|
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त फोटो पत्रकार विजय क्रांति दलाई लामा की तस्वीरों के सबसे बड़े संग्रह के साथ तिब्बती मामलों के प्रतिष्ठित जानकार के तौर पर पहचान बना चुके हंै। हाल ही में विजय क्रांति ने जो फोटो प्रदर्शनी लगाई थी, उसी के संदर्भ में प्रस्तुत हैं के. आयुषि की उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश :-
* आपने एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पहचान बनाई है जिसने दलाई लामा की जिंदगी के विभिन्न पहलुओं और स्वदेश सुख से वंचित लोगों के सांस्कृतिक इतिहास को कैमरे के जरिए पेश किया है। कैसा महसूस करते हैं?
मैंने इस यात्रा में भरपूर ज्ञान बटोरा है और मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु को तस्वीरों में उतारने के लिए 'चुना गया' जो सभी वगोंर्, रंगों और महाद्वीपों के लोगों के लिए पूजनीय हैं।
* आपने प्रदर्शनी का नाम 'थैंक्यू दलाई लामा' क्यों रखा?
दलाई लामा के भारत में शरण के 50 साल (1959-2009) पूरे हो रहे थे। भारत सरकार और भारत के नागरिकों ने जिस अपनत्व भरे आतिथ्य और खुले दिल से उन्हें स्वीकारा था, उस भावना के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए दलाई लामा ने 2009 में 'थैंक्यू इंडिया' नाम से एक कार्यक्रम किया था। तिब्बत, तिब्बतवासियों और उनके अलौकिक धार्मिक गुरु के जीवन का अध्ययन करने वाले शख्स के तौर पर मैंने विश्लेषण किया कि तिब्बत के लोगों ने दलाई लामा को मिले आतिथ्य को कितने सकारात्मक रूप से स्वीकारा और परस्पर ज्ञानवर्धन के लिए इस्तेेमाल किया है। मैं दलाई लामा की 'थैंक्यू इंडिया' के रूप में की गई पहल के प्रति आभार जताना चाहता था। इसी क्रम में मैंने 'बुद्धाज होम कमिंग' फोटो प्रदर्शनियों की श्रृंखला शुरू की। उस श्रृंखला का यह अंतिम भाग है 'थैंक्यू दलाई लामा'।
* तिब्बती संस्कृति की तलाश की अपनी 44 साल की यात्रा के बारे में क्या कहेंगे?
मैं बस इतना कहूंगा-स्वयं की तलाश, एक बार फिर (रीडिस्कवरिंग माईसेल्फ)।
* इस लंबी, आकर्षक यात्रा में आए उतार-चढ़ावों के बारे में बताएं।
मेरी पेशेवर यात्रा 1972 में शुरू हुई। जिसमें उतार-चढ़ाव साथ-साथ या जल्दी-जल्दी घट रहे थे। उदाहरण के लिए, 1974 में मेरे काम की शुरुआत के महज 2 साल के अंदर मुझे कवर स्टोरी के रूप में पहला बड़ा काम मिला। मैं पूरी शिद्दत और समर्पित भाव से उस काम में जुट गया। वह पहला मौका था जब मैंने लेख लिखने के अलावा तस्वीरें भी खींची थीं। हैरानी की बात है कि दोस्तों से उधार लिए कैमरे से मैंने जो 52 तस्वीरें खींची थीं, उनमें से 18 चुन ली गईं। मेरी खुशी का पारावार न था। पर जब मुझे अपने काम के लिए एक मामूली रकम ही दी गई तो मैं पुनर्विचार करने लगा कि क्यों मुझे बाकी जिंदगी इसी राह में बढ़ना है? चंद साल बाद मैंने अंग्रेजी में पहला लेख लिखा। मुझे उम्मीद थी कि यह उस पत्रिका में छप जाएगा जिसके लिए मैं काम करता हूं। लेकिन वह रचना अस्वीकृत हो गई। वहीं उस समय की एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय पत्रिका 'फार ईस्टर्न इकोनामिक रिव्यू' ने उसे स्वीकार कर लिया। इस तरह मेरे जीवन के खुशी के क्षण किसी विषाद और विषाद किसी खुशी से उपजते रहा हैं। हालांकि, फोटोग्राफी में मुझे हमेशा सफलता मिलती रही है। इसने मुझे समाज के साथ जुड़े रहने का मार्ग थमाया है, साथ ही दूर-दूराज की यात्रा करने का अवसर भी दिखा है।
* दलाई लामा के सानिध्य से आपने क्या निजी सीख ली?
दलाई लामा से मैंने एक बात सीखी-धैर्य। पहले मुझमें धीरज की कमी थी। मुझे कई बार उलझनों और मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। मैंने दलाई लामा से 'गेम ऑफ पेशेंस' सीखा कि कैसे एक प्रभावी और आक्रामक शक्ति का धीरज, संयम और शांति से सामना किया जाता है। तिब्बती आंदोलन को दुनिया भर का समर्थन हासिल करने में मिली सफलता दलाई लामा के शांति और अहिंसा में विश्वास का परिणाम है। इसी तरह का संघर्ष फिलस्तीन के लोगों ने भी किया, पर वे ऐसा समर्थन जुटाने में विफल रहे, क्योंकि उनके नेता यासर अराफात ने हथियारों का मार्ग चुना था।
* कौन लोग आपकी प्रदर्शनी देखने आए? क्या उनमें मशहूर हस्तियां भी थीं?
मशहूर लोगों में भाजपा के महासचिव श्री रामलाल, मेरे प्रिय मित्र बलबीर पुंज, एक प्रसिद्ध पत्रकार, पूर्व सांसद, साथ ही तिब्बत यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष, एक विशेष प्रतिनिधिमंडल के साथ आए तिब्बती संसद के अध्यक्ष आदि कई प्रतिष्ठित तिब्बती हस्तियों ने प्रदर्शनी की शोभा बढ़ाई। लेकिन10 अप्रैल को दलाई लामा का आगमन अप्रत्याशित था।
* दलाई लामा की प्रतिक्रिया क्या थी?
प्रदर्शनी में अपनी छोटी सी उपस्थिति को उन्होंने मेरे द्वारा ली गई तस्वीरों से जुड़े कई किस्सों को साझा करते हुए यादगार बना दिया। उदाहरण के लिए, दलाई लामा की तस्वीर, जिसमें वे तिब्बती पकवान सम्पाद बना रहे हैं, मैंने अचानक ले ली थी, लामा आश्चर्यचकित रह गए थे।
* अब अगला चरण क्या है?
मेरे बेटे अक्षत ने मुझे दलाई लामा की ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरों को रंगीन संस्करण में पेश करने की सलाह दी है, जिस पर मैं गंभीरता से विचार कर रहा हूं। इसके अलावा मैं पूरे संग्रह को लेखागार में तब्दील करना चाहता हूं।
टिप्पणियाँ