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असम में विधानसभा चुनाव में पहली बार 15 वर्ष से सत्तारूढ़ कांग्रेस को भाजपा, अगप और बीपीएफ गठबंधन के रूप ्रमें कड़ी टक्कर मिल रही है। विकास के विभिन्न मापदंडों में राज्य की लगातार फिसलन से कांग्रेस के लिए मतदाताओं को जवाब देना मुश्किल हो रहा है
एन. जे. ठकुरिया, गुवाहाटी से
ढ़ती गर्मी के साथ-साथ असम में चुनावी पारा भी चढ़ने लगा है। हर पार्टी के नेता और कार्यकर्ता चुनावी रंग में रंग चुके हैं। आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। नेता अपने विरोधियों पर जबानी तीर चला रहे हैं, लेकिन मतदाता चुप हैं। यह चुप्पी क्या गुल खिलाएगी, यह तो 19 मई को उस समय पता चलेगा, जब चुनावी परिणाम आएंगे। इस बार असम में दो चरणों में चुनाव हो रहे हैं। पहले चरण के चुनाव चार अप्रैल को और दूसरे चरण के 11 अप्रैल को होंगे।
तरुण गोगोई के नेतृत्व में असम में पिछले 15 वर्ष से कांगे्रस की सरकार है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि राज्य की सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के लिए ये चुनाव कठिन परीक्षा साबित होंगे, क्योंकि यहां पहली बार उसका सामना देश के सबसे ताकतवर राजनीतिक गठबंधन से होने वाला है। भाजपा की अगुआई में बने इस गठबंधन में असम गण परिषद (अगप) और बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट (बीपीएफ) शामिल है। उत्तर-पूर्व के इस प्रमुख राज्य में अब तक हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का सामना मुख्यत: क्षेत्रीय दलों से ही होता आया है। लेकिन असम की राजनीति पर नजर रखने वाले हर व्यक्ति को लग रहा है कि पहली बार कोई गठबंधन असम में कांग्रेस को इतनी कड़ी टक्कर दे रहा है। पिछले कई वर्षों में असम के हालात खराब हुए हैं। गोगोई सरकार 94 प्रतिशत वादे पूरे नहीं कर पाई है। आजादी के समय देश का पांचवां सबसे समृद्ध राज्य प्रति व्यक्ति आय में देश का चौथा सबसे गरीब राज्य है, राज्य के 33 फीसद लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं, वहीं 23 लाख से अधिक शिक्षित बेरोजगार हैं, 96 फीसद से अधिक भूमि के लिए सिंचाई की कोई व्यवस्था नहीं है तो 36 फीसद से ज्यादा घरों में बिजली नहीं है। सबसे बड़ी बात तो गंभीर आर्थिक हेराफेरी के आरोप हैं, सीएजी ने यह आंकड़ा 18 लाख करोड़ रु. कूता है। (देखें बॉक्स)
इससे भी भाजपा को कारगर विकल्प के रूप में उभरने में मदद मिली है। एक दशक पहले तक असम में भाजपा का कोई खास जनाधार नहीं था। लेकिन इसके बाद देश और असम, दोनों ही जगहों पर राजनीतिक समीकरण तेजी से बदले हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के आने के बाद भाजपा ने यहां की 14 में से 7 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की। इस चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत भी बढ़कर 36 प्रतिशत तक पहुंच गया।
एक वर्ष के भीतर केंद्र पर काबिज भाजपा ने अगप, कांग्रेस, कई छात्र संगठनों समेत विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं को अपने पक्ष में लाने में सफलता हासिल की। भाजपा की असम इकाई के प्रमुख और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार सर्बानंद सोनोवाल भी असम गण परिषद के नेता थे। सोनोवाल पूर्व में राज्य के प्रमुख छात्र संगठन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के प्रमुख थे, बाद में अगप में शामिल हो गए थे। ऐसे कई और प्रमुख नेताओं के भाजपा में शामिल होने से पार्टी के बारे में लोगों की धारणा बदली है। बांग्लादेशी घुसपैठियों से परेशान यहां के स्थानीय नागरिकों, जो अपने प्रदेश में अल्पसंख्यक होते जा रहे थे, को भाजपा में आशा की किरण दिखाई पड़ी। बांग्लादेशी घुसपैठ स्थानीय लोगों के लिए अपनी अस्मिता से जुड़ा मुद्दा है और वर्षों से यह असमिया लोगों की दुखती रग बना हुआ है। एक अनुमान के अनुसार असम में करीब 50 लाख बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं। मोदी सरकार ने 60,000 घुसपैठियों की पहचान की, लेकिन राज्य पुलिस उन्हें असम से बाहर करने में असफल रही। मुख्यमंत्री गोगोई हाल ही में बारपेटा गए थे। वहां उन्होंने कहा, ''यदि रिकॉर्ड में एक भी बांग्लादेशी पाया जाएगा तो वे तुरंत पद से इस्तीफा दे देंगे।'' जब मुख्यमंत्री ही ऐसे मिथ्या बयान देंगे तो पुलिस उन्हें बाहर करने की हिम्मत कैसे कर सकती है? इसलिए लोग इस मसले पर भाजपा से उम्मीद लगाए हैं। एक और तथ्य भाजपा के पक्ष में है—बोडोलैंड क्षेत्रीय स्वायत्तशासी जिलों (बीटीएडी) में अच्छा दखल रखने वाले बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट (बीपीएफ) के साथ उसका सफल राजनीतिक गठजोड़ जो कदापि आसान नहीं था। 2006 से बोडोलैंड क्षेत्रीय स्वायत्तशासी जिलों पर काबिज बीपीएफ जून, 2014 तक तरुण गोगोई के नेतृत्व वाली कांग्रेस के साथ था। इसी तरह दो बार राज्य में सरकार बना चुकी असम गण परिषद को 24 सीटों के लिए राजी कर 88 सीटें अपने लिए रखना (इनमें से 14 सीटें बीपीएफ के लिए हैं) भाजपा की एक और बड़ी सफलता है। अगप का गठन बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ चलाए गए ऐतिहासिक असम आंदोलन के बाद 1985 में हुआ था। इसने लगातार अपनी शक्ति बढ़ाई और 1996 में इसे सरकार बनाने में भी सफलता मिली। इस सरकार का नेतृत्व ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के छात्र नेता से नेता बने प्रफुल्ल कुमार महंत ने किया था। महंत स्वतंत्र भारत में ऐसे पहले नेता हैं, जिन्हें सबसे कम उम्र में मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला। भाजपा के साथ यह गठबंधन बनाने में अगप के अध्यक्ष अतुल बोरा, पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत तथा पूर्व मंत्री सीएम पटवारी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। हालांकि, अगप के कुछ नेता इससे खुश नहीं थे। कुछ नेता, जिनमें जयनाथ शर्मा, दुर्गा दास बोरो प्रमुख हैं, पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए।
2011 के चुनावों में 126 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस ने बहुमत हासिल किया था। इन चुनावों में अगप और भाजपा का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा था जबकि ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआइयूडीएफ) ने 18 सीटों पर जीत हासिल की थी और मुख्य विपक्षी दल का दर्जा हासिल किया था। इत्र व्यवसायी बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व में एआइयूडीएफ, जिसने असम में मुसलमानों के मसीहा (इसे बांग्लादेशी घुसपैठिए पढें) के रूप में अपनी छवि बनाई थी, कांग्रेस ने उसका मुस्लिम वोट बैंक छीन लिया। राज्य में अच्छी-खासी मुस्लिम आबादी है। (करीब तीन करोड़ लोगों में 34 प्रतिशत) इस वर्ग के मतदाताओं को लुभाने के लिए कांग्रेस और एआइयूडीएफ आमने-सामने आ गए। धीरे-धीरे असम की मुस्लिम आबादी कांग्रेस (अधिकांश असमिया मुसलमान) और एआइयूडीएफ (बांग्लादेशी मूल के मुसलमान) में बंट गई। प्रगतिवादी मुसलमानों का एक छोटा हिस्सा भाजपा की ओर भी आ गया। इस बार कांग्रेस और एआइयूडीएफ में आपसी सहमति जैसी स्थिति दिखाई देती है।
कांग्रेस में गोगोई की कार्यशैली के चलते देवानंद कुंवर और हेमंत बिस्वशर्मा जैसे कुछ बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ दी और बिस्वशर्मा भाजपा के लिए बड़े रणनीतिकार के रूप में उभरे हैं। कांग्रेस के लिए चाय बागान मजदूरों की समस्या भी गले की फांस बन गई है। वर्षों तक राज करने वाली कांग्रेस ने इन मजदूरों के कल्याण के लिए कुछ भी नहीं किया। 90 प्रतिशत से अधिक चाय बागानों में माध्यमिक विद्यालयों का अभाव है और 50 प्रतिशत में प्राथमिक विद्यालयों का। 70 से 90 प्रतिशत चाय मजदूर रोगों से ग्रसित हैं। गोगोई के लिए कड़ी चुनौती है। हालांकि वे आत्मविश्वास दिखा रहे हैं लेकिन राज्य में बदलाव की गंध पसर गई है, ऐसे में सत्ता पर काबिज रहना कांग्रेस के लिए बहुत कठिन दिख रहा है।
असम में केंद्र सरकार के काम
दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत गांवों का विद्युतीकरण
12,11,534 बीपीएल परिवारों को बिजली के कनेक्शन।
9,069 बिजली विहीन गांवों में बिजली।
राज्य के लिए तय लक्ष्य का 87 प्रतिशत कार्य पूर्ण कर लिया गया।
राष्ट्रीय राजमागार्ें का सुधार कार्य
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने असम के लिए बजट आवंटन बढ़ाकर 11,578 करोड़ रुपए किया है।
आवंटित राशि से उत्तर-पूर्व के लिए 17 नई सड़क परियोजनाओं का कार्य पूर्ण किया।
सुदूर इलाकों के प्रत्येक शहर को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ने के लिए उत्तर-पूर्व क्षेत्र सड़क विकास
आजादी के 68 वर्ष बाद बराक घाटी को आखिरकार ब्रॉड गेज के माध्यम से दिल्ली से जोड़ दिया गया।
उत्तर-पूर्व के लिए 18 नए एफएम चैनल और 24 घंटे चलने वाले टीवी चैनल 'अरुण प्रभा' को मंजूरी।
स्कूलों में 34 हजार से ज्यादा और आंगनबाडि़यों में 11,261 शौचालय।
जन धन योजना : कुल 70 लाख बैंक अकाउंट खोले गए।
फिसलता गया है असम
आजादी के समय असम देश का पांचवां सबसे समृद्ध राज्य था, प्राकृतिक और मानव संसाधन से भरपूर। आज प्रति व्यक्ति आय के मामले में असम देश का चौथा सबसे गरीब राज्य है। इसकी प्रति व्यक्ति आय अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों जैसे मेघालय, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश से भी कम है।
असम के 1 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं। यह राज्य की जनसंख्या का करीब 33 प्रतिशत है।
23 लाख से ज्यादा शिक्षित बेरोजगार युवा हैं। बेरोजगारी की दर 18 प्रतिशत है, जो देश में दूसरे स्थान पर है। असम के युवा नौकरियों के लिए बड़ी संख्या मे पलायन कर अन्य राज्यों में जाते हैं।
पिछले 15 वर्ष में 32,000 से ज्यादा एमएसएमई इकाइयां बंद हुई हैं।
सीएजी ने असम सरकार पर गंभीर आर्थिक हेराफेरी के आरोप लगाए हैं, जिसमें करीब 1़8 लाख करोड़ रुपयों की हेराफेरी हुई है। पिछले दस वर्ष में सीएजी को 822 निरीक्षण जांच रपटों का जवाब नहीं मिला है।
राज्य सरकार ने पिछले करीब 15 वर्ष के उपयोगिता प्रमाणपत्र उपलब्ध नहीं कराए हैं, जिसकी कीमत 11,834.़24 करोड़ रु. है।
96 प्रतिशत से ज्यादा कृषि भूमि पर सिंचाई की कोई व्यवस्था नहीं है।
राज्य के करीब 1़2 करोड़ लोगों के लिए स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था नहीं है। यहां उपलब्ध पानी आर्सेनिक और फ्लोराइड से संक्रमित है, जो कैंसर के कारक हैं।
36 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण मकानों में बिजली नहीं है।
एक सींग वाले गेंडे असम का गौरव हैं। हालांकि पिछले करीब तीन वर्ष में 90 से ज्यादा गेंडों का शिकार किया गया है। शिकार की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किए गए हैं।
ल्ल पूरे देश में असम में ही सबसे खराब मातृ मृत्यु दर है, जो प्रति लाख पर 353 मौतों का है।
देशभर में महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर असम में सबसे ज्यादा है। एक ही वर्ष में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 19,000 मामले दर्ज किए गए थे।
एक अखबार (एमोर आसाम) के शोध पत्र के मुताबिक, मुख्यमंत्री तरुण गोगोई द्वारा किए गए वादों में से 94 प्रतिशत वादे पूरे नहीं किए गए हैं।
असम का समग्र मानव विकास सूचकांक देश में 16वें स्थान पर है।
असम में जिलेवार मुस्लिम आबादी
बक्सा 14.29
बरपेटा 70.74
बोंगईगांव 50.22
कछार 37.71
चिरांग 22.66
दरांग 64.34
धेमाजी 1.96
धुबरी 79.67
डिब्रूगढ़ 4.86
डिमा हसाओ 2.04
गोलपाड़ा 57.52
गोलाघाट 8.46
हेलाकांडी 60.31
जोरहाट 5.01
कामरूप 39.66
कामरूप महानगर 12.05
करबी आंगलोंग 2.12
करीमगंज 56.36
कोकराझार 28.44
लखीमपुर 18.57
मोरीगांव 52.56
नागांव 55.36
नलबाड़ी 35.96
शिबसागर 8.30
सोनितपुर 18.22
तिनसुकिया 3.64
उदलगुड़ी 12.66
आंकड़े प्रतिशत में, स्रोत : 2011 की जनगणना पर आधारित
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