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फटाफट क्रिकेट का सबसे छोटा प्रारूप यानी टी-20 का छठा विश्वकप शुरू होने में कुछ ही दिन बाकी रह गए हैं। सभी टीमों ने अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। भारतीय उपमहाद्वीप की टीमें आजकल बंगलादेश में चल रहे एशिया कप में खेलकर अपनी क्षमता परख रही हैं। वैसे तो इस प्रारूप में एक ही जोड़ी मैच का नक्शा बदलने का माद्दा रखती है, पर ऐसा कभी-कभी ही होता है अन्यथा किसी भी टीम को सफलता पाने के लिए प्रदर्शन में एकजुटता दिखाना जरूरी होता है। भारत ने इस प्रारूप में अपनी जोरदार छवि बनाई है और उसे घर में खेलने का लाभ भी मिलेगा। इस कारण उसे खिताब जीतने का दावेदार माना जा रहा है। पर इस विश्वकप को लेकर एक सच धड़कनें बढ़ा रहा है और वह सच यह है कि इसमें सबसे मजबूत दावेदार टीम कभी चैंपियन नहीं बन सकी है।
'टीम इंडिया' की मजबूत दावेदारी
दक्षिण अफ्रीका में 2007 में जब टी-20 विश्वकप की शुरुआत हुई थी, तब किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि भारत चैंपियन बन जाएगा। इसमें कई वरिष्ठ खिलाड़ी नहीं गए थे, इसलिए महेंद्र सिंह धोनी की अगुआई में युवा टीम भेजी गई थी। वह टीम चैंपियन बनने में सफल हो गई। लेकिन इसके अगले चारों संस्करणों में भारत खिताब जीतने के दावेदार के तौर पर उतरा लेकिन कभी चैंपियन नहीं बन सका। पिछली बार श्रीलंका में हुए टी-20 विश्वकप में टीम इंडिया फाइनल में श्रीलंका से छह विकेट से हार गई थी। इस फाइनल में विराट कोहली ने 77 रन की पारी खेली थी, पर अन्य बल्लेबाजों का सहयोग नहीं मिलने पर वे अपने संघर्ष को अंजाम तक नहीं पहुंचा सके थे। महेंद्र सिंह धोनी की अगुआई वाली भारतीय टीम पिछले कुछ महीनों से इस प्रारूप में जिस तरह से खेल रही है, उससे यह लगने लगा है कि इसमें निश्चय ही चैंपियन बनने के तत्व मौजूद हैं। भारतीय टीम ने पहले आस्ट्रेलिया को टी-20 श्रृंखला में 3-0 से और फिर श्रीलंका को 2-1 से हराया। इसके बाद वह एशिया कप में शानदार प्रदर्शन करने में सफल रही।
भारतीय टीम की जान असल में रोहित शर्मा और विराट कोहली की जांबाज बल्लेबाजी है। इसके अलावा सुरेश रैना को भारतीय टीम में 'गेम चेंजर' खिलाड़ी माना जाता है। रैना कई बार टीम को मुश्किल समय में तारने की भूमिका निभा चुके हैं। लेकिन भारतीय विकेट पर खेलते समय टीम का ब्रह्मास्त्र तो रविचंद्रन अश्विन की अगुआई वाला स्पिन हमला ही रहने वाला है। वैसे देखा जाए तो अब 'होम एडवांटेज' जैसी कोई बात रही नहीं है, क्योंकि इस विश्वकप में खेलने वाले सभी प्रमुख खिलाड़ी किसी न किसी टीम से आइपीएल में खेलते रहे हैं। इस कारण वे सभी भारतीय विकेट के बारे में अच्छे से समझते हैं। लेकिन इस विकेट पर अश्विन और रविंद्र जडेजा जिस तरह की गेंदबाजी करते हैं, उसे समझना किसी के भी बस में नहीं है। साथ ही आशीष नेहरा और बुमरा की पैनी गेंदबाजी का जब फिरकी गेंदबाजों को सहयोग मिलेगा तो टीम चैंपियनों की तरह तो दिखेगी ही!
श्रीलंका और पाकिस्तान की चुनौती
भारतीय उपमहाद्वीप के ज्यादातर देशों में माहौल लगभग एक जैसा ही है और इस कारण श्रीलंका और पाकिस्तान फिरकी खेलने में महारत रखते हैं और टीम में बेहतरीन फिरकी गेंदबाज भी रहते हैं। श्रीलंका तो इस समय टी-20 में दुनिया की नंबर एक टीम भी है। भारत से शृंखला हारने वाली टीम में तिलकरत्ने दिलशान, एंजेलो मैथ्यूज और लसिथ मलिंगा के शामिल होने से टीम दमदार हो गई है। लेकिन एशिया कप के शुरुआती मैचों में वह अपना जलवा दिखाने में सफल नहीं रही है उसके लिए भारत से उसी के घर में पार पाना आसान नहीं होगा।
जहां तक पाकिस्तान की बात है तो वह पहले की तरह दमदार नहीं है। इस टीम की सबसे बड़ी कमजोरी बल्लेबाजी में गहराई न होना है। उनका तेज गेंदबाजी का हमला बहुत ही दमदार है पर लगता नहीं, भारत के सपाट विकेट पर उनकी भूमिका बहुत खास रहने वाली है। पाकिस्तान टीम को असल में मजबूत टीमों के खिलाफ खेलने के कम मौके मिलने की वजह से वह पिछड़ गई है।
आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका का दावा
इन दोनों टीमों की दुनिया की मजबूत टीमों में गिनती होती है। आस्ट्रेलिया भले ही पिछले दिनों भारत से शृंखला हार गया, पर उसमें वापसी करने का माद्दा है। इसी तरह दक्षिण अफ्रीका बहुत ही मजबूत टीम है और उसके पास दो खिलाड़ी ऐसे हैं कि वे यदि चल जाएं तो मैच का रुख खुद-ब-खुद मुड़ जाता है। वे हैं एबी डिविलिर्स। उन्हें छोटे प्रारूप का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी माना जाता है। इसी तरह डेल स्टेन दुनिया के बेहतरीन तेज गेंदबाज हैं। आमतौर पर वह छोटे प्रारूप में खेलते नहीं हैं पर विश्वकप जीतने के लिए उन्हें टीम में शामिल किया गया है और आइपीएल में खेलने की वजह से दोनों ही यहां के विकेट पर खेलने के अभ्यस्त हैं। इसी तरह आस्ट्रेलिया के पास आरोन फिंच, डेविड वार्नर और स्टीवन स्मिथ जैसे धाकड़ बल्लेबाज हैं। फिंच के नाम तो टी-20 में सर्वाधिक156 रन बनाने का रिकार्ड है। आस्ट्रेलिया के पास अच्छे फिरकी गेंदबाजों की कमी है तो दक्षिण अफ्रीका के ऊपर 'चोकर्स का टैग' हटाने का दबाव है। देखते हैं दोनों टीमें अपने अभियान को किस तरह आगे बढ़ाती हैं!
इनमें भी है दम
टी-20 क्रिकेट में जब भी विस्फोटक अंदाज वाले खिलाडि़यों की बात चलती है तो पहला नाम क्रिस गेल का आता है। गेल के बारे में यह कहा जाता है कि वह जब अपने पूरे रंग में खेल रहे हों तो किसी भी मजबूत टीम का बोरिया बिस्तर बंधवा सकते हैं। गेल के सहयोग के लिए वेस्ट इंडीज टीम में ड्वेन ब्रावो शामिल हैं। लेकिन सुनील नरेन और किरोन पोलार्ड की अनुपस्थिति ने टीम को कमजोर कर दिया है। इसी तरह इंग्लैंड और न्यूजीलैंड भी मजबूत टीमें हैं, लेकिन इन दोनों ही टीमों की दिक्कत भारतीय विकेट पर फिरकी को ढंग से नहीं खेल पाने की है। न्यूजीलैंड टीम में इस प्रारूप के बेहतरीन खिलाड़ी मैकुलम की कमी जरूर खलेगी। -मनोज चतुर्वेदी
पहली बार महिला अंपायर
इस टी-20 विश्वकप में पहली बार दो महिला अंपायर मैचों का संचालन करती नजर आएंगी। ये हैं न्यूजीलैंड की कैथलीन क्रास और आस्ट्रेलिया की क्लेयर पोलोसक। आइसीसी द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक कैथलीन क्रास 16 मार्च को पाकिस्तान और बंगलादेश के बीच खेले जाने वाले महिला मैच में भारतीय अंपायर अनिल चौधरी के साथ मैच का संचालन करके इतिहास रचेंगी। वहीं पोलोसक 18 मार्च को मोहाली में न्यूजीलैंड और आयरलैंड मैच में विनीत कुलकर्णी के साथ अंपायरिंग करेंगी।
यह है प्रारूप
आठ मार्च से शुरू हो रहे इस टी-20 विश्वकप में कुल 16 टीमें भाग ले रही हैं। इन टीमों को दो वर्गों में रखा गया है। कम रैंकिंग वाली आठ टीमों और सहयोगी सदस्यों को दो समूहों- ए और बी-में बांटा गया है। समूह ए में बंगलादेश, आयरलैंड, नीदरलैंड और ओमान को और समूह बी में अफगानिस्तान, हांगकांग, स्कॉटलैंड और जिम्बाब्वे को रखा गया है। प्रत्येक समूह की विजेता टीम सुपर दस के समूहों में शामिल होगी। सुपर दस की टीमों को दो समूहों में बांटा गया है। समूह एक में इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, वेस्ट इंडीज और समूह बी की विजेता टीम। इसी तरह समूह दो में आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, भारत, पाकिस्तान और समूह ए की विजेता टीम को रखा गया है। प्रत्येक ग्रुप में पहले दो स्थानों पर रहने वाली टीमें 30 और 31 मार्च को खेले जाने वाले सेमीफाइनल में खेलेंगी। फाइनल तीन अप्रैल को खेला जाएगा।
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