मथुरा में गोहत्या बंद हुई भोपाल, अजमेर, उत्तर प्रदेश और बिहार में कानून बने पंजाब में कानून बनाने का निश्चय
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मथुरा में गोहत्या बंद हुई भोपाल, अजमेर, उत्तर प्रदेश और बिहार में कानून बने पंजाब में कानून बनाने का निश्चय

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Feb 8, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Feb 2016 12:32:57

60वर्ष पहले पाञ्चजन्य के पन्नों से

भगवान शंकराचार्य जी ने त्रिवेणी के जिस पवित्र संगम पर वेदों का उद्धार करने की घोषणा की थी, उसी पुण्य भूमि पर माघ शुक्ल 1 संवत् 2010 तद्नुसार 4 फरवरी 1954 को देश के भिन्न-भिन्न स्थानों से आये हुए महात्माओं-संन्यासियों, विद्वान ब्राह्मणों, सद् गृहस्थों तथा गोरक्षा का सिद्धांत मानने वाले सभी पक्षों के सज्जनों द्वारा आयोजित गोहत्यानिरोध सम्मेलन ने गोहत्या बंद करने की घोषणा करके गोहत्या निरोध समिति बनाने का निश्चय किया। सम्मेलन का उद्घाटन देश के प्रसिद्ध नेता राजर्षि पुरुषोत्तमदास जी टण्डन ने किया। सरकार द्वारा जन्माष्टमी 2011 तारिख 21 अगस्त 1954 तक गोहत्या बंद न होने पर समिति को आगे कदम उठाने का अधिकार प्रदान किया गया। गोहत्या निरोध समिति के प्रधान श्री प्रभुदत्त जी ब्रह्मचारी ने जनमत जाग्रत एवं संगठित करने के लिए देशव्यापी दौरा किया। स्थान-स्थान पर गोहत्या निरोध समितियां बनीं। 225 स्थानों पर सभाएं हुईं जिनमें 10 लाख से अधिक लोगों ने भाग लिया।

डिस्ट्रक्टि बोर्ड ने एक पुराने प्रस्ताव का आधार लेकर गोहत्या को सख्ती से रोकने की घोषणा की।

अजमेर, भोपाल तथा पंजाब

अजमेर तथा भोपाल में गोहत्या निषेध कानून बने। पंजाब के गुड़गांव जिले के मेव मुसलमानों के गांवों में नित्य पंद्रह सौ से दो हजार गोवंश तक का कत्ल होता था। आंदोलन के कारण पंजाब के मुख्यमंत्री ने 1872 के कानून के आधार पर डिप्टी कमिश्नर से नोटिस जारी करवाकर अस्थाई तौर पर गोहत्या बंद कर दी। किन्तु स्थाई कानून बनवाने के लिए जब आंदोलन किया गया तो पंजाब के मंत्रिमंडल ने स्थायी कानून बनाने का निश्चय गजट में प्रकाशित कर दिया। यह विधेयक विधानसभा के आगामी अधिवेशन में उपस्थित होगा।

उ.प्र. के मंत्री द्वारा उर्दू में बजट!

आम चुनाव में मुस्लिम-वोट प्राप्त करने की चाल

मुस्लिम साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहन

-विशेष प्रतिनिधि द्वारा-

लखनऊ। विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि उ.प्र. के वित्त श्री हाफिज इब्राहिम ने समस्त अनुरोधों तथा अनुनय-विनय को ठुकरा कर प्रादेशिक सरकार का बजट उर्दू में प्रकाशनार्थ प्रस्तुत किया। समझा जाता है कि सहयोगी मंत्रियों की सलाह पर भी उन्होंने ध्यान नहीं दिया है। स्मरण रहे अब तक उ.प्र. का बजट सदैव हिन्दी में प्रकाशनार्थ प्रस्तुत किया जाता रहा है।

इस समाचार के कारण सरकारी क्षेत्रों में काफी सनसनी फैल गई है। श्री इब्राहिम अधिकारियों में चर्चा का विषय बन गए हैं, .. . किसी मंत्री का उर्दू में बजट प्रस्तुत करना आश्चर्यचकित कर देता है?

इस संबंध में एक बात उल्लेखनीय है कि श्री इब्राहिम ने हिन्दी बिल्कुल नहीं पढ़ी है। किंतु जब कभी उन्हें विधानसभा में भेंट या सभा में भाषण देना होता है, वे अपने निजी सचिव से हिन्दी में उसे तैयार कराते हैं और फिर उसे देखकर उर्दू लिपि में लिखते हैं। इस कारण कभी-कभी तो यहां तक देखने में आता है कि वे हिन्दी शब्दों का उच्चारण भी ठीक से नहीं कर पाते।

इस समस्त स्थिति का अवलोकन कर कोई पूछ बैठे कि जिस राज्य में कर्मचारियों को भी हिन्दी जानना अनिवार्य है, उस राज्य में एक मंत्री महोदय का और ऐसे मंत्री महोदय का, जिनका विभाग अत्यंत उत्तरदायित्वपूर्ण हो, हिन्दी के ज्ञान संशून्य होना कहां तक योग्य है?

इस बार श्री इब्राहीम ने उर्दू में ही बजट प्रस्तुत करने का जो निश्चय किया है, उसके संबंध में निकटवर्ती क्षेत्रों में कई अनुमान लगाए जा रहे हैं। कुछ लोगों का विचार है कि आगामी आम चुनाव में मुसलमानों के वोट प्राप्त करने के लिए उनका विश्वास सम्पादन करना अयंत आवश्यक है। और जबकि उर्दू को क्षेत्रीय भाषा स्वीकार कराने के लिए मुसलमानों द्वारा प्रदेश में प्रबल आंदोलन चलाया जा रहा हो, उस समय उनका विश्वास सम्पादन करने का इससे अधिक अच्छा साधन क्या हो सकता है?

कुछ लोगों का यह भी कहना है कि पिछले दिनों मुख्यमंत्री डॉ. संपूर्णानंद ने कुछ साम्प्रदायिक मुसलमानों की अराष्ट्रीय वृत्ति की जो आलोचना की उससे खिन्न होकर हाफिज जी ने यह रुख अपनाया है।

इन कथनों को बल इस बात से और प्राप्त होता है कि यदि मंत्री महोदय चाहते तो अपने अन्य भाषणों की भांति बजट भाषण भी अपने सहयोगियों से हिन्दी में तैयार करा सकते थे।

लोगों का विचार है कि यदि किसी प्रकार बजट हिन्दी में तैयार हुआ तो उसका श्रेय प्रदेश के मुख्यमंत्री संपूर्णानंद को होगा।

दिशाबोध

श्रम-सिद्धांत

हर उद्योग में श्रम भी एक महत्वपूर्ण पूंजी है और श्रमिकों की श्रेणी को उद्योगों के भागीदारों के बराबर उठाना चाहिए। उनके श्रम को ही उनका अंश (शेयर) माना जाना चाहिए। इससे उद्योग में उनकी सहभागिता एवं लाभ में भाग बांटने की व्यवस्था स्थापित की जा सकेगी जो अंतत: उत्पादन और उत्पादकता के स्तर को भी बढ़ाएगी। यह कैसा सिद्धांत है जो हर बात का मोल जानता है किन्तु किसी के भी मूल्य को नहीं समझता, क्योंकि इस सिद्धांत में श्रमिकों को केवल उत्पादन का साधन एवं उसके मूल्य-निर्धारण का माध्यम माना जाता है।

-पं. दीनदयाल उपाध्याय

(पं. दीनदयाल उपाध्याय विचार-दर्शन, खण्ड-4, पृष्ठ संख्या-34)

 

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