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अंक संदर्भ- 7 फरवरी, 2016
आवरण कथा 'खुलासे से खलबली' से स्पष्ट होता है कि जो फाइलें भारत सरकार ने सार्वजनिक की हैं उनके आने से नेताजी के बारे में दबे रहस्य सामने आएंगे। इन फाइलों के आने के बाद से कुछ दल परेशान दिख रहे हैं। तो ये तो होना ही था। वे परेशान इसलिए हैं क्योंकि उन्हें पता है कि उनके कारनामें तथ्यों के साथ देश के सामने होंगे। देश सुभाषचन्द्र बोष की मृत्यु के रहस्य को जानना चाहता है। आज इतने बरस बाद भी देश के लोगों को विश्वास नहीं है कि नेताजी की मृत्यु विमान दुर्घटना में हुई थी। खैर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेताजी के छिपे इतिहास को देश के सामने लाने का प्रयास किया है। इसके लिए सभी देशवासी उनके आभारी हैं।
—अनूप वर्मा, बांदा (उ.प्र.)
ङ्म नेताजी सुभाषचन्द्र बोस से जुड़ी फाइलों के सार्वजनिक होने से पारदर्शी प्रशासनतंत्र में एक नयी उम्मीद जगी है। अरसे से देश की जनता इन फाइलों के सार्वजनिक होने की प्रतीक्षा कर रही थी। उसे अब उम्मीद है कि जो सत्य अभी तक नहीं आ पाया है, वह आ जायेगा।
—कृष्णकान्त, शिवपुरी, इलाहाबाद (उ.प्र.)
इन्हें लज्जा क्यों नहीं आती?
रपट '… तिरंगा फहराने पर चिढ़े कट्टरपंथी' (7 फरवरी, 2016) संकीर्ण मानसिकता से प्रेरित लोगों की करतूत है। उन्हें शर्म आनी चाहिए कि जिस तिरंगे पर सारा देश गौरव करता है, उसको फहराने से वे रोक रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार को ऐसे लोगों को चिन्हित करके कार्रवाई करनी चाहिए। भारत ही ऐसा देश है जहां इस प्रकार की घटना को मूक बनकर देख लिया जाता है और बिना कार्रवाई के उन्हें छोड़ दिया जाता है। लज्जा आनी चाहिए ऐसे लोगों को।
—मलय बाबा, जलालपुर, अम्बेडकर नगर (उ.प्र.)
पूर्वाग्रह की पराकाष्ठा
'दुराग्रह के सदाबहार सुर' (7 फरवरी, 2016) चौथा स्तंभ में मीडिया पर सही विश्लेषण किया है। मीडिया में एक ऐसा वर्ग है जो सदैव पूर्वाग्रह से ग्रसित रहता है। मौका मिलते ही अपनी भड़ास निकालने लगता है। सच दिखाने और किसी का पक्ष न लेने का दावा करने वाला मीडिया मौका मिलते ही इन सब नैतिकताओं को भूल जाता है। रोहित वेमुला के केस में मीडिया एक पक्ष को देश के सामने रखकर समाज को दिग्भ्रमित करता है पर दूसरे पक्ष को न वह स्वयं जानने की कोशिश करता है और न ही देश से परिचित कराता है। मीडिया से देश को आशा रहती है कि वह तथ्यों के साथ सत्यता को लाए। किसी भी प्रकार का दवाब उस पर क्यों न हो वह सत्य से पीछे न हटे। पर शायद ऐसा बहुत कम ही बार दिखाई देता है। मीडिया पर प्रश्न चिन्ह न लगे इसके लिए मीडिया को अपने आप को सिद्ध करना होगा।
—हरिहर सिंह, इंदौर (म.प्र.)
बांटने की राजनीति
रपट 'दरार का ओवैसी करार' (7 फरवरी, 2017) समाज को बांटने की एक चाल है। ओवैसी जैसे लोग मौका मिलते ही अपनी राजनीति चमकाने लगते हैं। अपनी राजनीति चमकाने के लिए वे मुसलमान और दलितों की एक जैसी समस्या का शिगूफा छोड़ते हैं और हिन्दू समाज को बांटते हैं। आज इन्हीं सब कारणों से हिन्दू समाज दिन-प्रतिदिन बिखर रहा है। बिखरते समाज के लिए कहीं न कहीं हमारा अपना ही समाज जिम्मेदार है। अभी भी बहुत से स्थानों पर वंचित समाज के साथ गलत व्यवहार किया जाता है। पास बैठने से लेकर पीने के पानी तक में छुआछूत का भाव होता है। इनके प्रति अपनापन जताने में शर्म महसूस होती है। इसी कारण से ये अपने को समाज से अलग समझते हैं । बस यहीं से ईसाई मिशनरी और ओवैसी जैसे लोगों की राजनीति चल निकलती है और वंचित समाज के लोग इनके शिकार में फंस जाते हैं। हमारा वंचित समाज इनकी कुटिल चालों का शिकार न बनें इसके लिए समाज को रूढि़वादिता त्यागनी होगी और जात-पात भूलकर इन्हें गले से लगाना होगा।
—अश्वनी जागड़ा, रोहतक (हरियाणा)
ङ्म रोहित वेमुला की आत्महत्या पर कुछ नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए बड़े ही उतावले दिखे। राहुल गांधी मौका मिलते ही उनके अभियान का हिस्सा बन गए और एक दिन का धरना प्रदर्शन भी कर दिया इस दौरान उन्होंने जी भरकर मोदी सरकार को कोसा। पर सवाल उठता है कि राहुल को मालदा जाने का समय क्यों नहीं मिला? क्या मालदा में किसी के साथ अन्याय नहीं हुआ? असल में राहुल और ओवैसी वेमुला के बहाने वोट बैंक बटोरने के लिए अस्थिरता उत्पन्न कर रहे हैं। देश को ऐसे नेताओं की चाल को समझना चाहिए।
—अवतार सिंह, जालंधर (पंजाब)
ङ्म मजहबी उन्माद और कट्टरता का जो विष देश और समाज में फैल रहा है, उस खतरे को न केवल पहचानना है बल्कि उस विषबेल को खत्म करना है। कुछ लोग देश में जानबूझकर इस तरीके का माहौल बना रहे हैं जो शर्मनाक है। दादरी और वेमुला की घटना पर विलाप करने वाले लोगों को मालदा नजर नहीं आता, जब एक लाख से ज्यादा कट्टरपंथियों ने सड़कों पर उतर कर उन्माद मचाया। इन घटनाओं पर कोई सेकुलर क्यों नहीं बोलता?
—मनोहर मंजुल, प.निमाड (म.प्र.)
ङ्म इसमें कोई संदेह नहीं कि आज पूरा देश वैचारिक राजनीति के दो भागों में बंटता जा रहा है। एक वह है जो राष्ट्र के साथ खड़ा होकर मोदी की नीतियों को सराह रहा है तो वहीं दूसरा पक्ष नरेन्द्र मोदी को असफल सिद्ध करने के लिए देश में हुई किसी भी घटना को उनसे जोड़ देता है और राजनीति शुरू कर देता है। पर ऐसी राजनीति को जनता समझती है।
—हरीराम, रतलाम (म.प्र.)
प्राथमिक शिक्षा की गिरती साख
आए दिन सरकारी विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था और यहां के बच्चों की पढ़ाई की बद्तर हालत हमारे सामने आती ही रहती है। आज जब देश 21वीं सदी में विश्व के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा है वहीं अभी हमारे नौनिहाल सरकारी विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन के जुगाड़ में अपना समय जाया कर रहे हैं। वे इससे आगे का सोच ही नहीं पा रहे। कुछ विद्यालयों की बात छोड़ दी जाये तो कमोबेश अधिकतर सरकारी विद्यालयों की हालत बहुत ही खराब है। इन विद्यालयों के छठी कक्षा के बच्चे से सात और 13 का पहाड़ा भी ठीक से नहीं सुना सकते। यह हालत उनके समग्र पढ़ाई को बताने के लिए काफी है। सरकारों को बहुत जल्द ही स्कूली शिक्षा पर ध्यान देना होगा क्योंकि इन स्कूलों में गांव के बच्चों की एक बड़ी संख्या पढ़ती है। इसलिए इनके विकास से ही हमारे देश का विकास जुड़ा है।
—तृप्ति गोलछा, रायपुर (छ.ग.)
ये नहीं सुधरेंगे!
रपट 'चूक से चूके' (11 जनवरी, 2016) पाकिस्तान की कायराना हरकत को दर्शाता है। पाकिस्तान हर बार यही कहता है कि हम भारत के खिलाफ आतंक फैलाने वालों को नहीं छोड़ेंगे। पर उसका कहा हर बार झूठा साबित होता है। पठानकोट हमले के इतने दिन बाद भी उसके द्वारा जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। भारत को आतंकी हमलों और सीमा पर होती घुसपैठ पर कड़ाई से पेश आना होगा। देश का हर व्यक्ति आए दिन होती ऐसी घटनाओं से आक्रोशित है।
राममोहन चन्द्रवंशी, हरदा (म.प्र.)
चुनौती इनसे निपटने की
रपट 'लड़ाई लाल आतंक से' (31 जनवरी, 2016) से स्पष्ट होता है कि आज नक्सलवाद देश के लिए नासूर बनता जा रहा है। आए दिन कई राज्यों में नक्सलवादी सरकार को चुनौती देते हैं और हमारे ताने-बाने को नष्ट करते हैं। इतना सब होने के बाद भी आज तक इस भयावह समस्या के लिए कोई खास रणनीति नहीं बन पाई है। कहीं न कहीं इस समस्या के पीछे हमारी सरकारों का हाथ रहा है। उन्होंने कभी पूरे मनोयोग से चाहा ही नहीं कि यह समस्या सुलझे। सिर्फ वोट के लिए इन्होंने राजनीति की। हकीकत यह है कि जिन क्षेत्रों में आज नक्सलवाद समस्या व्याप्त है वह सभी क्षेत्र विकास से कोसों दूर हैं। इसी कारण से ये क्षेत्र नक्सलवाद को बढ़ावा देते हैं। अगर इस समस्या को सुलझाना है तो उन क्षेत्रों में विकास करना होगा जहां नक्सलवाद फलफूल रहा है। देश के विकास की मुख्यधारा से उन्हें जोड़ना होगा। जिस दिन ऐसा होगा स्वत: ही देश में शान्ति स्थापित हो जाएगी और काफी हद तक इस समस्या से निजात भी मिल जाएगी।
—हरिओम जोशी, चतुर्वेदी नगर, भिण्ड (म.प्र.)
हिन्दुत्व एक सम्प्रदाय नहीं दर्शन है!
सनातन धर्म मानव जगत के कल्याण की कामना करता है। यही एक ऐसा मार्ग है जहां विविध मत-संप्रदायों के लोगों को बिना किसी भेदभाव और वर्जना के अपने में समाहित कर लेता है। हिन्दुत्व ही है जहां अपने बनाये नियमों को चुनौती देने, समय के हिसाब से परिवर्तन करने की आजादी है। पर अन्य मत-संप्रदाय में ऐसा नहीं है। अन्य मत-संप्रदायों में अगर सैकड़ों वर्षों पहले बनाए गए नियमों को कोई चुनौती देता है तो उसका हश्र क्या होता है, इसे कई बार समाज ने देखा है। इन्ही बातों को देखते हुए विश्व के महान विचारकों और दार्शनिकों ने हिन्दुत्व की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णनन ने कहा था कि ''हिन्दू धर्म किसी पद्धति, पुस्तक अथवा पैगम्बर से नहीं बना है बल्कि यह निरंतरता के आधार पर सत्य की खोज है।''
अत: यह एक संप्रदाय नहीं अपितु भारत भूमि में उपजे अनेक संप्रदायों का समुच्चय है। समय-समय पर विश्व में अनेक मत-संपद्रायों के व्यक्तियों ने अपने अहं की संतुष्टि, अपनी श्रेष्ठता, जात-पात, वर्गभेद आदि से हिन्दुत्व को खंडित करने का दुस्साहस किया। यहां तक कि आलोचना तो की ही साथ ही इसके सिद्धांतों, मूल्यों और आदर्शों को संप्रदाय विशेष की संज्ञा देकर समाज को भ्रमित करने की चेष्टा की। पर ऐसे लोग अपनी संकुचित दृष्टिकोण और एकांगी सोच के कारण अतीत के गर्भ में विलीन हो गए। विश्व में सिर्फ हिन्दू धर्म ग्रन्थ ही ऐसा कहते हैं-'माता भूमि पुत्रोहं पृथिव्याम' अर्थात पृथ्वी मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूं। सहिष्णुता और उदारता हिन्दू चिंतन का विशेष गुण है। आज देश में जो भयावह स्थिति बनी है, उस स्थिति को सिर्फ हिन्दुत्व के दर्शन से ही सुलझाया जा सकता है। इसलिए देश के लोगों को हिन्दुत्व के दर्शन को समझना चाहिए और उसके बताये मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।
—डॉ.गिरीश दत्त शर्म, 4/82 चौटाला रोड, वार्ड न. 23 ,संगरिया (राज.)
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