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राजनीतिक बढ़त लेने और विवादास्पद मुद्दे को चुनावी आधार बनाने की मंशा से तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने केंद्र सरकार को एक पत्र लिखा कि उनकी सरकार राजीव गांधी की हत्या के आरोप में उम्र कैद भुगत रहे सात अपराधियों को छोड़ने के लिए तैयार है। केंद्रीय गृह सचिव राजीव महर्षि को लिखे पत्र में राज्य के प्रमुख सचिव के. गणदेसिकन ने कहा है कि राज्य केंद्र को मुरुगन, संतन, जयकुमार, रविचंद्रन, रॉबर्ट पायस, नलिनी और पेरारिवलन को छोड़ने के उसके फैसले की सूचना दे रहा है, क्योंकि ये सभी दोषी 24 वर्ष की सजा काट चुके हैं। पत्र में इन अपराधियों को छोड़ने पर केंद्र के विचार भी मांगे गए हैं। (सवार्ेच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार राज्य इनको केंद्र की सहमति के बिना नहीं छोड़ सकता।)
ए. जी. पेरारिवलन, वी. श्रीहरन उर्फ मुरुगन, टी. सुधेंद्र उर्फ संतन (जिनकी मृत्युदंड की सजा को 2014 में सवार्ेच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करने में देरी के कारण बदल दिया था), नलिनी (जिसकी मृत्युदंड की सजा को 2000 में राज्य सरकार ने उम्र कैद में बदल दिया था), रॉबर्ट पायस, जयकुमार एवं रविचंद्रन उम्र कैद भुगत रहे हैं। नलिनी को उनके पिता के अंतिम संस्कार में जाने के लिए दिए गए पैरोल के बाद यह पत्र केंद्र सरकार के पास पहुंचा। नलिनी के अनुसार उन्हें मुख्यमंत्री जयललिता पर भरोसा है कि वह सातों को रिहा करेंगी क्योंकि वे बेकसूर हैं।
बेशक तमिलनाडु सरकार के इस कदम ने विपक्षी दलों को असमंजस की स्थिति में डाल दिया है। राज्य सरकार द्रमुक को कांग्रेस के साथ उसके संबंधों के कारण निशाने पर रखना चाहती है। पत्र में कहा गया है कि पिछली राज्य सरकार ने सातों दोषियों को छोड़ने के उसके फैसले को नामंजूर कर दिया था। हालांकि करुणानिधि ने केंद्र से सातों को मानवीय आधार पर छोड़ने की अपील की है। उन्होंने कहा है कि भारतीय संविधान की धारा 161 के अंतर्गत राज्य सरकार के पास अपराधियों को माफी देने का अधिकार है, लेकिन वह केंद्र पर इसकी जिम्मेदारी सौंप कर राजनीति कर रही है। करुणानिधि के अनुसार, ''तमिलनाडु सरकार की छुपी मंशा जो भी हो, उनकी रिहाई को काफी लटकाया जा चुका है, और केंद्र को अब इस मुद्दे पर मानवीय आधार पर विचार करना चाहिए।''
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कुछ समय पहले ही राज्य सरकार पर केंद्र की योजनाओं का सारा श्रेय बटोरने का आरोप लगाया था, उसके कुछ ही समय बाद जयललिता ने इस मामले पर अब गेंद मोदी सरकार के पाले में डाल दी है। वहीं राज्य विधानसभा में अपना खाता खोलने के बाद भाजपा राज्य में अपने कदम जमाने का जी-तोड़ प्रयास कर रही है। इसलिए यदि केंद्र इस मामले में तुरंत कोई फैसला नहीं लेता, तो तमिलनाडु सरकार भी इस विषय में निष्क्रिय ही रहेगी। एक राजनीतिक विश्लेषक के अनुसार, ''जयललिता वोट बटोरने में असमर्थ रहेंगी क्योंकि कुछ लोगों के लिए यह बहुत संवेदनशील विषय है।'' चूंकि अब चुनाव आयोग कभी भी चुनावों की घोषणा कर सकता है, इसलिए जयललिता ने यह कदम उठाया है।
हालांकि सवार्ेच्च न्यायालय में राजीव गांधी के हत्यारों के लिए किसी भी किस्म की छूट का विरोध कर केंद्र अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुका है। लिहाजा, राज्य सरकार जानती है कि केंद्र इस विषय पर कोई फैसला नहीं लेगा। उसका यह कदम द्रमुक-कांग्रेस के गठबंधन के बीच दरार पैदा करने का प्रयास भर है, क्योंकि यह मुद्दा भिन्न कारणों से लंबे समय से दोनों दलों के लिए संवेदनशील रहा है। द्रमुक के लिए यह मुद्दा ईलम तमिल समुदाय के साथ सहानुभूति रखने से जुड़ा है। इसलिए कांग्रेस व द्रमुक का इस मुद्दे पर किसी भी तरह की हड़बड़ी से बचना जरूरी होगा, जिसका लाभ अन्नाद्रमुक चुनाव अभियान में उठा सकती है। बेशक इससे दोनों दलों और द्रमुक के कार्यकर्ताओं के बीच कुछ ऊ हापोह की स्थिति भी बनी है। द्रमुक प्रमुख करुणानिधि पहले ही केंद्र से सातों की आजादी के लिए कह चुके हैं जबकि कांग्रेस का रुख इस मामले पर बिल्कुल उलट है। कांग्रेस राज्यसभा में इस मुद्दे पर स्थगन प्रस्ताव भी पेश कर चुकी है।
कांग्रेस के लोकसभा सांसदों ने इस मुद्दे पर केंद्र का जवाब मांगा था। केंद्रीय गृह मंत्री का कहना था कि वे दोषियों को छोड़ने के मामले मेें सवार्ेच्च न्यायालय के फैसले का पालन करेंगे। उन्होंने कहा था कि सरकार फैसले का आकलन करेगी। इस पर लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने फैसले का विरोध किया और उसे 'बेहद अफसोसजनक' बताया था। उनके अनुसार यदि दोषियों को छोड़े जाने का ऐसा अभ्यास शुरू हुआ तो अन्य राज्य भी ऐसी मांग करनी शुरू कर देंगे। उन्होंने कहा कि देश की एकता और अखंडता की खातिर यह कदम नहीं उठाया जाना चाहिए। राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद के अनुसार उनकी पार्टी तमिलनाडु सरकार के फैसले का विरोध करेगी। उन्होंने कहा, ''हम तमिलनाडु सरकार से एकमत नहीं हैं। सवार्ेच्च न्यायालय पहले ही इस मामले में विभिन्न संस्थाओं की अपीलेें खारिज कर चुका है और ऐसी किसी पहल को सहयोग करने का सवाल ही नहीं उठता।''
उधर राज्य में कांग्रेस के अलावा अन्य विपक्षी दलों ने केंद्र से सातों कैदियों को छोड़े जाने वाले राज्य सरकार के पत्र का समर्थन किया है। वहीं भाजपा की राज्य इकाई ने सातों दोषियों की सजा की अवधि पर, 'मानवीय दृष्टिकोण' अपनाने को कहा है।
द्रमुक नेता वैको के अनुसार, ''राज्य सरकार की सातों दोषियों को छोड़ने की कोई मंशा नहीं है।'' उनका आरोप है कि यह जयललिता सरकार का हथकंडा है और तमिल समाज को अंधेरे में रखने का खेल है। उनका कहना है कि राज्य सरकार सातों अपराधियों को छोड़ने से जुड़ा कोई बड़ा कदम नहीं उठाएगी और इस मुद्दे पर उसका कोई मानवीय रुझान भी नहीं है। वह हमेशा ही जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर थोपकर खुद पलायन करती रही है। वैको बताते हैं कि यदि जयललिता सातों कैदियों की आजादी चाहती हैं तो उन्हें मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर धारा 161 के अंतर्गत उनकी रिहाई का प्रस्ताव पारित करना चाहिए। उस प्रस्ताव को उन्हें राज्यपाल को सौंपना चाहिए। वैको के अनुसार, ''लोगों को समझना चाहिए कि यह राजनीतिक बढ़त लेने और उनकी आंखों में धूल झोंकने का खेल है।'' वे यह भी कहते हैं कि करुणानिधि ने भी सत्तासीन रहते हुए कभी सातों व्यक्तियों की आजादी के प्रयास नहीं किए थे।
अतीत में जब भी नलिनी, संतन, मुरुगन और पेरारिवलन ने दया याचिकाएं दायर कीं, तत्कालीन द्रमुक सरकार ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सहयोग के आधार पर नलिनी के प्रति दया जरूर दिखाई, लेकिन अन्य की याचिकाएं खारिज की थीं। एक अन्य ईलम समर्थक तथा विदुतलै चिरूथैरल (वीसी) के नेता तोल तिरुमवलवन के अनुसार सरकार के सामने धारा 161 के आधार पर सातों दोषियों को छोड़ने का विकल्प होने के बावजूद मुख्यमंत्री इस मामले में उदासीन हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव जी़ रामकृष्णन के अनुसार तमिलनाडु सरकार को सातों दोषियों को छोड़ने के लिए राज्य विधानसभा में पारित प्रस्ताव के साथ आगे आना चाहिए। राज्य सरकार द्वारा केंद्र को पत्र लिखे जाने की बात कह कर मुख्यमंत्री को जनता को धोखे में नहीं रखना चाहिए।
एक अन्य ईलम समर्थक दल पट्टाली मक्कल काट्ची (पीएमके) के संस्थापक डॉ़ एस़ रामादोस के अनुसार कांग्रेस और भाजपा में वैचारिक भिन्नता है, लेकिन सातों दोषी आजाद न हों, इस मसले पर वे एकमत हैं। यदि जयललिता चाहतीं तो मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर धारा 161 के अंतर्गत प्रस्ताव पास करतीं और उसे राज्यपाल को सौंपतीं। वहीं मनिथनेया मक्कल काट्ची ने केंद्र को लिखे गए पत्र की प्रशंसा की।
आपराधिक मामलों के एक वकील के अनुसार, ''कड़वा सच यह है कि आजाद भारत में शीर्ष नेतृत्व की हत्या या राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में पहले कभी जल्दी रिहाई या माफी नहीं दी गई है। इसलिए राज्य सरकार द्वारा इस समय रिहाई करना लगभग असंभव है। यदि अपराधियों को छोड़ा जाता है तो इससे गलत परंपरा शुरू होगी।'' इसलिए स्पष्ट है कि जयललिता ने जन-भावनाओं को उकसाकर राजनीतिक लाभ लेने के लिए यह कदम उठाया है। वहीं, दूसरी ओर राज्य सरकार को इससे चुनाव पूर्व द्रमुक-कांग्रेस के गठबंधन को बिखेरने और केंद्र की भाजपा सरकार को नीचा दिखाने का मौका भी मिलेगा। -टी. एस. वेकटेशन
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