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जिस नेता ने पार्टी की स्थापना में भूमिका निभाई और जिसके नाम पर जनता ने वोट दिए चुनाव के बाद उन्हें पार्श्व में डाल दिया गया है
टी़ सतीशन, कोच्चि
केरल के मुख्यमंत्री पद के लिए माकपा ने किसी और को चुन लिया और 93 बसंत देख चुके वी़एस़ अच्युतानंदन बस गुबार देखते रह गए। पोलित ब्यूरो का फैसला पिनारयी विजयन के पक्ष में रहा। बढ़ती उम्र के बावजूद पार्टी के दिग्गज नेता वी़ एस़ ने माकपा और एलडीएफ के लिए जबरदस्त चुनाव अभियान का नेतृत्व किया। यह सही है कि पिनारयी ने कासरगोड़ से तिरुवनंतपुरम तक की राजनीतिक यात्रा, नव केरल मार्च, का नेतृत्व किया, लेकिन इस अभियान के असली नेता तो वी़ एस़ थे। वह केरल के लगभग सभी निर्वाचन क्षेत्रों में गए। पार्टी महासचिव सीताराम येचुरी यह कहकर वी़ एस. का हौसला बढ़ाते रहे कि वह एक युवा व्यक्ति की तरह स्वस्थ हैं और कोई भी जिम्मेदारी निभाने में सक्षम हैं। केरल के लोगों के साथ पार्टी के ज्यादातर कार्यकर्ता भी मान बैठे थे कि अगर एलडीएफ सत्ता में आता है तो वी़ एस़ ही सत्ता संभालेंगे। माकपा ने इस जनभावना का हरसंभव फायदा उठाया। वी़ एस़ भी पार्टी के लिए जो कुछ कर सकते थे उन्होंने किया। यहां तक कि वह पार्टी में अपने धुर विरोधी पिनारयी विजयन के निर्वाचन क्षेत्र धर्मादम में प्रचार अभियान में भाग लेने के लिए सुदूर उत्तरी जिले कन्नूर तक गए। इसके अलावा उन्होंने थ्रिप्पुनिथुरा विधानसभा क्षेत्र जाकर डीवाईएफआई नेता एम. स्वराज के पक्ष में प्रचार किया जहां वह आबकारी मंत्री के़ बाबू और भाजपा के ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रत्याशी प्रो़ थुरावुर विश्वंभरन के बीच संघर्षपूर्ण त्रिकोणीय मुकाबले में फंसे थे। जबकि कुछ साल पहले ही पार्टी के राज्यस्तरीय सम्मेलन में स्वराज ने वी. एस. अच्युतानंदन के खिलाफ विवादित टिप्पणियां की थीं। मीडिया में ऐसी खबरें आई कि स्वराज ने कहा था कि वी़एस. को तो फांसी पर चढ़ा देना चाहिए। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने यहां तक कह दिया था कि वी़ एस. के टुकड़े कर कुत्तों के सामने फेंक देने चाहिए। हालांकि स्वराज ऐसा कहने से इनकार कर चुके हैं, लेकिन केरल के ज्यादातर लोगों को उनकी बात हजम नहीं हो रही है। गौर करने वाली बात यह है कि थ्रिप्पुनिथुरा में वी़एस. गुट की मजबूत पकड़ है और लगातार तीन जिला सचिव भी वहां की गुटबाजी खत्म नहीं कर पाए। दूसरे शब्दों में, पांच साल तक नेता प्रतिपक्ष के कार्यकाल के बाद वी़एस़ ने एलडीएफ को वापस सत्ता में लाने का बीड़ा उठा रखा था।
अब तो राजनीति से दूर रहने वाला एक आम आदमी भी मान रहा है कि वी़एस. को उनकी अपनी ही पार्टी ने धोखा दिया है। यह तो मलयालम की उस लोकप्रिय कहावत जैसी बात हो गई कि 'दूल्हे को छोटी बहन दिखाओ और शादी के लिए बड़ी को ले आओ।' लेकिन, जब इस पर लोगों की राय जानने की कोशिश की तो इसपर पछताने वाले बहुत कम ही थे। वोटों की गिनती खत्म होते ही उनमें से ज्यादातर यह आंकने में जुट गए थे कि उनके लिए आगे क्या होने जा रहा है। वे बखूबी समझ रहे थे कि येचुरी की तारीफों के बावजूद राज्य की सत्ता पिनारयी के लिए आरक्षित की गई थी। ऐसा एक भी कार्यकर्ता नहीं मिला जो वी.एस. के पक्ष में बोलता या पार्टी के फैसले के खिलाफ मुंह खोलता। सभी यही कहते रहे कि लोगों ने पार्टी को सत्ता सौंपी है और विधायकों ने पिनारयी को अपना नेता चुन लिया है, सो वही मुख्यमंत्री हैं। जाहिर है वे अपनी भावनाओं को छिपा रहे हैं। वे पार्टी की अनुशासनात्मक कार्रवाई से डर रहे हैं जो एक तलवार की तरह उनके सिर पर लटकी है। लेकिन, दूसरे दलों के नेता और कार्यकर्ता खुलकर कह रहे हैं कि माकपा ने वी.एस.के साथ अन्याय किया। उसने चुनाव जीतने के लिए वी़एस़ का इस्तेमाल किया और मतलब निकलते ही उन्हें किनारे कर दिया। वे कहते हैं कि वी.एस.को सिगरेट के बच गए टुकड़े की तरह फेंक दिया गया। वी़एस़ की तुलना करी के उन पत्तों से की जा रही है जो केरल में खाना पकाने के दौरान अनिवार्य तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन खाना खाते समय लोग इन्हें फेंक देते हैं। लोग उन्हें मजाक में फिदेल कास्त्रो कहने लगे हैं, क्योंकि विधायक दल के नेता के रूप में पिनरायी के चुनाव की घोषणा के बाद येचुरी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि वी़एस़ भविष्य में पार्टी के लिए फिदेल कास्त्रो की तरह होंगे। सोशल मीडिया में वीएस की इन तुलनाओं पर खूब चटखारे लिए जा रहे हैं और करी पत्ते का नाम बदलकर वी.एस. कर देने जैसी टिप्पणियां की जा रही हैं, लेकिन यह तो बड़ी सीधी सी बात है कि वी.एस. के जोरदार चुनाव अभियान के बिना माकपा सत्ता में नहीं आ सकती थी।
संपन्न तबके से बात करने पर जवाब मिला कि मुख्यमंत्री के तौर पर उन्हें वी़एस़ की कमी नहीं खलेगी। यह तबका मानता है कि वी़एस़ की रुचि सिर्फ व्यक्तिगत लोकप्रियता में है। वह नीतिगत घोषणाएं तो करते हैं, लेकिन कभी उन्हें पूरा नहीं करते। वे 2002 से 2006 के दौरान वी़एस़ की घोषणाओं का हवाला देते हैं। तब वी़एस़ ने बार-बार कहा था कि अगर एलडीएफ सत्ता में आती है तो किलिरूर सेक्स कांड के अपराधियों को हथकड़ी डालकर जेल तक परेड कराया जाएगा। उन्होंने बार-बार कहा था कि एक वीआईपी के अस्पताल दौरे के बाद ही किलिरूर कांड की पीडि़ता नाबालिग लड़की की तबियत बिगड़ी थी। उन्होंने कई बार वादा भी किया था कि वह उस बड़े आदमी के नाम का खुलासा करेंगे। तब लोगों को लगा था कि वह आदमी वी़एस़ की पार्टी का ही होगा या फिर एक माकपा नेता का रिश्तेदार होगा। उस लड़की की मौत को एक दशक से भी अधिक हो चुका है, लेकिन वी़एस़ ने उस शख्स के नाम का खुलासा नहीं किया। वी़एस़ के एक और अधूरे वादे की दास्तान है 2007 का चर्चित मून्नार मिशन। 2006 से 2011 के दौरान मुख्यमंत्री रहते हुए वी़एस़ अच्युतानंदन ने अतिक्रमण की भूमि को छुड़ाने और अवैध निर्माण गिराने के लिए तीन वरिष्ठ अधिकारियों (दो आईएएस और एक आईपीएस अधिकारी) को भेजा था। तत्कालीन सत्तारूढ़ एलडीएफ में दूसरी प्रमुख भागीदार भाकपा ने तब माकपा के विवादास्पद और बड़बोले जिला सचिव एम़ एम़ मणि के खुले समर्थन से मून्नार मिशन का विरोध किया और अंतत: वी़एस. को वह अभियान बंद करना पड़ा। सबसे पहले भाकपा कार्यालय तोड़ा गया। माकपा कार्यालय भी अवैध तौर पर बना था, लेकिन वी़ एस़ उसे छू भी नहीं सके। जाहिर है पिनारयी समेत पार्टी अधिकारियों ने उनका समर्थन नहीं किया था। एक अन्य घटना मलयालम फिल्मों की अवैध प्रतियों की तलाश में कोच्चि के पास एक रिकार्डिंग स्टूडियो पर छापेमारी से जुड़ी है। छापे के बारे में खबर लीक हो गई और मीडिया में आई तारीख के बाद हुई कार्रवाई में कुछ भी हाथ न आया। वह स्टूडियो कथित तौर पर एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी का था, जिसके एलडीएफ और यूडीएफ, दोनों से करीबी रिश्ते थे। दिलचस्प बात यह है कि तब गृह और सतर्कता विभाग संभालने वाले कोडियरी बालाकृष्णन को पिनारयी का खासमखास माना जाता था।
ज्यादातर जानकार लोगों का मानना है कि मुख्यमंत्री के तौर पर वी़एस़ की तुलना में पिनारयी कहीं बेहतर साबित होंगे। वे कहते हैं कि पिनारयी ने 1996 में ई़के़ नयनार के कार्यकाल में बिजली मंत्री के तौर पर काम करते हुए अपनी क्षमता साबित की थी। विद्युत बोर्ड कर्मियों का मानना है कि बोर्ड के लिए वे बड़े अच्छे दिन थे। वह सख्त हैं और काम से मतलब रखते हैं। इन लोगों के लिए एसएनसी लवलीन प्रकरण ज्यादा मायने नहीं रखता जिसने कई वषार्ें के लिए पिनारयी के राजनीतिक करियर को हिलाकर रख दिया। लोगों का मानना है और मीडिया में इस तरह की खबरें आईं थीं कि पिनारयी के खिलाफ लवलीन मुद्दे को उठाने के पीछे दरअसल वी़एस़ ही थे। बहरहाल, अब तक अदालत ने पिनारयी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है।
लेकिन, संघ परिवार के खिलाफ माकपा के हमलों और हत्या की बढ़ती राजनीति के कारण संघ के लोग पिनारयी शासन और हिंसा में लिप्त माकपा कार्यकर्ताओं के प्रति उसके रुख को लेकर सशंकित हैं। वे कोडुंगल्लूर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता प्रमोद की हत्या और राज्यभर में हो रही व्यापक हिंसक घटनाओं, खास तौर पर कन्नूर और केसरगोड़ का हवाला देते हैं। मीडिया विश्लेषक टी. जी़ मोहनदास का मानना है कि पिनारयी के नेतृत्व में सत्ताधारी पार्टी तंत्र कुछ समय के लिए ही हिंसा से दूर रहेगा। उन्हें पता है कि इस बार वे अल्पसंख्यक वोटों के कारण सत्ता तक पहुंचने में सफल हुए हैं, इसलिए वे इस वोट बैंक को अपने साथ बनाए रखने की कोशिश करते रहेंगे। इस संबंध में वे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के बहाने संघ परिवार के खिलाफ हिंसा का सहारा लेंगे। इसके लिए वे संघ और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के बीच छिटपुट हिंसा कराएंगे ताकि वे इस 'बवाल में पीडि़तों' यानी अल्पसंख्यकों के उद्घारक के तौर पर कूद सकें। अगर हम अतीत में झांकें तो यह आकलन एकदम सही साबित होगा। जब उन्होंने 1960 और 1970 के दशक में थालास्सेरी में संघ कार्यकर्ताओं को मारना शुरू किया, वे यही कहते रहे कि अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए वे संघ से दो-दो हाथ कर रहे हैं (जबकि हकीकत यह थी कि तब संघ और अल्पसंख्यकों के बीच कोई तनाव था ही नहीं)।
संघ के खिलाफ माकपा की हिंसा का केंद्र बिंदु रहे कन्नूर जिले में संघ के वरिष्ठ नेता सुरेश बाबू कहते हैं कि संघ परिवार के प्रति नजरिये और हिंसा के मामले में अपनाए गए रुख के आधार पर बात करें तो वी़एस़ और पिनारयी में कोई बड़ा अंतर नहीं।
केरल के पढ़े-लिखे लोग जानते हैं कि सीताराम येचुरी केरल में पार्टी पदाधिकारियों की इच्छा के खिलाफ कुछ नहीं कर सकते। बंगाल में कांग्रेस के साथ चुनावी गठजोड़ करने का उनका फैसला बुरी तरह विफल हो चुका है, उधर त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार अलग ही रास्ते पर निकल पड़े हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके मधुर संबंध हैं, ऐसे में येचुरी पिनारयी गुट से दो-दो हाथ नहीं कर सकते। आम इंसान भी जानता है कि माकपा की केरल इकाई देश में पार्टी की सबसे अमीर राज्य इकाई है। विस्मय पार्क जैसे कारोबारी उद्यमों, तमाम सहकारी बैंक और सोसाइटियों, पार्टी की इमारतों से आने वाले किराये, सैकड़ों ट्रेड यूनियनों की बदौलत यह कमाई हो रही है। हाल यह है कि केंद्रीय नेतृत्व को अपने खर्चे के लिए केरल इकाई पर निर्भर रहना पड़ता है और माकपा की देश के किसी भी अन्य राज्य में कोई ठोस मौजूदगी नहीं।
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