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महाराष्ट्र की राजनीति में छगन भुजबल सार्वजनिक जीवन मूल्यों के सीमातीत क्षय के सबसे बड़े उदाहरण बनकर उभरे हैं। यह कहानी है एक मामूली से सब्जी बेचनेवाले युवक की जिसके बारे में कहा जाता है कि वह आज हजारों करोड़ रु. से ज्यादा की चल-अचल संपत्ति का मालिक बन गया है। यह महाराष्ट्र की राजनीति में कई वर्षों तक सत्ता में रही पार्टी के उस सामान्य कार्यकर्ता की दास्तां है जो न केवल राज्य में पार्टी का सर्वेसर्वा रहा बल्कि उपमुख्यमंत्री पद तक भी पहुंच गया। समय का पहिया घूमा और राज्य में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता में आई और सत्ता से बाहर हुए ये महाशय अपनी पार्टी में तो उपेक्षा का शिकार हुए ही और हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय ने अज्ञात स्रोतों से इकट्ठा की गई उनकी अंधाधुंध बेहिसाब संपत्तियों के चलते उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया।
नासिक में जन्मे छगन भुजबल चार वर्ष के थे तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। इसके बाद उनकी नानी ने उन्हें पाला। वे उनके साथ मुंबई की भायखला सब्जी मंडी में फल और सब्जी बेचने लगे। इस दौरान उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी ओर मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। मुंबई में यह वह समय था जब महाराष्ट्र में बालासाहब ठाकरे और उनकी शिवसेना उभार पर थी। मराठी स्थानीयता और हिंदुत्व के मुद्दे पर मुखर एजेंडे की वजह से उस समय हजारों युवक शिवसेना की तरफ आकर्षित हुए। छगन भुजबल भी उन्हीं में एक थे। उन्होंने 1960 में शिवसेना से नाता जोड़ लिया। 1973 में भुजबल ने शिवसेना से पार्षद का चुनाव लड़ा और जीता, उनकी नेतृत्व क्षमता देखकर शिवसेना ने उन्हें महापौर बनाया।
मुंबई की प्रतिष्ठित कोलाबा विधानसभा सीट से लगातार जीत से वे 80 के दशक में पार्टी के एक प्रमुख नेता बन गए। देश में मंडल राजनीति की शरुआत होते ही भुजबल ओबीसी नेता के रूप में अपनी कीमत जान गए। उन्होंने शिवसेना को राम-राम कहा और राष्ट्रवादी कांग्रेस के शरद पवार का दामन थाम लिया। 1991 में इससे महाराष्ट्र की राजनीति में जैसे भूचाल आ गया। भुजबल ने महात्मा फुले समता परिषद के नाम से ओबीसी समाज का एक संगठन बनाया। इस संगठन का राजनैतिक दबाव के लिए उपयोग कर उन्होंने स्वयं की प्रासंगिकता बनाए रखी। महाराष्ट्र में 1999 में कांग्रेस और राकांपा की सरकार में भुजबल को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। राष्ट्रीय राजनीति में जगह बनाने की महत्वाकांक्षा के चलते वे अपने बेटे पंकज को ले आए जो येवला विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। भुजबल अपने भतीजे समीर को भी लाए जो पिछली लोकसभा में नासिक से सांसद रहे। मनी लॉन्ड्रिग मामले में उनके बेटे और भतीजे को पिछले ही महीने गिरफ्तार किया गया।
घोटालों की शृंखला
स्टांप पेपर घोटाला: 2004 में पूरे देश में कई सौ करोड़ रु. पए के स्टांप पेपर घोटाले ने हड़कंप मचा दिया था। नासिक की प्रेस में से कुछ प्रिंटिंग मशीनों को बिगड़ा हुआ बताकर कबाड़ में बेच दिया गया। बाद में इन्हीं मशीनांे से हजारों करोड़ रू. के नकली स्टांप पेपर छापकर बेच दिए गए। इस घोटाले के सरगना अब्दुल करीम तेलगी ने पी-300 ब्रेनमैपिंग टेस्ट में अपना अपराध स्वीकार किया और अपने बयान में छगन भुजबल का स्पष्ट रूप से नाम लिया था। भुजबल ने एसआइटी और सीबीआइ दोनों की पूछताछ में स्वयं को निर्दोष बताया, बाद में अदालतों ने उन्हें बरी कर दिया।
टेंडर वितरण में अनियमितता : 2006 में जब छगन भुजबल महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री थे और लोक निर्माण विभाग भी उन्हीं के पास था, उन पर 100 करोड़ रु. से अधिक के तीन टेंडर देने में मनमानी कर राजकोष को भारी घाटा पहुंचाने का आरोप लगा। ये टेंडर अंधेरी में क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (आरटीओ) की नई इमारत और हाइमाउंट, मालाबार हिल में राज्य अतिथि गृह के निर्माण से संबंधित थे। उन पर कलीना क्षेत्र में मुंबई विवि परिसर में स्थित एक भूखंड निजी डेवलपर को अवैध रूप से पट्टे पर देने का भी आरोप लगा।
नवी मुंबई में भवन निर्माण घोटाला: 2010 में नवी मुंबई और खारघर क्षेत्र में गृह-निर्माण के नाम पर भुजबल परिवार के स्वामित्व वाली कंपनी ने फ्लैटों की कुल लागत का 10 प्रतिशत बुकिंग राशि के रूप में वसूल तो कर लिया लेकिन काम शुरू नहीं किया। 2,300 लोगों ने इस परियोजना में फ्लैट बुक करवाए और लगभग 44 करोड़ रु. का भुगतान किया था। फ्लैट के दावेदारों की शिकायत पर पुलिस ने कंपनी पर भारतीय दंड संहिता के तहत धोखेबाजी, अपराध, षड्यंत्र के तहत महाराष्ट्र ओनरशिप फ्लैट्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया।
महाराष्ट्र सदन घोटाला : 2012 में जिस घोटाले के कारण भुजबल परिवार सुर्खियों में आया वह नई दिल्ली में महाराष्ट्र सदन बनाने के ठेके का था। बिना टेंडर आमंत्रित किए एक अनजान ठेकेदार के. एस चमणकर को यह ठेका दे दिया गया। 50 करोड़ रु. की अनुमानित लागत वाला यह काम 150 करोड़ रू. तक पहुंच गया। चमणकर ने इस काम को एक अन्य कंपनी ओरिजिन इन्फ्रास्ट्रक्चर को दे दिया जो भुजबल से जुड़ी थी। इसके साथ ही नए महाराष्ट्र सदन के लिए इदीन फर्नीचर नामक कंपनी से फर्नीचर खरीदा गया जो विशाखा पंकज भुजबल और शेफाली समीर भुजबल की कंपनी थी। ये सभी लोकनिर्माण विभाग मंत्री के परिजन थे।
आरोप है कि भुजबल ने बहुत बड़ी मात्रा में धन की हेराफेरी की और सरकारी खजाने को 870 करोड़ रु. से भी अधिक की चोट पहुंचाने वाले घोटाले में उनके हाथ साफ नहीं हैं। प्रवर्तन निदेशालय का आरोप है कि भुजबल कुनबे की कुछ कंपनियों के खातों में कई लेनदेनों का स्पष्टीकरण नहीं है जिससे एजेंसी को अंदेशा है कि यह और कुछ नहीं, बल्कि ''भुजबल को मिली रिश्वत की रकम है।'' आरोप यह भी है कि नासिक और मुंबई में भुजबल के प्रभुत्व वाले मुंबई एजुकेशनल ट्रस्ट की अत्याधुनिक भुजबल नॉलेज सिटी सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग कर बनाई गई।
जांच एजेंसियों ने भुजबल की नासिक, येवला, पुणे, मुंबई और नवी मुंबई में स्थित 17 परिसंपत्तियों पर छापों में आय से अधिक संपत्ति के दस्तावेज जब्त किए हैं। नासिक में भुजबल का आलीशान फार्महाउस 2.82 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है जिसमें 25 कमरे, एक स्वीमिंग पूल व जिम भी है। पिछले वर्ष 17 जून को प्रवर्तन निदेशालय ने भुजबल के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ मनी लन्ड्रिंग एक्ट के तहत मामला दर्ज किया तभी से उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही थी। 14 मार्च को प्रवर्तन निदेशालय ने भुजबल को पूछताछ के लिए बुलाया और कई घंटों की पूछताछ के बाद आखिर में गिरफ्तार कर लिया।
जिस राकांपा में भुजबल किसी समय ताकतवर नेता होते थे वह आज उनसे कन्नी काट रही है। हालांकि पार्टी के कुछ नेताओं ने भुजबल की गिरफ्तारी पर ''राजनैतिक प्रतिशोध'' का राग अलापा है, लेकिन मराठा प्रभुत्व वाली राकांपा में यह ओबीसी नेता स्पष्टत: हाशिये पर चला गया है। – प्रसाद जोशी
– 2012 में भाजपा के किरीट सोमैया और देवेंद्र फडनवीस ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि भुजबल ने मुंबई-दिल्ली में महाराष्ट्र सदन निर्माण के लिए चमणकर बिल्डर्स को 10,000 करोड़ रू. के हस्तांतरणीय डेवलपमेंट अधिकार दे दिए।
– दिसंबर 2014 में महाराष्ट्र सरकार ने इस घोटाले की खुली जांच के आदेश दिए।
– 17 जून 2015 को प्रवर्तन निदेशालय ने प्रिंवेंशन ऑफ मनी लॉड्रिंग एक्ट में भुजबल, उनके बेटे पंकज और भतीजे समीर भुजबल के खिलाफ दो एफआइआर दर्ज की।
– एफआइआर दर्ज करने से पहले भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ने 2006 में विभिन्न परियोजनाओं के ठेकों में अनियमितता बरतने के मामले में भुजबल की 26 संपत्तियों की जांच की। तब भुजबल उप-मुख्यमंत्री थे।
– 14 मार्च , 2016 को भुजबल को प्रवर्तन निदेशालय ने करोड़ों रुपए के महाराष्ट्र सदन घोटाले में मनी लॉड्रिंग के आरोप में गिरफ्तार कर लिया।
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