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अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश में वे अपनी किस्म के अकेले हैं। हां, बाहर उनके जोड़ीदार हैं। जब भी वे अपना मुख खोलते हैं, कुछ न कुछ बखेड़ा पैदा कर देते हैं। वे हैं आजम खान। वे सदा गलत कारणों से खबरों में रहते हैं। आजकल उनका अविचारित दावा कि 25 दिसंबर, 2015 को अपनी औचक पाकिस्तान यात्रा में नरेन्द्र मोदी दाऊद इब्राहिम से मिले थे, चर्चा में है। कांग्रेस तक ने उसे पूरी तरह खारिज कर दिया है। भाजपा ने इसके लिए मुख्यमंत्री से क्षमायाचना और आजम की मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी मांगी है, हालांकि दोनों में से किसी के होने की संभावना नहीं दिखती।
खान के आपत्तिजनक बयानों की सूची अंतहीन है। उनका पहला ऐसा बोल 1990 में सामने आया, जब मेरठ में उन्होंने भारत माता के लिए अपशब्द कहे। आजकल की भांति वे तब भी सपा सरकार में मंत्री थे। यदि उसी समय मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने उनकी कुर्सी छीनकर दण्डित कर दिया होता तो देश-प्रदेश उसके बाद उनके होठों से निकलने वाले अर्थ-हीन,आपत्तिजनक शब्दों की मार से शायद बच जाता। पर मुलायम चुप्पी साधे रहे। उनकी दृष्टि में आजम मुस्लिम वोटों के लिए उनके ट्रम्प के इक्के हैं। इसीलिए वे उन्हें अपने परिवार का सदस्य बताकर चिरोरी करते रहते हैं। हां, 2009 के लोकसभा चुनावों के तत्काल बाद वे खान को सपा से 6 वर्ष के लिए निकालने को जरूर बाध्य हो गए थे। पर वह निष्कासन अवधि केवल डेढ़ साल तक ही सिमट गयी तथा दिसंबर, 2010 में दोनों का भावुकतापूर्ण पुनर्मिलन हुआ। हालांकि आजम ढाई दशक बाद भी परिपक्व नहीं हुए हैं या जानबूझकर होना नहीं चाहते हैं। 15 नवम्बर, 2015 को उन्होंने पेरिस पर हुए आतंकी हमलों के सन्दर्भ में विवादित बयान दिया। उन्होंने इसे विश्व की महाशक्तियों द्वारा आईएसआईएस के विरुद्ध इराक-सीरिया में चलाए गए अभियान की प्रतिक्रिया बताया। उन्होंने फरमाया कि पश्चिमी ताकतों ने अफगानिस्तान, ईरान, इराक, सीरिया,लीबिया को 'नष्ट' करके पेरिस पर हमले को दावत दी। फ्रांस का इस हवाई कल्पना पर विरोध दर्ज कराना स्वाभाविक था जो उसके राजदूत ने किया। 2014 के लोकसभा चुनाव-प्रचार के दौरान गाजियाबाद की एक रैली में आजम बोले कि करगिल की लड़ाई मुसलमान फौजियों ने जीती थी, हिन्दू सैनिकों ने नहीं! उनके शब्द थे, ''मुसलमान से इसलिए मोहब्बत करो कि करगिल की पहाडि़यों को फतह करने वाला कोई हिन्दू नहीं था, बल्कि करगिल की पहाडि़यों को नारा-ए-तकबीर अल्लाहो अकबर कहकर फतह करने वाले मुसलमान फौजी थे़.़ . ।'' इसके लिए उनके विरुद्ध चुनाव आयोग ने पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करायी। इस पर वे बोले कि उनके मुसलमान होने की वजह से आयोग ने ऐसा किया!
उसी दौर में संभल की एक सभा में उन्होंने लोगों (मुस्लिम श्रोताओं) से अपील की कि वे 'मुजफ्फरनगर के हत्यारों' से बदला लें। 11 अप्रैल, 2014 को एक चुनाव सभा में वे बोले कि संजय गांधी और राजीव गांधी को अल्लाह ने इमरजेंसी के दौरान जबरिया नसबंदी' तथा 'बाबरी मस्जिद पर मंदिर के शिलान्यास' की वजह से सजा दी। 2014 में मुलायम सिंह यादव के 75वें जन्मदिवस को मनाने के लिए आजम ने रामपुर में बेहद खर्चीला सामंतशाही आयोजन किया। पत्रकारों के पूछने पर उन्होंने कहा कि आयोजन के लिए पैसा दाऊद इब्राहिम, तालिबान, अल कायदा और आईएस से आया है। बाद में पता चला कि कई मंत्रालयों को उस शाही खर्च के बिलों का भुगतान करने के लिए मजबूर किया गया। लखनऊ सचिवालय में आजम का व्यवहार सदा चर्चा का विषय रहता है। उनकी तुनक-मिजाजी के कारण कोई भी नौकरशाह उनके नीचे काम नहीं करना चाहता। 28 अगस्त, 2012 को अपने मंत्रालय के शीर्ष अफसरों की एक बैठक में आजम एक आईएएस अधिकारी पर इन शब्दों में चिल्लाए थे, ''बकवास करते हो .़.़चुप बैठिए़.़ बदतमीज कहीं के .़..'' आजम का बेवजह गुस्सा सचिवालय में हड़ताल भी करा चुका है।
खान कभी-कभी शेख चिल्ली भी हो जाते हैं। हाल ही में उन्होंने दावा किया कि वे प्रधानमंत्री पद वास्ते सपा के सबसे बढि़या उमीदवार हैं, जिसके नाम पर 'नेताजी' भी ऐतराज नहीं कर सकते, बल्कि समर्थन करेंगे! 2010 में उन्होंने अपने एक वक्तव्य से 'नेताजी' सहित पूरी पार्टी को शर्मिन्दगी में डाल दिया। उन्होंने जम्मू-कश्मीर के भारत-विलय पर ही प्रश्न-चिन्ह लगा दिया। बोले कि यूपीए सरकार में केवल एक मुसलमान कैबिनेट मंत्री हैं गुलाम नबी आजाद, वे भी भारत से नहीं, कश्मीर से हैं! यह कथन राष्ट्रद्रोह की श्रेणी का था। वे जब-तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए भी अमर्यादित टिप्पणी करते रहते हैं। शायद उनके यही 'गुण' मुलायम सिंह को पसन्द हैं और तभी तो वे उन्हें सिर पर बैठाए रखते हैं। – अजय मित्तल
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