आवरण कथा / प्रशासन-विधि (गवर्नेन्स) : नैतिकता में पगा राजधर्र्म
July 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

आवरण कथा / प्रशासन-विधि (गवर्नेन्स) : नैतिकता में पगा राजधर्र्म

by
Apr 4, 2016, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 04 Apr 2016 13:05:03

 

कई विचारशील नागरिकों का निष्कर्ष है कि भारत आज एक असाधारण संकट का सामना कर रहा है। इसका एक मुख्य कारण ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासनिक प्रणाली की न्यूनाधिक निरंतरता है। कहा जाता है कि 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व विकासपथ और उसकी प्रक्रिया पर एक पूर्ण अथवा पर्याप्त बहस नहीं हुई है। यहां तक कि उसके उपरांत भी, आज की सरकारों ने सामान्य रूप से इस प्रकार की बहस आरंभ करने, संचालित करने और इस प्रकार की बहस में तटस्थ भाव से प्रत्युत्तर देने और शामिल होने के लिए बहुत गंभीर प्रयास नहीं किए हैं।

हम सिर्फ विदेशी संस्थानों का प्रत्यारोपण कर लें और चमत्कार की उम्मीद करें। संस्थानों को हमारे अपने लोकाचार पर आधारित होना होगा और नई सामग्री को बुनियादी मूल्यों के अनुरूप उपयुक्त तौर पर अनुकूलित करना होगा। एकात्म मानवदर्शन

 

राजनीतिक और प्रशासनिक, दोनों प्रकार की शासन-विधि समाज के निर्वाह के लिए आवश्यक गतिविधियां चलाने के प्रमुख राष्ट्रीय उपायों में से एक है। यह आवश्यक है कि हम एकात्म मानवदर्शन के सिद्धांतों और आज के साथ ही भविष्य की आवश्यकताओं की पृष्ठभूमि में विकास और प्रशासन पर एक एकात्म दृष्टि डालें।

उचित प्रशासन राष्ट्रीय विकास के लिए महत्वपूर्ण अनिवार्य आवश्यकताओं में से एक है। विकास पर कोई भी विचार लक्ष्य निर्धारण और उसको प्राप्त करने के सही रास्ते के निर्धारण के साथ शुरू होता है। लक्ष्य निर्धारण आपके अपने दर्शन से होता है, चाहे वह व्यक्तिगत हो या राष्ट्रीय।

शासन-विधि के आधार के रूप में धर्म

जिस दार्शनिक संरचना की आज हमें इतनी सख्त तलाश है, उसे प्राचीन हिंदू संतों ने विकसित किया था, जिन्होंने सृष्टि के सभी रूपों-चेतन या अचेतन-के बीच अंतर-संबंधों का अध्ययन किया था। धर्म को उचित ही विधि (कानून) के रूप में अनूदित किया गया है। धर्म का अर्थ कुछ रस्में या प्रार्थना या पूजा पद्धति या मान्यताओं के कुछ समुच्चय नहीं है, जैसा कि आमतौर पर माना जाता है। धर्म की बार-बार उद्धृत की जाने वाली दो परिभाषाएं हैं-

यतो अभ्युदयनिश्रेयससिद्धि: स धर्म:। (वह व्यवस्था जो मनुष्य को एक संपन्न भौतिक जीवन का आनंद लेते हुए भी अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करने और स्वयं के भीतर दिव्य सारतत्व या शाश्वत सत्य को साकार करने की क्षमता सृजित करने में सक्षम बनाती है और प्रोत्साहित करती है, वह धर्म है।)

धारणात् धर्ममित्याहु: धमार्े धारयति प्रजा:। (अर्थात, जो शक्ति व्यक्तियों को एक साथ लाती है और उन्हें एक समाज के रूप में बनाए रखती है, उसे धर्म कहा जाता है।)

इन दोनों परिभाषाओं का संयोजन दर्शाता है कि धर्म की स्थापना का अर्थ है प्रकृति के साथ सामंजस्य के साथ एक (ऐसे) संगठित सामाजिक जीवन की स्थापना, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को समाज में दूसरों के साथ अपनी एकात्मता का एहसास होता है और जिसमें प्रत्येक व्यक्ति दूसरों के भौतिक जीवन को संपन्न और प्रसन्न बनाने के लिए बलिदान की भावना से ओत-प्रोत होता है, और जिसमें प्रत्येक व्यक्ति आध्यात्मिक शक्ति विकसित करता है, जो परम सत्य की प्राप्ति की ओर जाती है। शासन प्रणाली को धर्म का अनुमोदन करना चाहिए और इसका अर्थ यह है कि सिर्फ देश के कानून का ही नहीं बल्कि नैतिक आदशोंर् का भी पालन किया जाना चाहिए। भारतीय चिंतन में सर्वहित के कारक के रूप में राज्य की भूमिका का ठोस विचार है-राजधर्म अथवा राज्यधर्म, जिसे अब राज्यनीति (न कि राजनीति) कहा जा सकता है। पं़ दीनदयाल उपाध्याय ने कहा है,''हमें यह बात बहुत स्पष्ट रूप से समझनी होगी कि यह आवश्यक नहीं है कि 'धर्म' बहुमत के साथ या लोगों के साथ हो। 'धर्म' शाश्वत है। इसलिए, लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए यह कह देना पर्याप्त नहीं है कि यह जनता की सरकार है। अकेला 'धर्म' ही है जो इसका निर्धारण कर सकता है। इसलिए एक लोकतांत्रिक सरकार (जनराज्य) को भी 'धर्म' पर आधारित अर्थात एक 'धर्मराज्य' होना चाहिए। जिन्हें 'धर्म' शब्द से 'एलर्जी' है, उन्हें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि पं. जवाहरलाल नेहरू, जिन्होंने धर्म की आलोचना की और जिन्हें राष्ट्र निर्माण में 'धर्म' की अवधारणा में कोई मूल्य नहीं दिखता था, को अपने जीवन के अंतिम चरण में इसके महत्व का एहसास हुआ था। उदाहरण के लिए, 25 मई, 1964 को देहरादून के सर्किट हाउस से श्री श्रीमन्नारायण द्वारा लिखित एक पुस्तक के लिए एक 'प्राक्कथन' में उन्होंने लिखा, ''भारत में हमारे लिए आधुनिक तकनीकी प्रक्रियाओं से लाभ उठाना और कृषि और उद्योग दोनों में अपने उत्पादन को बढ़ाना महत्वपूर्ण है। लेकिन ऐसा करते हुए, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस आवश्यक उद्देश्य को लक्षित किया जाना है, वह व्यक्ति की गुणवत्ता और उसमें अंतर्निहित 'धर्म' की अवधारणा है।''

एकात्म मानवदर्शन-अभिशासन (गवर्नेंस) के व्यवहारसूत्र

1 स्वाधीनता और व्यवस्था के बीच सामंजस्य बनाए रखना प्रत्येक शासन, प्रत्येक राजनयिक और प्रत्येक देशभक्त का उद्देश्य रहता है।

2 शासक धर्म की मर्यादा बनाए रखे, न कि मनमाना आचरण करे। शासक युगधर्मानुसारी स्मृति के अनुसार यानी संविधान के अनुसार राज्य का कार्य करें।

3 बाह्य और आंतरिक सुरक्षा, दंड जैसे क्षेत्र छोड़कर यथासंभव क्रमश: सभी सामाजिक व्यवस्थाएं समाज की स्वायत्त संस्थाओं द्वारा हों, यह अपना विचार है।

4 कानून एक स्तर पर ही बने। उपयुक्त नियम हर स्तर पर बनें।

5 देश की सुरक्षा, विदेशों के साथ समुचित संबंध, विश्व समुदाय में राष्ट्रहित की रक्षा-यह केंद्र सरकार का प्रमुख कर्तव्य होगा। इस हेतु आवश्यक साधन जुटाने और कार्य करने के अधिकार उसके पास होंगे।

6 राज्य-सत्ता का विभाजन और विकेंद्रीकरण दोनों के द्वारा सुचारू व्यवस्था हो।

6़1 नियम बनाने वाले, उन पर अमल करने वाले और न्याय करने वाले-ऐसा सत्ता विभाजन हो।

6़ 2 प्रशासन की दृष्टि से देश के विभाग बनाए जाएं।

6़ 3 छोटा राज्य केवल प्रशासन की दृष्टि से ही अच्छा नहीं होता, वरन् ऐसे समुदायों में साहित्य एवं कला का भी अच्छा विकास होता है।

7 शासकों में आवश्यक गुण

7़1 शासक धर्म के मर्म को समझने वाला, इंद्रियजयी, विवेकवान, निर्भय, समाजहित में दक्ष, कूटनीतिज्ञ, संयमी, लोकसंग्रही हो।

7़ 2 उपर्युक्त गुण वाले लोग ही शासक बनें, यह चिंता करना समाज नेतृत्व का काम है।

7़ 3 इस हेतु शासकों का समुचित प्रशिक्षण, ऐसे आचरण हेतु सामाजिक वायुमंडल का निर्माण तथा आचार्य परिषद जैसी संस्था का नैतिक अंकुश तथा जागृत मतदाता के निरंतर दबाव की आवश्यकता होगी।

7़ 4 कुशासन से सुशासन और सुशासन से स्वशासन के लिए प्रयास करना।

7़ 5 राज्यतंत्र सुलभ, कार्यक्षम और पारदर्शी बनाना।

7.6 निष्पक्ष, सुलभ और सस्ता न्यायदान।  

रवींद्र महाजन्(लेखक सेंटर फॉर इंटीग्रल स्टडीज एंड रिसर्च, पुणे के निदेशक हैं)

 

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Representational Image

महिलाओं पर Taliban के अत्याचार अब बर्दाश्त से बाहर, ICC ने जारी किए वारंट, शीर्ष कमांडर अखुंदजदा पर भी शिकंजा

एबीवीपी का 77वां स्थापना दिवस: पूर्वोत्तर भारत में ABVP

प्रतीकात्मक तस्वीर

रामनगर में दोबारा सर्वे में 17 अवैध मदरसे मिले, धामी सरकार के आदेश पर सभी सील

प्रतीकात्मक तस्वीर

मुस्लिम युवक ने हनुमान चालीसा पढ़कर हिंदू लड़की को फंसाया, फिर बनाने लगा इस्लाम कबूलने का दबाव

प्रतीकात्मक तस्वीर

उत्तराखंड में भारी बारिश का आसार, 124 सड़कें बंद, येलो अलर्ट जारी

हिंदू ट्रस्ट में काम, चर्च में प्रार्थना, TTD अधिकारी निलंबित

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Representational Image

महिलाओं पर Taliban के अत्याचार अब बर्दाश्त से बाहर, ICC ने जारी किए वारंट, शीर्ष कमांडर अखुंदजदा पर भी शिकंजा

एबीवीपी का 77वां स्थापना दिवस: पूर्वोत्तर भारत में ABVP

प्रतीकात्मक तस्वीर

रामनगर में दोबारा सर्वे में 17 अवैध मदरसे मिले, धामी सरकार के आदेश पर सभी सील

प्रतीकात्मक तस्वीर

मुस्लिम युवक ने हनुमान चालीसा पढ़कर हिंदू लड़की को फंसाया, फिर बनाने लगा इस्लाम कबूलने का दबाव

प्रतीकात्मक तस्वीर

उत्तराखंड में भारी बारिश का आसार, 124 सड़कें बंद, येलो अलर्ट जारी

हिंदू ट्रस्ट में काम, चर्च में प्रार्थना, TTD अधिकारी निलंबित

प्रतीकात्मक तस्वीर

12 साल बाद आ रही है हिमालय सनातन की नंदा देवी राजजात यात्रा

पंजाब: अंतरराष्ट्रीय ड्रग तस्कर गिरोह का पर्दाफाश, पाकिस्तानी कनेक्शन, 280 करोड़ की हेरोइन बरामद

एबीवीपी की राष्ट्र आराधना का मौलिक चिंतन : ‘हर जीव में शिव के दर्शन करो’

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

राष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस: छात्र निर्माण से राष्ट्र निर्माण का ध्येय यात्री अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies