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– नरेन्द्र तनेजा-
यूपीए के आखिरी चार वषोंर् में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस की जो दुर्दशा हुई थी, वह भारत ने उससे पहले कभी नहीं देखी थी। देश के अंदर तेल और गैस का खनन लगभग नहीं के बराबर हो गया था। खनन के लिए पर्यावरण से लेकर अंतरिक्ष विभाग तक की स्वीकृतियां सालों-साल नहीं मिल रही थीं। लिहाजा एक के बाद एक कंपनी तेल क्षेत्र से भाग रही थी। इटली की कंपनी एनी और ऑस्ट्रेलिया की कंपनी बीएचपी समेत कई विदेशी कंपनियां हताशा में भारत छोड़ कर चली गईं। कई अन्य कंपनियों पर ऐसे टैक्स लाद दिये गये जिनका उस व्यवसाय से कोई लेना-देना नहीं था। स्वयं भारत सरकार की कंपनियों के हाथ इस तरह कस कर बांध दिये गये थे कि देश में तेल और गैस के नये भंडारों की खोज लगभग शून्य हो गई थी। परिणामस्वरूप आयातित तेल पर देश की निर्भरता बढ़ कर 80 फीसदी हो गई थी और देश के विदेशी मुद्रा भंडार का लगभग 50 फीसदी मात्र तेल आयात पर ही खर्च होने लगा।
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता में आई तो पूरा पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस क्षेत्र लगभग आईसीयू में था। सरकार ने सबसे पहले जिस क्षेत्र पर काम करना शुरू किया वह था कि देश की निर्भरता आयातित तेल पर कैसे कम की जाए। ऊर्जा सुरक्षा को सरकार के एजेंडे में प्राथमिकता पर डाला गया। स्वयं प्रधानमंत्री कार्यालय ने पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस के मामलों पर निरंतर निगरानी का सिलसिला शुरू किया। इन्हीं प्रयासों के तहत सारे धनी लोगों से एलपीजी सब्सिडी छोड़ने की अपील की गई। एक करोड़ लोगों ने प्रधानमंत्री की अपील पर सब्सिडी छोड़ी जिससे राजकोष को 10,000 करोड़ रुपये की बचत हुई। इसके साथ ही प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के अंतर्गत गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली पांच करोड़ महिलाओं को एलपीजी कनेक्शन देने का अभियान शुरू किया गया, जिसके नतीजे आज देश भर में देखे जा सकते हैं। लेकिन सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि सरकार ने देश के अंदर तेल और गैस के खनन और उत्पादन के लिए एक नई नीति का निर्माण किया, जिसे हाइड्रोकार्बन एक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पॉलिसी (हेल्प) के रूप में जाना जाता है। इसके साथ अब भारत की पेट्रोलियम नीति दुनिया की आधुनिकतम नीतियों के बराबर हो गई है।
(लेखक जाने-माने ऊर्जा विशेषज्ञ हैं)
मुख्य बातें
' सरकार ने देश के अंदर तेल और गैस के खनन एवं उत्पादन के लिए एक नई नीति का निर्माण किया है
' भारत की पेट्रोलियम नीति दुनिया की आधुनिकतम नीतियों के बराबर हो गई है
योजनाएं
' पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती हुई मांगों को पूरा करने के लिए 1,50,000 करोड़ रुपए की लागत से एक नई तेल रिफाइनरी बनाने की योजना तैयार
की गयी है
असर
' सरकार की ईमानदार छवि के कारण प्रधानमंत्री की अपील पर लोगों ने एलपीजी सब्सडी छोड़ी जिससे राजकोष को 10,000 करोड़ रुपए की
बचत हुई
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