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19 मई की सुबह पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव 2016 के वोटों की गिनती शुरू होते ही ममता के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस की सत्ता मेें फिर से वापसी की तस्वीर सामने आने लगी। तब तक ऐसा बिल्कुल नहीं लग रहा था कि वामपंथी और कांग्रेस सहित वे तमाम विपक्षी पार्टियां ममता के सामने इतनी बुरी तरह पिट जाएंगी, जो अनैतिक मोर्चा बनाकर तृणमूल कांग्रेस से चुनावी टक्कर लेकर सत्ता में आने के दावे के साथ मैदान में उतरी थीं। लेकिन जैसे-जैसे तस्वीर साफ होने लगी और नतीजे सामने आने लगे, अगली सरकार का चेहरा स्पष्ट हो गया। तृणमूल कांग्रेस ने अकेले ही 211 सीटों पर प्रबल बहुमत से सत्ता में वापसी की।
सत्ता विरोधी रुख के आयाम को बेअसर साबित करते हुए तृणमूल कांग्रेस का वोट प्रतिशत 2014 के संसदीय चुनावों के मुकाबले इस बार और आगे चला गया। कांग्रेस एवं वाममोर्चा के गठबंधन से कांग्रेस को फायदा तो हुआ मगर वामपंथियों को कोई फायदा नहीं हुआ। कांग्रेस को 44 सीटों के साथ वोट प्रतिशत में भी लाभ हुआ। वाम मोर्चे और भाजपा दोनों का वोट शेयर घटा। जबकि कांग्रेस के वोट प्रतिशत में लगभग दोगुना इजाफा हुआ। कांग्रेस केवल 91 सीटों पर ही चुनाव लड़ी जिसमें से 76 सीट पर उसने वाम मोर्चे के साथ समझौते से चुनाव नड़ा था, बाकी सीटों पर टक्कर मैत्रीपूर्ण थी।
भाजपा ने अपने सहयोगी दल गोरखा जनमुक्ति मोर्चे को 5 सीट दी थीं, उनमें से मोर्चे का एक उम्मीदवार अलीपुर द्वार की कालीचीनी सीट पर भाजपा के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ा मगर 1200 से कुछ अधिक मतों से हार गया।
पिछली विधानसभा में भाजपा का एक ही विधायक था। राज्य भाजपा के महामंत्री शमिक भट्टाचार्य उप चुनाव जीतकर विधायक बने थे। पर इस बार वे चुनाव नहीं जीत पाए। दूसरी ओर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और वर्तमान में केन्द्रीय महामंत्री राहुल सिन्हा कोलकाता की जोरासांको सीट से तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार सुनीता बक्शी से चुनाव हार गए। लेकिन भाजपा के लिए उत्साहित करने वाला नतीजा आया खड़गपुर शहर सीट से जहां सेे पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कांगे्रस-वाम मोर्चा उम्मीदवार को 6,000 मतों से हराया। उन्हें अध्यक्ष बने अभी पांच महीने भी नहीं हुए हैं और यह उनका पहला चुनावी संघर्ष था।
ल्ल बासुदेब पाल
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