ट सर्किट, गांधी सर्किट, किसानों के लिए भी नया कार्यक्रम शुरू किया गया है। चारधाम यात्रा के लिए भी कुछ प्रावधान किया है। अयोध्या, द्वारका जैसे तीर्थस्थानों के स्टेशनों को उनकी महत्ता के अनुसार विकसित किया जाएगा। इसके लिए हम पर्यटन मंत्रालय के साथ काम कर रहे हैं।
अब तक रेलवे ने पूर्वोत्तर के राज्यों की बड़ी अनदेखी की है। आपने पूर्वोत्तर के लिए कोई योजना बनाई है क्या?
रेलवे ने इन दो वर्ष में पूर्वोत्तर के आठों राज्यों में सबसे अधिक काम किया है। इतना काम पहले कभी नहीं हुआ था। इन राज्यों के लिए एक बड़ी योजना बनाई गई है। लक्ष्य रखा गया है कि 2020 से पहले तक पूर्वोत्तर के आठों राज्यों की राजधानियों को रेल लाइन से जोड़ दिया जाए। आजादी के बाद पहली बार अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर तक रेलगाड़ी पहुंचाई गई। रेल वहां के लोगों के लिए एक सपना थी। उस सपने को पूरा किया गया। 2016-17 में पूर्वोत्तर भारत की सभी छोटी लाइनों को बड़ी लाइन में बदल दिया जाएगा।
आप हाईस्पीड ट्रेन की बात कर रहे हैं, लेकिन लोग कह रहे हैं कि यह फिजूलखर्ची है और आम लोगों के लिए तो यह है भी नहीं। जो गाडि़यां अभी चल रही हैं, उन्हीं का परिचालन ठीक से और समय पर हो तो आम लोगों की परेशानियां कम हो जाएंगीं। आपका क्या कहना है?
जो लोग आलोचना करने वाले हैं, वे तो करते रहेंगे, लेकिन हाईस्पीड ट्रेन आज समय की मांग है। समय बहुत तेजी से बदल रहा है। आज समय की गति बहुत तेज हो गई है। उस गति को पकड़ने के लिए हमें उसी हिसाब से दौड़ना पड़ेगा। आज जो सवारी गाडि़यां चल रही हैं उनकी औसत गति 50 से 55 किलोमीटर प्रतिघंटा है। क्या इस गति से आज के दौर में हम टिक पाएंगे? जिन लोगों को समय की कीमत का पता है उन्हें तेज गाडि़यां चाहिए। कुछ भ्रांतियां भी दूर करना जरूरी है। मुंबई-अमदाबाद हाईस्पीड ट्रेन के लिए जापान सिर्र्फ 0.1 प्रतिशत पर 80,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज दे रहा है। बाकी खर्च गुजरात और महाराष्ट्र सरकार को करना है। यानी रेलवे तो फायदे में ही है।
धारणा है कि रेलवे अंग्रेजों के बनाए और जमाए बुनियादी ढांचे से आगे नहीं बढ़ सकी है। इसके लिए कांग्रेस को दशकों तक उलाहना भी मिला। आप इस धारणा को तोड़ने के लिए क्या कर रहे हैं?
यह धारणा बहुत हद तक सही भी है। आजादी के समय देश में 55,000 किलोमीटर रेल लाइनें थीं। स्वतंत्रता से लेकर अब तक सिर्फ 11,000 किलोमीटर रेल लाइनें बिछाई गईं। दरअसल, अब तक रेलवे पर किसी ने ईमानदारी से ध्यान ही नहीं दिया। मुझसे पहले रेलवे में उतने ही पैसे का काम होता था जितना पैसा बजट से मिलता था। इसलिए रेलवे की ढांचागत सुविधाओं में कोई खास बढोतरी नहीं हुई। हम अपने सकल घरेलू उत्पाद का सिर्फ .4 प्रतिशत रेलवे पर खर्च करते हैं, जबकि चीन 4 प्रतिशत खर्च करता है। रेलवे में ढांचागत सुविधाओं को बढ़ाने के लिए हमने वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक, जापान सरकार, एफ.डी.आई., विभिन्न मंत्रालयों और राज्य सरकारों से मदद ली है। लक्ष्य है पांच वर्ष में 8,56,000 करोड़ रुपए खर्च करने का।
रेल मंत्रालय प्रचार और सौगातों के वाहक के तौर पर काम करता रहा है, लेकिन आप ऐसा नहीं कर रहे हैं। क्या आपको छवि की चिंता नहीं है?
आप किसी चीज को किस रूप में लेते हैं, यह आपके ऊपर निर्भर करता है। रेलवे के पास लोगों का पैसा आता है। उस पैसे का इस्तेमाल सही तरीके से हो, यह मेरा कर्तव्य है। हम गैर-जिम्मेदार ढंग से रेलवे के पैसे को खर्च नहीं करना चाहते है। देशहित में जो भी ठीक हो सकता है, वही हम कर रहे हैं।
केन्द्र सरकार ने सभी मंत्रालयों के अच्छे प्रदर्शन पर जोर दिया है। यह आपके लिए कितनी बड़ी चुनौती है?
हम काम को चुनौती नहीं मानते हैं। हमारे मंत्रालय ने अब तक इतना काम किया है कि जितना आजादी के बाद नहीं हुआ था। एक वर्ष के अंदर करीबन एक लाख करोड़ रुपए खर्च कर चुके हैं। विद्युतीकरण का काम चल रहा है, नई पटरियां बिछाई जा रही हैं, छोटी लाइन को बड़ी लाइन में बदला जा रहा है। आपको बता दें कि यूपीए सरकार के समय हर रोज 4 किलोमीटर रेल पटरियां बिछाई जाती थीं। इस वर्ष हमने इसे 7.8 किलोमीटर किया है। जिस तरह काम शुरू हुआ है उससे उम्मीद है कि अगले वर्ष रोजाना 19 किलोमीटर रेल पटरियां बिछाई जाएंगी।
आजादी के समय देश में 55,000 किलोमीटर रेल लाइन थी। स्वतंत्रता से लेकर अब तक सिर्फ 11,000 किलोमीटर रेल लाइन बिछाई जा सकी है। दरअसल, अब तक रेलवे पर किसी ने ईमानदारी से ध्यान ही नहीं दिया। मुझसे पहले रेलवे में उतने ही पैसे का काम होता था जितना पैसा बजट से मिलता था। इसलिए ढांचागत सुविधाओं में कोई खास बढोतरी नहीं हुई।
इस दो वर्ष में अपने मंत्रालय को कितना नंबर देना चाहेंगे?
कोई खुद ही अपने काम को नंबर कैसे दे सकता है? मीडिया के लोग नंबर दे रहे हैं। हाल ही में कुछ अखबारों ने जनमत के जरिए यह निष्कर्ष निकाला था कि 74 प्रतिशत लोग कह रहे हैं कि रेल मंत्रालय सबसे अच्छा काम कर रहा है। महाराष्ट्र टाइम्स ने तो कहा है कि 85 प्रतिशत लोग मानते हैं कि रेल मंत्रालय अच्छा काम कर रहा है।
आपने प्रीमियम तत्काल शुरू किया है। इसको जो भी एक बार इस्तेमाल करता है, दोबारा नहीं करना चाहता। क्योंकि इसमें टिकट बुक कराने के समय जो किराया सैकड़ों में दिखता है, हाथ में टिकट आते-आते वह हजारों में चला जाता है। लोग इसे रेलवे की लूट मानते हैं। आप कुछ कहना चाहेंगे?
मैं बता दंू कि आज भी रेलवे को यात्री सेवा (पैसेंजर सर्विस) में 30,000 करोड़ रुपए का घाटा है। मेरा लक्ष्य है किसी भी हालत में रेलवे को ठीक करना, रेल को पटरी पर लाना, रेल की समस्याओं को दूर करना। इसके लिए हर संभव कदम उठाया जा रहा है। हो सकता है कि किसी को कोई कदम ठीक न लगता हो, पर ज्यादातर लोग रेलवे के कार्य से संतुष्ट हैं।
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