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एक तरफ जहां भारत में राममंदिर का नाम लेने ही किसी व्यक्ति पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगा दिया जाता है वहीं मॉरिशस में वहां की सरकार के सहयोग से रामायण केंद्र बनाया गया है
भारत में हिंदुओं को राम मंदिर बनाने के लिए लगातार कोशिशें करनी पड़ रही हैं। श्रीराम का नाम लेने भर से ही व्यक्ति पर सांप्रदायिक होने का ठप्पा लगा दिया जाता है। लेकिन मॉरिशस में ऐसा बिल्कुल नहीं है, बल्कि यहां की सरकार के सहयोग से मॉरिशस के हिंदुओं ने देश की राजधानी पोर्ट लूइस में विशाल राममंदिर और रामायण सेंटर बनाया है। इसके लिए न सिर्फ सरकार ने जमीन उपलब्ध कराई बल्कि यहां की संसद ने एक अधिनियम बनाकर इसके रोजमर्रा के खर्चे को वहन करने का प्रस्ताव भी रखा। इस प्रकार का कार्य शायद भारत में रहकर करना तो मुश्किल है ही, सोचना तक मुश्किल है। मॉरिशस में रामायण केंद्र के निर्माण की जड़ें 1982 में रामायण पर केंद्रित मंथन शीर्षक से रेडियो पर प्रसारित कार्यक्रम से जुड़ी हैं। यह हिंदी कार्यक्रम आज तक लगातार प्रसारित हो रहा है। पहले इसकी अवधि 15 मिनट होती थी, लेकिन जिसे अब बढ़ाकर तीस मिनट कर दिया गया है। तत्कालीन प्रधानमंत्री सर अनिरुद्ध जगन्नाथ ने 15 अगस्त, 2002 को इस परियोजना की नींव रखी थी। पहले चरण में एक शिक्षण परिसर जिसमें भूतल पर पुस्तकालय, कार्यालय व दूसरे चरण में प्रथम तल पर शिक्षण कक्ष, बहुउद्देशीय कक्ष और तीसरे तल पर मेहमानों के लिए कमरा बनाया गया। प्रथम चरण का उद्घाटन 2007 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. नवीनचंद्र रामगुलाम ने किया था। दूसरे चरण का जिसमें एक आध्यात्मिक परिसर का निर्माण हुआ था, उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति श्री राजकेशवर पुरुयाग ने किया था।
मॉरिशस की संसद ने 2001 में हिंदू समाज और वृहद समाज के नैतिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास का लक्ष्य लेकर रामायण केंद्र के लिए बिल पास किया था। केंद्र का प्रथम तल 'कच्छप' आकृति का बनाया गया है, जिसकी मॉरिशस में बहुत मान्यता है। इसके लिए सरकार की तरफ से हवाईअड्डे के नजदीक 1.5 एकड़ जमीन उपलब्ध कराई गई थी, जबकि इसके लिए धन लोगों ने इकट्ठा किया। शिक्षण परिसर में नियमित रूप से रामायण की कक्षाएं होती हैं। यहां पर एक बड़ा कक्ष है, जिसमें एक साथ एक हजार लोग बैठ सकते हैं। सबसे ऊपर के तल पर भगवान श्रीराम का मंदिर बनाया जा रहा है। जहां तक उम्मीद है, मंदिर का निर्माण कार्य अगले वर्ष के शुरू में ही पूरा हो जाएगा। इसके बाद इसका उद्घाटन किया जाएगा। प्रवासी भारतीय दिवस सामूहिक चर्चा में भाग लेने के लिए दिल्ली आए व रामायण केंद्र के शुरुआती चरण से इसके साथ जुड़े राजेंद्र अरुण का कहना है, ''हम भारत से प्रतिमाएं मंगाकर यहां स्थापित करेंगे।'' पाञ्चजन्य और राष्ट्रधर्म पत्रिका में काम कर चुके अरुण राजेंद्र वर्ष 1973 में मॉरिशस के प्रधानमंत्री रहे स्व. शिवसागर रामगुलाम द्वारा संचालित हिंदी साप्ताहिक 'जनता' के संपादक होकर वहां गए थे। उन्होंने 1998 में एक रामायण कॉन्फ्रेंस आयोजित की थी जिसमें भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, देश के अन्य वरिष्ठ नेताओं व स्व. बालेश्वर अग्रवाल ने भाग लिया था। हाल ही में दिल्ली आए राजेंद्र अरुण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले। उन्होंने उनसे राम मंदिर का उद्घाटन करने का अनुरोध किया। उन्होंने विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज व सांस्कृतिक एवं पर्यटन मंत्री महेश शर्मा से भी मुलाकात की।
राजेंद्र अरुण कहते हैं, '' रामायण में बताए गए जीवन मूल्य मानवता को शांति, प्रसन्नता और सार्वभौमिक बंधुत्व के मार्ग की ओर ले जाते हैं। इसी के माध्यम से हम अपनी भावी पीढि़यों के लिए एक सुरक्षित और मजबूत भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं। यह एक दायित्व है जो हमें निभाना है। इसलिए हमें भौतिक चकाचौंध को छोड़कर मानवता के लिए अपनी उस भव्य व्रिगरासत को संजोना है जिसे हम खो चुके हैं और यह श्रेष्ठ मानवता हमें रामायण के माध्यम से मिलेगी।'' उनकी पत्नी वीनू अरुण रामायण चिंतन को बढ़ाने और विकसित करने में जुटी हुई हैं। वे सारे विश्व के लोगों के भारत में रामायण से जुड़े विभिन्न स्थलों से भावनात्मक जुड़ाव की कोशिश में लगी हैं। ल्ल प्रतिनिधि
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