|
हाल ही में वरिष्ठ पूर्वी तुर्किस्तानी नेता डोलकुन ईसा सुर्खियों में थे, क्योंकि धर्मशाला (भारत) में होने जा रहे विश्व उईगर सम्मेलन के लिए भारत सरकार ने उनके वीसा आवेदन को ठुकरा दिया था। वरिष्ठ पत्रकार विजय क्रांति ने डोलकुन ईसा से धर्मशाला सम्मेलन की घोषणा से कुछ अरसा पहले, उनके संघर्ष और चीन से जुड़े मुद्दों पर, विस्तृत बातचीत की। यहां प्रस्तुत हैं उसी बातचीत के प्रमुख अंश-
उईगर लोगों और चीन सरकार के बीच बुनियादी समस्या क्या है?
समस्या को निश्चित ही बुनियादी कहकर वर्णित नहीं किया जा सकता। लेकिन उईगर जनता और चीन के लोगों के बीच संघर्ष क्वग राजवंश के अंतिम दिनों यानी रिपब्लिक काल (1912-1949) के दौरान शुरू हुआ था। उन दिनों बहुत से चीनी नेता उईगर विद्रोह को दबाने और उपनी सत्ता को मजबूत करने की कोशिश कर रहे थे। उईगरों ने 1933 में अपना राज्य स्थापित करने की कोशिश की जो छह महीने तक चली। फिर 1944 में कोशिश की जो 1949 तक चली। चीनी गणराज्य की स्थापना के बाद,चीन ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और इसका नाम सिंक्यांग उईगर स्वायत्त क्षेेत्र रखा। यह नाम भ्रामक था क्योंकि उईगर लोगों को कोई स्वायत्तता नहीं दी गई थी। उईगर इसे पूर्वी तुर्किस्तान कहते हैं।
ल्ल आप पूर्वी तुर्किस्तान के संघर्ष में कैसे शामिल हैं, जिसे चीन सिंक्यांग कहता है?
मैं पूर्वी तुर्किस्तान के स्वतंत्रता संघर्ष में 1980 से शामिल हूं। मैं 1988 में उरमाची में हुए छात्र प्रदर्शन में छात्र नेता के तौर पर शामिल था। यह प्रदर्शन चीन सरकार की भेदभावपूर्ण नीति के खिलाफ था। मुझे 1988 में विश्वविद्यालय से निकाल दिया गया। इसके बाद मैं कई बार गिरफ्तार हुआ। 1994 के बाद से देश से निष्कासित हूं। तब से मैं लगातार पूर्वी तुर्किस्तान के लिए काम कर रहा हूं।
वर्ल्ड उईगर कॉन्फ्रेंस का गठन किन उद्देश्यों को लेकर हुआ?
यह विश्वभर के उईगर संगठनों का बड़ा संगठन है। यह कई देशों में काम कर रहा है। यह पूर्वी तुर्किस्तान के अंदर और बाहर उईगर हितों का प्रतिनिधित्व करता है। इसका मकसद उईगरों के मानव अधिकारों की रक्षा करना और उनकी आजादी के लिए शांतिपूर्ण, अहिंसक और लोकतांत्रिक तरीके से लड़ाई लड़ना है, ताकि वे अपने ढ़ंग से अपना राजनीतिक भविष्य तय कर सकें।
ल्ल चीन और उईगरों के संघर्ष के बारे में क्या कहेंगे?
यह संघर्ष चीन द्वारा उईगर जनता को वास्तविक सत्ता न देने की वजह से पैदा हुआ है, जिनकी आबादी दो करोड़ है। चीन1950 से ही सिंक्यांग में हान जाति को बसने के लिए प्रेरित कर रहा है। लेकिन पिछले 15 वर्ष में उसने अपने प्रयासों को दोगुना कर दिया है। नतीजतन उईगरों की आबादी जो पहले 95 प्रतिशत थी, अब मात्र 45 प्रतिशत रह गई है। नौवंे दशक की शुरुआत में चीन सरकार उईगरों को निशाना बनाने लगी थी। रोजगार के अवसरों, के अलावा मुस्लिम उईगरों पर पाबंदियां लगाई गईं। भाषा और संस्कृति के मामले में उनके साथ भेदभाव किया जाता है। सशस्त्र बलों की तादाद भी बढ़ती जा रही है।
फिर आप अपनी समस्याओं को कैसे उठाते हैं?
चीन सरकार आज उईगरों को थोड़े से लोगों के कारण अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के साथ जोड़ती है। उईगरों को शांतिपूर्ण तरीके से विरोध भी नहीं करने दिया जाता। अगर वे ऐसा करने की हिम्मत करते हैं तो उन पर चीनी पुलिस द्वारा हमले होते हैं। दूसरी तरफ पुलिस को यह अपराध करने के लिए छूट मिली हुई है, उधर सरकार नियंत्रित मीडिया अपनी मांगों को व्यक्त करने की कोशिशों को आतंकवादी कार्रवाई मानता है। इससे राज्य की हिंसा के औचित्य को सिद्ध किया जाता है।
इससे उईगर लोगों में चीन के प्रति शत्रुता का भाव पैदा हुआ है। इस संघर्ष की जड़ंे हान राज्य द्वारा स्थानीय लोगों के साथ किए जा रहे बर्ताव में हैं। चीन इस क्षेत्र को छोड़ना नहीं चाहता। यहां बड़ी मात्रा में तेल, प्राकृतिक गैस, कोयला आदि प्राकृतिक संसाधन हैं। इसलिए चीन हर संभव तरीके से इस क्षेत्र पर कड़ी पकड़ बनाए रखना चाहता है।
चीन सरकार 'वर्ल्ड उईगर कॉन्फ्रेंस' को आतंकवादी संगठन क्यों करार देती है?
11 सितंबर को अमेरिका में हुए हमलों के बाद चीन सरकार आतंकवाद के खिलाफ पैदा हुए माहौल का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है। वह इस संघर्ष को उईगर जनता पर थोपना चाहती है। चीन अपनी मांगों को उठाने वाले उईगरों के खिलाफ पहले अपराध, अपराधियों और गैंग आदि शब्दों का प्रयोग करता था। लेकिन 11 सितंबर के बाद उसने आतंकवाद और आतंकवादियों की गतिविधियों का दमन करने का इरादा जाहिर किया और इन सबकी आड़ में उईगरों को परेशान करने लगा।
चीन सरकार उईगर स्वतंत्रता संग्राम पर नियंत्रण के लिए किस तरह हान आव्रजकों का इस्तेमाल कर रही है?
पूर्वी तुर्कस्तिान को पूरी तरह से चीन में मिलाने के लिए लाखों चीनियों को हमारे देश में बसाया जा रहा है। 1949 से पहले पूर्वी तुर्कस्तिान में 3,00,000 चीनी थे, अब 85,00,000 हैं। इसमें सैनिक और अर्द्धसैनिक बल शामिल नहीं हैं।
आप उईगर आंदोलन को विश्वभर से मिल रहे सहयोग को किस तरह देखते हैं?
उईगर आंदोलन को पश्चिम यानी अमेरिका, ब्रिटेन, तुर्की और कनाडा से समर्थन मिल रहा है। तुर्की ने उईगर विस्थापितों को अपनाया है। अनेक देश हमारे साथ हैं।
पाकिस्तान और अफगानिस्तान की भूमिका कैसी रहती है?
पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने कभी भी उईगर आंदोलन का समर्थन नहीं किया। विशेष रूप से पाकिस्तान उईगर आंदोलन के खिलाफ चीन का पक्ष लेता है। यहां तक कि पाकिस्तान ने अनेक उईगर शरणार्थी और छात्र चीन के कहने पर वापस भेजे हैं। अफगानिस्तान ने जुलाई, 2014 में 10 उईगर शरणार्थियों को बाहर किया था।
क्या आप उईगरों, तिब्बतियों, मंगोलों, ताइवानियों, हांगकांग वालों और चीन में पीडि़त उन अन्य दूसरे सूमहों के किसी साझा मोर्चे की गुजाइंश देखते हैं, जो चीन सरकार से अपने हकों की लड़ाई लड़ रहे हैं?
कुछ हद तक, समूहों के बीच सहयोग तो रहा है, हांलाकि इस मोर्चे पर सुधार की गुजाइंश तो है। बेशक, इन समूहों के बीच अन्तर तो हैं, लेकिन हमारा मानना है कि दमन के खिलाफ एक होने के लिए इन सभी समूहों के बीच और काम किया जा सकता है, क्योंकि हम सब एक ही दमनकारी का सामना कर रहे हैं।
टिप्पणियाँ