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इन दिनों बिहार में सत्तापक्ष (राजद, जदयू और कांग्रेस) के नेताओं की दादागीरी सिर चढ़ कर बोल रही है। कानून-व्यवस्था को हर दिन ठेंगा दिखाया जा रहा है। कभी किसी विधायक पर चलती रेलगाड़ी में लड़कियों के साथ बदसलूकी करने का आरोप लगता है, किसी पर लड़की भगाने का, तो किसी पर बलात्कार का। मारपीट करने वाले, धमकी देने वाले और अपने गुर्गों से वसूली कराने वाले 'माननीयों' की भी फौज खड़ी हो चुकी है। रंगदारी उद्योग फल-फूल रहा है और बाकी उद्योग बंद हो रहे हैं। इसके बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कह रहे हैं कि बिहार में कानून-व्यवस्था और राज्यों से बेहतर है।
आगे बढ़ने से पहले गया में 8 मई को आदित्य सचदेवा की हुई हत्या को देखें। उसकी हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई कि उसने पीछे से आ रही गाड़ी को साइड देने में थोड़ी देर कर दी। हत्या का आरोप जदयू की विधान पार्षद मनोरमा देवी के पुत्र राकेश रंजन उर्फ रॉकी यादव पर लगा है। रॉकी अभी न्यायिक हिरासत में है। इसी मामले में रॉकी के पिता बिंदेश्वरी प्रसाद उर्फ बिंदी यादव भी जेल में हैं। उसकी मां पर भी गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। इस रपट के लिखे जाने तक उसकी मां फरार थीं।
कहा जा रहा है कि आदित्य अपने चार साथियों के साथ स्विफ्ट कार से बोध गया से अपने घर गया जा रहा था। पीछे से लैंड रोवर में सवार रॉकी ने उसे ओवरटेक करने का प्रयास किया। साइड नहीं मिलने पर बौखलाए रॉकी ने गोली मारकर आदित्य की हत्या कर दी। इस घटना से पूरा बिहार स्तब्ध है। अपराध में बढ़ोतरी से लोगों में दहशत है। गया के एक व्यवसायी अनिल सर्राफ (परिवर्तित नाम) कहते हैं, ''बिहार एक बार फिर से 90 के दशक की ओर जा रहा है। उन दिनों गया ही नहीं हुई पूरे बिहार से सैकड़ों व्यवसायी पलायन कर गए थे। नेताओं की शह पर अपराधियों का मनोबल बढ़ रहा है। कई नेता तो आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं। इस वजह से भी अपराध बढ़ रहे हैं।''
रॉकी के पिता बिंदी यादव पर भी कई गंभीर आरोप लगते रहे हैं। बिंदी अपराध नियंत्रण कानून के तहत जेल जा चुके हैं। उन पर नक्सलियों को हथियार आपूर्ति करने के आरोप में देशद्रोह का मुकदमा भी चल रहा है। साथ ही दर्जनों आपराधिक मामले भी चल रहे हैं। मजे की बात है कि सरकारी अंगरक्षक उनकी सुरक्षा करते हैं। वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील मोदी का यह सवाल वाजिब है कि ऐसे कुख्यात अभियुक्त को सुरक्षा गार्ड किस आधार पर दिया गया? उसके पुत्र रॉकी यादव को भी रिवॉल्वर का लाइसेंस कैसे मिला? आखिर एक विधान पार्षद के पास एक करोड़ की लैंड रोवर कार कहां से आई? सुशील मोदी कहते हैं, ''नीतीश कुमार शराबबंदी का ढिंढ़ोरा तो बहुत पीट चुके, अब अपराधबंदी की बात भी करें।'' पिछले छह महीने में सत्ताधारी गठबंधन के एक दर्जन से अधिक विधायक, सांसद और नेता कानून को हाथ में लेकर सुशासन के दावे को ठेंगा दिखा चुके हैं। पिछले दिनों राजद विधायक राजबल्लभ यादव पर एक नाबालिग लड़की ने बलात्कार का आरोप लगाया था। पर तीन महीने तक पुलिस राजबल्लभ को गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई, जबकि इस मामले की आरोपी एक महिला को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया था। कुछ दिन पहले ही राजबल्लभ को गिरफ्तार किया गया है जो अभी जेल में बंद हैं।
रेलगाड़ी में एक महिला से छेड़खानी करने वाले विधायक सरफराज आलम के मामले का भी अभी तक कुछ नहीं हो पाया है। उन्हें पूछताछ के लिए थाने बुलाया गया और वहीं से छोड़ दिया गया। शराबबंदी के बारे में विवादित बयान देने के बाद कांग्रेस के विधायक विनय वर्मा कानून को ठेंगा दिखाते हुए शिकारपुर थाने से फरार हो गए। अपने कारनामों को लेकर हमेशा चर्चा में रहने वाले जदयू विधायक गोपाल मंडल के खिलाफ पुलिस ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है। हाल ही में गोपाल मंडल ने एक डीएसपी को गंगा में फेंकने की धमकी दी थी।
इन घटनाओं से बिहार का हर शांतिप्रिय व्यक्ति परेशान हो रहा है, लेकिन उनकी परेशानी सुनने वाला कोई नहीं है। -संजीव कुमार, पटना से
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