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अंतरराष्ट्रीय स्तर के बांसुरीवादक पं. हरि प्रसाद चौरसिया देश विरोधी गतिविधियों से दु:खी हैं। वे इस मामले पर चुप रहना भी ठीक नहीं मानते। उनका कहना है कि कलाकार सामाजिक उथल-पुथल से अप्रभावित कैसे रह सकता है। देहरादून पधारे पं. हरिप्रसाद चौरसिया ने आज की स्थितियों-परिस्थितियों तथा पत्रकारिता के मानदंडों पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि संचार माध्यम उन मुद्दों को उठा रहे हैं जो समाज और राष्ट्र दोनों के लिये
हानिकर हैं।
सहिष्णुता-असहिष्णुता तथा जेएनयू में भारत विरोधी प्रकरण में कुछ राजनेताओं व मीडिया की भूमिका को वे सही नहीं मानते। संगीत के बड़े कार्यक्रम को अंदर के पन्नों में छोटी-सी जगह और हंगामा हो जाए तो उसे प्रथम पृष्ठ का समाचार बन जाने को वे गलत प्रवृत्ति मानते हैं।
पं. चौरसिया यहां 'म्युजिक फॉर द सोल' नामक कार्यक्रम को प्रोत्साहन देने व नई पीढ़ी को शास्त्रीय संगीत के प्रति जागरूक करने के लिए आयोजित कार्यक्रम में पधारे थे। इसमें युवा शास्त्रीय संगीत कलाकार रितेश और रजनीश ने पं. चौरसिया की बांसुरी की मधुर धुनों के साथ जुगलबंदी कर देहरादून के लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। -रतिनिधि
खारवेल राजाओं ने देश को एक किया
भुवनेश्वर – पांचवें राज्यस्तरीय इतिहास दिवस के अवसर पर 28 फरवरी को भुवनेश्वर में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। अ.भा. इतिहास संकलन समिति के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो. नारायण राव ने कहा कि अन्य राज्यों की तुलना में ओडिशा के खारवेल राजाओं की चेतना समृद्ध एवं स्पष्ट दिखाई पड़ती है।
भारतीय इतिहास में खारवेल राजाओं ने राष्ट्रीय एकता के लिए एक अद्भुत परंपरा शुरू की और इस योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।
मुख्य अतिथि उत्कल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. हिमांशु शेखर पटनायक ने ओडिशा की समृद्धि और सुन्दर अतीत के साथ-साथ राज्य की प्राचीन सांस्कृतिक परंपराओं की
चर्चा की।
भारतीय इतिहास संकलन समिति की राज्य इकाई के अध्यक्ष डा. दधिबामन मिश्र ने इतिहास संकलन योजना की स्थापना और दृष्टि पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर उत्कल संस्कृति विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. नरेन्द्र मिश्र सहित कई इतिहासकार और शोधार्थी उपस्थित थे। ल्ल विसंके, भुवनेश्वर
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