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तत्कालीन शासन को कुशासन और भ्रष्टाचार का पर्याय बताकर सत्ता तक पहुंची आआपा ने साफ और कारगर वैकल्पिक राजनीति का वादा किया था। सामाजिक आंदोलन को सीढ़ी बनाकर किए इस राजनीतिक प्रयोग पर सभी की नजर थी। लेकिन सिर्फ एक साल में इस प्रयोग की ताकत चुक गई
मनोज वर्मा
चरणजीत सिंह भाटिया उन लोगों में से एक हैं, जो साल भर पहले तक मानते थे कि आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद दिल्ली सरकार की कार्यप्रणाली में बदलाव आएगा और आम आदमी को छोटी-छोटी समस्याओं के लिए इधर-उधर नहीं भटकना पडे़गा। लेकिन जब उन्हें अपनी पत्नी की पेंशन की स्थिति जानने के लिए 29 विभागों के चक्कर काटने पडे़ तो वे खुद केजरीवाल सरकार को लेकर चक्कर में पड़ गए। पर दिल्ली के इस वरिष्ठ नागरिक को मुख्यमंत्री केजरीवाल पर भरोसा था, लिहाजा इस बार उन्होंने अपनी पत्नी की पेंशन की स्थिति की जानकारी प्राप्त करने के लिए मुख्यमंत्री के दफ्तर में आरटीआई लगाई।
केजरीवाल सत्ता में आने से पहले सूचना के अधिकार की वकालत करते थे, पर जब चरणजीत को केजरीवाल के दफ्तर ने आरटीआई को लेकर एक विभाग से दूसरे विभाग के चक्कर लगवाए तो चरणजीत का भरोसा मुख्यमंत्री केजरीवाल से भी उठ गया और थक-हारकर उन्होंने केंद्रीय सूचना आयोग में अपील की। चरणजीत की आरटीआई के संबंध में मुख्यमंत्री कार्यालय की कार्यप्रणाली का किस्सा देख-सुन खुद केंद्रीय सूचना आयोग के आयुक्त श्रीधर आचार्यलु भी हैरान रह गए।
29 विभागों के चक्कर
केंद्रीय सूचना आयोग ने चरणजीत के मामले को लापरवाही का सटीक उदाहरण मानते हुए न केवल मुख्यमंत्री केजरीवाल के दफ्तर को फटकार लगाई, बल्कि मुख्यमंत्री कार्यालय को अपीलकर्ता चरणजीत सिंह को एक लाख रुपए का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया। इस मामले पर टिप्पणी करते हुए आयुक्त आचार्यलु ने कहा, ''यह दयनीय स्थिति है कि मुख्यमंत्री का कार्यालय आरटीआई आवेदनों को लेकर इस प्रकार का लापरवाही भरा रवैया अपना रहा है। लगता है कि मुख्यमंत्री कार्यालय अपील करने वाले की तरफ से उठाए गए मुद्दों पर अपना दिमाग इस्तेमाल नहीं करता।'' वैसे केजरीवाल सरकार की कथनी-करनी में अंतर के तमाम किस्से हैं, जो केजरीवाल और उनकी सरकार की कार्यप्रणाली की पोल खोलते हैं। केजरीवाल के साथ आम आदमी पार्टी का गठन करने वाले पूर्व संस्थापक प्रशांत भूषण कहते हैं, ''यह आआपा नहीं, बल्कि खाप पार्टी बन गई है। यह जिन मुद्दों को लेकर बनी थी, उनसे ही पलट गई। जनलोकपाल के मुद्दे पर जितना बड़ा धोखा देश की जनता के साथ किया गया, उतना बड़ा धोखा आज तक किसी ने नहीं किया। केजरीवाल सरकार का जनलोकपाल असल में जोकपाल है।'' साफ है कि केजरीवाल किसी तरह कि कोई जवाबदेही नहीं चाहते। भूषण कहते हैं, ''केजरीवाल लोकतंत्र की बात करते हैं, पर न उनकी पार्टी में लोकतंत्र है और न ही केजरीवाल खुद लोकतांत्रिक हैं। वे भ्रष्टाचार से लड़ने की बात करते थे, लेकिन सत्ता में आने के बाद आआपा के विधायकों पर ही सवाल उठ रहे हैं, सरकार पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं। हमने यही बातें उठाई थीं तो हमें पार्टी से बाहर कर दिया।''
केजरीवाल की ईमानदारी और उनकी बोली शैली के किस्से सोशल मीडिया में मजाक का विषय बन गए। इसकी वजह कोई और नहीं, बल्कि स्वयं केजरीवाल और उनकी सरकार है जो दिल्ली की हर समस्या के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहरा बच निकलना चाहती है।
प्रशांत भूषण केजरीवाल को जनलोकपाल और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर बहस की खुली चुनौती दे रहे हैं, क्योंकि केजरीवाल और खुली बहस के बीच गहरा रिश्ता रहा है। केजरीवाल पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से लेकर किरण बेदी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक सभी को खुली बहस की चुनौती दे चुके हैं, लेकिन इस बार जब प्रशांत भूषण ने केजरीवाल को खुली बहस की चुनौती दी तो केजरीवाल बहस का मैदान छोड़ते नजर आए। असल में साल भर पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार और जनलोकपाल के मुद्दे को लेकर आम आदमी पार्टी और केजरीवाल सत्ता पर तो काबिज हो गए, लेकिन सत्ता में आते ही केजरीवाल और उनकी सरकार की छवि कलहप्रिय सरकार की बन गई। केजरीवाल की ईमानदारी और उनकी बोली-शैली के किस्से सोशल मीडिया में मजाक का विषय बन गए। इसकी वजह कोई और नहीं, बल्कि स्वयं केजरीवाल और उनकी सरकार है जो दिल्ली की हर समस्या के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहरा बच निकलना चाहती है। दिल्ली नगर निगम हो या दिल्ली पुलिस या फिर दिल्ली के उपराज्यपाल, केजरीवाल सरकार की टकराव की कार्यशैली के चलते आए दिन नए विवाद खडे़ हो रहे हैं। लिहाजा दिल्ली में काम कम, अव्यवस्था और विवाद अधिक सुर्खियां बन रहा है। वरिष्ठ पत्रकार अनूप भटनागर कहते हैं, ''मुझे व्यक्तिगत रूप से केजरीवाल सरकार से बेहद निराशा हुई है, क्योंकि मुझे उनसे काम की उम्मीद थी, पर आज एक पंक्ति में कहूं तो दिल्ली में केजरीवाल सरकार की स्थिति, नाच न जाने, आंगन टेढ़ा वाली है।''
असल में लंबे समय से सर्वोच्च न्यायालय की खबरें करते आए भटनागर यदि उक्त टिप्पणी कर रहे हैं तो उसकी एक नहीं कई वजह हैं। मसलन दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली के स्कूलों में दाखिले में प्रबंधन कोटा के मामले में सुनवाई करते हुए केजरीवाल सरकार के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से पूछा कि अगर दिल्ली सरकार को स्कूल में प्रबंधन कोटे के संबंध में शिकायतें मिली थीं तो सरकार ने उन पर कार्रवाई क्यों नहीं की? अगर सरकार कुछ नहीं करेगी तो कौन करेगा? अदालत पर सब कुछ छोड़ देना सही नहीं है। जिस प्रकार से यह मामला न्यायालय में आया है और इसकी सुनवाई चलती रही तो कहीं ऐसा न कि हो ये साल 'जीरो इयर' हो जाए यानी बिना किसी दाखिले वाला साल। अदालत ने कहा कि अगर सरकार के पास सबूत है तो वह कार्रवाई करे। अदालत ने सिसोदिया से स्पष्ट पूछा, ''आप तीन महीने से इस पर कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे हैं?''
वैसे केजरीवाल सरकार ने प्रचार-प्रसार के लिए जो बजट बनाया वह दिल्ली में किसी सरकार का अब तक सबसे बड़ा पब्लिसिटी बजट है, जिसे लेकर केजरीवाल सरकार सवालों के घेरे में रही है। मसलन दिल्ली में साल के शुरू में 15 दिन चले सम-विषम फार्मूले के प्रयोग पर करीब 20 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए। इस राशि में सबसे अधिक राशि सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाने के लिए किराए की बसों पर खर्च हुई-करीब 14 करोड़ रुपए, वहीं लगभग तीन करोड़ रुपए नागरिक सुरक्षा के लिए वॉलंटियरों पर खर्च हुए। इस योजना की सफलता को लेकर सरकार ने कैसे काम किया इसकी पोल स्वयं को आम आदमी सेना की पंजाब प्रभारी बताने वाली भावना अरोड़ा ने सार्वजनिक रूप से खोल दी। सम-विषम फार्मूले की सफलता के लिए मुख्यमंत्री केजरीवाल ने छत्रसाल स्टेडियम में धन्यवाद सभा का आयोजन किया और जब वह इस सफलता का गुणगान कर रहे थे तब अरोड़ा ने उन पर काली स्याही फेंक कर विरोध जताया। बकौल भावना, ''मैं बेहद आहत थी। सम-विषम योजना की आड़ में खतरनाक सीएनजी सिलेंडरों को वैध घोषित करने का घोटाला हुआ है। इस घोटाले के संबंध में जानकारी देने के लिए मैंने केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के दूसरे नेताओं और मंत्रियों से समय मांगा पर किसी ने नहीं दिया। मेरे पास इस घोटाले से संबंधित स्टिंग की सीडी भी थी, पर जब मेरी किसी ने नहीं सुनी और मुझे लगा कि दिल्ली की जनता के साथ तो धोखा हो रहा है तो अपनी बात लोगों के सामने लाने के लिए मुझे ऐसा करना पड़ा। केजरीवाल यदि ईमानदार हैं तो उन्हें इस मामले की जांच करवानी चाहिए।''
इसे लेकर सवाल इसलिए भी उठ रहा है, क्योंकि दिल्ली का कथित ऑटो परमिट घोटाला केजरीवाल सरकार के लिए गले की फांस पहले से बना हुआ था। आरोप है कि दिल्ली में 10,000 नए ऑटो परमिट जारी करने में 25,000 रुपए से लेकर 1.25 लाख रुपए तक की घूस ली गई। आरोप यह भी है कि इसी साल जनवरी में नए ऑटो परमिट के लिए आवेदन मांगे गए। नियम यह है कि आवेदन के क्रम में लेटर ऑफ इंटेंट (सहमति पत्र) जारी किया जाएगा, लेकिन जारी किए गए 932 पत्रों को मनमाने तरीके सेे बांटा गया। ऑटो चालकों की बजाए डीलरों और दलालों को पत्र दिए गए। कई फर्जी पतों पर भी ये पत्र भेजे गए। दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता कहते हैं, ''आम आदमी पार्टी के मंत्री फर्जी डिग्री के आरोप में जेल गए, कई विधायकों पर गंभीर आरोप लगे हैं, कुछ जांच के घेरे में हैं और केजरीवाल सरकार पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। लेकिन इसके बाद भी केजरीवाल खुद को ईमानदार और दूसरों को बेईमान कहते हैं। साफ है केजरीवाल को शासन चलाना नहीं आता, बस आरोप लगाकर जनता को गुमराह करना है। दिल्ली का विकास ठप है, क्योंकि केजरीवाल और उनकी सरकार को दूसरे विभागों और अधिकारियों से लड़ने से ही फुर्सत नहीं है।'' दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन कहते हैं, ''झूठ और नाटकबाजी से राजनीति बहुत दिनों तक नहीं हो सकती। दिल्ली की जनता को भी अब समझ आ रहा है केजरीवाल और उनकी पार्टी का खेल। विकास ठप है और यह दिल्ली के लिए दु:खद है।''
वैसे दिल्ली में भारी-भरकम बहुमत के साथ सत्ता में आने वाली आम आदमी पार्टी का साल भर के भीतर जो चेहरा सामने आया उसने केजरीवाल के नेतृत्व और उनकी कार्यशैली पर सवालिया निशान पहले ही लगा दिया। सिद्धांतों और पारदर्शिता की बात करने वाली आम आदमी पार्टी में नेतृत्व को लेकर ऐसा घमासान मचा कि प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, अंजलि दमानिया जैसे आआपा के कई प्रमुख नेताओं ने यह कहते हुए केजरीवाल और आआपा से किनारा कर लिया कि केजरीवाल पर विश्वास के बदले में उन्हें विश्वासघात मिला। अब केजरीवाल के पुराने साथी ही उनकी पोल-पट्टी खोल रहे हैं और उन्हें कोई ड्रामेबाज बता रहा है, तो कोई झूठा। केजरीवाल पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं और इसी सिलसिले में जब हाल ही में वह पंजाब गए तो सिख बहुल इस राज्य में मफलर की जगह पगड़ी पहने नजर आए। सवाल उठा कि क्या पंजाब को ध्यान में रख यह कोई नया चोला था? जाहिर है सवालों के जवाब केजरीवाल को भी देने होंगे। कारण, यह पब्लिक है जो सब जानती है।
स्वामी ने मांगी केजरीवाल पर मुकदमा चलाने की अनुमति
भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने और अपने खरेपन के लिए प्रसिद्ध वरिष्ठ राजनेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने 28 जनवरी को दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग को पत्र लिखकर दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी है। स्वामी का आरोप है कि केजरीवाल जब पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे तब एक प्राइवेट कंपनी ने उन्हें चंदा हासिल करने में मदद की थी। इसके बदले में केजरीवाल ने उन्हें गैरकानूनी फायदे पहुंचाए। उन्होंने दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर भी मुकदमा चलाने की अनुमति देने की भी मांग की है। स्वामी का आरोप है कि सिसोदिया ने पहली आप सरकार के वित्त मंत्री के तौर पर वैट द्वारा काली सूची में डाली कंपनी को फायदा पहुंचाया है। उनका आरोप है कि केजरीवाल और सिसोदिया ने गैर-कानूनी तरीके से एसकेएन एसोसिएट्स लिमिटेड को फायदा पहुंचाया। इस कंपनी का नाम वैट की डिफॉल्टर लिस्ट में था, जो कि 28 दिसंबर, 2013 को केजरीवाल के सत्ता संभालने से 10 दिन पहले जारी की गई थी। उस समय सत्ता में रहने के दौरान केजरीवाल और सिसोदिया ने सरकारी खजाने के लिए इस कंपनी से वसूली करने की बजाय इससे आम आदमी पार्टी के लिए चंदा मांगना शुरू कर दिया। स्वामी ने दावा किया है कि एसकेएन एसोसिएट्स की चार सहयोगी कंपनियों ने आआपा को 2 करोड़ रुपए दिए हैं। स्वामी ने इन्हें पद और सार्वजनिक धन का गलत इस्तेमाल बताया है, जो प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट की धारा 13 (1) (डी) के तहत जुर्म है।
यह है दिल्ली का संवैधानिक दर्जा
देश राजधानी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं है और यह केन्द्रशासित प्रदेश है। यहां विधान परिषद और मंत्रिमंडल तो है पर वह विधान मंडल के प्रति जवाबदेह है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अंतर्गत इसपर संविधान की धारा 324 से 327 और 329 के प्रावधान लागू हैं। संवैधानिक प्रावधानों के तहत नौकरशाहों की नियुक्ति के अधिकार उपराज्यपाल के पास हैं।
दाग बड़े
फर्जी डिग्री मामले में दिल्ली सरकार के पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर काफी लंबे समय तक विवादों में रहे। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल शुरुआती दौर में उनके साथ खड़े रहे, लेकिन जब उन्हें जेल जाना पड़ा तो केजरीवाल ने उनसे पल्ला झाड़ लिया।
पिछले वर्ष आठ जून को आआपा विधायक राखी बिड़ला पर आरोप लगा था कि उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र में लगवाई गई स्ट्रीट लाइट और सीसीटीवी यूनिट की खरीद-फरोख्त में भारी घोटाला किया है। आरोप था कि मंगोलपुरी विधानसभा क्षेत्र में विधायक ने 15,000 रु. की स्ट्रीट लाइट एक लाख रु. में और 10,000 में लगने वाली सीसीटीवी यूनिट छह लाख रु. में लगवाई है। इसके पहले भी राखी अपने जन्मदिन पर तोहफे में कथित रूप से बड़ी गाड़ी उपहार में मिलने को लेकर विवादों में रही थीं लेकिन बाद में विवाद होने पर उन्होंने गाड़ी लेने से मना कर दिया था।
पिछले वर्ष मई में केजरीवाल सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन भी विवादों में रहे। दिल्ली की कार्यकारी मुख्य सचिव रहीं शकुंतला गैमलीन ने जैन पर दिल्ली की औद्योगिक जमीनों को लीज से फ्री होल्ड करने का दबाव डालने का आरोप लगाया। उल्लेखनीय है कि दिल्ली में जमीन का अधिकार दिल्ली सरकार के पास नहीं, बल्कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डी.डी.ए.) के पास है जिसके अध्यक्ष उपराज्यपाल होते हैं। किसी जमीन को लीज से फ्री होल्ड करने का मतलब है जिसके पास लीज पर जमीन है वह जमीन का मालिक बन जाएगा। ऐसे में सवाल उठा कि जैन किसे फायदा पहुंचाना चाहते थे?
केजरीवाल की पिछली सरकार में कानून मंत्री रहे सोमनाथ भारती पर उनकी पत्नी लिपिका मित्रा ने घरेलू हिंसा व जान से मारने की कोशिश करने का आरोप लगाया। लिपिका ने दावा किया कि सोमनाथ उसे अपने पालतू कुत्ते से कटवाते थे। इस संबंध में मामला दर्ज होने के बाद वह पुलिस से बचने के लिए भागते रहे। शुरुआती दौर में केजरीवाल उनके साथ खड़े नजर आए लेकिन बाद में जब उनकी किरकिरी होने लगी तो उन्होंने पल्ला झाड़ लिया। इस मामले में सोमनाथ को जेल भी जाना पड़ा।
एक बिल्डर से छह लाख रुपये की घूस मांगने के आरोप में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने मंत्री आसिम अहमद खान को उनके पद से हटाया। इसके बाद स्वयं ही अपनी पीठ थपथपाई।
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