सद्भाव और समरसता का आह्वान
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सद्भाव और समरसता का आह्वान

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Apr 18, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 18 Apr 2016 10:46:53

अंक संदर्भ- 27 मार्च, 2016
आवरण कथा 'समरसता का संदेश' से स्पष्ट है कि रा.स्व.संघ ने प्रतिनिधि सभा के माध्यम से विभिन्न राष्ट्रीय मुद्दों पर गंभीरता से मंथन ही नहीं किया बल्कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी जटिल समस्याओं पर पूरी शक्ति लगाने का आह्वान किया है। शिक्षा और स्वास्थ्य पर चिंता जता संघ ने लाखों देशवासियों की पीड़ा को समझा है। उच्च शिक्षा क्षेत्र में स्वतंत्रता के बाद से विश्वविद्यालयों में तथा विश्वविद्यालय और महाविद्यालय स्तर के संस्थानों में जबरदस्त वृद्धि दिखी। लेकिन इस वृद्धि ने शिक्षा को भारी कारोबार वाले धंधे में बदलकर रख दिया। इससे गुणात्मक शिक्षा का हस हो गया। जिस शिक्षा के कारण दुनिया में पहचान बनी थी, वह कुछ दशकों में धूमिल होती चली गई और हम अपनी शिक्षा को भूलकर विदेशों की शिक्षा की ओर मुंह ताकने लगे। संघ ने शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में बुनियादी परिवर्तन करने की बात कहकर एक प्रमुख समस्या पर उंगली रखी है।
—रतिराम, बीकानेर (राज.)

ङ्म    इस भारतभूमि से हमें क्या नहीं मिलता। एक जन्म देने वाली मां और दूसरी धरती मां जो जीवनभर हमारा लालन-पालन करती है। पर कुछ दिन पहले जिस प्रकार जेएनयू और देश के अन्य शिक्षण संस्थानों में भारतमाता के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग किया गया, उसने देशवासियों को आक्रोशित किया है। विश्वविद्यालयों से एकता और अखंडता की शिक्षा देकर देशभक्त और ज्ञानवान विद्यार्थी तैयार करने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन यहां के छात्रों और कुछ प्रोफेसरों ने जिस प्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का कुतर्क रखा, वह शर्मिंदा करने वाला है। संघ ने प्रतिनिधि सभा में स्पष्ट किया कि ऐसा करने वाले देशद्रोही कहलाएंगे और ऐसे लोगों की कार्यप्रणाली बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
—बलवीर सिंह, अंबाला छावनी (हरियाणा)

ङ्म    राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ अपनी स्थापना से लेकर आज तक सदैव सामाजिक समरसता का ही संदेश देता आया है। इसी कारण सिर्फ भारत ही नहीं, विश्व में संघ के विचारों, सिद्धांतों और मान्यताओं के प्रति करोड़ों लोगों की आस्था है। आज 21वीं सदी में पदार्पण करने पर भी देश के कुछ भागों में जाति आधारित और छूत-अछूत का भेदभाव है। इसके कारण समाज में भारी असमानता की स्थिति है और हमारे विरोधी इसी का फायदा उठाते हैं। हिन्दू एक हों, जात-पांत का कोई भेदभाव हमारे बीच न हो, तभी राष्ट्र उन्नत हो सकता है। संघ आज इसी दिशा में पूरे मनोयोग से लगा हुआ है।
—कृष्ण वोहरा, जेल मैदान, सिरसा (हरियाणा)

ङ्म    प्रतिनिधि सभा के माध्यम से देश में जो संदेश गया, वह भविष्य  के लिए अच्छा होगा। शिक्षा और स्वास्थ्य देश की सबसे बड़ी चिंताएं हैं। सबको गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले और हर व्यक्ति के स्वास्थ्य की बात हो, इतने से ही समाज की बहुत-सी पीड़ाओं को दूर किया जा सकता है।
—लक्ष्मी चंद, सोलन (हि.प्र.)

इन पर है गर्व
आवरण कथा 'विलक्षण विरासत' (20 मार्च, 2016) अच्छी लगी। भारत का विज्ञान सही मायने में बहुत प्राचीन और एक विलक्षण धरोहर है। हमारे देश में कई ऐसे महान वैज्ञानिक हुए हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया में अपनी मेधा का डंका बजाया है। उनके किये गए कार्यों से आज पूरा विश्व लाभ ले रहा है। इन वैज्ञानिकों का नाम आते ही गर्व की अनुभूति होती है। ऐसे लोगों ने ही भारत को आगे बढ़ाया है।
—हरिहर सिंह चौहान, इंदौर(म.प्र.)

सोची-समझी साजिश
रपट 'चुनौती विषबेल काटने की' (28 फरवरी, 2016) से एक बात स्पष्ट है कि कुछ असामाजिक तत्व जान-बूझकर उन मुद्दों को हवा देने का प्रयास कर रहे हैं, जिनसे देश में अशांति फैले। ऐसे लोग कभी महिषासुर की बात करते हैं तो कभी भारतमाता की जय पर विवाद खड़ा करते हैं। क्या वे जो कर रहे हैं, उसे कोई भी देशवासी सहन करेगा? जिस महिषासुर का आज के संदर्भ में कोई अर्थ नहीं, ये उस पर राजनीतिक ड्रामा करते हैं। असल में कुछ लोग हैं जो जान-बूझकर साजिश रच रहे हैं। वे नहीं चाहते कि देश विकासपथ पर आगे बढ़े बल्कि वे तो यही चाहते हैं कि देश इन्हीं झंझावातों में फंसा रहे और देश की जनता गरीब और असहाय बनी रहे, ताकि हम इन पर राज करते रहें।
—बी.बी.तायल, विकासपुरी (नई दिल्ली)

ङ्म    भाजपा की सरकार बनने के बाद से ऐसा लग रहा है, जैसे देश में हर तरफ हुल्लड़ और हंगामे का माहौल व्याप्त है। सरकार और विपक्ष एक के बाद एक नए विवाद में उलझते हैं और उसके बाद किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के बजाए एक नए विवाद की ओर मुड़ जाते हैं। इससे जनता की उलझनेंे बढ़़ती हैं और मुद्दों की गंभीरता भी नष्ट होती है।
               —निखिल पाठक, बिलासपुर (छ.ग.)

ङ्म    देश के शैक्षणिक संस्थानों में देशविरोधी माहौल का पनपना चिंता का विषय है। ऐसा नहीं है कि यह माहौल कुछ दिन पहले ही बना है। असल में विष बहुत पहले से उनके गले में भरा हुआ था, लेकिन निकल अब रहा है। कांग्र्रेेस के शासन में उनकी कारगुजारियां छिप जाती थीं या यूं कहें कि जान-बूझकर छिपा दी जाती थीं। पर अब ऐसा नहीं है। खैर, देश के शिक्षण संस्थानों में पसरे खराब माहौल को शीघ्र ही सुधारना होगा, जो कमियां हैं उनको दुरुस्त करना होगा, क्योंकि यहां पर हमारा भविष्य तैयार होता है।
—भेरूलाल भोई, चितौड़गढ़ (राज.)

संस्कृति का सागर
रपट 'सतरंगी संगम' (27 मार्च, 2016) अच्छी लगी। विश्व सांस्कृतिक महोत्सव के जरिये एक बार फिर भारत ने विश्व को समरसता और विश्वबंधुत्व का संदेश दिया है। इस तीन दिवसीय संगम में देश-विदेश के लाखों लोगों की सहभागिता रही। इन सभी ने भारत की संस्कृति को बड़े ही पास से देखा। जो भी यहां आया, यहां की अनोखी छटा देखता ही रहा। कार्यक्रम में प्रमुख लोगों का एक ही संदेश था कि हम सभी एक दूसरे का सम्मान करें और मानवता की पूजा करें।
—सूर्यप्रताप सिंह, कांडरवासा (म.प्र.)

ङ्म    कुछ सेकुलर लोगों का एक गिरोह है, जो किसी भी अच्छे काम को होते देख, उसमें टांग अड़ाना शुरू कर देता है। कुछ लोगों ने विश्व सांस्कृतिक महोत्सव को भी बदनाम करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। आयोजन के एक दिन पहले राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने पर्यावरण के नियमों के उल्लंघन के लिए श्री श्री रविशंकर पर 5 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया। आखिर हिन्दू धर्म के ही आयोजनों को क्यों निशाना बनाया जाता है? सैकड़ों बड़ी-बड़ी फैक्टरियां प्रतिदिन गंगा-यमुना को दूषित करती हैं। ऐसा नहीं है कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण को इसका संज्ञान नहीं है, लेकिन फिर भी इन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। आखिर इस प्रकार का यह दोहरा रवैया क्यों?
—राममोहन चंद्रवंशी, हरदा (म.प्र.)

कम्युनिस्ट षड्यंत्र
रपट 'हत्याओं की हिंसक राजनीति' (27 मार्च, 2016) से एक बात साबित होती है कि दक्षिण भारत में संघ की बढ़ती लोकप्रियता से वामपंथी इतना चिढ़ गए हैं कि खुलेआम उसके स्वयंसेवकों को अपना निशाना बना रहे हैं। कम्युनिस्टों ने लंबे समय से स्वयंसेवकों के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। इसके पीछे सिर्फ एक ही कारण नजर आता है कि दक्षिण में संघ का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है।
        —महेशचन्द गंगवार, नया बाजार, अजमेर (राज.)

चिकित्सा में गड़बड़झाला
 रपट 'मरीजों पर भारी मुनाफे का नुस्खा' (27 मार्च, 2016) से यही बात जाहिर होती है कि दवा कंपनियों, डॉक्टरों और दवा कारोबारियों के लालच में साधारण लोग पिस रहे हैं। जो दवा कुछ ही रुपयों में मिल सकती है, उसके लिए मरीज कई गुना पैसे चुकाता है, जिसका फायदा डॉक्टर से लेकर दवा कारोबारी उठाते हैं। सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में व्याप्त इस धांधली को दूर करे, क्योंकि आम आदमी को इस समस्या से रोज दो-चार होना पड़ता है।
—कजोड़ राम नागर, दक्षिणपुरी (नई दिल्ली)

 

क्या ऐसे लोग हैं इनके आदर्श?
बंगाल की मिट्टी के एक महान सपूत देशबंधु चितरंजन दास की मृत्यु पर महात्मा गांधी ने कहा था कि मनुष्यों में से एक देवता चला गया है और बंगाल विधवा के समान हो गया है। शायद उस समय गांधी जी का यह कथन उतना प्रासंगिक नहीं हुआ होगा, जितना आज के समय प्रासंगिक है। बंगाल की मिट्टी में हजारों देशभक्त पैदा हुए, जिन्होंने भारत के सिर को कभी झुकने नहीं दिया। पर वामपंथी आज इस पवित्र भूमि की गौरव गाथा को धूमिल करने का प्रयास कर रहे हैं। समाज तथा संस्कृति में सुधार हेतु राजा राममोहन राय, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, सुभाष चन्द्र बोस जैसे देवपुरुषों को जन्म देने वाले बंगाल की सांस्कृतिक और बौद्धिक चेतना का क्या इतना पतन हो चुका है कि वहां वामपंथी विचारधारा के लोग अपनी बातों को समझाने और उनका प्रचार करने हेतु कन्हैया जैसे देशविरोधी व्यक्ति को आगे लाने की बात कुछ दिन पहले कर रहे थे, जिसने उन लोगों को समर्थन दिया जो मां भारती के टुकड़े करने की बात कर रहे थे। खैर, इसी बहाने कम से कम वामपंथियों की मानसिकता तो सामने आई। वर्षों से बंगाल में राज कर रहे कांग्रेसी और वामपंथी शासन ने बंगाल की रीढ़ रूपी उसकी सांस्कृतिक और देशभक्ति की विरासत की पहचान को तोड़-मरोड़कर रख दिया है। ममता सरकार मुस्लिम तुष्टीकरण में इतनी सहिष्णु हो गई है कि मदरसों में राष्ट्रगान का विरोध भी उन्हें नैसर्गिक लगता है। मालदा जैसी घटना पर वे चुप्पी साध लेती हैं। आखिर सेकुलर नेता बंगाल को किस रास्ते पर ले जाना चाहते हैं? बंगाल के लोगों को इनकी कारगुजारियों को समझना होगा और इसका जवाब देना होगा।
              —हेमंत कुमार भगत, मुंगरौड़ा चौक, जमालपुर, मुंगेर (बिहार)

परिवर्तन का समय
महिलाओं को भी मिला, पूजा का अधिकार
शनि शिगणापुर में खुले, बंद पड़े जो द्वार।
बंद पड़े जो द्वार, समय से जोड़ो नाता
करो उचित परिवर्तन, हिन्दू धर्म बताता।
कह 'प्रशांत' हैं परम्पराएं श्रेष्ठ हमारीं
सबमें है परमेश्वर, हो वह नर या नारी॥
    —प्रशांत

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