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बरेली में कुछ गांव ऐसे भी हैं जहां के लोग अपनी बेटियों की पढ़ाई छुड़ा रहे हैं। सयानी होती बेटियों की सुरक्षा उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर कर रही है, एक छोटा-सा पुल उनकी जिंदगी बदल सकता है
आदित्य भारद्वाज, बरेली से लौटकर
सविता (परिवर्तित नाम) ने दसवीं तक पढ़ाई की है। उसके पिता सयानी हो चुकी बेटी के लिए लड़का तलाशने में जुटे हैं। उनकी इच्छा है कि जल्द से जल्द बेटी की शादी हो जाए तो वे अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएं। ऐसा नहीं कि मां-बाप उसे पढ़ाना नहीं चाहते या सविता पढ़ाई नहीं करना चाहती लेकिन मां-बाप को चिंता है उसकी सुरक्षा की। सविता का बड़ा भाई उससे दो साल बड़ा है। बारहवीं तक की पढ़ाई करने के बाद वह आगे पढ़ने के लिए बरेली चला गया तो सविता की पढ़ाई रुकवा दी गई। जब तक बड़ा भाई पढ़ाई करता था तो वह साइकिल पर अपनी बहन को साथ स्कूल लाता, ले जाता था लेकिन जब उसने बारहवीं कक्षा पास कर ली तो छोटी बहन को स्कूल कौन लेकर जाए? पिता भूरेलाल सिंह गांव में खेती करते हैं, अब वे खेती संभालें या बेटी को रोजाना स्कूल लेकर जाएं?
यह कहानी अकेले एक घर की नहीं बल्कि बरेली जिले के करीब 5,000 की आबादी वाली घाट गांव ग्राम पंचायत के छह गांवों पहाड़पुर, पिपरिया, नूरमोहम्मद गोटिया, नयाजनगर गोटिया व रहमतनगर गोटिया की है जहां पढ़ने जाने वाली लड़कियों की सुरक्षा और गांव में पढ़ाई की व्यवस्था न होने के कारण उनकी पढ़ाई छुड़वा कर उनके मां-बाप उनकी शादियां कर रहे हैं।
दरअसल इस ग्राम पंचायत में स्कूल से आगे की पढ़ाई के लिए लड़कियों को पास के शेरगढ़ जाना पड़ता है, जहां एक इंटर कॉलेज है। सड़क के रास्ते शेरगढ़ की दूरी करीब 10 किमी है, इसलिए गांव के लड़के-लड़कियां गांव के पास बहती बरसाती धौरा नदी को पार कर जंगल के रास्ते होते मानपुरा और ढांडा गांवों से होकर पढ़ाई के लिए शेरगढ़ जाती हैं। इस रास्ते से कॉलेज की दूरी पांच किमी है। गर्मियों के दिनों में जब नदी का पानी कम हो जाता है तो गांव वाले बल्लियों से कामचलाऊ पुल बना लेते हैं और पानी ज्यादा होने पर लड़कियां मोटर वाहनों के ट्यूब के डोंगे में बैठकर कॉलेज जाती हैं।
बरेली के मीरगंज विधानसभा क्षेत्र में स्थित इस इलाके में धौरा नदी के दूसरी तरफ कई गांव हैं जहां दूसरे समुदाय की आबादी ज्यादा है। गांववालों का आरोप है कि नदी पार करते समय उनकी बेटियों के साथ छेड़छाड़ की कई घटनाएं हो चुकी हैं, जिससे क्षेत्र में कई बार तनाव भी हो चुका है। पहाड़पुर में इंटर कॉलेज व धौरा नदी पर पुल का निर्माण मंजूर किया जा चुका है लेकिन वह सिर्फ कागजों पर ही है। बरसों से गांव वाले बेटियों की सुरक्षा को लेकर इन मांगों को उठा रहे हैं लेकिन धरातल पर कुछ होता दिखाई नहीं दे रहा। घाट गांव के हरबान सिंह की पांच बेटियां हैं, जिनमें से उन्होंने सिर्फ तीन लड़कियों को दसवीं तक पढ़ाया. लेकिन क्षेत्र के खराब माहौल को देखते हुए सयानी होती बेटियों को जंगल के रास्ते इतनी दूर पढ़ाई के लिए भेजने को उनका मन नहीं माना इसलिए तीनों बेटियों की शादी कर दी। अभी उनकी एक बेटी आठवीं में और दूसरी सातवीं में पढ़ रही है। हरबान सिंह कहते हैं, ''यदि नदी पर पुल या गांव में इंटर कॉलेज बन जाता है तो बेटियों को आगे पढ़ाऊंगा नहीं तो उनकी भी पढ़ाई रोकनी पड़ेगी।'' घाट गांव ग्राम पंचायत के पहाड़पुर के रहने वाले विजय सिंह अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी दोनों बेटियां स्नातक कर पाई हैं, वह भी इसलिए कि उन्होंने किसी तरह बारहवीं कराने के बाद अपनी बेटियों व दोनों बेटों को पढ़ाने के लिए बरेली में किराए पर मकान लिया और दोनों बेटियों की आगे की पढ़ाई जारी रखी।
विजय सिंह की पारिवारिक स्थिति थोड़ी ठीक थी सो उन्होंने अपनी बेटियों के लिए पढ़ाई की व्यवस्था कर दी लेकिन हर गांववासी की स्थिति ऐसी नहीं है। जिन लोगों के घर में उनकी बेटियों को कोई लाने ले जाने वाला है, वे तो उन्हें स्कूल में पढ़ने भेज देते हैं लेकिन जिनके घरों में इतने लोग नहीं हैं वे अपनी बेटियों की पढ़ाई छुड़ाकर उनकी शादियां कर रहे हैं। मसलन, गांव के ही मुन्ना सिंह जिन्होंने अपनी बेटी को आठवीं तक पढ़ाया। उनका बेटा छोटा है, जो अपनी बहन को स्कूल लेकर नहीं जा सकता। मुन्ना सिंह कहते हैं, ''मैं खेती में व्यस्त रहता हूं। बेटी को रोजाना स्कूल लाना, ले जाना मेरे लिए संभव नहीं था। इसलिए आठवीं तक पढ़ाने के बाद उसकी पढ़ाई छुड़वा दी और तीन साल बाद उसकी शादी कर दी।''
मुन्ना के रिश्ते में चाचा लगने वाले राजबीर सिंह बताते हैं कि है गांव की ज्यादातर लड़कियों की शादी 17-18 साल की उम्र में कर दी जा रही है। इसका कारण यह नहीं है कि गांव वाले अपनी बेटियों को पढ़ाना नहीं चाहते। लेकिन बेटियों की सुरक्षा न होने की विवशता से उनकी पढ़ाई छुड़ानी पड़ती है।
पिछले वर्ष जुलाई में बोर्ड परीक्षा का परिणाम आने के बाद गांव की लड़कियां नदी के रास्ते स्कूल जा रही थीं तो उन्हें नदी के दूसरी तरफ के गांवों के कुछ मनचले नदी में पूरे कपड़े उतारकर नहाते दिखे। लड़कियों ने वापस आकर सारी जानकारी दी। जिन लड़कों ने लड़कियों पर फिकरे कसे, वे दूसरे समुदाय के थे, ग्रामीणों के विरोध करने पर इलाके में तनाव की स्थिति हो गई थी। इस घटना के बाद गांव के दर्जनों ग्रामीणों ने अपनी बेटियों को स्कूल भेजना बंद कर दिया।
इस वर्ष 16 मार्च को दूसरी पाली में इंटर की परीक्षा देकर लौट रही गांव की दो लड़कियों को नदी के पास रोककर दो युवकों फैजान और आमिर ने उनसे छेड़खानी की। दोनों ने लड़कियों का हाथ पकड़ लिया। किसी तरह लड़कियां अपने घर पहुंची तो जानकारी दी। इसके बाद गांववाले इकट्ठा हो गए और लड़कों का पीछा कर उन्हें दबोच लिया। फिलहाल दोनांे आरोपी जेल में हैं। बरेली के एसएसपी आरके भारद्वाज कहते हैं, ''हम कार्रवाई तो कर सकते हैं लेकिन हर जगह पुलिस पिकेट नहीं लगा सकते।'' गांववालों का आरोप है कि इलाके के विधायक दूसरे समुदाय के हैं। सो वह भी उन्हीं की तरफदारी करते हैं। लेकिन यहां के विधायक बसपा के सुलतान बेग इस आरोप से इनकार करते हैं। वे कहते हैं, ''इस इलाके में स्कूल और पुल की समस्या है और गांववाले लंबे समय से इनकी मांग कर रहे हैं, लेकिन ये काम विधायक निधि से पूरे नहीं हो सकते।'' केंद्रीय कपड़ा मंत्री व बरेली के सांसद संतोष गंगवार इलाके की स्थिति से अवगत हैं लेकिन कहते हैं कि पुल सांसद निधि से नहीं बनाया जा सकता, यह प्रदेश सरकार का काम है। घाट गांव के प्रेमसिंह की बेटी ने इस वर्ष 11वीं की परीक्षा दी है, अब आगे बारहवीं की पढ़ाई वह उसे प्राइवेट करवाएंगे। सयानी होती बेटी के मामले में वे कोई जोखिम नहीं ले सकते। वे कहते हैं, ''यदि इस पार इंटर कॉलेज बन जाता है तो आसपास के कई गांवों निरबुआ, सुंदरगोटिया, जमनिया, खाता, पीपल थाना, बंजरिया, शेड़ा, बसुधरन की लड़कियों को भी फायदा हो जाएगा।'' विजय सिंह बताते हैं पिछले वर्ष हुई घटना के बाद गांववाले जिलाधिकारी गौरव दयाल से मिले थे। उन्होंने गांव में इंटर कॉलेज और नदी पर पुल बनवाने का आश्वासन दिया। अभी जब हाल ही में गांववाले उनसे मिले तो उन्होंने बताया कि शासन से पुल व स्कूल के लिए मंजूरी मिल गई है लेकिन अभी बजट नहीं आया है। ऐसे में ज्यादातर गांववाले अपनी बेटियों को स्कूल नहीं भेज पा रहे।
शेरगढ़ इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य तेज बहादुर कश्यप बताते हैं कि उनके स्कूल में 11वीं और 12वीं में कुल 250 लड़कियां हैं जिनमें से ज्यादातर शेरगढ़ व उसके आसपास के गांवों बंयोधा, मोहद्दीनपुर, मनुनगर की हैं। नदी पार के गांवों की कम ही लड़कियां स्कूल में हैं। इलाके में दूर तक और कोई इंटर कॉलेज है भी नहीं। शेरगढ़ स्थित कमला नेहरू उच्चतर माध्यमिक बालिका विद्यालय की प्रधानाचार्य कुसुम भट्ट बताती हैं कि ''वर्ष भर के दौरान काफी लड़कियां आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं। सभी पहाड़पुर व आसपास के गांवों की होती हैं। औसतन एक कक्षा में 50 लड़कियां हैं तो उनमें से 15 से 20 तक घर बैठ जाती हैं। पिछले साल हुई घटना के बाद भी कितने ही अभिभावकों ने अपनी बेटियों को स्कूल भेजना बंद कर दिया था। पिछले पांच वर्ष में 150 से ज्यादा लड़कियां दसवीं से पहले पढ़ाई छोड़ चुकी हैं। ''
इन गांवों की समस्या दिखाती है कि सरकारें अगर निचले स्तर पर विकास के छोटे कामों को पूरा करने की गंभीरता दिखाएं तो उससे कितनी ही बड़ी समस्याओं को टाला जा सकता है।
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