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10 अप्रैल, 2016
आवरण कथा 'सोच भारत की' से स्पष्ट है कि पंं. दीनदयाल उपाध्याय भारत की उन महान विभूतियों में से एक हैं, जिन्होंने राष्ट्र को सर्वोपरि रखते हुए प्राणपण से संघर्ष किया। उनका एकात्म मानवदर्शन आज की परिस्थितियों के संदर्भ में बिल्कुल खरा बैठता है। अगर इस दर्शन के माध्यम से चला जाए तो सभी कालखंडों में मानव समाज को सुख और संपन्नता मिल सकती है। अपना संपूर्ण जीवन देश और समाज को समर्पित करने वाले इस राष्ट्र ऋषि को नमन्।
—अभिषेक कुमार कुशवाहा, इलाहाबाद (उ.प्र.)
पं. दीनदयाल जी के एकात्म मानवदर्शन के 50 वर्ष पूरे होने पर आपकी पत्रिका ने स्वदेशी परंपरा को जीवित रखने के उद्देश्य से विभिन्न प्रतिष्ठित लेखकों के लेखों को संकलित कर एक बहुत ही सुंदर विशेषांक निकाला है। पं. दीनदयाल जी ने समरसता, मैत्री और करुणा की विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाया। आज उनके विचारों पर चलने की महती आवश्यकता है।
—जसवंत सिंह, कटवारिया सराय (नई दिल्ली)
दीनदयाल जी के बारे में जितना भी लिखा या पढ़ा जाए, कम है, क्योंकि उनकी जीवन शैली और विचारों को किसी भी सीमा में नहीं बांधा जा सकता। उनके विचार असीमित व समाज के हर वर्ग के लिए समान रूप से अपनाने योग्य हैं। अपने समय में कही गई उनकी हर बात आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। एक दूरद्रष्टा व संकल्प के धनी पं. दीनदयाल का एकात्म मानव दर्शन तथ्यों का जीवंत दस्तावेज है।
—उमेदुलाल 'उमंग', टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड)
'पाञ्चजन्य' ने पं. दीनदयाल जी के एकात्म मानव दर्शन के 50 वर्ष पूरे होने पर जो विशेषांक निकाला, उसने फिर से एक बार उनकी यादों को ताजा कर दिया। अनेक विशिष्ट लोगों के लेखों से ज्ञानवर्द्धन हुआ।
—सरोज चौरसिया, भोपाल (म.प्र.)
एकात्म मानवदर्शन के 50 वर्ष पूरे होने के बावजूद पं. दीनदयाल जी के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों को वर्तमान में लागू करने की जरूरत है, क्योंकि वे राष्ट्रवादी विचारों के साथ-साथ समाज सुधार व एकात्म भाव के प्रबल समर्थक थे। नई पीढ़ी को उनके द्वारा दिये गए सिद्धांतों की जानकारी होना आज के समय में बहुत ही जरूरी है।
—हरिहर सिंह, इंदौर (म.प्र.)
नहीं स्वीकार ऐसी स्वतंत्रता
अपने लेख 'स्वीकार नहीं संप्रभुता पर सवाल' में भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने उन कथित बौद्धिकों और वामपंथियों पर तीखा प्रहार किया है, जो दबी जुबान से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुई घटना को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़कर देखते हैं। हमारे संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है लेकिन राष्ट्र की संप्रभुता एवं राष्ट्रवाद की कीमत पर नहीं। हाल के दिनों में देश में कुछ लोगों ने जान-बूझकर देश के माहौल को बिगाड़ने की कोशिश की जो बहुत ही शर्मनाक है।
—मनोहर मंजुल, प. निमाड (उ.प्र.)
ङ्म कुछ दिन पहले देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जेएनयू में राष्ट्रविरोधियों ने देश के खिलाफ नारे लगाए। तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़ने वाले नेता राष्ट्र विरोधी नारे लगाने वालों के समर्थन में खड़े हो गए और इन राष्ट्रविरोधियों को निर्दोष बता रहे हैं। असल में उनके इस रुदन के पीछे कारण है। वे केन्द्र की भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बढ़ती लोकप्रियता से परेशान हैं। वे सरकार के अच्छे कामों के विरोध के साथ उसकी नीतियों और उद्देश्यों की आलोचना भी करते हैं। लेकिन इसके लिए ये नेता जो हंथकंडे अपनाते हैं, देश की जनता उनसे अच्छी तरह से वाकिफ है।
—प्रकाश चन्द, उत्तम नगर (दिल्ली)
ङ्म नक्सलवादी हर दिन देश के अलग-अलग क्षेत्रों में जवानों को घात लगाकर मारते हैं। सीमापार से आए दिन हो रही घुसपैठ में हमारे जवान प्राणों को न्योछावर कर उन्हें रोकते हैं। देश में हर विपत्ति के समय सेना संकटमोचक की भांति उतरती है और राहत पहुंचाती है। इस सबके बाद भी जेएनयू के कुछ देशद्रोही छात्र और वामपंथी शिक्षक सेना की आलोचना करते हैं। शर्म आनी चाहिए ऐसे लोगों को! जो लोग सेना की आलोचना करते हैं उन्हें कुछ दिन के लिए सीमापार और दुर्गम स्थानों पर भेज देना चाहिए, ताकि ये लोग समझ सकें कि सेना के जवान किस परिस्थिति में रहते हैं और प्राणों पर खेल देश की रक्षा करते हैं।
—हरिओम जोशी, भिण्ड (म.प्र.)
ङ्म देश में कुतर्कपूर्ण ढंग से भारतमाता की जय बोलने पर विवाद खड़ा किया जा रहा है। असल में कुछ लोग जान-बूझकर इस प्रकार का षड्यंत्र रच रहे हैं, ताकि लोग विकास के मुदद्े को भूलकर इस प्रकार की सांप्रदायिक बातों में उलझे रहें। कुछ लोग इसी बहाने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अपने शब्दों में व्याख्या करने में नहीं चूक रहे। लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की एक सीमा है। देश में वेश-भूषा, बोली, खान-पान की भिन्नता जरूर है लेकिन अपनी संस्कृति एवं पूर्वजों के बारे में सभी को एकमत होकर इसे स्वीकार करना चाहिए। अपनी जड़ों से जुड़े रहना हमारे व्यक्तित्व को और निखारता है।
—रमेश कुमार मिश्र, अंबेडकर नगर (उ.प्र.)
तर्कहीन बातें
लेख 'देशभक्ति तौली नहीं जा सकती' में जदयू के महासचिव और राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी. त्यागी ने जेएनयू में पुलिस के दाखिल होने और देशद्रोही छात्रों के समर्थन में कुतर्कपूर्ण और विवेकहीन बातें कही हैं। के.सी. त्यागी अपनी राजनीति चमकाने के लिए देश की जनता को भ्रमित कर रहे हैं। पर जनता उनके बहकावे में नहीं आने वाली।
—हरीश चन्द्र धानुक, लखनऊ (उ.प्र.)
ङ्म जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अफजल की शहादत मनाने और उसे शहीद का दर्जा देने को कोई भी देशप्रेमी स्वीकार नहीं कर सकता। अगर वामपंथियों को आतंकियों का ही गुणगान करना है तो उन्हें इस देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है। यदि कभी कोई वामपंथी उन सैनिक परिवारों से भी मिलता जो हंसते-हंसते अपने देश के लिए जान गंवा देते हैं तो लोगों को भी अच्छा लगता। कांग्रेस और उसके सेकुलर सहयोगी इस प्रकार का षड्यंत्र रच देश को भ्रमित कर रहे हैं ताकि लोगों का ध्यान विकास से हट जाये और वे इसी चक्कर में फंस कर रह जाएं। पर देश की जनता मूर्ख नहीं है, यह उन्हें पता होना चाहिए!
—रामप्रताप सक्सेना, खटीमा (उत्तराखंड)
सेवा के आगे झुकता मस्तक
रपट 'सेहत के रखवाले (28 मार्च)' अच्छी लगी। देश के अनेक स्थानों पर रा.स्व.संघ की प्रेरणा से चलने वाले अनेक संगठन यशस्वी हो रहे हैं। देश के दूरदराज इलाकों में हजारों लोग प्राथमिक चिकित्सा के अभाव में असमय काल का ग्रास बन जाते हैं। ऐसे में हजारों आरोग्य मित्रों का उनकी सेवा करना प्रशसंनीय है। अपने घरों को छोड़कर सुदूर क्षेत्रों में सेवा उपलब्ध कराना पुनीत कार्य है। युवाओं को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)
निकालना होगा उपाय
रपट 'समरसता का संदेश, (28 मार्च)' एक सार्थक प्रयास है। पिछले दिनों जिस तरह हरियाणा में आरक्षण के नाम पर हुड़दंग किया गया, वह राज्य की जनता के लिए किसी बदनुमा दाग से कम नहीं है। क्या हम अपने स्वार्थ के लिए अपने ही लोगों को मारने लगेंगे? राज्य की संपत्ति को तहस-नहस कर देंगे? जिन लोगों ने उत्पात मचाया, उन्हें पता होना चाहिए कि जिस संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया वह भी कहीं न कहीं उनकी अपनी ही है। ऐसे लोगों को पछतावा होना चाहिए और संकल्प लेना चाहिए कि वे भविष्य में इस प्रकार की गलती फिर से नहीं करेंगे।
—दयाराम, रायपुर (छ.ग.)
पकड़ा गया झूठ
रंगे हाथ पकड़े गये, श्री चिदम्बरम् साब
विफल हुए षड्यन्त्र सब, टूटे सारे ख्वाब।
टूटे सार ख्वाब, झूठ का तानाबाना
फैलाकर मोदी को चाहा वहां फंसाना।
कह 'प्रशांत' लेकिन खुद ही बदनाम हो गये
आतंकी इशरत के किस्से आम हो गये॥
—प्रशांत
इतिहास में हो परिवर्तन
ङ्म आज जातिवाद की विषबेल ने समाज में जहर घोलकर रख दिया है। हिन्दू समाज आपस में लड़ रहा है। हम चाहकर भी इसके जाल से नहीं निकल पा रहे हैं। सच तो यह है कि आरक्षण एक व्यवस्था नहीं बल्कि एक विकार है। हम सभी को इस विकार को स्वयं खत्म करना होगा, क्योंकि अगर ऐसे ही चलता रहा तो आने वाले दिनों में यह समस्या विकराल रूप धारण कर लेगी और तब हमारे लिए यह बहुत बड़ा संकट होगा। इसलिए हमें समय रहते जागना होगा और इस समस्या के बारे में गहराई से विचारकर इसका निराकरण करना होगा।
—अश्वनी जागड़ा, महम, रोहतक (हरियाणा)
पिछले दिनों असहिष्णुता के नाम पर, जेएनयू में जो देशविरोधी गतिविधियां हुईं वे गलत थीं और उन्हें कोई भी देशवासी किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं कर सकता। इस घटना पर माननीय न्यायालय ने भी तीखी टिप्पणी की। आखिर ऐसी घटनाएं घटती ही क्यों हैं, इस ओर हमारा ध्यान क्यों नहीं जाता? क्या हम अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं, या फिर आज की पीढ़ी को यह बताया ही नहीं जा रहा कि भारतभूमि हमारी माता है? हमारी संस्कृति क्या है? असल में आज वर्तमान पीढ़ी को यह जान-बूझकर पढ़ाया और सिखाया जाता है, जिससे समाज में कटुता बढ़े और समाज आपस में लड़े, वीर सपूतों की गाथाओं को भुलाकर हमें मोहम्मद गौरी, अकबर, शाहजहां, मो.बिन कासिम, औरंगजेब का लंबा-चौड़ा इतिहास पढ़ाया जाता है। लगता ही नहीं, हमारे अपने वीर सपूतों का भी कोई इतिहास है। अगर बताया भी जाता है तो बस कुछ पंक्तियों में। जब समाज ऐसे इतिहास को पढ़ेगा तो उसका बौद्धिक स्तर क्या होगा, इसे आसानी से समझा जा सकता है। असल में शिक्षा भी सियासत की भेंट चढ़ गई है। हमारे सियासतदानों ने इतिहास को अपने तरीके से गढ़ा है। ऐसे में संस्कृति कहां सुरक्षित रहेगी? ऐसा ही रहा तो एक दिन पाठ्यक्रमों से सांस्कृतिक मूल्यों को बताने वाले भी बाहर होते जाएंगे। ऐसा न हो, इसके लिए सरकार को आगे आना होगा और इन बिन्दुओं पर गौर करना होगा, क्योंकि अगर समाज की सांस्कृतिक चेतना जागृत हो तो किसी से भारतमाता की जय कहलाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी, अपितु लोग खुद हाथ उठाकर भारतमाता की जय बोलेंगे। सो आज वीर समूतों से जुड़े इतिहास को पढ़ाया जाना चाहिए।
—जितेन्द्र निर्मोही, बी-422,आर.के.पुरम, कोटा-10 (राज.)
भूल सुधार
अंक संदर्भ (24 अप्रैल, 2016) पृष्ठ संख्या-14-15, शीर्षक-'संवाद और संस्कृति का मेल' रिपोर्ट उज्जैन से महेश शर्मा की है। साथ ही अंक संदर्भ (1 मई, 2016) पृष्ठ संख्या-33, शीर्षक-'दिल्ली में बोलेंगी शिलाएं' रिपोर्ट आदित्य भारद्वाज की है। पृ. सं. 18, पर शीर्षक 'इस आयोग की भी करे कोई सेवा' में डॉ. अनिरुद्ध सिंह यादव की जगह डॉ. अनिल यादव छप गया है।
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