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त्रासदी का चौंकाने वाला पक्ष यह है कि मंदिर समिति के मैनेजरों में से अधिकांश माकपा के कार्यकर्ता और उनके साथी हैं और उन्होंने आतिशबाजी प्रतियोगिता न किए जाने से जुड़े एडीएम के आदेशों का खुलेआम उल्लंघन किया था। रिपोर्ट के अनुसार मंदिर समिति सदस्यों ने पुलिस को विश्वास दिलाया था कि आतिशबाजी की कोई प्रतियोगिता नहीं होगी और पटाखे केवल मंदिर के अनुष्ठानों की रस्म के तौर पर चलाए जाएंगे। समिति ने पुलिस को विश्वास दिलाया था कि इस बारे में उन्हें जिला प्रशासन से मौखिक मंजूरी भी मिल चुकी है।
प्रत्येक वर्ष मंदिर में होने वाली पटाखेबाजी से आसपास के घरों को भी नुकसान पहुंचता है। लोगों ने इस बारे में शिकायतें भी दर्ज कराईं, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। आजकल ब्रिटेन में अपनी बेटी के पास रह रहीं पंकजाक्षी हर साल इस उत्सव के मौके पर घर आती हैं। सेवानिवृत्त स्कूल शिक्षिका श्रीमती पंकजाक्षी ने हर बार की तरह इस बार भी 2 अप्रैल को जिला कलेक्टर के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी कि पटाखे फूटने से उनको सांस लेने में दिक्कत होती है और घर को नुकसान पहंुचता है, लिहाजा इसे रोका जाए। स्थानीय पुलिस ने उनकी दलीलों पर हामी भरी।
समिति सदस्यों ने पुलिस को झूठा भरोसा दिलाया, लेकिन रिपोर्ट के अनुसार इस काम में एक पूर्व सांसद और मौजूदा एमएलए की भी भूमिका थी। ऐसे भी आरोप हैं कि 9 अप्रैल की शाम को एक सभा में मंदिर प्रशासन ने आतिशबाजी किए जाने को लेकर मंजूरी प्राप्ति के लिए दोनों अतिविशिष्ट व्यक्तियों एवं सत्तासीन गठबंधन के एक वरिष्ठ नेता को धन्यवाद भी दिया था।
कोल्लम जिले के रा़ स्व़ संघ के व्यवस्था प्रमुख श्री जगदीश के अनुसार दुर्घटना करीब 3.़30 प्रात: हुई। उन्होंने बताया कि प्रात: 4 बजे से पहले ही संघ के स्वयंसेवक घटनास्थल पर पहुंच चुके थे। पूरा इलाका युद्धस्थल जैसा दिख रहा था जहां चारों तरफ मृत शरीर बिखरे पड़े थे। स्वयंसेवकों ने पुलिस के साथ मिलकर घटना के शिकार लोगों को अस्पताल पहुंचाने का काम किया। अस्पताल में स्वयंसेवकों ने उनके लिए कपड़ों, भोजन और पीने के पानी का इंतजाम किया। कोल्लम और तिरुअनंतपुरम के 14 अस्पतालों में स्वयंसेवक राहत सामग्री पहुंचाने में जुटे रहे। मृतकों की देह उनके घरों तक पहुंचाने का कार्य स्वयंसेवकों ने ही किया था।
कोल्लम से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार शहर के पुलिस कमिश्नर ने जिला कलेक्टर को मामले की रिपोर्ट सौंपने से इनकार कर दिया है; वह राज्य सरकार द्वारा स्थापित न्यायिक समिति के सामने अपना बयान देंगे, जिसने उन्हें हलफनामा दाखिल करने को कहा है।
श्री जगदीश ने बताया कि यह मंदिर बहुत प्राचीन है और आसपास के लोगों के बीच इसकी गहरी मान्यता है। पुत्तिंगल मंदिर में 1940 के दशक से आतिशबाजी और उससे जुड़ी प्रतियोगिताएं प्रचलन में हैं। इनके साथ ही 9 दिवसीय मीनम भरनी उत्सव भी होता है। परंतु 1940 या 1950 के दशक में हिंदू समुदाय के दो धड़ों, नायर और इड्ज्वा के बीच उठे कुछ विवाद के बाद इसे रोक दिया गया था। बाद में दोनों समुदायों के बीच मंदिर प्रशासन से जुड़े समझौते के बाद आतिशबाजी को पुन: शुरू किया गया। इस मंदिर की ही तरह अप्रैल माह में राज्य में अन्य मंदिरों, चचार्ें में कई उत्सव होने तय हैं जिनमें आतिशबाजी भी होनी थी। जैसे, 17 अप्रैल को त्रिशूरपुरम, 14 से 23 अप्रैल को हरिपाड उत्सव, 23 अप्रैल को चर्च का इडापल्ली उत्सव, 27 अप्रैल से 7 मई तक इडाथुआ चर्च उत्सव और 28 अप्रैल से 7 मई तक पुतुपल्ली चर्च उत्सव होने हैं।
जहां तक पुत्तिंगल हादसे की बात है तो इस बार, कलेक्टर द्वारा इनकार किए जाने के बावजूद समिति सदस्यों ने कंबकेट्टू यानी आतिशबाजी प्रतियोगिता को जारी रखा। लेकिन इसके आयोजन में भारी लापरवाही बरती गई। पटाखे रखे जाने वाला स्थान, कंबपुरा आतिशबाजी वाले स्थान से केवल 50 मीटर की दूरी पर था। एक से दूसरे स्थान तक इस सामान को ले जाने के लिए इसे टाट से ढका जाना चाहिए; ताकि पटाखे आतिशबाजी के दौरान चिंगारी न पकड़ें। इस बार पटाखों को कंबपुरा से लाने वाला व्यक्ति आतिशबाजी की चिंगारियों को देखकर भाग खड़ा हुआ था।
उसे जलते हुए पटाखों से होने वाले खतरे का उस वक्त अंदाजा नहीं हुआ। उसने डर के मारे कंबपुरा से लाए जाने वाले तमाम पटाखे जमीन पर गिरा दिए और उनके चिंगारी पकड़ते ही धमाके होने लगे। वैसे भी आतिशबाजी को छप्पर वाले झोंपड़े या भंडारण स्थानों पर रखा जाता है। इससे कंक्रीट इमारत के धमाके के कारण होने वाले असर को कम किया जा सकता है।
परंतु इस दुर्घटना में कंक्रीट इमारत में हुए धमाके से स्थिति अधिक गंभीर हो गई थी। कंक्रीट निर्मित कंबपुरा के फटने के साथ कई अन्य इमारतें भी टूटीं या उन्हें भारी नुकसान पहुंचा। 500 से अधिक घरों को भी क्षति पहुंची। कंबपुरा का मलबा धमाके के साथ उछलकर 1़5 किलोमीटर दूर जाकर गिरा। दुर्घटना में मारे गए लोगों के शव, घायलों के हाथ-पैर चारों ओर 1़ 5 से 2 किलोमीटर क्षेत्र में फैले थे।
कुछ लोग इस घटना के पीछे आतंकी हाथ मानते हैं, हालांकि उनके पास पुख्ता सबूत नहीं हैं। यह भी बताया गया कि मंदिर के कार्यकर्ताओं ने कुछ आतिशबाजी निकटवर्ती शर्करा मंदिर के कंबपुरा में भेज दी थी। पुलिस द्वारा कब्जे में लिए गए वाहनों से जुड़ी खबरों को इसी अनुसार देखना होगा। धमाका इतना भयावह था कि अधिकांश शवों की पहचान नहीं हो पाई। श्री जगदीश के अनुसार 17 व्यक्ति लापता हैं। लेकिन 12 व्यक्तियों के शरीर के अंग मिल चुके हैं। कई बच्चे अनाथ हो गए हैं। श्री श्री रविशंकर, अमृतानंदमयी मां, साई भजन समूह जैसे गैर-सरकारी समूहों एवं केरल सरकार द्वारा किए प्रयासों का समाज ऋणी है।
1990 में परावूर से कुछ दूरी पर मालानाद मंदिर में भी ऐसी ही घटना हुई थी। उस दौरान 25 लोग मारे गए थे। उसके बाद से वहां आतिशबाजी रोक दी गई थी। मौजूदा घटना के तुरंत बाद पुत्तिंगल मंदिर समिति के सदस्य फरार हो गए थे। परंतु दो दिन बाद उन्होंने खुद को पुलिस के हवाले कर दिया। क्षेत्र के लोग वाम नेताओं, पुलिस और सत्तारूढ़ दल के बीच इस बारे में गठजोड़ के बारे में भी बताते हैं। स्थानीय लोग पूरी तरह से आतिशबाजी पर रोक लगाने के पक्षधर हैं।
हालांकि घटना के तुरंत बाद केरल के मुख्यमंत्री ओमन चांडी और उनके सहयोगी घटनास्थल पर पहुंचे, परंतु राहत गतिविधियों में तेजी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पहुंचने के बाद ही आई। प्रधानमंत्री ने ध्यान रखा कि किसी भी व्यक्ति को उनके आगमन के कारण किसी किस्म की दिक्कत न पेश आए। अमित शाह उस समय स्वयं तिरुवनंतपुरम में थे, पर प्रधानमंत्री के साथ वहां नहीं आए थे। प्रधानमंत्री अपने साथ एम्स से डॉक्टरों का दल लेकर गए थे और मिशन पूरा होने तक उन्हें वहीं रहने को कहा। उन्होंने जरूरत के अनुसार दवाओं की आपूर्ति का भी भरोसा दिलाया। मोदी सरकार ने भारतीय वायुसेना के चार और भारतीय नौसेना के दो हेलिकॉप्टरों को भी वहां तैनात किया। इसके अलावा, दो एएन-32 यातायात जहाजों के साथ राहत सेवाओं के लिए राष्ट्रीय आपदा राहत बल की दो टीमों भी तैनात की गईं।
थल सेना ने भी तिरुवनंतपुरम से कोल्लम के लिए राहत सामग्री हेतु दो टीमें तैनात की है। नौसेना के हेलिकॉप्टर तीन डॉक्टरों एवं छह मेडिकल कर्मियों को लेकर अगले दिन ही दोपहर तक घटनास्थल पर पहुंच गए थे। प्रधानमंत्री ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जे. पी. नड्डा को राहत गतिविधियों की देखरेख के लिए वहीं रहने को कहा।
भाजपा प्रमुख अमित शाह ने केंद्र की ओर से घटना में मरने वाले प्रत्येक व्यक्ति के संबंधी के लिए 2 लाख रुपये और घायल के लिए 50,000 रुपये दिए जाने की घोषणा की। बाद में प्रधानमंत्री ने कहा कि यदि जरूरत हो तो घायलों को दिल्ली या मुंबई में उपचार के लिए भेजा जा सकता है। इसके लिए उनकी सरकार खर्च वहन करेगी।
इन घोषणाओं के बाद राज्य सरकार भी चेती और प्रत्येक मृतक के निकटतम संबंधियों के लिए 12 लाख रुपये और गंभीर रूप से घायलों के लिए 2 लाख रुपये दिए जाने की घोषणा की। अन्य घायलों को 50,000 रुपये दिए जाने की घोषणा की गई। राज्य सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश एन. कृष्णन नायर की अध्यक्षता में एक न्यायिक जांच बैठाने की भी घोषणा की।
राज्य एवं मंदिर प्रशासन को इस घटना से कई सबक सीखने को मिले हैं। सबसे पहला, मंदिर उत्सवों में पैसा खर्च करने की सीमा होनी चाहिए। हिंदू समाज कई कमियों से जूझ रहा है। निर्धन बच्चों को उनके रुझान और क्षमता के अनुसार शिक्षा नहीं मिल पाती। लाखों को भोजन और छत मुहैया नहीं है। उनके लिए मेडिकल सेवाएं मरीचिका समान हैं। आखिर राज्य एवं मंदिर प्रशासन जनता और उसके मानवाधिकारों से जुड़ी जिम्मेदारियों को कैसे भूल सकता है?
संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं पूर्व अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख श्री रंगाहरि के अनुसार हिंदुओं को सौ वर्ष पहले गुरुदेव के कहे का पालन करना चाहिए। वह घटना के दिन त्रिशूर में हिंदू एक्य वेदी की बैठक का उद्घाटन कर रहे थे। बाद में विहिप, संघ एवं अन्य कई हिंदू संस्थानों की ओर से ऐसी अपीलें की गईं। अब शीर्ष ईसाई आध्यात्मिक नेताओं ने भी चर्च के उत्सवों में आतिशबाजी न करने का फैसला लिया है।
इस बीच सबरीमला कंतरारु महेश्वरारु मोहनारु एवं मेलशांति (प्रधान पुरोहित) एस़ सी़ शंकर नंबूदिरी ने कहा है कि आतिशबाजी और हाथियों की परेड का मंदिर की रस्मों, थंतरा विद्या या वेदों से कोई संबंध नहीं है। यदि ऐसी रीतियों के कारण जान-माल का खतरा पैदा होता है या उनका आयोजन सुरक्षित तरीकों से नहीं किया जाता तो उन पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। कुछ वर्ष पहले कोट्टायम जिले में एक आयोजन में प्लास्टर ऑफ पेरिस से निर्मित हाथी को प्रदर्शित किया गया था। उस प्रयास को बेहद प्रशंसा मिली थी।
मौजूदा घटना के बाद केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश वी़ चिदम्बरेश ने अदालत को एक पत्र लिखा जिसे जनहित याचिका के तौर पर लिया गया। याचिका पर संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय की पीठ ने रात के समय आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगा दिया है। अदालत के अनुसार यह घटना पुलिस और प्रशासन की लापरवाही से हुई है। लाइसेंस किसी बाहरी दबाव में नहीं दिया जाना चाहिए। परवूर मंदिर आतिशबाजी के संबंध में दी गई मंजूरी में बाहरी दखलंदाजी का शक है। पुलिस परवूर में आतिशबाजी के लिए इस्तेमाल सामग्री से जुड़े सवाल पर कोई जवाब नहीं दे पाई है जबकि अदालत ने पुलिस और जिला प्रशासन से तुरंत जवाब मांगा है। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एऩ नागरेश ने केंद्र सरकार की ओर से अदालत को जानकारी दी कि आतिशबाजी में नियमों की व्यापक अनदेखी की गई है।
इस बीच भाजपा अध्यक्ष कुमन्नम राजशेखरन ने कहा है कि राज्य गृह मंत्री रमेश चेन्निथला जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने कहा कि राज्य सरकार सीबीआई सहित किसी भी तरह की जांच के लिए तैयार है।
परवूर हादसे पर विश्वप्रसिद्घ त्रिशूर पूरम पर भी प्रश्नचिन्ह लगा। इस मामले में 14 अप्रैल को आदलत ने आतिशबाजी की इजाजत दे दी। कोल्लम जिला कलेक्टर द्वारा पुलिस कमिश्नर के खिलाफ लगाए गए आरोपों से वहां के प्रशासन में पड़ी फूट स्पष्ट होती है। एडीएम शानवाज ने ये आरोप खारिज किए हैं कि उन्होंने आतिशबाजी को मौखिक मंजूरी दी थी। इस संदर्भ में मीडिया के हाथ एक महत्वपूर्ण दस्तावेज लगा है। यह पत्र कोल्लम पुलिस कमिश्नर को संबोधित है। इसमें आतिशबाजी से जुड़ी कुछ शतार्ें को चिन्हित किया गया है। पत्र के अनुसार, ध्वनि 125 डेसिमल और आतिशबाजी को मंजूरी देने से पहले विस्फोटक सामग्री के नमूनों की प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा पूर्ववत जांच की जानी जरूरी है। जांच तो हो, लेकिन आगे ऐसी घटनाओं में आम नागरिकों की जान के साथ खिलवाड़ न हो, इसकी भी चिंता की जानी चाहिए। – टी. सतीशन,साथ में मोहन चलम
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