|
अगस्ता वेेस्टलैंड हेलिकॉप्टर घोटाले की खुलती कहानियां कांग्रेस के लिए बड़ा सिरदर्द लेकर आई हैं। सबसे पुरानी पार्टी के सामने चुनौती है अपने सबसे कीमती चेहरों की 'बची साख को बचाने की।' जंतर-मंतर पर पार्टी के प्रथम परिवार का गिरफ्तार होने के लिए पहुंचना बताता है कि मुख्य विपक्षी दल की भंगिमा ऊपरी तौर पर जैसी भी दिखे इसमें संदेह नहीं कि पार्टी के दिग्गजों में गहरी बेचैनी है
आवरण कथा/अगस्ता वेस्टलैंडयह कहा राज्यसभा में डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी ने
अरुण श्रीवास्तव
इटली के मिलान शहर की दिल्ली से दूरी 6,126 किलोमीटर है। लेकिन यहां अदालत के फैसले से ऐसा अंधड़ उठा जिसने यह दूरी पलक झपकते तय कर ली। भारत के चौक-चौबारों से लेकर राजनीति के गलियारों तक अगस्ता वेस्टलैंड नाम का यह बवंडर हाशिए पर पहुंची कांग्रेस पार्टी के लिए नई मुसीबत बनकर आया है। ऐसी मुसीबत जिसके तले पार्टी की सबसे कमजोर नस दबी है—भारतीय राजनीति का सबसे शक्तिशाली कहा जाने वाला परिवार।
वीवीआईपी हेलिकॉप्टर खरीद मामले में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं और कांग्रेस आलाकमान समेत पार्टी के कई दिग्गज विरोधियों के सीधे निशाने पर हैं।
कथित तौर पर आतंकी संगठन से रिश्तों वाली महिला इशरत जहां मामले में महत्वपूर्ण खुफिया जानकारियों को छिपाने के आरोपों को झेलते कांग्रेस पार्टी के प्रथम परिवार ने अभी राहत की सांस भी नहीं ली थी कि अगस्ता वेस्टलैंटड हेलिकॉप्टर घोटाला मामले में इटली के अदालती फैसले में 'सिग्नोरा गांधी' का नाम सामने आ गया।
रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार की आंच गांधी परिवार तक पहली बार नहीं आई है। परिवार पर पहले भी रक्षा खरीद घोटाले के आरोप लगे हैं। कभी भारतीय राजनीति में भूचाल ला देने वाला बोफर्स सौदा अब भले ही बंद अध्याय हो लेकिन ओतावियो क्वात्रोकी जैसे इतालवी दलाल की गांधी परिवार के 'घर तक घुसपैठ' से जुड़ी बदनामी ऐसी है कि क्वात्रोकी की मौत के बाद भी जाने का नाम नहीं लेती।
अगस्ता वेस्टलैंड मामले में संसद में हुई चर्चा से कांग्रेस का बर्हिगमन पार्टी की बेचैनी का संकेत है। इस सांसत से निकलने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में मामले की सीबीआई जांच के बयान पार्टी की तरफ से भले ही आए हों लेकिन राजनीतिक पंडित मानते हैं कि उनमें एक साफ अनकहा अनमनापन था और केंद्र सरकार ने मामले की गहराई से जांच की बात कहकर कांग्रेस की मुश्किलें वास्तव में बढ़ा दी हैं।
किसको मिला कितना
भाजपा प्रवक्ता और सांसद मीनाक्षी लेखी, जिन्होंने लोकसभा में वर्तमान बजट सत्र में मीडिया में फैसले संबंधित रिपोर्ट आने के बाद यह मामला उठाया, बताती हैं-''मुख्य दलाल क्रिश्चियन मिशेल के हाथ का लिखा नोट एक दूसरे मध्यस्थ गुइडो हैशके के यहां 2013 की शुरुआत में मारे गए छापे में मिला। इस नोट के मुताबिक कुल दलाली 30 मिलियन यूरो की थी जो कि लगभग 250 करोड़ रुपए बैठती है। 12 हेलिकॉप्टरों को खरीदने का सौदा 3,600 करोड़ रुपए में हुआ था। नोट के मुताबिक वायु सेना अधिकारियों को 6 मिलियन यूरो दिया जाना था जो कि लगभग 50 करोड़ रुपए हुआ। रक्षा मंत्रालय में वरिष्ठ नौकरशाहों को 8.4 मिलियन यूरो यानी लगभग 75 करोड़ रु. दिए जाने की बात थी। अंतिम श्रेणी राजनैतिक नेताओं की थी जहां 15़ 16 मिलियन यूरो दिखाए गए हैं जो लगभग 125 करोड़ रुपए बैठते हैं।
लेखी सोनिया पर सीधा हमला करते हुए बोलती हैं कि ऐसे समय में जबकि (क्रिश्चियन मिशल के पत्र में) सोनिया गांधी को सौदे का 'ड्राइविंग फोर्स' परिभाषित किया जाता हो, यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि इटली के न्यायालय के फैसले के परिप्रेक्ष्य में विशेष जांच दल द्वारा मामले की नई जांच करवाई जाए। फैसले में नामित भारतीय प्रभावशाली लोग हैं जो कई राज्यों में सरकारों का नियंत्रण करते हैं।
आवरण कथा/अगस्ता वेस्टलैंड सौदे की बारीकियां
सांसत में सोनिया
क्या मामले में जांच की गाज कांग्रेस अध्यक्ष पर गिर सकती है? पार्टी को इसी बात का डर है। जांच एजेंसियों की कार्रवाइयों में फैसले के बाद एकाएक आई तेजी बताती है कि सरकार इस मामले में कोई कसर नहीं रखना चाहती। राज्यसभा में हुई बहस में रक्षा मंत्री के बयान भी कुछ इसी ओर इशारा करते हैं। राज्यसभा में अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला मामले पर चली 5 घंटे की चर्चा का जवाब कांग्रेसी नेताओं के डर को बल देता है। पर्रिकर ने राज्य सभा में जवाब देते हुए कहा था- ''सौदे में भ्रष्टाचार हुआ है। इससे किस-किसको फायदा हुआ, यह पता लगाया जाना चाहिए और सरकार यह करेगी।''
एक अन्य नेता ने भी नाम न छापने की शर्त पर कहा, ''मोदी इस मामले को बोफर्स की तर्ज पर ठंडे बस्ते में नहीं डालेंगे। उनके घर में घपले का कोई भी कंकाल नहीं दबा है जिससे वे डरें कि कहीं उनका भी कोई मामला सामने न आ जाए।'' वैसे, कांग्रेस को सरकार की मंशा से कहीं ज्यादा राज्यसभा मंें नए नामित सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी के 'पक्के इरादों' से भय लगता है। राजनैतिक रूप से सक्रिय कांग्रेस के प्रथम परिवार के सोनिया-राहुल के प्रति उनका लगातार अभियान कांग्रेसी नेताओं को हमेशा चिंतित रखता है।
आवरण कथा/अगस्ता वेस्टलैंड :क्या कहा इटली की अदालत ने
कांग्रेसियों की उनके प्रति इस बौखलाहट को देखते हुए ही भाजपा नेतृत्व ने राज्यसभा में अगस्ता वेस्टलैंड की चर्चा में स्वामी से पहले भूपेंद्र यादव को रखा ताकि स्वामी के बोलते समय कांग्रेस के हंगामे में उनकी बात दब न जाए। इसी रणनीति के तहत भूपेंद्र यादव ने अपनी सारी बहस सीएजी रिपोर्ट पर केंद्रित रखते हुए किसी भी कथित दलाली प्राप्त करने वाले नेता का नाम नहीं लिया।
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का नाम लेते हुए उन पर सीधा हमला करने का काम स्वामी ने किया। लेखी की तरह स्वामी ने सोनिया गांधी का नाम सदन के रिकॉर्ड में लाने के लिए चर्चा में क्रिश्चियन मिशेल के फैसले में शामिल पत्र के उस हिस्से को आधार बनाया जिसमें सोनिया गांधी को 'ड्राइविंग फोर्स' बताया गया है। उन्होंने कहा, ''पत्र (मिशेल का) कहता है कि एक व्यक्ति इस मामले में ड्राइविंग फोर्स है। उनसे पूछताछ होनी चाहिए।''
ऐसा नहीं था कि राजग सरकार द्वारा राज्य सभा में अगस्ता वेस्टलैंड की चर्चा को रोकने अथवा टालने में कांग्रेस ने कोई कसर छोड़ी थी। कांग्रेस ने मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्रित्व काल में कथित गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉपार्ेरेशन में हुई सीएजी जांच में पाई गई गड़बडि़यों को संसद में उछाल कर बहस कराने की पूरी कोशिश की।
कांग्रेस को उम्मीद थी कि चूंकि मामला सीधे नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहने के समय से जुड़ा है, इसलिए हो सकता है कि सरकार अगस्ता पर बहस कराने की मांग से पीछे हट जाए। परंतु सरकार के न झुकने के कारण उनकी यह योजना सफल न हो सकी।
विधायी कार्य
जानकार सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस को उम्मीद थी कि सरकार बजट सत्र के शेष बचे दिनों में महत्वपूर्ण विधायी कायोंर् में सहयोग लेने के लिए कोई 'नरमी' की राह अपनाएगी और उसके शीर्ष नेतृत्व का नाम नहीं लेगी। परंतु सदन में जो हुआ वह उसकी आशाओं के अनुरूप नहीं था। हालांकि पार्टर्ी ने अपनी ओर से बहस में हिस्सा लेने के लिए अपने सबसे अच्छे वक्ताओं को उतारा।
राज्यसभा में पार्टी की ओर से नामी वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने बहस की शुरुआत की तो उनका साथ देने और फैसले में नामित नेताओं का बचाव करने के लिए सदन के उपनेता आनंद शर्मा, पूर्व रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी तथा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल को उतारा गया। परंतु स्वामी, जो सत्ता पक्ष की 'एकल सेना' के रूप में उतरे थे, के आगे कांग्रेस की दलीलें बेकार साबित हुईं। शायद इसी का परिणाम रहा था कि जैसे ही बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग सदन में रखी तो उसे कांग्रेस ने तुरंत लपक लिया और इसी मांग को लेकर उन्होंने सदन से बहिर्गमन भी कर दिया।
सूत्र बताते हैं कि आने वाले दिनों में कांग्रेस के रुख में संभावित परिवर्तन को देखते हुए ही सरकार बजट सत्र के दूसरे भाग को 13 मई तक ले जाने की इच्छुक नहीं है। बहुत संभव है कि सरकार इस सत्र को अगले सप्ताह की शुरुआत में ही समाप्त कर दे।
सफाई और बेचारगी
जबसे यह मामला मीडिया की मार्फत देश के सामने आया है, तब से कांग्रेस ने सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में सीबीआई जांच की बात नहीं की थी। कांग्रेस के राज्यसभा के नेता गुलाम नबी आजाद ने संसद भवन में हुई एक प्रेस वार्ता में यूपीए सरकार की ओर से तमाम सफाई देते हुए यह मांग जरूर की थी कि सरकार अगले मानसून सत्र से पूर्व जांच कराए।
29 अप्रैल को संसद भवन में हुई प्रेस वार्ता में गुलाम नबी आजाद ने कहा, ''हम इस झूठे प्रचार का खंडन करते हैं और इसकी तह तक जाना चाहते हैं कि कौन से व्यक्ति हैं जिन्होंने इस डील में पैसा लिया है, कितना लिया है, कहां लिया है, क्यों लिया है, कैसे लिया है, अगर इस सरकार में दम है तो अगले 2 महीनों के अंदर, मानसून सत्र में इसी सदन मंे बता दें। वरना ये खाली धमकाने और बदनाम करने का काम बंद कर दें।''
अपने नेता और सहयोगियों के बचाव में इसी वार्ता में उन्होंने किसी ऐसे लाचार व्यक्ति की तरह तर्क दिए थे जो जानता है कि कहीं न कहीं उसके नेता संकट में हैं। उनका मानना है कि अगर कोई दोषी होता है तो वह अपने खिलाफ जांच नहीं बैठा सकता है। आजाद ने उक्त वार्ता में कहा, ''मैंने अपने 37 साल के सक्रिय राजनीतिक कैरियर में आज तक कभी नहीं देखा कि कोई भ्रष्टाचार करे और उसके बाद छाती ठोक के एक्शन ले ले। ये कभी नहीं हो सकता।'' किसी और परिस्थिति में बात और थी लेकिन वर्तमान घटनाक्रम और तथ्यों को देखें तो राज्यसभा में नेता विपक्ष का यह कथन कांग्रेस की बहादुरी कम, बेचारगी ज्यादा दर्शाता है। दरअसल कांग्रेस का इतिहास दिखाता है कि पार्टी को सत्ता केवल गांधी-नेहरू परिवार के नेतृत्व में ही मिल सकती है। राजीव गांधी की असामयिक और दुखद हत्या के बाद जब सोनिया गांधी ने पार्टी का नेतृत्व स्वीकार करने से मना कर दिया था तो कांग्रेस न केवल टूटी बल्कि सत्ता से भी बाहर रही। सोनिया के सामने आने के बाद वह ऐसी ताकत बन गईं जो पार्टी को एक बनाए रख सकती थी। जानकार बताते हैं कि राहुल के मामले में कांग्रेस 'नए' और 'पुराने' गुटों में बंटती है परंतु बात सोनिया पर आते ही पूरी पार्टी एक सुर में बोलने लगती है। सोनिया पर किसी तरह के संकट का मतलब है बहुतों की आराम और ताकतवर जिंदगी में खलल। यही कारण है कि जैसे ही किसी विवाद या घोटाले में गांधी परिवार का नाम आता है, पूरी पार्टी एक स्वर में उनके पीछे आकर खड़ी हो जाती है।
राज्यसभा में मिले जख्म पर मरहम लगाने के लिए कांग्रेस ने शुक्रवार 6 मई को संसद का घेराव भी किया। सोनिया और राहुल के नेतृत्व में पार्टी के तमाम नेता और कार्यकर्ताओं ने दिल्ली के जंतर-मंतर से पैदल मार्च किया। सूत्र बताते हैं कि इस मार्च का उद्देश्य जनता के बीच कांग्रेस की बिगड़ रही छवि का सुधारना तथा सरकार पर दबाव बनाना था।
क्या राजनीतिक ताप से दहकती मई में जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कांग्रेस को कुछ राहत दे सकेगा? पार्टी के सूरमा सहमे हुए हैं, आगे की राह आसान नहीं है और दिक्कतों की काट वाला जंतर खुद आफतों के घेरे में है।
टिप्पणियाँ