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अंक संदर्भ- 21 फरवरी, 2016
आवरण कथा 'क्रिकेट के नए करोड़पति' से एक बात स्पष्ट है कि आइपीएल क्रिकेट का कम, पैसों का खेल अधिक बन गया है। रातोंरात कोई नया खिलाड़ी कैसे करोड़पति बन जाता है, आइपीएल को देखकर इसे बखूबी समझा जा सकता है। पहले क्रिकेट में एक भावना जुड़ी रहती थी, पर अब यह कम होती जा रही है।
—रामनिवास वर्मा, नासिक (महा.)
यह कैसी स्वतंत्रता
'आतंकियों के ये हमदर्द कौन' (21 फरवरी, 2016) रपट जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुई देशद्रोही गतिविधि को उजागर करती है। पाञ्चजन्य ने पहले भी जेएनयू में चल रही देश व समाज विरोधी गतिविधियों को सामने रखा है। पर तब लोगों ने किन्तु-परन्तु करके इसे झुठलाने की कोशिश की। लेकिन 9 फरवरी को सारे देश ने देखा कि किस तरीके से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में कुछ छात्रों ने देश की बर्बादी की बातंे कीं। इस सबके बाद जिन दलों को इसका विरोध करना चाहिए था, वे इसे सही साबित करने में लगे हुए थे और तमाम तरह के कुतर्क देकर देशद्रोही छात्रों का हौसला बढ़ा रहे थे।
—प्रमोद प्रभाकर वालसंगकर, हैदराबाद (आं.प्र.)
ङ्म जेएनयू में छात्रों को मोहरा बनाकर एक राष्ट्र विरोधी कार्यक्रम कराया जाता है, आतंकी अफजल का गुणगान होता है, भारत मुर्दाबाद, पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाये जाते हैं। हालांकि कुछ लोगों को लगता है कि यह सामान्य घटना है, तो बिलकुल गलत है। यह एक सोची-समझी साजिश है। इस घटना की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और जो भी इस घटना में जरा भी शामिल है, उसको किसी भी हालत में छोड़ा नहीं जाना चाहिए। जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से उम्मीद की जाती है कि वह ऐसे छात्रों को तैयार करेगा जो अपनी प्रतिभा से समाज और देश के विकास में सहायक हों न कि ऐसे जो देश की ही बर्बाद करने पर तुले हों।
—प्रदीप सिंह राठौर, पनकी, कानपुर (उ.प्र.)
ङ्म जेएनयू में जो घटना घटी वह अचानक हुई हो, तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। यह एक षड्यंत्र है। पिछले दिनों बिहार चुनाव के समय सेकुलरों ने देश में असहिष्णु वातावरण बना दिया था। समाचार पत्रों से लेकर न्यूज चैनलों में इस शब्द पर पूरे चुनाव भर बहस हुई। कुछ लोगों ने पुरस्कार लौटाए, तो कुछ ने देश छोड़ने की धमकी भी दी। अब फिर से पांच राज्यों में चुनाव हैं, तो क्यों न इस बार भी कुछ इसी तरह से किया जाए और नरेन्द्र मोदी सरकार के विकास के एजेंडे को रोका जाए।
—कनिष्क जैन, ग्वालियर (म.प्र.)
ङ्म संकीर्ण राजनीति में डूबे सेकुलर दलों ने जेएनयू के मामले में उन छात्रों का समर्थन किया जो देशद्रोही गतिविधि में संलिप्त थे। जेएनयू में 9 फरवरी को जो हुआ वह देश ने देखा। इसलिए इसे झूठा नहीं साबित किया जा सकता। सेकुलर दलों के जिन नेताओं ने इन छात्रों का समर्थन किया, वे सत्ता और वोट की राजनीति के आकंठ में डूबे हैं।
—मनोहर मंजुल, प.निमाड़ (म.प्र.)
ङ्म बड़ी विडम्बना है कि ये जिस देश का खाते हैं उसी को गाली देते हैं। पिछले दिनों जिस तरीके से जेएनयू में अफजल के नाम पर देश के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को झूठा साबित करने की कोशिश की गई, वह हरेक देशवासी को नागवार गुजरा। वर्तमान में ऐसी षड्यंत्रकारी ताकतों को रोकने की आवश्यकता है। समाज को भी ऐसे लोगों का पूर्ण बहष्किार करना चाहिए, जो भारत माता को खंडित करने का सपना देख रहे हों।
—रूपसिंह सूर्यवंशी, निंबाखेड़ा (राज.)
ङ्म हमारे सैनिक देश की सीमाओं पर आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हो जाते हैं। पर वामपंथी छात्र संगठन कभी भी जेएनयू में शहीदों का शहादत दिवस नहीं मनाते। वे अफजल का शहादत दिवस मनाते हैं, मेमन पर मातम करते हैं। कभी विचार करके देखिये, जिस तरीके की घटना भारत में कर लेने की हम्मित करते हैं, क्या अमेरिका, चीन, फ्रांस आदि देशों में कर सकते हैं? शायद इसका उत्तर है, नहीं। ऐसे में सवाल उठता है कि जो भी छात्र इस प्रकार की आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहे, उनके दिलों में देशविरोध की भावना कहां से पनपी?
—भगवती प्रसाद थपलियाल, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
ङ्म आजकल बात-बात पर राहुल गांधी भाजपा के साथ-साथ रा.स्व.संघ का नाम लेना नहीं भूलते। अब यह उनकी आदत का एक हस्सिा बन गया है। वर्तमान में राहुल गांधी हरेक बात में संघ को पानी-पी-पीकर कोसते हैं, वैसे ही कभी प.जवाहरलाल नेहरू भी किया करते थे। पर इतने विरोधी थपेड़ों के बाद भी संघ निरंतर बढ़ता रहा।
—अरुण मत्रि, 324,रामनगर (दल्लिी)
ङ्म सेकुलर दल जेएनयू के मुद्दे पर भी अपनी राजनीति करने से बाज नहीं आए। वे ऐसे छात्रों का समर्थन कर रहे हैं जन्हिोंने देश में अशांति का वातावरण बनाने की कोशिश की। देश की अखंडता और संप्रभुता से जुड़े मामले पर सेकुलर दलों की स्वार्थपूर्ण राजनीति दुर्भाग्यपूर्ण है। बेशक अभव्यिक्ति की स्वतंत्रता के तहत नागरिकों को बोलने का अधिकार प्राप्त है, लेकिन उसकी अपनी सीमाएं भी हैं। कोई भी देश अपने देश की अखंडता और संप्रभुता से छेड़छाड़ करने की अनुमति, कथित अभव्यिक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर नहीं दे सकता।
—सानू शुक्ल, लखीमपुर खीरी (उ.प्र.)
ङ्म कहते हैं न कि भगवान ने इंसान को इस धरती पर कुछ अच्छा करने के लिए भेजा है। लेकिन यहां आकर वह यह काम भूल जाते हैं। जेएनयू में पिछले दिनों जो हुआ वह इसी कड़ी का एक हस्सिा है। वे कुछ अच्छा तो नहीं कर पा रहे हैं पर भारत माता को खंडित करने की बात जरूर कर रहे हैं। शर्म आनी चाहिए ऐसे लोगों को।
—गुंजन कुनियाल, ूॅ४ल्ल्नंल्ल'४ल्ल्र८ं'29@ॅें्र'.ूङ्मे
ङ्म जेएनयू विवाद को देखकर मन में एक सवाल उठता है कि क्या कोई अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए देश में नफरत का वातावरण बना सकता है? ये देश उनका ही है, हजारों साल से रहते आए उनके पूर्वजों का है, वे ऐसा सोच भी कैसे सकते हैं? इससे एक प्रश्न जरूर उठता है कि कहीं हमारे वश्विवद्यिालय इन छात्रों के मनों में यह सोच जागृत करने में नाकामयाब हो रहे हैं कि यह उनका अपना देश है। जो तालीम उन्हें मिलनी चाहिए वह न मिलकर उन्हें कुछ और ही तालीम दी जा रही है। फिर मन में एक डर पैदा होता है कि क्या भारत में एक नए तरह का आतंकवाद पैदा करने की साजिश तो नहीं की जा रही है?
—आशुतोष कुमार, देवघर (झारखंड)
दु:ख पर भारी चुनाव
'चाय मजदूरों पर चर्चा ममता को नहीं सुहाती'(21 फरवरी, 2016) रपट चाय बागान के मजदूरों की हालत को बयां करती है। वैसे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को क्या सुहाता है, यह खोज का विषय है। लेकिन वे उन सभी बातों पर मौन साध लेती हैं जिनका समाज से नजदीकी संबंध होता है। चाय मजदूरों की हालत पर भी वे कुछ इसी तरह मौन धारण किए हुए हैं। ऐसे कई अन्य अहम मुद्दे रहे हैं जिन पर उनकी चुप्पी अखरी है। वैसे वे इस समय सर्फि आने वाले विधानसभा चुनाव में वोट बैंक की मजबूती पर ध्यान दे रही हैं। ममता बनर्जी को इस समय किसी के दु:ख-सुख से कोई मतलब नहीं है।
—बी.एल.सचदेवा, आएनए मार्केट (नई दल्लिी)
इनके जज्बे पर है नाज
'सामान्य घरों की बेटियों की असामान्य कहानी' रपट अच्छी लगी। इसे पढ़कर प्रेरणा मिलती है कि हमारी बेटियां किसी से कम नहीं हैं। आज देश में महिलाएं हर उस पायदान पर पहुंच रही हैं जहां लोगों ने कभी कल्पना तक नहीं की थी।
—सी.आर.धानेश्वर, बैहर, बालाघाट (म.प्र.)
ङ्म चीनी सरहद पर आइटीबीपी के पहले महिला दस्ते की तैनाती सचमुच गर्व का विषय है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की मुहिम का स्वप्न ऐसे अदभुत नारी शौर्य से न केवल साकार होता है बल्कि समाज को प्रेरणा मिलती है। वैसे आज बेटियां किसी भी मायने में बेटों से कम नहीं हैं।
—हरिओम जोशी, चतुर्वेदी नगर, भण्डि (म.प्र.)
अनर्गल प्रलाप
आजादी हैं चाहते, पर किससे श्रीमान
भारत में आजाद हैं, सब मजदूर किसान।
सब मजदूर किसान, जरा ये तो समझाओ
रूस-चीन की आजादी की बात बताओ।
कह 'प्रशांत' है आजादी, तो बोल रहे हो
गाली बकने वाले मुंह को खोल रहे हो॥ —प्रशांत
साजिश विकास रोकने की
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत नित्य नया गौरव हासिल कर रहा है। ऐसा शायद ही किसी सरकार के समय हुआ हो। कई वर्षों से देश और दुनिया में भारत की जो छवि बनी हुई थी, वह राजग सरकार के आने के बाद बदली है। पहले भारत विश्व के सामने आस लगाये खड़ा रहता था, पर अब विश्व की निगाहें भारत की ओर लगी रहती हैं। देश अनवरत प्रगति पथ पर अग्रसर है। पर भारत के बढ़ते कदमों से कुछ लोगों के पेट में दर्द हो रहा है। इस सरकार के आने के बाद से उनकी करतूतें बाहर आ रही हैं। इसलिए उनकी बेचैनी चरम पर है। बस इसी कारण से इन सेकुलर नेताओं ने मोदी सरकार का विरोध करना शुरू कर दिया। देश का वातावरण ऐसा बनाया जा रहा है कि हर घटना के लिए केन्द्र सरकार जिम्मेदार है। चाहे वह घटना किसी भी राज्य में क्यों न घटी हो। उनका यह विरोध धीरे-धीरे सरकार को छोड़कर राष्ट्रविरोध के स्वरों में तब्दील हो गया। हाल ही में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में घटी घटना इसका साक्ष्य है। संपूर्ण देश ने देखा कि किस प्रकार कुछ छात्रों ने खुलेआम देश की बर्बादी के नारे लगाए, लेकिन इन सेकुलर नेताओं को तो येन-केन प्रकारेण मोदी का विरोध करना है। इसलिए उन्होंने इन नारों को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़कर उनकी आवाज को बल दिया। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में उनका देश की बर्बादी कहने वालों से कोई तौबा नहीं है। उलटे घटना का विरोध करने के बजाए वे कहते हैं कि छात्रों की आवाज दबाई जा रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि जिन छात्रों ने देश की बर्बादी की बातें कीं, क्या वे सामान्य व्यक्ति हैं? नहीं। वे सभी शोधार्थी हैं और उन्हें अच्छे- बुरे का भान है। ऐसे में राहुल और अन्य सेकुलर नेता इनकी पैरवी करके देश को क्या बताना चाह रहे हैं? ऐसे नेता और सेकुलर दल देश की एकता और अखंडता के लिए खतरे के सिवाय कुछ नहीं हैं।
—निरंजन सिंह पंवार, गोड़पारा, बिलासपुर (छ.ग.)
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