सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगविकास के वाहक
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सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगविकास के वाहक

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Feb 22, 2016, 12:00 am IST
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दिंनाक: 22 Feb 2016 13:00:58

केन्द्र सरकार मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं के जरिए भारत को उत्पादन का गढ़ बनाने में लगी है। इससे बड़े उद्योग तो आगे बढ़ने की राह पकड़ चुके हैं, साथ ही साथ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों में भी एक आस जगी है    

इस समय जब मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत करोड़ों डॉलर और उच्च स्तरीय निवेश पर बहुत ध्यान दिया जा रहा है, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग विकास के असली वाहक साबित हो रहे हैं। आज की वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों में भारत के मूल्यों से जुड़े इस उद्योग ने पिछले कुछ वषोंर् के दौरान 10 प्रतिशत से ज्यादा विकास दर दर्ज कराई है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद में 8 प्रतिशत और कुल निर्यात और विनिर्माण उत्पादन में 45 प्रतिशत योगदान है, जो सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र को देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण तत्व बनाता है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र के चौथे अखिल भारतीय सर्वेक्षण के मुताबिक सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र की 361़ 76 लाख इकाइयों में से 15़ 64 लाख इकाइयां पंजीकृत हैं। यह भी दर्ज किया गया है कि यह क्षेत्र 805़ 24 लाख लोगों को रोजगार देता है। देश के सकल घरेलू उत्पाद में 38 प्रतिशत, कुल निर्यात में 40 प्रतिशत और विनिर्माण में 45 प्रतिशत के योगदान से यह समझा जा सकता है कि यह क्षेत्र भारत की आर्थिक पुनर्रचना में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कई तरह की सेवाएं उपलब्ध कराने के अलावा यह क्षेत्र पारंपरिक से लेकर उच्च तकनीक आधारित 6,000 उत्पाद उपलब्ध कराता है। राजस्थान के प्रस्तावित सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र तकनीक केंद्र और हर राज्य के सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र विकास इंस्टीट्यूट (एमएसएमईडीआई) इस क्षेत्र की पुनर्रचना के लिए की गई सांस्थानिक पहल है। इन कार्यक्रमों के जरिए ऑटोमोबाइल, जनरल इंजीनियरिंग, यंत्र निर्माण, धातु को काटने, कंम्प्यूटर की सहायता से कटिंग, डिजाइनिंग और मैन्यूफैक्चरिंग, इंडस्ट्रियल प्रोसेस आटोेमेशन, खाद्य प्रसंस्करण, सौर ऊर्जा आदि क्षेत्रों में बेहतर नतीजे देखे जा रहे हैं। इसके अलावा यह  क्षेत्र सुरक्षा और अंतरिक्ष तकनीक में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र ने भारत के मंगलयान (जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान का अब तक का देश का पहला अंतरग्रहीय अंतरिक्ष मिशन) अतिरिक्त इस क्षेत्र के अन्य अंतरिक्ष उपग्रह चंद्रयान के लिए भी महत्वपूर्ण उपकरण उपलब्ध कराए हैं। यह तथ्य सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र के आकार, तकनीकी के स्तर, उत्पादों का दायरा, उपलब्ध कराई जाने वाली सेवाएं और लक्षित बाजार का परिचायक है।
वर्तमान सरकार की पहल ने निश्चित ही इस विकास गाथा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके बावजूद सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र के प्रतिनिधि का कहना है कि मेक इन इंडिया के सपने को साकार करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना है। इस उद्योग के लिए आसान कर्ज उपलब्ध कराने के लिए 2015 में इंडिया एस्पायरेशन फंड (आईएएफ), साफ्ट लोन फंड फॉर माइक्रो, स्माल एंड मीडियम इंटरप्राइजेस (एसएमआईएलई) आदि की शुरुआत की गई, जिनका मकसद आसान शतोंर् पर क्वासी इक्विटी और आसान किश्तों पर मियादी कर्ज उपलब्ध कराना था। इनके अलावा माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट बैंक एंड रिफाइनेंस एजेंसी (एमयूडीआरए) की पहल भी इस उद्योग के लिए आशा की किरण लेकर आई है। 'स्टार्ट अप इंडिया' कार्यक्रम में उद्यमिता और रोजगार निर्माण को बढ़ावा देने की क्षमता है। जैसा कि सीआईआई के पश्चिम महाराष्ट्र इकाई के प्रमुख और किलार्ेस्कर ब्रोज के प्रबंध निदेशक संजय किलार्ेस्कर ने आयोजकों से कहा, ''इस समय सरकार इस मोर्चे पर जो कर रही है, उसे देखते हुए भारत निश्चित ही जल्दी विनिर्माण में अगुआ की भूमिका में आएगा।'' उन्होंने कहा कि 250 साल पहले भारत विनिर्माण के क्षेत्र में सबसे आगे था। हमारे पास हर क्षेत्र में तकनीक और कौशल था और यह देशभर में फैला हुआ था। गांव विनिर्माण के केंद्र थे। दुनियाभर से लोग यहां कलात्मक और कौशलयुक्त उत्पादों के लिए आते थे।
वर्तमान सरकार की नीतियों में विश्वास प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि कि ये नीतियां पारंपरिक विनिर्माण क्षमता के साथ मिलकर भारत की विनिर्माण क्षमता को स्थापित करेंगी और फिर भारत को विश्व नेता बनाएंगी। इस मंजर को साकार करने के लिए उन्होंने इस बात पर बल दिया कि दुनियाभर से निवेश को आकर्षित किया जाए और हमारी नवीन क्षमता को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित किया जाए। उन्होंने याद दिलाया कि हालांकि बड़े उद्योग बड़े पैमाने पर निवेश लाते हैं लेकिन वे अक्सर कल-पुजार्ें और सहायक कामों के लिए लघु और मध्यम उद्योगों पर निर्भर होते हैं। इस तरह से रीढ़ माने जाने वाले इस उद्योग में विकेन्द्रित निवेश उतना ही महत्वपूर्ण है। लघु उद्योग भारती के अध्यक्ष ओ़ पी़ मित्तल कहते हैं, ''सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र के लिए वित्तीय सहायता अब भी एक समस्या है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र के लिए ब्याज की दर कम रहे।  यदि आवास कर्ज और कार कर्ज की दरें कम हो सकती हैं तो सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र के लिए कर्ज की दरें कम क्यों नहीं हो सकतीं।'' उनके मुताबिक 'नन परफोमिंर्ग एसेट्स' के लिए  बडे़ उद्योगपति सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। इसके बावजूद बैंक उनको कर्ज देते हैं। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग सबसे ज्यादा कर्ज लौटाते हैं इसके बावजूद बैंक उनकी मदद करने से झिझकते हैं। हम सरकार से अपील करते हैं कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र के लिए कृषि क्षेत्र जितनी ही ब्याज दर रखे। राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम के अध्यक्ष और  प्रबंध निदेशक रविन्द्रनाथ कहते हैं, ''हम अच्छे समय की तरफ बढ़ रहे हैं, खासकर व्यवसाय की बाधाएं और अवरोधों को हटाने  तथा प्रधानमंत्री की उस सोच के साथ, जो  भारत में व्यवसाय को आसान और   सरलीकरण करना चाहती है।''
युवा उद्यमी हेमलता ने ई बाइक्स की संकल्पना में क्रांति ला दी है, अपने एम्पीयर वीकल्स प्राइवेट लिमिटेड के जरिये। वे कहती हैं, ''मेक इन इंडिया के लिए भारत में पहले खनन करना होगा। दो धातुएं, चुंबक के लिए नियो जाईिमयम और बैटरी के लिए सीसा अब भी भारत में उपलब्ध हैं। चीन इन धातुओं की आपूर्ति मेंं विश्व में अगुआ है। इसलिए दाम घटते-बढ़ते रहते हैं। यदि भारत इन धातुआंे को खोज नहीं सकता तो सामूहिक सौदेबाजी के जरिये स्थायी भाव पर हासिल करने में सरकार को मदद करनी चाहिए।''
 बिहार जैसे राज्य में आईटी शिक्षा और प्रशिक्षण में क्रांति लाने वाले प्रभात कुमार सिन्हा कहते हैं, ''हाई ब्रिड एनर्जी समाधान अन्य सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र के लिए मॉडल हो सकते हैं।'' उन्होंने राज्य सरकार के 2,000 स्कूलों में तकनीक अंगीकृत करने में मदद की है। गत्यात्मकता और विविधता के साथ इस क्षेत्र ने बदलती आर्र्थिक स्थितियों में टिके रहने के लिए काफी लचीलापन दिखाया है। यदि सरकार अपनी नीतियों के द्वारा मदद करे और जमीन पर नीतिगत पहलों को मूर्त रूप लेने दे तो सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र में रोजगार सृजन की क्षमता है।  उसकी पूंजी और तकनीक की आवश्यकता भी कम है। ग्रामीण क्षेत्र के औद्योगिक विकास में पारंपरिक कौशल और स्थानीय स्रोतों और क्षमता के उपयोग के कारण वह भारत के गौरवशाली विकास के वाहक बन सकते हैं।

प्रमोद कुमार/ अरुण कुमार सिंह    

 

दिव्यांगों को  दिए पांव
ऑस्ट्रिच मोबिलिटी इंस्ट्रूमेंट्स
उत्पाद : व्ह्ील चेयर

600 करोड़्नरु. सालाना कारोबार
समाज की किसी समस्या पर लोग दुनियाभर की चिन्ता जाहिर करते हैं, लेकिन बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जो उस समस्या के समाधान का संकल्प लेते हैं। ऐसे संकल्पी लोगों में से एक हैं हरि वासुदेवन। एम.टेक. करने के बाद 2007 में उन्होंने विकलांग लोगों के जीवन को सहज बनाने के लिए काम करने का फैसला लिया। जो कुछ पढ़ा, उसे धरालत पर उतारने के लिए उन्होंने बैंक की मदद से बेंगलुरू में ऑस्ट्रिच मोबिलिटी इंस्ट्रूमेंट्स नामक कम्पनी की शुरुआत की। यह कम्पनी विकलांगों के लिए 10 प्रकार की पहिए की कुर्सी (व्ह्ील चेयर) बनाती है। इनमें से आठ इलेक्ट्रानिक और दो मैनुअल हैं। लगभग 600 करोड़ का वार्षिक कारोबार करने वाली इस कम्पनी की एकमात्र इकाई बेंगलुरू में है और यहां 50 लोग काम करते हैं। इसकी पूरे भारत में फ्रेंचाइजी शॉप हैं। वासुदेवन कहते हैं, ''आप जो कुछ भी करें, पूरी मेहनत और समर्पण के साथ करें। इससे दो फायदे होंगे एक, आप में कुछ कमी होगी तो वह छिप जाएगी या लोग आपकी कमी की ओर ध्यान नहीं देंगे। दूसरा, आपको कामयाबी जरूर मिलेगी।''
वासुदेवन के यही विचार आज उन्हें सफलता के शिखर पर पहुंचा चुके हैं।

बिजली से तेज चाल
उत्पाद : डेस्कटॉप शेयरिंग टेक्नोलॉजी का विस्तार
आर्या हाई-टेक एनर्जी
100 करोड़्नरु. सालाना कारोबार

कुछ लोग धुन के इतने पक्के होते हैं कि  आने वाली हर बाधा को पार कर अपनी राह बना लेते हैं। कुछ ऐसा ही किया है प्रभात कुमार सिन्हा ने। वे आज खुद एक कम्पनी के मालिक हैं और लगभग 100 लोगों को रोजगार भी मुहैया करा रहे हैं। उनकी कम्पनी का सालाना कारोबार  100 करोड़ रु. है।
बात 1991 की है। उन्होंने कम्प्यूटर साइंस में एम. टेक. की उपाधि लेने के बाद नौकरी नहीं करने का फैसला किया और पटना में 'आर्या हाई-टेक' के नाम से अपनी कम्पनी खोल ली। उन्होंने 'डेस्कटॉप शेयरिंग टेक्नोलॉजी' पर काम किया।  इसके जरिए वे बिजली की खपत को 50 प्रतिशत कम कर चुके हैं। बता दें कि एक कम्प्यूटर को चलाने के लिए 300 वॉट बिजली की जरूरत पड़ती है। सिन्हा ने ऐसी तकनीक विकसित की कि अब 20 कम्प्यूटर का काम दो कम्प्यूटर और 18 मॉनिटर से ही हो रहा है। सिन्हा कहते हैं,''उन दिनों बिहार में घंटों बिजली नहीं आती थी। इसके बावजूद मैंने पटना में इस उद्देश्य से काम करना स्वीकार किया कि अपने गृह राज्य को अपने हुनर का लाभ मिले।'' वे मानते हैं कि मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया आदि से पूरी दुनिया में भारत की साख बढ़ी है। 

 

भोजन लंबे
समय तक रखने की जुगत
ओमटेक लेबोरेट्रीज प्रा. लि.
उत्पाद : जैविक अम्लक
400 करोड़ रुपए सालाना कारोबार

कई बार किसी प्राकृतिक आपदा के समय भोजन तैयार कर उसे सैकड़ों किलोमीटर दूर ले जाया जाता है। ऐसे में वह खाना खाने लायक नहीं रह जाता। इस हालत में ओमसेफ बड़े काम की दवा है। खाना तैयार करने के बाद उसमें ओमसेफ का छिड़काव कर अच्छी तरह बन्द कर दिया जाता है। इससे वह खाना कम से कम 10 दिन तक खाने लायक बना रहता है। ओमसेफ को इन्दौर की ओमटेक लेबोरेट्रीज प्रा. लि. बनाती है। यह कम्पनी देश की उन चुनिन्दा कम्पनियों में से एक है, जो जैविक अम्लक बनाती है। इसके अन्य प्रमुख उत्पाद हैं- ओस्वीटनर, ओमासिल आदि। कम्पनी हर वर्ष करीब चार करोड़ रु. का व्यापार करती है। कम्पनी के निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. देवलाल शर्मा कहते हैं, ''छोटे कारोबारियों को बैंक वाले भी कर्ज देने से बचते है। इससे लघु उद्यमी आगे नहीं बढ़ पाते हैं। केन्द्र सरकार इन बाधाओं को दूर करे तभी मेक इन इंडिया योजना सफल हो सकती है।''  
उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पैकेजिंग की नीतियों का हवाला देते हुए बताया कि यह संस्था निर्यात करने वाली वस्तुओं को प्रमाणित करती है और एक वर्ष के प्रमाणपत्र के लिए 20,000 रु. लेती है। पर एक वर्ष से ज्यादा का प्रमाणपत्र नहीं मिलता है, यह ठीक नहीं है। इसमें सुधार होना चाहिए।

कचरे से पैदा होती जगमगाहट
प्रकाश डीजल्स प्रा.लि.
उत्पाद : प्रदूषण-मुक्त जनरेटर
150 करोड़ रुपए सालाना कारोबार
लकड़ी के टुकड़े, चमड़े की कतरन, धान की भूसी, नारियल के छिलके, काशीफल के गूदे, मूंगफली के छिलके जैसी वस्तुओं से चलने वाला बायोमास जनरेटर प्रदूषण को कम करने में अहम भूमिका अदा कर रहा है। भारत का यह एक अनूठा जनरेटर है, जिसकी मांग पूरी दुनिया में है। इसका निर्माण प्रकाश डीजल्स प्रा.लि., आगरा में होता है। जनरेटर के दाएं भाग में लाल रंग का एक डिब्बा लगा हुआ है। उसी में उपरोक्त वस्तुओं में कोई एक वस्तु डाली जाती है और उसमें हल्की सी आग लगा दी जाती है। जनरेटर में ऐसा यंत्र लगा है कि वह सभी प्रदूषित चीजों को खत्म कर देता है और आखिर में हाइड्रोजन गैस बचती है। यह जनरेटर उसी से चलता है। कम्पनी के निदेशक राजेश गर्ग बताते हैं, ''देश-विदेश में सालाना 150-200 तक जनरेटर सेट की बिक्री  होती है।'' यह जनरेटर 2005 से बन रहा है। 1975 में स्थापित यह कम्पनी प्रकाश पंपिग सेट और सरिया भी बनाती है। इसका वार्षिक कारोबार 150 करोड़ रु. का है और इसमें 500 से ज्यादा लोग काम करते हैं। 

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