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'हम क्या चाहें आजादी, हक हमारा आजादी। कहकर लेंगे आजादी, कश्मीर मांगे आजादी। केरल मांगे आजादी।
भारत मुर्दाबाद।
पाकिस्तान जिंदाबाद।
अफजल गुरु तुम जिंदा हो, हर एक लहू के कतरे में। कितने अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा।'
इन नारों को पढ़कर गुस्सा आ रहा है न ? गुस्सा जायज भी है क्योंकि ये नारे न तो पाकिस्तान में लग रहे थे और न ही कश्मीर में अलगाववादी लगा रहे थे। ये नारे दिल्ली स्थित प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में 9 फरवरी को लगे जब छात्रों के कुछ धुर वामपंथी गुट अलगाववादी नेता मकबूल बट्ट और आतंकवादी अफजल को दी गई फांसी की बरसी मनाने पर आमादा थे। और जान लीजिए कि भट को पूरे 32 साल पहले, 11 फरवरी 1984 को फांसी दी गई थी! उसे कश्मीर में 1966 में पुलिस चौकी पर हमला कर सीआइडी के एक इंस्पेक्टर की हत्या का दोषी पाया गया था। और अफजल गुरू को फांसी 9 फरवरी 2013 को हुई। वह 13 दिसंबर 2001 को देश की संसद पर आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के हमले का दोषी था। इन 'महान सपूतों' की बरसी मनाने दूसरे 'महान सपूत'—धुर वामपंथी परिसर के साबरमती ढाबे पर जमा हुए थे। अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में इतना कुछ किया गया कि दुश्मन भी लजा जाएं! परिसर को 'सांस्कृतिक संध्या' में आने की अपील करने वाले पोस्टरों से पाट दिया गया था। हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन ने कार्यक्रम की अनुमति नहीं दी क्योंकि पोस्टर में अफजल और भट की फांसी को 'न्यायिक हत्या' बताया गया था। विरोध मार्च निकालने पर आमादा इन छात्रों की अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद(अभाविप) के कार्यकर्ताओं के साथ तीखी छड़प हुई और नौबत हाथापाई तक आ गई। अभाविप के छात्र यह कहकर विरोध कर रहे थे कि कार्यक्रम देश विरोधी है।
जेएनयू छात्रसंघ के संयुक्त सचिव और अभाविप के नेता सौरभ शर्मा ने आरोप लगाया कि प्रदर्शनकारी छात्रों में से एक ने उनको तंमचा दिखाकर बुरा अंजाम भुगतने की धमकी तक दी, ''हमने उसे पकड़ने की कोशिश की तो वह भीड़ में गायब हो गया, सौरभ कहते हैं, ''इस दौरान विवि प्रशासन और दिल्ली पुलिस रोकने और कार्रवाई करने के बजाय मूकदर्शक बनी रही। हमारी मांग है कि आयोजन से जुड़े छात्रों को विवि प्रशासन तत्काल बरखास्त करे ताकि भविष्य में कोई देश विरोधी गतिविधि करने की हिम्मत न जुटा सके।''
विडम्बना देखिए कि इधर पूरा देश सियाचिन के बर्फीले तूफान में जिजीविषा के प्रतीक लांसनायक हनुमंतप्पा कोप्पड के स्वस्थ होने की प्रार्थना कर रहा था, उधर जेएनयू में आतंकी अफजल और भट की 'शहादत' पर छातियां पीटी जा रही थीं। उस जुनूनी को 'हीरो' बनाकर पूजा जा रहा था जिसने भारतीय लोकतंत्र के मंदिर पर हमले की साजिश रची। हालांकि मुद्दे के तूल पकड़ने के बाद विवि प्रशासन ने मामले की जांच के आदेश दे दिये हैं। विवि के 'चीफ प्रॉक्टर' की अध्यक्षता में बनी प्रोक्टोरियल जांच समिति न केवल वीडियो और सीसीटीवी फुटेज की जांच करेगी, बल्कि इस दौरान आयोजन स्थल पर मौजूद छात्रों और सुरक्षाकर्मियों से भी जानकारी जुटाएगी। जेएनयू के कुलपति जगदीश कुमार कहते हैं,''अधूरी सूचना देकर कार्यक्रम की इजाजत मांगी गई थी। प्रोक्टोरियल कमेटी पूरे मामले की जांच करेगी और उसके बाद ही निर्णय लिया जाएगा।''
भाजपा नेता डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सोशल मीडिया में लिखा,''जेएनयू, दिल्ली में आतंकी अफजल गुरु और पाकिस्तान के समर्थन में रैली निकाली गई। हम करदाताओं के पैसों पर आतंकवादी क्यों पनपा रहे हैं?'' सोशल मीडिया पर जेएनयू के खिलाफ लोगों का गुस्सा भड़का और ट्विटर पर #२ँ४३ऊङ्म६ल्लखठव ट्रेंड चला। पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठे । दक्षिण जिले के पुलिस उपायुक्त प्रेमनाथ का कहना था,''हम जांच कर रहे हैं।'' दबाव बढ़ने पर पुलिस ने अंतत: ''अज्ञात लोगों'' के विरूद्ध राजद्रोह का मामला दर्ज कर लिया।
केन्द्र सरकार जेएनयू को हर वर्ष करीब 244 करोड़ रु. देती है। अभी यहां करीब 8,308 छात्र पढ़ते हैं। यानि एक छात्र की पढ़ाई पर सरकार करीब 3 लाख रु. सालाना खर्च करती है। यह भारी राशि आम जनता की खून-पसीने की कमाई से आती है। सवाल है कि क्या जनता के धन से सब्सिडी वाली पढ़ाई कर रहे 'छात्रों' को 'भारत मुर्दाबाद' कहने की यूं खुली छूट मिलती रहेगी?
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