|
गुजरात की आनंदीबेन पटेल सरकार ने 22 मई, 2016 के दिन अपने दो साल पूरे किये। नरेन्द्र मोदी ने भाजपा को लोकसभा चुनावों मे ऐतिहासिक जीत दिलायी। इसके बाद आनंदीबेन पटेल गुजरात की मुख्यमंत्री के रूप में चुनी गयी थीं। आनंदीबेन पटेल का मुख्यमंत्री बनना भी एक ऐतिहासिक घटना थी क्योंकि वे गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री हैं
राजेश शर्मा
जरात की इन पहली महिला मुख्यमंत्री के शासन के दो साल पूरे हुए हैं और इन दो साल में आनंदीबेन ने सराहनीय काम किया है। आनंदीबेन मुख्यमंत्री बनीं तब कुछ लोगों को उनकी क्षमताओं के बारे में आशंकाएं थीं। आनंदीबेन ने इन आशंकाओं को गलत साबित किया है ओर दो साल में गुजरात के विकास की पहली-सी गति को बरकरार रखते हुए कुछ नये कामों को भी अंजाम दिया है। आनंदीबेन सरकार ने इस अरसे में जो कुछ किया है, उन सभी कामों का ब्यौरा देना तो मुमकिन नही है लेकिन कुछ काम ऐसे हैं जिनका जिक्र करना जरूरी है।
आनंदीबेन ने मुख्यमंत्री बनते ही गतिशील गुजरात कार्यक्रम शुरू किया था। इस कार्यक्रम के तहत आनंदीबेन ने महिला सशक्तिकरण, स्वच्छता, औद्योगिक विकास, स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में नेत्रदीपक काम किया है।
स्वच्छ भारत, स्वच्छ गुजरात
केन्द्र सरकार ने 2 अक्तूबर, 2014 यानी कि गांधी जयंती से स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया। आनंदीबेन पटेल ने गुजरात में दो महीने पहले ही यह अभियान शुरू कर दिया था। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के एक सप्ताह में ही उन्होंने घोषणा कर दी थी कि गुजरात के हर घर में शौचालय हो, यह हमारा मिशन है। 28 मई, 2014 के दिन मोरबी में एक सभा में उन्होंने घोषणा की कि हर घर, हर आंगनबाड़ी, हर स्कूल में शौचालय का निर्माण हमारा मिशन है। ग्रामीण इलाकों में शौचालय के निर्माण के लिए केन्द्र सरकार आर्थिक सहायता देती है लेकिन शहरी इलाकों के लिए कोई सहायता नहीं मिलती। आनंदीबेन पटेल ने घोषणा की कि उनकी सरकार शहरी इलाकों के लिए भी सहायता देगी।
पिछले दो साल में इस अभियान को सफल बनाने के लिए आनंदीबेन ने अपनी पूरी ताकत लगा दी है और इसके परिणाम मिल रहे हैं। गुजरात में इस वक्त 6,188 गांव ऐसे हैं जहां हर घर में शौचालय हैं। गुजरात के गांवों में आनंदीबेन पटेल सरकार ने मई, 2016 तक 12,58,486 शौचालयों का निर्माण करवाया है। शहरी इलाकों मे पिछले दो साल मे 4.97 लाख शौचालयों का निर्माण किया गया है। गुजरात सरकार ने महात्मा गांधी के सपने को पूरा करने की दिशा में बहुत बड़ा काम किया है और देश को नई दिशा दिखाई है।
कुपोषण के विरुद्ध जंग
आनंदीबेन सरकार ने कुपोषण के विरुद्ध भी जंग छेड़ी है। गुजरात में कुपोषित बच्चों की तादाद बहुत बड़ी है, ऐसा कुप्रचार जोर-शोर से चला है। वर्ल्ड हैल्थ आर्गेनाईजेशन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के नाम पर यह कुप्रचार चला। आनंदीबेन पटेल ने इस बात को चुनौती के रूप में लिया और इस स्थिति को बदलने की ठानी। उन्होंने वडोदरा में कुपोषण दूर करने के लिए पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया। डॉक्टरों की मदद से कुपोषित बच्चों को हॉस्पिटलों में 21 दिन के लिए रखा गया। वहां उन्हें मूंगफली, शक्कर और मिल्क पाउडर का पेस्ट बनाकर दिया गया। इसके अच्छे परिणाम मिलने लगे तो बच्चों को घर पर भी इसी तरह का पोषण मिलता रहे, ऐसा ईंतजाम किया गया। इसकी वजह से बच्चों की सेहत में काफी फर्क पड़ा। आनंदीबेन ने इसके बाद अमूल को इस प्राजेक्ट में जोड़ दिया।
अमूल अब इस पोषणक्षम पेस्ट को बनाएगा और बाल अमूल के नाम से उसका वितरण करेगा। आनंदीबेन पटेल सरकार राज्य के 45 लाख बच्चों को मुफ्त में यह पोषणक्षम आहार देगी। इस तरह कुपोषण से किसी भी बच्चे की सेहत न बिगड़े, इसका इंतजाम उन्होंने
किया है।
गुजरात में आंगनवाड़ी और स्कूलों मे बच्चों को मध्याह्न भोजन दिया जाता है। आनंदीबेन पटेल सरकार ने छुट्टियों मे भी बच्चों को यह भोजन मिले, ऐसा प्रबंध करके एक क्रान्तिकारी पहल की है।
महिलाओं के लिए स्थानिक इकाइयों मे 50 प्रतिशत आरक्षण
आनंदीबेन पटेल सरकार ने महिलाओं के लिए स्थानिक इकाइयों मे 50 प्रतिशत आरक्षण का कानून पास करके एक क्रान्तिकारी कदम उठाया। देश की संसद एवं राज्यों की विधानसभाओं मे महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीट आरक्षित रखने की बात पर सर्वसम्मति नही बन रही है और महिलाओं को सत्ता में समान भागीदारी ना देनी पड़े इसीलिए किसी न किसी बहाने टालमटोल हो रही है। इस माहौल में आनंदीबेन पटेल सरकार ने महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देकर देश को नयी दिशा दिखाई है। गुजरात में दिसम्बर 2015 में स्थानिक ईकाइयों के चुनाव इसी कानून के तहत किये गये और इस वक्त गुजरात में स्थानिक इकाइयों में महिला प्रतिनिधियों की तादाद पुरुषों से ज्यादा है। गुजरात देश का इकलौता ऐसा राज्य है और इसका श्रेय आनंदीबेन को जाता है।
युवा स्वावलंबन योजना
आनंदीबेन ने युवा स्वावलंबन योजना के माध्यम से सवणार्ें में आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों के बच्चों को उच्च शिक्षा में 50 प्रतिशत फीस माफी दी है। इस योजना के माध्यम से उन्होंने आर्थिक असमानता दूर करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। गुजरात सरकार इन बच्चों की 1500 रुपए प्रति माह हॉस्टल फीस भी देती है। 1000 करोड़ रु. की इस योजना के तहत अब तक गुजरात सरकार ने 1,0193 छात्रों की फीस दी है। इन में 1714 मेडिकल छात्र, 4939 इंजीनियरिंग छात्र हैं। इस योजना के तहत सरकार सवर्ण युवा उद्यमियों को बिजनेस शुरू करने के लिए भी सहायता देती है। आनंदीबेन ने एक कदम आगे बढकर सवर्णों में आर्थिक रूप से पिछड़े (ईबीसी) लोगों के लिए सरकारी नौकरियों एवं शिक्षा संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा भी की है।
नर्मदा योजना होगी समय से पहले पूरी
नर्मदा योजना गुजरात की लाईफ लाईन है। गुजरात की पानी की समस्या का हल इस योजना में है। नर्मदा योजना के बारे में कांग्रेस सरकारों ने बहुत बड़ी-बड़ी बातें की थी लेकिन किया कुछ नहीं। नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद उन्हों ने तेजी से काम करवाया। मोदी ने नर्मदा नहर का पूरा नैटवर्क तैयार करवाया और गुजरात के ज्यादातर क्षेत्रों में नर्मदा का पानी पहुंचने लगा। फिर भी केन्द्र में कांग्रेस सरकार थी इस लिए कुछ काम रह गये। मोदी प्रधानमंत्री बने। उस के बाद उन्होंने पहला काम नर्मदा के बांध की ऊचांई बढ़ाने की मंजूरी का किया। आनंदीबेन ने इस बात का पूरा फायदा लिया और नर्मदा योजना का काम उन्होंने त्वरित गति से करवाया। पहले माना जाता था कि नर्मदा योजना का पूरा काम सितम्बर 2017 मे पूरा हो जायेगा लेकिन आनंदीबेन सरकार ने तेजी दिखाई। इसकी वजह से यह काम अब छह महीने पहले यानी मार्च 2017 में ही पूरा हो जायेगा। आनंदीबेन पटेल सरकार का चुनावों से पहले गुजरातियों को यह सबसे बड़ा उपहार होगा।
मोदी से तुलना और पाटीदार आंदोलन: दो बडी चुनौतियां
आनंदीबेन ने अपने दो साल के शासन के दौरन कुछ बडी चुनौतियों का सामना भी किया। इन चुनौतियों में से दो की बात करनी जरूरी है। आनंदीबेन के लिए सब से बडी चुनौती नरेन्द्र मोदी द्वारा गुजरात के विकास को दी गई गति को बरकरार रखना था। मोदी ने 13 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में काम किया और गुजरात को विकास का पर्याय बनाकर एक नई पहचान दी। इससे पहले गुजरात की पहचान भारत के किसी भी अन्य सामान्य राज्य की थी। मोदी ने अपने कायोंर् से उसे विशेष पहचान दी। गुजरात ने जो विकास किया उस से देश तो प्रभावित हुआ ही, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लोग प्रभावित हुए। मोदी की विकास की गति को देखकर ही लोंगो ने उन्हें देश का शासन चलाने के लिए चुना।
आनंदीबेन मुख्यमंत्री बनीं उस वक्त मोदी एक आदर्श के रूप में स्थापित हो चुके थे। स्वाभाविक रूप से लोग आनंदीबेन से भी मोदी जैसी कार्यक्षमता और विकास की गति की उम्मीद रख रहे थे। उन की तुलना मोदी से होनी भी स्वाभाविक था। आनंदीबेन ने पिछले दो साल में इस चुनौती को बडी ही योग्यता के साथ उठाया है और गुजरात की विकास की गति को रूकने नहीं दिया। मोदी के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स को उन्होंने आगे बढाया है और कुछ ऐसे नये प्रोजेक्ट भी शुरू किये जिस से उन की पहचान बनी।
आनंदीबेन के लिए दूसरी बडी चुनौती पाटीदार अनामत (आरक्षण) आंदोलन रहा। पाटीदारों के आरक्षण आंदोलन की वजह से ऐसे हालात पैदा हो गये थे कि गुजरात फिर से एक बार हिंसा की चपेट में आ जाता। आनंदीबेन ने सतर्कता, संवेदनशीलता और सख्ती से काम लेकर हिंसा को भड़कने से पहले ही दबा दिया। पाटीदारों की नाराजगी की वजह से स्थानिक इकाइयों के चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। आनंदीबेन ने तुरंत स्थिति को संभालना शुरू किया। मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना और बाद में सवणोंर् में आर्थिक रूप से पिछडे (ईबीसी) लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा कर उन्होंने पाटीदारों को मना लिया। भाजपा ने गांधीनगर महानगरपालिका का चुनाव जीता और बाद में कांग्रेस की तालाला सीट छीनकर फिर से भाजपा का वर्चस्व कायम किया।
और भी बहुत कुछ…
इन बड़े कामों के अलावा प्रजा कल्याण के नियमित रूप से होते काम भी इस दौरान होते रहे हैं। इन में से कुछ कामों पर भी नजर डालें:
आनंदीबेन सरकार ने सामाजिक सेवाओं के लिए रकम का प्रावधान बढ़ाकर 48 प्रतिशत कर दिया। इसकी वजह से सामाजिक स्तर पर प्रजा कल्याण के बहुत काम हाथ पर लिए गये।
गुजरात में दो साल में 80 लाख से ज्यादा महिलाओं के स्तन एवं गर्भाशय के कैंसर की नि:शुल्क जांच की गई। जिन महिलाओं को कैंसर था, उनका इलाज भी सरकार ने मुफ्त में करवाया।
आदिवासी इलाकों में बच्चों एवं महिलाओं के लिए दूध संजीवनी योजना कार्यान्वित की गयी। इस योजना का लाभ 28 आदिवासी ब्लॉक के 4919 स्कूलों के 6.77 लाख बच्चे ले रहे हैं।
ल्ल देश में गुजरात ही एक ऐसा राज्य है कि जहां डायबिटीज और ब्लड प्रेशर की दवाइयां मुफ्त में दी जाती हैं। सरकार सिर्फ 100 रुपए में डायलिसिस करवाने की सुविधा देती है। स्कूल में पढ़ने वाले हर बच्चे का मेडिकल चेकअप भी मुफ्त किया जाता है। अब तक डेढ़ करोड़ से ज्यादा बच्चों का मेडिकल चेकअप करवाया जा चुका है।
ल्ल आनंदीबेन ने गांधीनगर–अहमदाबाद मेट्रो लिंक रेल प्रोजेक्ट का काम युद्ध की गति से शुरू करवाया है।
ल्ल किसानों को सिर्फ एक प्रतिशत सालाना ब्याज पर कृषि प्लान देकर एक क्रान्तिकारी कदम उठाया है।
आनंदीबेन सरकारने मुद्रा योजना के तहत 3.11 लाख से ज्यादा युवा उद्यमियों को 1646 करोड़ रूपए के लोन दिए हैं।
ल्ल गुजरात में 25 लाख परिवारों को मा वात्सल्य कार्ड दिए गए हैं और उनकी तमाम बीमारियों के इलाज का खर्च राज्य सरकार उठाती है।
मां अन्नपूर्णा योजना के तहत गरीब परिवारों को प्रति किलोग्राम दो रू. की दर से 20 किलो चावल और प्रति किलोग्राम 3 रू. की दर से 35 किलो गेहूं दिया जाता है।
पिछले दो सालों मे गरीब कल्याण मेला के माध्यम से 21 लाख परिवारों को 2700 करोड़ रुपए की सहायता दी गई।
महिला सशक्तिकरण की दिशा में मजबूत कदम उठाते हुए अहमदाबाद के पास साणंद में सिर्फ महिला उद्यमियों के लिए इंडस्ट्रियल पार्क शुरू किया गया। अब हालोल एवं जुनैद में भी इसी तरह के पार्क स्थापित किये जायेंगे।
सरकारी नौकरियां में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान कर एक क्रान्तिकारी कदम उठाया। पुलिस विभाग में इस निर्णय को लागू किया गया।
गुजराती फिल्मों के लिए नई नीति का ऐलान किया गया। इसके तहत गुजराती फिल्म के निर्माण के लिए सरकार 50 लाख रुपए तक की सहायता करेगी। बाल फिल्म एवं महिलाओं के लिए बनाई गई फिल्मों पर 25 प्रतिशत ज्यादा सहायता मिलेगी। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली फिल्मों को 5 करोड़ रु. तक की सहायता मिलेगी। गुजराती फिल्म निर्माण को बढ़ावा देने के लिए सरकार हर साल 14 करोड़ रुपए
खर्च करेगी।
जो क्षेत्र शिक्षा के मामले में पिछड़े हैं वहां आरएमएसए योजना के अंतर्गत कक्षा 9 से 12 तक की छात्राओं के लिए 38 गर्ल्स हॉस्टल शुरू किये गये।
गुजरात में 2500 करोड़ रु. की लागत से सौराष्ट्र–कच्छ के 587 गांव एवम 116 शहरों को लिए स्वर्णिम गुजरात बल्क पाईप लाईन योजना शुरू की गयी। यह योजना नर्मदा नहर नेटवर्क से जुड़ी हुई है।
ल्ल कृषि महोत्सव एवं रवि महोत्सव के तहत 3.58 लाख से ज्यादा किसानों को मार्गदर्शन दिया गया एवम 106 करोड़ रुपए की सहायता दी गयी।
ई–ग्राम विश्वग्राम प्रोजेक्ट के तहत 13,685 ग्राम पंचायतों को कम्प्यूटर्स एवं ई–कनेक्टिविटी से जोड़ा गया। अब तक ई–ग्राम के माध्यम से 55.17 करोड़ प्रमाणपत्र दिये गये हैं। गुजरात में 40 गांव एवम 746 ग्राम पंचायत वाई–फाई से सुसज्जित हो चुका हैं।
ल्ल डा. बाबासाहेब आंबेडकर की 125वीं जयंती के अवसर पर गुजरात की 5 युनिवर्सिटी में सामाजिक समरसता के संदेश के प्रसार के लिए डा. बाबासाहेब आंबेडकर चेयर की स्थापना।
गुजरात सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के माध्यम से एक्सटेन्डेड ग्रीन नोड (एक्सजीएन) शुरू किया है। भारत सरकार के एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स एवं पब्लिक ग्रिवन्स मंत्रालय ने एक्सजीएन को स्वर्ण पदक दिया।
आनंदीबेन ने गुजरात में औद्योगिक विकास के साथ ग्रामीण एवं कृषि विकास को भी अहमियत दी है। उन्होंने सहकारी मंडलियों को टोकन रेट पर जमीन देकर अपनी इस प्रतिबद्धता का परिचय दिया है।
आनंदीबेन पटेल सरकारने दो साल में इस के अलावा भी बहुत कुछ किया है और गुजरात की जनता को उसका फायदा मिल रहा है। (लेखक गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
'यहां भाजपा को हिलाना नहीं आसान'
मुकेश शाह
गुजरात की राजनीति में दो दलों की ही प्रधानता रही है। पिछले तीन दशक में अल्प समय के लिए कुछ बदलाव जरूर आया। कांग्रेस से नाराज चिमनभाई पटेल ने अपना दल बनाया तो राज्य को मिलीजुली सरकार का भी अनुभव हुआ। किंतु 1994 से भाजपा की जो प्रगति हुई, उसे थामना कांग्रेस के लिए और मुश्किल ही हुआ। केशुभाई, सुरेशभाई, नरेन्द्रभाई और अब आनंदी बहन मुख्यमंत्री के रूप में गुजरात के सुशासन के शीर्षस्थ नेता रहे। इस बीच शंकरसिंह वाघेला की असंतुष्टि के कारण गुजरात को एक बार बिन भाजपा सरकार भी मिली पर भाजपा के नजरिए से यह भी कांग्रेस की छुट्टी करने में मददगार कदम ही था।
2014 में आनंदीबेन ने शासन की धुरी संभाली उससे पहले करीब 14 वर्ष तक नरेन्द्र भाई के नेतृत्व में राज्य की हुई प्रगति, 'गुजरात का विकास मॉडल' और 'सबका साथ सबका विकास' सूत्र के माध्यम से सारा देश सुपरिचित है। 2007 और 2012 में दो बार उसे रोकने का प्रयत्न हुआ परंतु गुजरात की प्रजा ने उन प्रत्याशियों को केवल 4 प्रतिशत वोट देकर बाहर कर दिया। गत लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को 51.1 प्रतिशत वोट देकर पूरी 26 सीट गुजरात से भाजपा को ही दीं जो प्रजा की बहुत बड़ी जीत और भाजपा के लिए जिम्मेदारी बनी। भारतीय राजनीति की तरह गुजरात की राजनीति भी समाज में जातिवाद के आधार पर कांग्रेस के समय से चली। कांग्रेस शासन में खास शहरी, क्षेत्रीय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम को इकट्ठा कर श्री माधवसिंह सोलंकी ने वर्षों तक राज किया किंतु मोदी जी के आने के बाद उनमें काफी बदलाव दिखा। पटेल समाज कांग्रेस से विमुख होकर, भाजपा के साथ जुड़ा था और 1995 के आसपास उस समाज ने ओबीसी आरक्षण के विरुद्ध अपना बिगुल फूंका था। केशुभाई और मोदीजी के समय से उच्च जाति, ओबीसी और आदिवासी ने मिलकर खास शहरी वर्ग को ताकतहीन कर भाजपा को कमान सौंपी है। विकास आधारित नीतियां, वाईब्रेंट गुजरात, कृषि आधारित विकास के मॉडल, एफडीआई और सामाजिक क्षेत्र, पढ़ाई और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निरंतर प्रगति कर गुजरात को अधिक उन्नति की ऊंचाइयां हासिल करवाकर नरेन्द्रभाई ने पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया था। इस बजट से आनंदी बहन से भी अपेक्षाएं उसी तुलना में रहीं। मुख्यमंत्री का चुनाव केवल राजनीतिक तौर पर नहीं किया गया बल्कि वे चयन कसौटियों पर खरा उतरा अनूठा सामाजिक व्यक्तित्व है। वे स्कूल शिक्षक, भाजपा की सदस्य बनने से पहले राष्ट्रपति अवार्ड विजेता प्रिंसिपल रही हैं। नर्मदा के जल में डूबती हुई बच्चियों को बचाने के साहसपूर्ण कार्य के लिए उन्हें वीरता पुरस्कार भी मिल चुका है। वे सामाजिक योगदान के लिए पटेल समाज द्वारा सम्मान प्राप्त महिला हैं। गुजरात की प्रथम महिला मुख्यमंत्री महिला विषयों के प्रति अत्यंत सजग और संवेदनशील तो हैं ही विदेशी निवेश में भी वर्ल्ड बैंक की रेटिंग में गुजरात को प्रथम स्थान दिलाने में वे सफल रही हैं।
गुजरात के पटेल आरक्षण के आंदोलन के तहत ग्राम्य विस्तारों में जिला पंचायत और तालुक पंचायत के चुनावों में लोगों के विभाजित होने से और कांग्रेस के अलावा अन्य विकल्प न होने से, उन्हें वोट भी ज्यादा मिले और जीत भी। किंतु 6 जिला पंचायत, 69 तालुका पंचायत, 42 म्युनिसिपलिटी और सभी महानगर की कार्पोरेशन में भाजपा ने अपनी जीत बरकरार रखी है। नारी सशक्तिकरण और किसान लाभार्थ नयी योजनाओं के साथ 1000 करोड़ रु.आर्थिक रूप से निर्बल विद्यार्थियों को शिक्षावर्धन और उनके लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान, अब उन्हीं विस्तारों में भाजपा की स्वीकृति की और आगे बढ़ा रहा है।राजनीति और मीडिया की कैमिस्ट्री कुछ अजीब होती है। यह व्यक्ति, संस्था या पार्टी को जीरो से हीरो और हीरो से जीरो बनाने में सक्षम होती है। गुजरात में भाजपा की स्वीकृति प्राथमिक सदस्यता और चुनावों के नतीजे से इतनी व्यापक है कि उसे हिलाना संभव नहीं। गुजराती संस्कार और व्यवहार भी ऐसा है कि इस प्रदेश में बाहर से आकर बसने वाले लोग यहां मतदाता हों तो भाजपा के साथ, अगर अपने प्रदेश में हों तो वहां जाकर भाजपा के लिए उस क्षेत्र को प्रभावित करते हैं। सो, कहा जा सकता है कि 2017 के चुनावों में भाजपा की जीत निश्चित है। किंतु इस भ्रम में रहने के बजाय, भविष्य में विपक्ष कोई नया वायुमंडल पटेलों के माध्यम से, भ्रष्टाचार वाली गुनगुनाहट से, मुस्लिम मतों के एकजुट करते हुए त्रस्त किसानों की आहट से (वैसे इस वर्ष आशा है कि सिंचाई का पानी और अन्य उपयोग बहुत ही अच्छा रहेगा) या पटेल-ओबीसी तनाव खड़ा करके कुछ भी दावपेंच लड़ाये, उसे निष्काम करने में लगना चाहिए। बुरी तरह बिखरी कांग्रेस या देश में अन्य विरोधपक्षीय दलों में यह ताकत कतई नहीं है कि वे गुजरात में अपना अड्डा जमा सकें।
(लेखक प्रतिष्ठित गुजराती पत्रिका, साधना साप्ताहिक के संपादक हैं)
टिप्पणियाँ