|
24 अप्रैल , 2016
आवरण कथा 'नई सज्जा का सिंहस्थ' से स्पष्ट होता है कि कुंभ विश्व के सबसे बड़े त्योहारों में गिना जाता है। कुंभ में जाति-पांति, ऊंच-नीच का भेदभाव भुलाकर सभी एक ही रंग में रंगे दिखाई देते हैं, जो वास्तव में भारतीय संस्कृति का परिचायक है। बिना बुलावे के करोड़ों लोग इस
उत्सव में सम्मिलित होते हैं। पूरा माहौल भगवा रंग व आध्यात्मिकता से महक उठता है। इस उत्सव से हिन्दू समाज को जो सीखना चाहिए वह यह कि हिन्दू संस्कृति में जाति-पांति व ऊंच-नीच का कोई स्थान है ही नहीं। यह सब तो कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए बनाया है। इसलिए ऐसे लोगों से
दूर होकर सनातन संस्कृति के संदेश का अनुसरण करें।
—आकाश सोनी, भोपाल (म.प्र.)
ङ्म उज्जैन में हो रहे सिंहस्थ कुंभ में देश ही नहीं विदेशों के लोग भी आ रहे हैं। यहां की संस्कृति देख कर वे दंग रह जाते हैं। एक साथ लाखों लोग, एक स्थान पर, इस कुंभ की शोभा बढ़ा रहे हैं। शायद यही सनातन संस्कृति की विशेषता है।
—अनूप राठौर, इलाहाबाद (उ.प्र.)
भ्रामकता फैलाकर बांटा समाज
लेख 'समरसता के शिल्पकार (17 अप्रैल, 2016)' उन सभी लोगों को जरूर पढ़ना चाहिए जो अभी तक डॉ. आम्बेडकर के बारे में भ्रामकता फैलाते रहे हैं। ऐसे लोगों ने डॉ. साहेब के नाम पर सदैव समाज को दो भागों में बांटने की कोशिश की जबकि उन्होंने सदा समाज को एक सूत्र में पिरोये रखने का संदेश दिया। दुर्भाग्य से सियासतदानों को चाहिए था कि वे डॉ. साहेब के संपूर्ण व्यक्तित्व को देश के सामने लाएं। पर उन्होंने उनके एक पक्ष को ही उभारा और जमकर समाज को आपस में बांटा।
—राममोहन चन्द्रवंशी, हरदा (म.प्र.)
ङ्म आरक्षण की बात आते ही कुछ लोग डॉ. साहेब के बारे में क्या-क्या सोचने लगते हैं। ऐसा नहीं है कि जाति आधारित आरक्षण के खतरे पर डॉ. साहेब ने न चेताया हो। डॉ. आम्बेडकर ने चेताया था कि आरक्षण उनके विकास हेतु मात्र 10 वर्ष के लिए प्रदान किया जा रहा है। वे इसे अपनी बपौती न समझें। पर हमारे नेताओं ने इसे वोट बैंक बनाने का अस्त्र समझ लिया और समय दर समय इसे प्रयोग करते रहे और समाज को आपस में बांटते रहे। वर्तमान में आरक्षण की फिर से एक बार समीक्षा होनी चाहिए, क्योंकि आरक्षण पाना किसी का जन्म सिद्ध अधिकार नहीं है। आरक्षण का एक मात्र अधिकार आर्थिक होना चाहिए और जो भी इस दायरे में आए, उसे आरक्षण दिया जाना चाहिए।
—कामायनी, पीलीभीत (उ.प्र.)
ङ्म हर समाज में समय-समय पर अच्छे-बुरे लोग होते रहे हैं। इसलिए किसी समाज के एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग की आलोचना करना या भेदभाव करना सामाजिक समरसता व एकता के लिए हानिकारक है। इसी सामाजिक जागरूकता व एकता के लिए डॉ. आम्बेडकर अपने जीवन के अंत तक प्रयत्नशील रहे। डॉ. आम्बेडकर के जीवन को समग्र रूप से देखने से यह पता लगता है कि उन्हें अपने जीवन में समाज के सभी अंगों व वर्गों का सहयोग मिला। इसे उन्होंने स्वीकारा भी।
—डॉ. सुशील गुप्त, सहारनपुर (उ.प्र.)
इनको तो बस विरोध करना है
लेख 'क्या ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है (24 अप्रैल, 2016)?' अच्छा लगा। शिवसेना नेता व राज्यसभा सांसद संजय राउत ने तर्कोंके साथ कथित सेकुलरों को करारा जवाब दिया है। हाल ही में दारुल उलूम ने एक फतवे में कहा कि किसी भूमि या जगह को माता कहना इस्लाम के खिलाफ है। यह फतवा देने वाले मुफ्तियों से मेरा प्रश्न है कि फिर मक्का को 'उम्म-उल-कुरा' (सब नगरों की माता) क्यों माना जाता है? मुस्लिम देश मिस्र के राष्ट्रगान में उसे 'उम्म-उल-बिलाद'(सभी भूमियों की मां) बताया गया है। बांगलादेश के राष्ट्रगान 'आमार सोनार बंगला' में बार-बार देश को माता कहा जाता है। दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम मुल्क इंडोनेशिया के राष्ट्रगान की पहली पंक्ति कहती है-इंडोनेशिया ताने आयरकू (इंडोनेशिया हमारी मातृभूमि)। अब बताइये कहां है परेशानी जगह या भूमि को माता कहने में ?
—अजय मित्तल, मेल से
ङ्म जम्मू-कश्मीर में हिंसा के दम पर भागने को मजबूर किये गए कश्मीरी पंडितों के पक्ष में इन अभिव्यक्ति के ठेकेदारों की जुबान नहीं खुलती? वैसे ये हर जगह, हर मामले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़ लेते हैं और देश में अशांति मचाना शुरू कर देते हैं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय इसका ताजा उदाहरण है। क्या कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार नहीं हुए? उनकी आवाज को विश्वस्तर पर क्यों नहीं उठाया जाता? क्या कश्मीरी पंडित एक दल के ही हैं? असल में ये सभी लोग किसी खासदल के वोट बैंक नहीं हैं और दूसरे हिन्दू हैं। वहीं अगर मुसलमानों पर कोई अत्याचार हुआ होता तो अब तक सभी दलों के नेता वोटों के लिए इनके तलवे तक चाटते।
—शुभम कायस्थ, रीवा (म.प्र.)
असल जीवन के नायक
देश से जुड़े मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखकर अनुपम खेर ने समाज में अपनी अलग छवि गढ़ी है। अपने साक्षात्कार 'देशविरोधी बातें सुनकर कोई चुप कैसे रह सकता है (27 मार्च, 2016)' में उन्होंने खुलकर देशविरोधी और सेकुलर लोगों को खरी-खोटी सुनाई। देशहित में आमजन की आवाज को बुलंद करने वाले अनुपम खेर ने बहुसंख्यक देशवासियों के पक्ष में जो संघर्ष का बीड़ा उठाया है वह उनके असल जीवन में असल नायक होने की पुष्टि करता है। देश का दुर्भाग्य है कि फिल्म जगत में कुछ लोग अपने को नायक कहते हैं। लेकिन जब देश की बात आती है तो उन्हें सांप सूंघ जाता है। ऐसे लोगों को डर रहता है कि पता नहीं, किस बात से कौन-सा पक्ष नाराज हो जाए, इसलिए वे सच को भी नहीं बोलते। ऐसे लोगों को शर्म आनी चाहिए। एक तरफ विदेशों में देश की छवि में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, दूसरी ओर देश का सेकुलर मीडिया जान-बूझकर षड्यंत्रपूर्वक राष्ट्र की छवि को धूमिल करने में लगा हुआ है। पर उनका यह
प्रयास कारगर नहीं होने वाला, क्योंकि देश की जनता सब जानती है।
—हरिओम जोशी, मेल से
उतरती नकाब से बढ़ती तिलमिलाहट
लेख 'तिरंगा छात्रों को देश का जय हिंद
(24 अप्रैल, 2016)' में राज्यसभा सांसद तरुण विजय ने छद्म सेकुलरों की नकाब को उतार फेंका है। आज देश में कुछ लोगों को बेचैनी हो रही है। असल में इसका कारण है। सेकुलर और देशविरोधी लोग समय-समय पर देश में अशान्ति फैलाने के लिए कुछ न कुछ करते ही रहते हैं। पर उनका किया, धरा कुछ ही समय में पानी में उठे बुलबुले की तरह फूट जाता है और उनकी असलियत सामने आ जाती है। असल में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रखर राष्ट्रवाद, विकास व सुशासन के मुद्दों को प्रमुखता देकर ऐसे लोगों की मानसिकता पर पानी फेर दिया है। बस इसी कारण ये लोग तिलमिलाये हुए हैं।
—राघव उनियाल, पौढ़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
ङ्म पिछले कई वर्षों से कश्मीर घाटी में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लग रहे हैं। ऐसे पाकिस्तान समर्थक लोगों की संख्या ज्यादा नहीं है। असल में इसे
समझना होगा। कश्मीर में ही कुछ लोग ऐसे हैं, जो पाकिस्तान के हमदर्द हैं और समय-समय पर घाटी में अशान्ति फैलाते रहते हैं। आज सभी को पता है कि पाकिस्तान आतंक से पीडि़त देश है और लगातार बर्बादी की ओर जा रहा है। ऐसे में ये लोग और पाकिस्तान चाहता है कि कश्मीर के जरिये भारत में भी अशान्ति कायम रहे। पर कुछ कारणों से उसकी यह कोशिश कामयाब नहीं हो पा रही।
—बलवीर सिंह, अंबाला छावनी (हरियाणा)
उठ खड़ी हुई नारी शक्ति
रपट 'लड़ाई हक की (1 मई,2016)' आज के दौर की एक प्रमुख समस्या पर केन्द्रित है। यह कहना गलत नहीं होगा कि हर एक मत-पंथ में महिलाओं पर जुल्म ढहाए गए। उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया गया। इस समाज ने उन्हें अपनी बात तक कहने की स्वतंत्रता नहीं दी। लेकिन अब 21वीं सदी में महिलाएं अत्याचारों और अमानवीय कृत्यों से ऊब चुकी हैं। इसी कारण वे मुखर होकर इसका प्रतिकार कर रही हैं और करना भी चाहिए। आज महिलाएं
पुरुषों के मुकाबले किसी भी काम में कम नहीं हैं। मोर्चे पर महिलाओं ने हर क्षेत्र में देश और अपने समाज का नाम रोशन किया है, तो फिर उनको पुरुषों के
मुकाबले समान अधिकार क्यों नहीं? खुशी इसी बात की है कि अब ये सभी महिलाएं समाज में फैली कुरीतियों व अंधविश्वास को दूर करने और अपने हकों के लिए खुद ही संघर्ष करने के लिए आगे आ चुकी हैं।
—छैल विहारी शर्मा, छाता, मथुरा (उ.प्र.)
क्या यह राष्ट्र का अपमान नहीं?
हमारे देश के नेता हमेशा ही चुनावी मूड में रहते हैं और इसीलिए अनावश्यक रूप से छोटे-छोटे मुद़्दों को तूल देकर विवाद का विषय बना देते हैं। अब 'भारत माता की जय' का ही नारा ले लीजिए। इसमें विवाद की कोई बात ही नहीं है। प्रारम्भ से ही सभी इस नारे को लगाते रहे हैं। बिना किसी धर्म, जाति, मत-पंथ या वर्ग के भेदभाव के संपूर्ण स्वाधीनता संघर्ष में इस नारे को लगाकर लोग अपनी एकता और राष्ट्र के प्रति अपने समर्पण की भावना को व्यक्त करते रहे हैं। लेकिन अब राजनीति में घुसपैठ करने वाले कुछ लोगों ने जनता में अपनी अलग पहचान बनाने और वोट बैंक को प्रभावित करने की दृष्टि से इसमें भी विवाद उत्पन्न कर दिया। उन्होंने इस प्रकार का नारा लगाने से न केवल मना किया, बल्कि दूसरे लोगों को भी इस बात के लिए उभारा। एक बड़बोले नेता ने तो यहां तक कह दिया कि उनकी गरदन पर तलवार रख दीजिए, तो भी वे यह नारा नहीं लगाएंगे। इस साधारण सी बात में पता नहीं, गरदन पर तलवार रखने की बात कहां से आ गई? अभी तक तो देश के लिए उनके आत्म बलिदान देने की ऐसी कोई साहसी घटना सामने आई नहीं? इस नारे का विरोध करने वाले कुछ लोग कहते हैं कि उनके मजहब में मूर्ति पूजा की मनाही है, इसलिए वे यह नारा नहीं लगा सकते। लेकिन क्या वे बताएंगे कि मादरे-वतन की जय-जयकार करने से कौन से धार्मिक नियम का उल्लंघन होता है? भारत भूमि यहां के सभी नागरिकों की मां है। लेकिन जिन लोगों में भारत माता की जय या मादरे वतन के प्रति असम्मान की भावना है वह चिंतनीय जरूर है। भारत माता की जय के नारे का विरोध हमारे स्वाधीनता संघर्ष के नायकों के सम्मान पर प्रश्न चिन्ह लगाता है।
—प्रो. योगेश चन्द्र शर्मा,10/611-मानसरोवर, जयपुर-302020 (राज.)
साधे इस पर मौन
देने वाला है यहां, लेने वाला कौन
कांग्रेस नेता मगर, साधे इस पर मौन।
साधे इस पर मौन, हवा में गये करोड़ों
मैडम जी तथ्यों को ऐसे नहीं मरोड़ो।
कह 'प्रशांत' जनता को पूरा सच बतलाओ
न्याय मिलेगा तुम्हें, जरा भी मत घबराओ॥ —प्रशांत
टिप्पणियाँ