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60 वर्ष पहले पाञ्चजन्य के पन्नों से
पं. दीनदयाल उपाध्याय की स्पष्टोक्त्
(निज प्रतिनिधि द्वारा)
बम्बई। ''देश में हुई अशांति के लिए कांग्रेस तथा केन्द्रीय शासन उत्तरदायी है। कारण कि कांग्रेस और शासन ने राज्यपुनर्गठन संबंधी निर्णय अपने दल-हित को विचार में रखते हुए किये हैं। ऐसे प्रश्न पर उन्हें गोलमेज सम्मेलन बुलाना चाहिए था। क्या कांग्रेस को सुदृढ़ बनाने के लिए हर पांचवें वर्ष राज्यपुनर्गठन होगा? कांग्रेस से त्रुटि हुई है, अत: उसे साहस के साथ अपनी त्रुटि को सुधार भी लेना चाहिए।'' ये शब्द अ.भा. जनसंघ के महामंत्री पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने राज्यपुनर्गठन की समस्या पर विचार व्यक्त करते हुए स्थानीय जनसंघ कार्यकर्ताओं के समक्ष कहे।
आपने भाषण प्रारंभ करते हुए कहा, ''आयोग के समक्ष जनसंघ द्वारा एकात्मक शासन की मांग की गई थी। इसी के साथ राज्य पुनर्गठन के संदर्भ में कुछ सिद्धांत भी प्रस्तुत किये गए थे। उसमें एक सिद्धांत यह भी था कि एक भाषा-भाषी क्षेत्र दो हिस्सों में विभाजित नहीं किया जाना चाहिए, परंतु आयोग ने विदर्भ (मराठी भाषाभाषी) रहित द्विभाषी बंबई राज्य (महाराष्ट्र-गुजरात) की सिफारिश की। यह उसकी भूल थी। हमने साधारणत: आयोग के प्रतिवेदन का स्वागत ही किया। कई महानुभावों ने तो यहां तक कहा कि यह प्रतिवेदन तो मोटे तौर पर जनसंघ की सिफारिश के अनुसार ही तैयार किया गया है।''
पं. उपाध्याय ने बताया कि ''देश में हुए उपद्रवों से 'एकात्मक-शासन' की मांग बढ़ती जा रही है। यह झगड़ों से पलायनवाद की नीति है। हमने पूर्व से ही इस मांग पर क्रियात्मक विचार करते हुए देश का रचनात्मक चित्र अपने समक्ष रखा था। हाल ही में हमने एक प्रस्ताव द्वारा शासन से मांग की है कि 'संघ राज्य' एवं 'राज्य' के स्थान पर क्रमश: 'केन्द्रीय शासन' और 'प्रदेश' का प्रायोग किया जाना चाहिए। यह एकात्मक शासन की ओर एक कदम होगा। साथ ही इसके प्रयोग से कुछ समस्याओं का भी निराकरण हो जाएगा।''
श्री नेताजी 'जापानी कठपुतली' थे
पाक-लेखक द्वारा भारतीय नेताओं के विरुद्ध कुप्रचार
षड्यंत्र में इंग्लैण्ड का हाथ?
(निज प्रतिनिधि द्वारा)
दिल्ली। संसार की साम्राज्यवादी शक्तियों से साठ-गांठ कर पाकिस्तान भारत के विरुद्ध किस प्रकार द्वेषपूर्ण भावना का प्रचार कर रहा है, इसका जीता-जागता उदाहरण ग्रेट ब्रिटेन द्वारा प्रकाशित वह पुस्तक है, जिसमें भारत के नेताओं को भ्रामक और निराधार प्रचार द्वारा बदनाम करने का कुप्रयास किया गया है।
सन् 1942 ई. में जब नेताजी सुभाषचन्द्र बोस और उनकी आजाद हिन्द सेना अंग्रेजों को भारत से बाहर करने के प्रयासों में लगी हुई थी, उस समय इस पुस्तक के लेखक श्री महमूद खां दुर्रानी अंग्रेज नौकरशाही को सहायता दे रहे थे और उसके उपलक्ष्य में उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य का सर्वोच्च पुरस्कार ''जार्ज क्रास'' प्रदान किया गया था। ग्रेट ब्रिटेन से उक्त पुस्तक का प्रकाशन तथा पाकिस्तान की इंग्लैंड, अमेरिका आदि साम्राज्यवादी शक्तियों से साठ-गांठ की वर्तमान नीति से निश्चित हो जाता है कि उक्त पुरस्कार के प्रति आभार प्रदर्शित करने के उद्देश्य से श्री दुर्रानी ने पुस्तक की रचना की है।
श्री दुर्रानी मलाया में जापानियों द्वारा कैदी बनाए गए थे और लगभग 13 माह तक उन्हें कैद में भी रहना पड़ा था। गिरफ्तार होने के पूर्व मलाया में रहते हुए वे जापानी सेना से संबंधित समाचार गुप्त रूप से अंग्रेजों को दिया करते थे। उस समय वे पेनांग स्कूल में अध्यापक थे, जहां वे मुसलमान विद्यार्थियों को पंचमांगी बनाने का भी कार्य किया करते थे। इसी द्रोह के कारण जापानियों द्वारा उन्हें अनेक यातनाएं दी गईं, परंतु उन्होंने यातणाओं का आरोप भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम के अमर सेनानी श्री नेताजी सुभाषचंद्र बोस तथा उनकी आजाद हिन्द सेना पर थोपने का निर्लज्ज प्रयास किया है।
कर्नल दुर्रानी का कहना है कि नेताजी की आज्ञानुसार आजाद हिन्द सेना के सिपाहियों ने उन्हें कोड़ों से पीटा और लोहे के तारों से उनके हाथ-पैरों को बांधकर एक कमरे में डाल दिया था। उनके कथनानुसार, 13 महीने बाद जब वे जापानियों द्वारा मुक्त किए गए, तब वे हृदय रोग से पीडि़त थे तथा उनके निर्बल और अशक्त शरीर में देखने और सुनने की शक्ति भी नहीं रही थी। मार्च सन् 1947 ई. में भारत के तत्कालीन वाइसराय लार्ड वेवेल ने दुर्रानी को उनकी स्वामी भक्ति के पुरस्कार स्वरूप 'जार्ज क्रास' देने की सिफारिश की थी।
दिशाबोध
राष्ट्र सर्वश्रेष्ठ है, संस्था नहीं
''सत्ता सामान्यत: भ्रष्ट करती है। इस संबंध में पूरी दक्षता बरतने के बाद भी जनसंघ में यदि भ्रष्टाचार आ जाता है तो हम उसे विसर्जित कर दूसरे जनसंघ का निर्माण करेंगे और उससे भी काम न बना तो तीसरे जनसंघ का निर्माण करेंगे। और यही क्रम चलता रहेगा। भगवान परशुराम ने 21 बार राजाओं का संहार किया था। आदर्श राजा के रूप में अंत में रामचंद्र सामने आये। रामराज्य की स्थापना के बाद परशुराम ने वन की ओर प्रस्थान किया। हम भी अपने द्वारा निर्मित संस्थाओं के बारे में मोह क्यों रखें? छोटा बच्चा गाजर के साथ खेलता रहता है और जब खिलौने के रूप में उसका उपयोग समाप्त हो जाता है तो उसे खा डालता है। अपने ही हाथों से निर्मित संस्था भी जब राष्ट्रहित के विरोध में कार्य करेगी तो ऐसी स्वनिर्मित संस्था का विनाश करना धर्म ही होता है। राष्ट्र सर्वश्रेष्ठ है, संस्था नहीं।''
-पं. दीनदयाल उपाध्याय (पं. दीनदयाल उपाध्याय विचार-दर्शन खण्ड-1, पृष्ठ संख्या-16)
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