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नॉन कॉलेजियट विमेंस एजुकेशन बोर्ड 'एनसीडब्ल्यूईबी' बंद खिड़कियों को खोलकर महिला शिक्षा की अलख जगा रहा है। बेटियां इससे लाभ उठा रही हैं और अपने पैरों पर खड़ी हो सशक्त बन रही हैं। बोर्ड द्वारा शिक्षा क्षेत्र में किये जा रहे काम से सैकड़ों जिंदगियां संवर रही हैं और अपना विकास कर रही हैं
प्रो. अंजू गुप्ता
मशहूर राजनीतिक दार्शनिक जॉन एडम्स ने एक बार कहा था, ''शिक्षा दो तरह की होती है। एक जो जीवन यापन के गुर सिखाए और दूसरा जीना।'' हमारे समाज को ऐसी ही शिक्षा प्रणाली कायम करने की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। हमारे छात्र दर्शन, विज्ञान और कला के तमाम जटिल सूत्र, समीकरण और तकनीकी शब्दावली सीखते हैं। फिर भी, कभी-कभी उनकी हालत दाने-दाने को तरस रहे पंछियों जैसी होती है। उनके पंखों में न तो ताकत होती है, और न ही जोश-खरोश।
अगर उनके जोश और पंखों में ताकत लानी है तो राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली, प्रशासन और प्रबंधकीय संरचना में अनौपचारिक शिक्षा को तरजीह देना बहुत जरूरी है। खासकर इन उद्देश्यों के लिए जैसे पहला, शिक्षण प्रणाली में अनौपचारिक शिक्षा और औपचारिक शिक्षा के बीच की खाई को कम करना। दूसरा, अंतर-क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाना। तीसरा, शैक्षिक प्रणाली के विभिन्न स्तरों-केंद्र सरकार, विकेंद्रित प्राधिकारों, स्कूलों और समुदायों के बीच परस्पर सहयोग को मजबूत बनाना एवं चौथा, कमजोर राज्यों के लिए पर्याप्त प्रावधान सुनिश्चित करना। ज्यादातर देखा गया है कि अनौपचारिक शिक्षा के जरिये विकसित कौशल को इतना महत्व नहीं मिलता कि उसके आधार पर औपचारिक विद्यालयों या तकनीकी और व्यावसायिक संस्थानों में दाखिला मिल सके। लिहाजा रोजगार की दुनिया में प्रशिक्षुओं के 'करियर' का दायरा सीमित हो जाता है। इसलिए, कई केंद्रों में कौशल युक्त प्रशिक्षुओं को उनके हुनर के समानांतर अवसर सुनिश्चित करके और उनके कौशल के विविध इस्तेमाल के लिए विविध व्यवस्थाओं के विकास के मद्देनजर एक बेहतर समन्वित शिक्षा प्रणाली तैयार करने के प्रयास किए जा रहे हैं ।
शिक्षा अधिनियम 1982 की धारा-24 में अनौपचारिक शिक्षा को एक विशेष शैक्षिक सेवा माना गया है, जो चंद लोगों की विशेष जरूरतों को पूरा करती है। उसके अनुसार, ''लोगों के हित और जरूरत का आकलन करने, उनसे संवाद स्थापित करने, उन्हें भागीदारी के लिए प्रेरित करने और अच्छी जीवन शैली के लिए आवश्यक कौशल और व्यवहारगत प्रवृत्तियां और संबंधित गतिविधियों को अपनाने की प्रक्रिया है।''
अगर कोई राज्य आत्मनिर्भर और संपन्न होने का सपना पूरा करना चाहता है तो उसे अपने नागरिकों को आत्मनिर्भर और दृढ़ बनाने की राह पर कदम बढ़ाने हांेगे। स्थिर अर्थव्यवस्था वाले विकसित देशों के लिए यह आसान है, वहीं भारत जैसे देश के लिए एक विशाल चुनौती। भारत में महिला साक्षरता का अनुपात पुरुष की तुलना में 20 प्रतिशत कम है और करीब पचास प्रतिशत लड़कियां कक्षा पांच के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं। ऐसे परिदृश्य में जरूरी है कि कुछ नया सोचें और ऐसे समाधान पेश करें जो गैर-पारंपरिक और रचनात्मक हों, ताकि जब लड़कियों की स्कूली शिक्षा पूरी हो तो उन्हें कॉलेज में दाखिला मिल सके और वे उच्च शिक्षा के सपने देख सकें। परिवार और वित्तीय दबावों पर नजर रखते हुए उन्हें स्नातक और स्नातकोत्तर तक पढ़ने के लिए भी प्रोत्साहित करना होगा, जिससे वे आत्मनिर्भर बनकर अपना जीवन यापन कर सकें। भारत एक युवा देश है, यानी आबादी का बड़ा हिस्सा काम करने की आयु में है। कोई भी देश तब तक विकास नहीं कर सकता, जब तक उसका युवा वर्ग असंतुष्ट और निराश है। कौशल विकास एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसकी अलख एक बार जगा दी तो वह हमेशा जगाए रखनी होगी, क्योंकि इसमें रोजगार पैदा करने की अपार संभावनाएं हैं।
कई शैक्षणिक संस्थानों में महिलाओं को आगे लाने और उन्हें रोजगार प्रदाताओं के तौर पर सशक्त करने के उद्देश्य से महिलाओं से संबंधित विभिन्न कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। ऐसी ही एक संस्था है-नॉन कॉलेजिएट विमेंस एजुकेशन बोर्ड (एनसीडब्ल्यूईबी) जो महिलाओं की शिक्षा की दिशा में अहम भूमिका निभा रहा है। एनसीडब्ल्यूईबी दिल्ली विश्वविद्यालय के तहत कार्यरत है। इसमें आम संस्थाओं की तरह कड़े नियमों का बोझ नहीं डाला जाता, बल्कि इसका लक्ष्य महिला सशक्तिकरण और ज्ञान प्रदान करना है। यह संस्थान युवतियों के विकास पर प्रमुख रूप से ध्यान केंद्रित करते हुए विभिन्न नवीन कौशल विकास कार्यक्रमों को पेश करने लिए हमेशा तत्पर है। बोर्ड विस्तृत क्षेत्रों को शामिल करते हुए प्रशिक्षुओं के लिए कौशल विकास पाठ्यक्रम चलाता है। इसके तहत उन्हें अनौपचारिक क्षेत्र और औपचारिक क्षेत्रों में काम करने का प्रशिक्षण दिया जाता है तो वहीं रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाते हैं। तेजी से आगे बढ़ रहे देश में यह संस्थान कन्याओं को सशक्त बनाने में अनूठी भूमिका निभा रहा है। एनसीडब्ल्यूईबी वंचित वगार्ें की लड़कियों के लिए एक बड़ा मंच मुहैया करा रही है, जहां वे हर रविवार कौशल सीखने के लिए उपस्थित होती हैं और हफ्ते के बाकी दिन रोजगार के अवसरों की तलाश जारी रखती हैं। संस्थान द्वारा उठाए गए इस कदम से सैकड़ों जिंदगियां संवर रही हैं। इसका कामकाज बहुत ही अनूठा है। हालांकि सिर्फ दिल्ली की ही छात्राएं बोर्ड में दाखिला ले सकती हैं। यहां सिर्फ सप्ताहांत में ही व्याख्यान होते हैं और छात्राओं को बाकी पांच दिन अपने सपनों के लिए भरपूर उड़ान भरने की छूट होती है। सौ प्रतिशत कट-ऑफ, क्लास रूम की मुश्किलें, स्त्री-पुरुष भेदभाव वाले इस नए युग में एनसीडब्ल्यूईबी की पेशकश स्वागत योग्य तो है ही, साथ ही इसके जरिए दिल्ली विश्वविद्यालय की डिग्री भी हासिल की जा सकती है। अनौपचारिक शिक्षा प्राप्त करने वाली इन छात्राओं की कुछ उल्लेखनीय विशेषताएं भी हैं कि वे आरामतलब नहीं, बल्कि मेहनती और मजबूत हैं। ये छात्राएं अपने भविष्य को लेकर दिग्भ्रमित नहीं हैं बल्कि उन्हें अच्छे से जानकारी है कि उनकी जिन्दगी का लक्ष्य क्या है। कक्षा में शामिल होने वाली अधिकांश छात्राएं बाकी के पांच दिन काम करती हैं। वे दिल लगा कर सप्ताहांत कक्षाओं में शामिल होती हैं, अपने सवालों का समाधान हासिल करती हैं और उन्हें सुलझा कर शैक्षिकविकास का राह पर बढती जाती है। एनसीडब्ल्यूईबी ने चमत्कारी तरीके से 'महिला होने की बेचारगी' के भाव को दूर करके 'महिला होने के अहसास' को एक नया आयाम दिया है।
आज से छात्राऐं सभी प्रतिभा संपन्न हो रही हैं तो वहीं महिला होने पर खुश हैं। संस्था में पढ़ाने वाले शिक्षक अन्य नियमित कालेजों के प्राध्यपक हैं, जो सप्ताह के अंत में अपना समय महिलाओं की शिक्षा जैसे महान कार्य को समर्पित कर रहे हैं। एनसीडब्ल्यूईबी बंद खिड़कियों को खोलकर महिलाओं की आजादी और शिक्षा की अलख जगा रहा है और सामूहिक प्रयासों की उंगली थाम कर गैर औपचारिक शिक्षा प्रणाली को सफल बनाने की मिसाल पेश कर रहा है। यह शिक्षा प्रणाली के कठोर नियमों से अलग शिक्षण का एक अलग स्वरूप है, जिससे छात्राओं को जुड़ाव महसूस होता है। इन सभी चीजों से छात्राओं में ही नहीं बल्कि उनके माता-पिता में भी आत्मविश्वास बढ़ रहा है। यहां का वातावरण छात्राओं के लिए खुशनुमा और उत्साह से भरपूर है, इसलिए उनके लिए उपलब्ध विभिन्न कौशल विकास कार्यक्रमों के साथ उन्हें जोड़कर उनकी प्रतिभा को तराशा जा सकता है। सीखना एक सतत प्रक्रिया है। इसे कक्षा की चारदीवारी के भीतर बांध कर रखना ठीक नहीं है।
(लेखक एनसीडब्ल्यूईबी, दिल्ली विश्वविद्यालय की निदेशक हैं)
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