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हरि कथा योजना के राष्ट्रीय योजना प्रमुख सपन कुमार मुखर्जी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश यहां प्रस्तुत हैं
* कथाकार तैयार करने के पीछे मुख्य उद्देश्य क्या है?
अभी भी ग्रामीण भारत के लोग इतने भोले हैं कि उन्हें कोई भी ठग लेता है, उनका कन्वर्जन कराया जाता है। इसकी एक बड़ी वजह है लोगों में अपने धर्म के प्रति जागरूकता की कमी। लोगों को जागरूक करने के लिए ही यह योजना बनी। अब ये कथाकार हजारों गांवों में लगातार श्रीराम और श्रीकृष्ण कथा करते हैं। जहां-जहां हमारे कथाकार काम कर रहे हैं वहां हिन्दुत्व के प्रति लोगों में आकर्षण बढ़ रहा है और सामाजिक दोषों में कमी आ रही है।
* पहला प्रशिक्षण केन्द्र कब और
कहां खुला?
पहला केन्द्र अयोध्या में 1995 में खुला था। इसके बाद वृन्दावन में 1998 में और नवद्वीप (पश्चिम बंगाल) में 2004 में केन्द्र खोले गए। इस समय अयोध्या में 57 और नवद्वीप में 26 लड़कियां प्रशिक्षण ले रही हैं, जबकि वृन्दावन में 32 युवा प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। वृन्दावन में श्रीकृष्ण कथा और अयोध्या एवं नवद्वीप में श्रीराम कथा का प्रशिक्षण दिया जाता है।
* इन 25 वर्ष में कितने कथाकार तैयार हुए और उनमें से कितने आपके साथ जुड़े हुए हैं?
अब तक लगभग 3,000 युवक और युवतियों को कथाकार बनाया गया है। इनमें से 800 कथाकार पूर्णकालिक के रूप में हमारे साथ जुड़े हैं। पारिवारिक और अन्य कारणों से भले ही बाकी लोग हमारे साथ प्रत्यक्ष न जुड़े हों, लेकिन वे अपने काम के साथ-साथ समाज जागरण का भी कार्य कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह हुई है कि इन लोगों को जिस प्रकार के संस्कार हम लोग दे चुके हैं या दे रहे हैं, वे उन्हें जिन्दगीभर समाज के लिए कार्य करने की प्रेरणा देते रहेंगे।
* ये कथाकार समाज में किस तरह के बदलाव ला रहे हैं?
हर क्षेत्र में बदलाव ला रहे हैं। सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में साफ तौर पर बदलाव देख सकते हैं, पर इसके लिए आपको गांवों में जाना होगा। मैं यहां एक बदलाव की चर्चा जरूर करना चाहूंगा। हमारे कथाकार जहां कथा करते हैं वहां लोग शराब का सेवन नहीं कर रहे हैं। जो लोग करते हैं उनके परिजन ही उन्हें शराब पीने से रोकने लगे हैं। इस कारण उन गांवों में शराब बिकनी बंद हो गई है। भक्ति के नशे के सामने और कोई नशा टिक नहीं पा
रहा है।
* आगे की योजनाओं के बारे में
कुछ बताएं?
अभी हमारा काम मुख्य रूप से उत्तर भारत में ही है। दक्षिण भारत में केवल आंध्र प्रदेश में कुछ दिन पहले काम शुरू हुआ है। उम्मीद है कि इस वर्ष तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में प्रशिक्षण केन्द्र खोले जाएंगे। सबसे बड़ी बाधा है भाषा की। अभी हमारे पास दक्षिण भारतीय भाषाओं के प्रशिक्षक नहीं हैं। कोशिश जारी है, देखिए कब तक सफलता मिलती है। *
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