चिंता की चिंगारी
May 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

चिंता की चिंगारी

by
May 9, 2016, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 09 May 2016 13:01:22


दुर्भाग्य से उत्तराखंड के जंगल धुएं में लिपटे हैं। इस दावानल ने हिमाचल के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर को भी अपनी लपेट में छू लिया है। मानव तो त्रस्त है ही, हजारों पशु-पक्षी मारे गए हैं और इस दारुण स्थिति के जिम्मेदार हैं हम

 वीरेन्द्र पैन्यूली
उत्तराखंड के जंगल धुएं में लिपटे हैं। सुलगती-बिखरती लकडि़यों की चटख और तपन से उठती लपटो का सिलसिला हिमाचल से होते हुए जम्मू-कश्मीर तक को छू रहा है। लेकिन उत्तराखंड में स्थानीय लोग शायद इन लपटों से भी ज्यादा दाहक दृश्य देख रहे हैं। देहरादून, ऋषिकेश, मसूरी में सैलानी जब एक दूसरे को जलते पहाड़ों में धधकती आग के बारे में रोमांचित होकर बताते हैं तो उनका दिल रो उठता है। धुंध, गर्मी, घुटन और बेबसी से घिरे हिमालय के लिए यह मानवीय नासमझी, प्रशासनिक सुस्ती और जंगल से छेड़छाड़ का अक्षम्य मामला है।

इस भीषण आग ने पर्यावरण, पारिस्थितिकी और कृषि के संकट को बढ़ाने के साथ एक अपूरणीय क्षति  पहुचाई है। सांप-बिच्छू सहित लाखों कीड़े-मकोड़े, जो वनभूमि और कृषि के प्राण कहे जाते हैं, इसमें नष्ट हो गए। यह पशु-पक्षियों के प्रजनन का मौसम होता है। शेर-भालू, हिरण, चीते, सियार अपनी जान बचाकर भाग गए होंगे। पक्षी भी उड़ गए होंगे। उनके बच्चे अथवा घोंसले आग में भस्म हो गए।
— पद्मभूषण श्री चण्डीप्रसाद भट्ट, सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद्  एवं चिपको आंदोलन के नेता 

नैनीताल के करीब जलते जंगलों से पत्थर गिर रहे हैं। रोजमर्रा आने-जाने वाले तथा सैलानी खतरे में हैं। जंगलों की आग से गांवों में डर पसरा है।  अक्सर हिमालय क्षेत्र या देश के अन्य जंगलों में गर्मियों में आग को सामान्य घटना माना जाता है। 15 फरवरी से 15 जून तक के समय को आग की स्वाभाविक आशंका वाला गिना जाता है। वन विभाग की सतर्कता भी शायद इसी कैलेंडर के अनुसार रहती है।1 मई 2009 को गगवाड़स्यूं, तहसील पौड़ी के वनों में लगी आग को नियंत्रित करने में आठ ग्रामवासियों ने अपना अविस्मरणीय बलिदान दिया, इस तथ्य  को वन विभाग ने भी स्वीकार किया था। पहाड़ों में यह बात आम जानकारी में है कि हजारों हैक्टेयर में फैली रहने वाली जंगलों की आग या तो बरसात से बुझती है या मुख्यत: ग्रामीणों के प्रयास से। इसलिए उत्तराखंड में इस वर्ष 2 फरवरी को जंगल में आग लगने की पहली घटना सामने आई तो प्रशासन ने इसे हल्के में लिया।  
जगह-जगह ऐसी सैकड़ों घटनाओं ने बढ़ते-बढ़ते दावानल का रूप ले लिया। पिछले 3 महीने राज्य के 13 जिलों के जंगलों में खतरनाक आग लगी रही जिसमें 2,270 हेक्टेयर वन क्षेत्र खाक हो गया।  इस भीषण आग के कारण मिले-जुले हैं। पिछले 2 वर्षों से यहां मानसून के दौरान औसत से बहुत कम वर्षा हुई। सर्दियों  में भी बारिश कम ही रही। रही-सही कसर मार्च के महीने में ही पड़ी प्रचंड गर्मी ने पूरी कर दी। ऐसे में आग की छिटपुट घटनाओं के बाद जंगलों की मिट्टी में नमी के चलते सूखी घास और पौधे गर्म हवाओं के साथ आग की लपटों को हजारों हेक्टेयर वन क्षेत्र में फैलाते चले गए। मध्य हिमालय क्षेत्र में कम ऊंचाई पर बड़ी मात्रा में मौजूद चीड़ के पेड़ों ने इस आफत को बढ़ाने का काम किया। चीड़ के पेड़ों की आपसी रगड़-टकराहट आग को बढ़ाती है। लगभग 2 महीने की इस आग में समूचा उत्तराखंड गैस चैंबर बन गया। उत्तराखंड के इतिहास में पहली बार आग पर काबू पाने के लिए हेलिकॉप्टर से पानी की वर्षा की गई। भारतीय थल सेना, वायु सेना और एनडीआरएफ की टीमों को युद्ध स्तर पर आग पर काबू पाने के लिए लगाया गया। राज्य के लगभग 4,500 वन कर्मचारियों और एनडीएफआर के 135 कर्मियों सहित लगभग 6,000 लोग आग बुझाने की इस मुहिम में जुटे रहे। लेकिन यह भी सच है कि हेलिकॉप्टर के पानी से  जंगल की आग को नहीं बुझाया जा सकता। पर्यावरणविद् जंगल से ग्रामीणों के स्वाभाविक जुड़ाव को पुनर्जीवित करने और जंगलों में परंपरागत ताल विकसित करने की जरूरत जताते हैं। इसके अलावा वन मित्रों, वनकर्मियों और नव अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करना भी जरूरी है।
उत्तराखंड के जंगलों में सक्रिय वन माफिया, पशु तस्कर और वनस्पतियों एवं जड़ी-बूटियों का अवैध कारोबार करने वाले लोग भी यदा-कदा अपने अवैध कार्यों को छिपाने के लिए आग लगाने की हरकत करते हैं, लेकिन इतने व्यापक स्तर पर फैले दावानल का आरोप अकेले उन पर मढ़कर जिम्मेदारी से नहीं बचा जा सकता। हालांकि राज्य में कई सौ करोड़ की राज्य जलवायु बदलाव कार्य योजना लागू है। किन्तु पारंपरिक जन ज्ञान व जन शिकायतों को इसमें शामिल न किये जाने पर 2013 में 144 से ज्यादा संगठनों ने इसका विरोध किया था। लोगों ने इसके सरकारीकरण की भी आलोचना की थी।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस आग से हुई क्षति की भरपाई नहीं हो सकती। जहां इसने प्रकृति और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया है वहीं खेती की उत्पादकता, मिट्टी की गुणवत्ता, वनों की वार्षिक वृद्धि पर प्रश्नचिह्न लगा है और भूमि के कटाव से बढ़ती प्राकृतिक आपदा की आशंका भी सामने रख दी है। जानकारों का मानना है कि पूरे तीन महीने तक फैली इस भीषण आग के ताप से जहां गर्मियों में स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरे बना रहेगा, वहीं उत्तराखंड में स्थित कई ग्लेशियरों के असमय पिघलने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। इन ग्लेशियरों में गंगोत्री, मिलम, सुंदर दुंगा, नेवला व चीपा ग्लेशियर शामिल हैं। हाल ही में इस आग का प्रभाव उत्तर भारत के तापमान पर देखा गया है, जहां अचानक 0.2 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ गया। आशंका जताई जा रही है कि इस भीषण ताप का असर मानसून पर भी दिख सकता है।
 (लेखक सामाजिक कार्यकर्ता व पर्यावरण वैज्ञानिक हैं)

12 हजार से ज्यादा वन पंचायतों वाले राज्य उत्तराखंड में लगभग 2000 एकड़ क्षेत्र सूखे और तेज गर्मी के प्रभाव में हैं। आग के भयानक रूप पकड़ने के कारण असंख्य वनसंपदा तो नष्ट हुई ही, साथ ही सालम पंजा, कुटकी, अतीस, कूट और ज्वार जैसी जड़ी-बूटियां भारी मात्रा में नष्ट हो गई। इनके अभाव में आयुर्वेदिक औषधियों के उत्पादन पर प्रतिकूल   असर पड़ेगा।   

चीड़ के बीज फैलाने वाला पिरूल बहुत ज्वलनशील होता है। जब जलते हुए पिरूल ढलानों पर लुढ़कते हैं तो तेजी से आग फैलाते चलते हैं। पिछले 4 वर्षों से उत्तराखंड के जंगलों में लगभग 3 करोड़ टन पिरूल इकट्ठा हो रहा था जिसकी सफाई नहीं हो पाई। इस पिरूल से जैव ईंधन व बिजली बनायी जा सकती है। समय-समय पर सरकारों द्वारा इस पर कई प्रस्ताव एवं योजनाएं भी बनी हैं लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में यह पूंजी विकास की बजाय विनाश का कारण बन गईं।

उत्तराखंड के वनों में 1992, 1997, 2004, 2008 और 2012 में भी बड़े स्तर पर आग  लगी थीं। इस बार की भीषण आग ने लगभग 4,000 हेक्टेयर वनक्षेत्र को लील लिया। राज्य के 13 जिलों में हुई 1,600 से ज्यादा आग की घटनाओं में आधा दर्जन लोग मारे गए, एक दर्जन से अधिक झुलस गए। इस आग ने गढ़वाल कुमाऊं, भाबर-तराई, शहर-मैदान कोई हिस्सा नहीं छोड़ा। हरिद्वार के पास राजाजी नेशनल पार्क के 70 हेक्टेयर वनक्षेत्र, केदारनाथ हिरण अभयारण्य के 60 एकड़ क्षेत्र और जिम कार्बेट पार्क के लगभग 200 एकड़ क्षेत्र को आग ने अपनी चपेट में ले लिया। पौड़ी में खिर्सू, पोखरी व यमकेश्वर, चमोली में कर्णप्रयाग, थराली व दशोली, रुद्रप्रयाग में जखोली, अल्मोड़ा में विनसर व धौला देवीधुरा का वनक्षेत्र इस आग का सबसे ज्यादा शिकार हुआ।

 

क्या है हल-
स्थानीय लोगों की जंगल रक्षा में भूमिका बढ़ाई जाए और जंगल में उन्हें प्रवेश की अनुमति दी जाए। यही लोग जंगल में होने वाली बहुत ही अवैध और गलत हरकतों पर नजर रखने में अधिक प्रभावी भूमिका निभाते हैं। हेलिकॉप्टर से आग बुझाना कोई समाधान नहीं है। इसके लिए जंगल के बीच में ही मौजूद प्राकृतिक जल स्रोतों को फिर से जीवित किया जाए ताकि बरसात के दौरान पानी एकत्र हो और पूरे साल जंगली जानवरों सहित सभी के काम आए। मिश्रित वन उगाने के प्रयास किये जाएं। अभी जो पेड़ उगाये जा रहे हैं, उनमें से बहुत से आग को निमंत्रण देते हैं।

 

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

बलूच लिबरेशन आर्मी के लड़ाके (फाइल चित्र)

पाकिस्तान में भड़का विद्रोह, पाकिस्तानी सेना पर कई हमले, बलूचिस्तान ने मांगी आजादी, कहा – भारत में हो बलूच दूतावास

“भय बिनु होइ न प्रीति “: पाकिस्तान की अब आएगी शामत, भारतीय सेना देगी बलपूर्वक जवाब, Video जारी

खेत हरे, खलिहान भरे

पाकिस्तान ने उरी में नागरिक कारों को बनाया निशाना

कायर पाकिस्तान ने नागरिकों को फिर बनाया निशाना, भारतीय सेना ने 50 ड्रोन मार गिराए

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ

पाकिस्तान बोल रहा केवल झूठ, खालिस्तानी समर्थन, युद्ध भड़काने वाला गाना रिलीज

देशभर के सभी एयरपोर्ट पर हाई अलर्ट : सभी यात्रियों की होगी अतिरिक्त जांच, विज़िटर बैन और ट्रैवल एडवाइजरी जारी

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

बलूच लिबरेशन आर्मी के लड़ाके (फाइल चित्र)

पाकिस्तान में भड़का विद्रोह, पाकिस्तानी सेना पर कई हमले, बलूचिस्तान ने मांगी आजादी, कहा – भारत में हो बलूच दूतावास

“भय बिनु होइ न प्रीति “: पाकिस्तान की अब आएगी शामत, भारतीय सेना देगी बलपूर्वक जवाब, Video जारी

खेत हरे, खलिहान भरे

पाकिस्तान ने उरी में नागरिक कारों को बनाया निशाना

कायर पाकिस्तान ने नागरिकों को फिर बनाया निशाना, भारतीय सेना ने 50 ड्रोन मार गिराए

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ

पाकिस्तान बोल रहा केवल झूठ, खालिस्तानी समर्थन, युद्ध भड़काने वाला गाना रिलीज

देशभर के सभी एयरपोर्ट पर हाई अलर्ट : सभी यात्रियों की होगी अतिरिक्त जांच, विज़िटर बैन और ट्रैवल एडवाइजरी जारी

‘आतंकी समूहों पर ठोस कार्रवाई करे इस्लामाबाद’ : अमेरिका

भारत के लिए ऑपरेशन सिंदूर की गति बनाए रखना आवश्यक

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ

भारत को लगातार उकसा रहा पाकिस्तान, आसिफ ख्वाजा ने फिर दी युद्ध की धमकी, भारत शांतिपूर्वक दे रहा जवाब

‘फर्जी है राजौरी में फिदायीन हमले की खबर’ : भारत ने बेनकाब किया पाकिस्तानी प्रोपगेंडा, जानिए क्या है पूरा सच..?

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies