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कन्नूर में हिंसा की राजनीति की बात करें तो के.टी.जयकृष्णन मास्टर वहां कम्युनिस्ट आतंक के शिकारों के प्रतीक बन चुके हैं। इन पर हुआ हमला अब तक का सबसे जघन्य हमला रहा है। 1 दिसम्बर, 1999 के दिन सुबह करीब 10:35 बजे मास्टर पनूर के मोकेरी ईस्ट यू.पी. स्कूल में छठी कक्षा के छात्रों को पढ़ा रहे थे। तभी कम्युनिस्ट हिंसक तत्वों का एक गुट कक्षा में घुस आया और छात्रों के सामने ही उनकी हत्या कर दी।
मास्टर की मां कौशल्या बीते दिनों को याद करते हुए बताती हैं, ''वे जब 10वीं में थे तब उनके पिता का साया उनके सिर से उठ चुका था। बच्चों को पालने-पोसने और पढ़ाने लिखाने के लिए मैंने रात-दिन एक कर दिया। मैं उसे कहती थी कि कम्युनिस्टों के खिलाफ कोई काम मत कर। पर उसे कोई परवाह ही नहीं थी। उसने मुझसे हर चीज छुपाई, यहां तक माकपा नेताओं की धमकियां भी, क्योंकि वह मुझे परेशान नहीं करता चाहता था।''
वे आगे बताती हैं, ''स्कूल से लौटने के फौरन बाद भाजयुमो के काम में जुट जाता था, उसका प्रदेश उपाध्यक्ष जो था। घर लौटते हुए देर रात हो जाया करती थी। वह राजनीति में बढ़-चढ़कर भाग लेता था और मुझे तो इन सब चीजों को पता भी नहीं था। लेकिन एक चीज मैं जानती थी कि मेरा बेटा कभी किसी को तकलीफ नहीं पहुंचा सकता था। उसके लिए सब बराबर थे, चाहे वे स्कूल के साथी हों या राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी।''
श्रीमती कौशल्या आहत स्वरों में कहती गईं,''स्कूल में अध्यापक बनने के बाद वह राजनीति में पहले से ज्यादा व्यस्त हो गया। उसके राजनीतिक विरोधी इसे सहन नहीं कर पाये। मार्च में उसकी शादी होने वाली थी लेकिन इससे पहले ही उन्होंने उसे मार दिया। लेकिन आज भी मेरे बेटे के हत्यारे खुले घूम रहे हैं।'' उस घटना के बारे में एक स्थानीय पत्रकार ने बताया कि माकपा से उनको मिली धमकियों के चलते राज्य सरकार ने उन्हें एक अंग रक्षक दिया था।
माकपा गंुडों के कक्षा में घुसकर हमला बोलने से ठीक पहले वह अंगरक्षक न जाने कहां गायब हो गया था। वे गुंडे माकपा के नारे लगाते हुए बच्चों से चुपचाप बैठे रहने के लिए कहते रहे। उनकी आंखों के सामने उनके प्यारे शिक्षक को चाकुओं से गोद डाला। जाने से पहले हत्यारों ने ब्लैक बोर्ड पर बच्चों के लिए चेतावनी लिखी थी-कोई मंुह न खोले। कई बच्चों के दिमाग पर उस घटना का बहुत ही बुरा असर पड़ा और डॉक्टरी इलाज कराना पड़ा।
पनूर पुलिस ने मामले की जांच की और 7 माकपा कार्यकर्ताओं के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया। 5 साल बाद अतिरिक्त सत्र अदालत ने 5 आरोपियों को मौत की सजा सुनाई। उस पत्रकार के अनुसार, पार्टी ने 'मोकेरी कॉमरेडों के लिए चंदा' लिखे बैनरों के साथ 2 करोड़ रु. की राशि एकत्र की और निचली अदालत के आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। आरोपियों की तरफ से रामजेठमलानी ने मामला लड़ा। नतीजा यह हुआ कि हत्यारे अदालत से बरी हो गए। अब राज्य सरकार ने मामला सीबीआई को सौंपा है। लेकिन सीबीआई की जांच 15 साल के लंबे वक्त की वजह से कुछ कानूनी अड़चनों में फंसकर रह गई है।
श्रीमती कौशल्या शिकायत भरे लहजे में कहती हैं, ''सरकार ने इस मामले में एक अच्छा कदम उठाया था। मामला सीबीआई को सौंपा था लेकिन सीबीआई मामले की जांच करने से कतरा रही है।'' ताजा गतिविधियों से मास्टर के भाई शांताकुमार को उम्मीद है कि सीबीआई जांच होगी और हत्यारों को सजा मिलेगी।
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