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अंक संदर्भ- 20 मार्च, 2016
आवरण कथा 'भारत और वज्ञिान- विलक्षण विरासत' से स्पष्ट होता है कि भारतीय प्राचीन काल से वज्ञिान सहित अनेक क्षेत्रों में अग्रणी रहे हैं। दुनिया में आज भी बहुत से ऐसे लोग हैं, जो आधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियों का सेहरा भारत के सिर बांधते हैं लेकिन हम हैं कि अपनी इस पहचान को अपने अज्ञान के कारण जान ही नहीं पाते। हमारा हर क्षेत्र में स्वर्णिम इतिहास रहा है। वैदिक काल से लेकर आज तक हमने बड़े-बड़े योगदान दिये हैं।
—अशोक राठी, हिसार (हरियाणा)
ङ्म भारतीय वद्विानों द्वारा विभन्नि क्षेत्रों में किए गए योगदान को आज भी वश्वि याद करता है। भारतीय वज्ञिान दुनिया को जोड़ता है। प्राचीन काल से ही हमने गणित से लेकर धातु वज्ञिान तक में योगदान दिया है। हमारे वैज्ञानिकों ने ज्यामिति, सिविल इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों में बड़े-बड़े योगदान दिये हैं। ऐसे अद्भुत प्रतिभासंपन्न वैज्ञानिकों का जीवन सदैव ही भारत के सामाजिक, आर्थिक और बौद्धिक पुनरुत्थान के प्रति समर्पित रहा। इन महान लोगों ने अपने जीवन में कड़ी मेहनत से जो कार्य किया, आज संपूर्ण दुनिया अनेक क्षेत्रों में उनका लाभ ले रही है।
—नितिन वर्मा, भोपाल (म.प्र.)
अशांति फैलाने की जुगत
रपट 'खिलाड़ी गुस्से में, जवान नाराज' (28 मार्च, 2016) अच्छी लगी। खिलाडि़यों और जवानों का नाराज होना स्वाभाविक है। देश के जवान अपनी जान हथेली पर रखकर मां भारती की सेवा में लगे रहते हैं, उन्हें अपनी जान की जरा भी फक्रि नहीं रहती। वहीं खिलाड़ी अपने देश का नाम रोशन करने के लिए दिन-रात पसीना बहाते हैं। पर कुछ लोग सरकार से मिलने वाली सब्सिडी पाकर पढ़ने के बजाए देशविरोधी बातें करके देश का माहौल खराब करते हैं। शर्म आनी चाहिए ऐसे लोगों को।
—रमेश वाल्मीकि, मुंगेर (बिहार)
ङ्म देशद्रोह के आरोपी कन्हैया कुमार अपने स्पष्टीकरण में कहते हैं कि वह देश के विरोध में नहीं बल्कि गरीबी, भ्रष्टाचार, भुखमरी और देश में फैली असहष्णिुता के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। वे समझते हैं कि जेएनयू में पढ़ने वाले ही बुद्धिमान होते हैं, बाकी सब मूर्ख हैं। उन्हें पता होना चाहिए कि देश ने उनके कारनामे अच्छी तरह से देखे हैं। अगर उन्हें गरीबों की इतनी ही चिंता है तो आज तक उन्होंने गरीबों के लिए जमीनी स्तर पर क्या किया? क्या कभी आदिवासी क्षेत्रों में जाकर उनका दु:ख-दर्द दूर करने के लिए वंचित समाज की सहायता की? या वे सर्फि कोरी बयानबाजी करके वामपंथी इशारों से देश में अशांति फैलाने की जुगत में हैं।
—यशवंती कुमारी, झांसी(उ.प्र.)
ङ्म अभव्यिक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कांग्रेस का देशविरोधी नारों और ऐसे आयोजनों का समर्थन करना, कहां तक उचित है? जो लोग कहते हैं कि देश में असहष्णिुता है, वे पश्चिम बंगाल के मालदा पर चुप्पी क्यों साध लेते हैं? भाजपा और नरेन्द्र मोदी के प्रति पूर्वाग्रह, कुंठा और अपने आप को श्रेष्ठ समझने की मानसिकता ने कांग्रेस और उसके नेताओं के मन में विष भर दिया है, जो धीरे-धीरे बाहर आने को व्याकुल है।
—मनोहर मंजुल, पिपल्या-बुजुर्ग (म.प्र.)
ङ्म जेएनयू परिसर में जब देशविरोधी नारे लग रहे थे तो शायद ही कोई होगा जिसका खून नहीं खौल रहा होगा। ऐसा नहीं है कि यह पूरा तमाशा कहीं छिपकर हुआ हो, बल्कि आयोजनकर्ताओं ने 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' खुलेआम बोला। सवाल यह है कि क्या यही जेएनयू की वास्तविक स्वतंत्रता है? यही अध्ययन होता है वश्विवद्यिालय में? हद तो तब हो गई जब जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष को पुलिस ने पकड़ा तो उसके पक्ष में सेकुलरों की पूरी फौज खड़ी हो गई और गिरफ्तारी का खुलेआम विरोध किया। खैर, देश ने इसी बहाने ऐसे लोगों को पहचान लिया। ये ऊपर से कुछ और अंदर से कुछ और हैं। खाते देश का हैं लेकिन अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए देश का ही विरोध करते हैं। आने वाले समय में देश की जनता इनको भी उत्तर देगी।
—सुखदर्शन सिंहल, रामपुर (उ.प्र.)
ङ्म शायद भारत ही एक ऐसा देश है जहां के कुछ नागरिक अपने ही देश में, अपने ही देशवासियों, राष्ट्रीय प्रतीकों, संस्कृति और सेना को सार्वजनिक रूप से अपमानित करते हैं। कुछ राजनीतिक दल अपनी राजनीति चमकाने के लिए इन देशद्रोहियों को संरक्षण देने में देर नहीं करते। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस प्रकार की हरकतों से वश्वि में भारत की छवि कमजोर और नकारात्मक देश की नहीं बन रही। कुछ लोगों का यह कथन कि ऐसे कार्यों को रेाकना सर्फि सरकार का काम है, गलत है। यह समाज के प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह समाज में होने वाली प्रत्येक घटना का बढ़-चढ़कर विरोध करंे और उसे रोके।
—दिलीप मश्रिा, ग्वालियर (म.प्र.)
इनको तो विरोध करना है बस
संपादकीय 'इतनी चिंता तो रुला देगी!' (20 मार्च, 2016) प्रभावशाली लगा। पर्यावरण की आड़ लेकर वश्वि सांस्कृतिक महोत्सव पर सेकुलरों ने खूब शोर मचाया, लेकिन सब जानते हैं कि ऐसे लोगों का मंतव्य क्या था। सनातन धर्म से जुड़ा कोई भी कार्यक्रम होता है तो ये सेकुलर ब्रिगेड ऐसा माहौल बना देते हैं, जैसे पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुक्सान ऐसे कार्यक्रमों से ही होगा। पर अन्य मत-पंथों की बात आते ही ये मौन हो जाते हैं।
—उदय कमल मश्रि, सीधी(म.प्र.)
आरक्षण के नाम पर अराजकता
रपट 'अराजक दावेदारी' (6 मार्च, 2016) उन लोगों को सोचने पर मजबूर करती है, जिन्होंने आरक्षण के नाम पर हिंसा की। आरक्षण की आड़ में जिन लोगों ने उत्पात मचाया, उससे राज्य के सुनहरे नाम पर धब्बा लगा है। यह किसी एक व्यक्ति या दल विशेष का षड्यंत्र नहीं था, बल्कि विकास विरोधी, देश विरोधी और सत्ता की भूखी कई ताकतों की पालेबंदी थी। राज्य के मुख्यमंत्री प्रतिदिन राज्य के विकास की ओर ध्यान दे रहे थे। 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' जैसी योजनाएं सफल हो रही थीं। भ्रष्टाचार पर अंकुश लग रहा था। बस यही बातें कुछ राजनीतिक दलों को नहीं सुहा रही थीं। वे एक ऐसे अवसर की तलाश में थे कि कैसे भी करके सरकार को अस्थिर किया जाए। जाट आरक्षण आंदोलन ने उन्हें यह अवसर दे दिया।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा(हरियाणा)
रपट 'साइकिल पर सवार' (20 मार्च, 2016) से यह बात स्पष्ट है कि मुजफ्फरनगर दंगों पर न्यायमूर्ति विष्णु सहाय आयोग ने जो रिपोर्ट दी है, वह पूरी तरह से संदेह के घेरे में है। रिपोर्ट पर साफ तौर से समाजवादी सरकार का प्रभाव दिखाई दे रहा है। समाजवाद के नाम पर मुलायम और अखिलेश लंबे-चौड़े कसीदे काढ़ते हैं पर उनकी करनी में ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता। खैर, एक आयोग भी जब निष्पक्ष रूप से अपनी रिपोर्ट नहीं दे सका तो राज्य में आम आदमी को क्या न्याय मिलता होगा।
—पवन कुमार, वाराणसी (उ.प्र.)
हौसलों की उड़ान
रपट 'अंधेरी जिंदगी सफलता से रोशन' (13 मार्च, 2016) अच्छी लगी। इसमें जिन लोगों का जिक्र किया गया है वे कमजोरियों के बाद भी आज शीर्ष पर हैं। इन लोगों ने अपनी कमजोरियों को कभी अपने हौसलों के आड़े नहीं आने दिया। इसका परिणाम सामने है। इन लोगों ने यह बात सिद्ध करके दिखाई है कि अगर हौसले बुलंद हों तो कोई भी चीज असंभव नहीं है।
—हरिओम जोशी, भिण्ड (म.प्र.)
तिलमिलाहट का कारण
रपट 'गठजोड़ की गुत्थी' रपट (20 मार्च, 2016) सेवा और समाज कल्याण का लबादा ओढे़ एनजीओ की हकीकत को सामने रखती है। कांग्र्रेस के राज में गैर सरकारी संगठनों की बाढ़ आ गई। इन्हें विदेशों से लाखों-करोड़ों रुपये थोक के भाव मिलते थे और इनका प्रमुख कार्य देश में अस्थिरता पैदा करना और कन्वर्जन जैसे कार्यों को बल देना था। पर अब केन्द्र सरकार ने इन पर लगाम कसी है तो ये तिलमिलाये हुए हैं और गिरोह बनाकर देश के माहौल को खराब कर रहे हैं। —मनप्रीत कौर, विकासपुरी (नई दिल्ली)
सवालों के घेरे में मीडिया
राष्ट्र को मजबूती का आधार देने वाले चार स्तम्भों में से मीडिया एक है। महात्मा गांधी कहते थे कि समय और समाज को संदर्भ में रखकर नागरिकों को जो दायित्व बोध कराये, वही पत्रकारिता है। पर क्या मीडिया आज अपना काम सही ढंग से कर रहा है, क्योंकि आज इसकी भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। हाल के कुछ महीनों में सेकुलर मीडिया द्वारा जान-बूझकर देश में अशांति का माहौल बनाया जा रहा है, जो राष्ट्र के लिए अच्छा नहीं है। सेकुलर मीडिया और एक विशेष पत्रकार वर्ग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देशद्रोह की बातें करने वाले लोगों को महिमामंडित कर रहा है। इसे देखकर किसी भी देशवासी का क्रोधित होना स्वाभाविक है। कुछ पत्रकार पूर्वाग्रह के कारण खबरों को तोड़-मरोड़कर दिखाते हैं और सनसनी बनाते हैं। पर कुछ खबरों पर उनकी चुप्पी उनके ऊपर ही सवाल खड़ा कर देती है। कौन कहता है कि सच को दिखाना गलत है लेकिन सच किसी भाषा, प्रांत और मत-पंथ में नहीं बंधा होता। सबके लिए समान होता है, लेकिन ऐसा बहुत ही कम बार दिखाई देता है। यहां कुछ मीडिया घरानों के लिए सच की परिभाषा मत-पंथ के आधार पर बदलती रहती है। यदि शिक्षा संस्थानों में देशद्रोह की बातें करने वाले व षड्यंत्र रचने वाले लोगों को मीडिया महिमामंडित करेगा, तो कहीं न कहीं इससे देश कमजोर होगा। मीडिया को समझना चाहिये कि राष्ट्र सर्वोपरि है। पत्रकारिता से जुड़े बुद्धिजीवियों और उदारवादियों की जमात को समझना होगा कि राष्ट्र विरोधी कार्यक्रम कर भारत की बर्बादी व टुकडे़ करने की बात कहने वाले देश के उद्धारक नहीं हो सकते।
-भंवर सिंह नरवरिया, 38/401 मुख्य अटेर रोड, भिंड (म़ प्ऱ)
नहीं इरादे नेक
विजय माल्या के नहीं, जरा इरादे नेक
कर्जा लेकर घी पियो, उसकी पक्की टेक।
उसकी पक्की टेक, समन हम करते जारी
वह विदेश में बैठ, ऐश करता है भारी।
कह 'प्रशांत' निर्धन का तो हम गला दबाते
पैसे वालों के आगे लेकिन झुक जाते॥
—प्रशांत
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