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एक समर्पित स्वयंसेवक औार बेहतरीन कार्यकर्ता कथिरूर मनोज की कहानी दिल को दहलाने वाली है। आज मनोज का परिवार एक नए बने घर में रहता है। अब वह उस घर में नहीं रहता जहां परिवार के साथ मनोज रहता था। कन्नूर जिला शारीरिक प्रमुख मनोज की 1 सितंबर, 2014 को हत्या कर दी गई थी। आज भी उस सदमे से त्रस्त, मनोज के भाई सुधी आहत स्वरों में हम से बात करते हैं, ''शुरुआती सालों में माकपा का सक्रिय कार्यकर्ता मनोज बाद में अपने दोस्तों की वजह से रा.स्व.संघ की तरफ आकर्षित हुआ था। पार्टी ने मनोज को स्वयंसेवकों से उसकी निकटताओं को लेकर कई बार चेतावनी दी थी कि माकपा के गढ़ों, यानी पार्टी गांवों में ऐसा करने की मनाही है। लेकिन अपनी निजी जिदंगी और पसंद के दोस्तों में पार्टी की बेवजह की दखलंदाजी से गुस्साये मनोज ने माकपा से सारे संबंध तोड़ लिये। बाद में वह संघ में शामिल हो गया।''
पार्टी छोड़कर संघ की ओर जाने वाला वह अकेला नहीं था। उसके साथ पार्टी गांव पूर्वी कथिरूर के माकपा कार्यकर्ता भी बड़ी तादाद में संघ में शामिल हुए थे। उसके भाई ने बताया कि इससे माकपा बहुत गुस्से में थी। पी.जयराजन भी इसी गांव से थे जो अपने गढ़ में भाजपा की बढ़त देखकर बौखलाये हुए थे। इसलिए पार्टी के मनोज को अपने अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा माना। और पार्टी के एक कायदे के तहत उसका खात्मा किया जाना जाहिर सी बात थी।
मकापा ने हत्या से पहले भी मनोज पर हमले किये थे। सुधी बताते हैं कि एक बार जयराजन ने उसे धमकाया भी था और कहा था कि 'अपने भाई को काबू कर लो, नहीं तो उसके पैर काट दिये जाएंगे।' वह कई मौकों पर बाल-बाल बचा था। पी. जयराजन सहित इस मामले में 25 लोग आरोपी हैं। कन्नूर में ज्यादातर हत्याओं का मुख्य साजिशकर्ता जयराजन ही रहा है। इस मामले के सीबीआई के हाथ में लेने से परिवार वालों को लगता है कि अब अपराधियों को सजा होगी।
मनोज की नृशंस और पीड़ादायक हत्या उनकी मां के इस दुनिया से गुजरने के मात्र एक वर्ष बाद ही हो गई थी। उनके भाई बताते हैं—प्रारंभ के कुछ वर्षों में जिस प्रकार की शांति दिखी उससे ऐसा विश्वास होने लगा था कि अब पार्टी का निशाना मनोज नहीं था। उनके घर की ओर जाने वाला संपर्क मार्ग, जो ज्यादा चौड़ा नहीं था। यह रा.स्व.संघ की मजबूत पकड़ वाला थोड़ी दूरी पर स्थित क्षेत्र था। कुछ स्थानीय कम्युनिस्ट नेताओं ने इस रास्ते को चौड़ा करने का प्रस्ताव किया था। 'पार्टी ने एक बड़ा षड्यंत्र रचा था।' उनके भाई और बहन आर्त्त स्वर में बताते हैं कि इस नई सड़क पर उसको ठिकाने लगाने का यह पूर्व नियोजित षड्यंत्र था।
मनोज का दोस्त प्रमोद, जो कि उस अंतिम यात्रा में उसके साथ था, दर्द भरी कांपती आवाज में कहता है-अचानक कुछ लोगों ने जिस गाड़ी से हम जा रहे थे उस पर बम फेंका। जब बम फटा तो उससे टूटे कांच के टुकड़े मनोज की आंखों में घुस गए जो चालक सीट पर बैठे थे। वाहन बेकाबू हो गया। एक बिजली के खंभे और कच्ची दीवार में घुस गया। प्रमोद कहते हैं कि वह प्रभाकरन था जिसने मनोज की छाती पर प्रहार किया। उन्होंने बताया कि कम्युनिस्ट पार्टी के गुडों द्वारा उसे धमकाया गया था।
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