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देश में ऐसे अनेक गांव हैं जहां ग्रामवासियों ने बिना किसी सरकारी मदद के अपने गांव का विकास स्वयं कर प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किए। वहीं कुछ ऐसे भी गांव हैं जहां सरकारी सहायता का पारदर्शी तरीके से इस्तेमाल कर गांव को विकास के पथ पर आगे बढ़ाया गया
प्रमोद कुमार
लंबी प्रतीक्षा के बाद ही सही, केन्द्र सरकार ने राज्य सरकारों के साथ मिलकर ग्राम विकास की दिशा में एक ठोस पहल की है। अंबेडकर जयंती के अवसर पर 14 अप्रैल को मध्य प्रदेश के महू से शुरू हुए 'ग्रामोदय से भारत उदय' अभियान से ग्रामवासियों को बहुत उम्मीदें हैं। इस अभियान के तहत 14 अप्रैल से 24 अप्रैल बीच देशभर की ग्राम पंचायतों में अनेक कार्यक्रम आयोजित किये गये, जिनमें पंचायती राज व्यवस्था को सशक्त बनाने, किसानांे की आय को दोगुना करने, गांव में सामाजिक सद्भाव को मजबूत बनाने और वंचितों की आजीविका बढ़ाने पर विशेष जोर दिया गया। साथ ही सरकारों द्वारा ग्राम विकास तथा किसानों के कल्याण हेतु शुरू की गई विभिन्न योजनाओं की जानकारी भी दी गई। स्थानीय प्रशासन की देखरेख में इस प्रकार के कार्यक्रम भविष्य में भी आयोजित किये जाएंगे।
दशकों से व्यवस्था में लगी भ्रष्टाचार के दीमक की सफाई और विकास योजनाओं के कार्यान्वयन में लोगों की वास्तविक भागीदारी सुनिश्चित करना किसी भी विकास कार्यक्रम में वांछित परिणाम पाने के लिए प्राथमिक आवश्यकता है। यदि पंचायती राज व्यवस्था विशाल धनराशि आवंटन के बावजूद अपेक्षित परिणाम नहीं दे सकी है तो इन्हीं वजहों से। किन्तु इन विपरीत परिस्थितियों के बीच देश में कुछ ग्राम पंचायतें ऐसी भी हैं, जहां सभी प्रकार की बाधाओं के बावजूद भ्रष्टाचार पर प्रभावी लगाम लगी और सरकारी योजनाआंे के क्रियान्वयन में जनता की ईमानदार भागीदारी सुनिश्चित हुई है। इससे विकास के कई कीर्तिमान स्थापित हुए हंै। ये ग्राम पंचायतें देश की दूसरी पंचायतों के लिए मिसाल बनकर उभरी हैं।
देश की ऐसी सैकड़ों पंचायतों में करीब 5,000 की जनसंख्या वाला एक गांव है मथुरा के निकट स्थित दीनदयाल धाम। यह गांव दिल्ली से 165 किलोमीटर और मथुरा से 22 किमी की दूरी पर है। यहां रोजगार सृजन के मामले में एक अद्भुत मिसाल कायम हुई है। यहां दीनदयाल धाम एवं आसपास के 40 गांवों की करीब 4,000 महिलाओं व पुरुषांे को सिलाई का प्रशिक्षण देकर स्वावलंबी बनाया गया है। इनके सिले कपड़ों की पूरे देश में मांग है। सिलाई सेंटर का कार्य देख रहे राधेश्याम गुप्ता बताते हैं, ''महिलाएं एवं पुरुष सिर्फ कपडे सिलकर प्रतिमाह 5,000 से 15,000 रुपए आसानी से कमा लेते हैं।''
दीनदयाल धाम में हुए इस सफल प्रयोग से प्रभावित होकर खादी ग्रामोद्योग बोर्ड ने स्वयं आगे बढकर पंचायत को मदद की पेशकश की और गांव में सौर ऊर्जा से संचालित चरखे स्थापित किये हैं। इन चरखों के माध्यम से अब गांव में ही कपड़ा तैयार करने का प्रयास किया जा रहा है। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के एक वरिष्ठ अधिकारी हीरालाल यादव कहते हैं, ''एक बात जो दीनदयाल धाम को खादी ग्रामोद्योग बोर्ड से अलग करती है, वह है बोर्ड से बेहतर गुणवत्ता वाले कपड़े उपलब्ध कराना और वह भी बोर्ड से करीब आधी कीमत पर।'' वे जब भी मथुरा या वृंदावन आते हैं तो अपने पूरे परिवार के लिए दीनदयाल धाम से कपड़े खरीदकर ले जाते हैं। वे कहते हैं, ''यहां उपलब्ध कपड़ों की गुणवत्ता, कपड़ों का रंग और डिजाइन बहुत आकर्षक हैं। मेरा पूरा परिवार इन्हें पसंद करता है।'' यहां अब जैकेट सिलना भी प्रारंभ हुआ है, जो खादी ग्रामोद्योग बोर्ड की जैकेट से बेहतर गुणवत्ता सहित आधी कीमत पर उपलब्ध है।
गांव में रोजगार सृजन के लिए दूसरा महत्वपूर्ण कदम पंचगव्य और आयुर्वेदिक औषधियों का बडे पैमाने पर उत्पादन है। गांव की लगभग 30 महिलाओं को इसके लिए खासतौर पर प्रशिक्षिण दिया गया है। यहां संचालित आयुर्वेदिक चिकित्सालय से लगभग 30,000 मरीज प्रतिवर्ष स्वस्थ होकर जाते हैं। गांव जल्दी ही सूर्या फाउंडेशन की मदद से सम्पूर्ण साक्षर होने की दिशा में बढ रहा है। फाउंडेशन कई वषार्ें से प्रौढ़ शिक्षा हेतु विशेष कक्षाएं आयोजित कर रहा है।
ग्राम विकास में सक्रिय भूमिका निभाने वाले श्री दिनेश कुमार बताते हैं, ''30 अप्रैल, 2016 तक गांव के प्रत्येक घर के पास अपना शौचालय होगा। स्वच्छता हेतु अलग-अलग स्थानों पर 300 कूड़ेदान रखे गये हैं। गांव में पीने का पानी बहुत खारा है। इसलिए इस समस्या के स्थायी समाधान हेतु गांव से डेढ़ किलोमीटर दूर एक नलकूप स्थापित कर मीठा जल उपलब्ध कराया गया है। इस नलकूप के लिए सांसद विनय कटियार ने राशि उपलब्ध कराई है। ''
विकास गतिविधियों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए गांव में 25 लोगों की एक समिति बनाई गई है जो धन के इस्तेमाल पर विशेष निगाह रखती है। सरकारी योजनाओं के प्रभावी एवं पारदर्शी क्रियान्वयन के लिए यह एक बेहतर उपाय है जो स्थानीय लोगों को गांव के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित करता है।
देश में ऐसे दूसरे गांव भी हैं जहां विकास का अनुकरणीय कार्य हुआ है। राजस्थान के राजसमंद जिले के पीपलान्तरी गांव ने जल संरक्षण के लिए अनोखा काम किया है। वहां 2005 में भूजल स्तर करीब 750 फुट गहरा था। ग्रामीणों के प्रयासों के कारण अब वह महज आठ फुट रह गया है। राजस्थान की तपती रेत में जल संरक्षण का यह अत्यंत प्रेरक प्रयोग है। इसी प्रकार मध्य प्रदेश में नरसिंहपुर जिले के बघुवार गांव में स्वच्छता को लेकर अनुकरणीय कार्य हुआ है। यहां प्रत्येक घर में 2005 से ही शौचालय हैं। योजनाबद्ध तरीके से गांव का विकास कैसे किया जा सकता है
इसे देखना हो तो नरसिंहपुर जिले के ही मोहद गांव को देखना चाहिए। भोपाल के निकट बारखेड़ी अब्दुल्लाह पंचायत में कन्या भ्रूणहत्या रोकने के लिए अच्छा प्रयास हुआ है। पंचायत की सरपंच गांव में जन्म लेने वाली हर बिटिया को अपना दो माह का मानदेय देती हैं। बनारस के जयापुर गांव में वंचितों को पक्के घर उपलब्ध कराने का महत्वपूर्ण काम हुआ है। कर्नाटक में अनेक गांव हैं, जिन्होंने सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर विकास के कई महत्वपूर्ण काम किए हैं।
नि: संदेह गांवों के सुनियोजित विकास हेतु पंचायतों का मजबूत होना आवश्यक है। लेकिन इसके साथ ही भ्रष्टाचार पर प्रभावी तरीके से लगाम लगाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। जैसे-जैसे पंचायतों को मिलने वाले धन में बढोतरी हो रही है वैसे-वैसे पंचायत चुनाव बडे दिग्गजों के अखाडों में तब्दील होते जा रहे हैं। कुछ स्थानों पर पंचायत चुनाव का खर्च विधानसभा चुनाव को भी मात देने लगा है। इसका गांव के सद्भाव, आपसी संबंधों, भाईचारे और एकता पर बहुत बुरा असर पडा है। इसलिए गांव के विकास हेतु उठाए जाने वाले किसी भी कदम में इस सद्भाव को मजबूत बनाने, दिलों को जोड़ने, भ्रष्टाचार को रोकने के साथ विकास की प्रक्रिया में सही लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है। साथ ही लोगों में हमेशा लेने की बजाए कुछ देने की मानसिकता भी विकसित करनी होगी। जहां-जहां ऐेसे प्रयास हुए, वहां दिल को छूने वाले परिणाम देखने को मिले हैं।
दीनदयाल धाम
दूरी : दिल्ली से 165 किमी
जनसंख्या: 5,000
पहल : 4,000 से अधिक पुरुष और महिलाओं को सिलाई का प्रशिक्षण। सिले हुए कपड़ों की राष्ट्रव्यापी मांग, खादी बोर्ड की तुलना में कपडे काफी सस्ते
हर घर में शौचालय, 100 फीसदी साक्षरता का लक्ष्य शीघ्र पूरा होने वाला है
पंचगव्य और आयुर्वेदिक दवाओं का भी बडे पैमान पर उत्पादन
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