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शाम के करीब 4 बज रहे थे। स्थान था हवाई अड्डे के समीप पालम (दिल्ली) फ्लाईओवर के नीचे। छोटे-छोटे बच्चे जोर-जोर से रट रहे थे ए से एप्पल, बी से बॉल…। अचानक हमें देखकर चुप हो गए। कुछ बातें हुईं तो खिलखिलाकर हंसने लगे। ये बच्चे हैं गाडि़या लोहारों के और यहां चल रहे अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र में पढ़ाई कर रहे हैं। इनके माता-पिता का जीवन यायावरी है। बैलगाड़ी पर लदा गृहस्थी का सामान और सड़क के किनारे अस्थायी डेरे… चलते रहने की शपथ (देखें बॉक्स) लेने वाले कदम थमे तो हैं, लेकिन शहर-कस्बों में आज भी कहीं जम नहीं पाए। इस कारण ये बच्चे पढ़ नहीं पाते थे। लेकिन अब इन्हें पढ़ाने का बीड़ा उठाया है महामना मालवीय मिशन की इन्द्रप्रस्थ इकाई ने। मिशन ने फरवरी, 2015 से इनके बीच कार्य शुरू किया। मिशन के द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला कि स्थायी घर न होने के कारण इस समुदाय पर मौसम की सबसे अधिक मार पड़ती है। सर्दियों की ठिठुरन, गर्मी की तपन और बारिश के पानी से इन्हें सबसे अधिक जूझना पड़ता है। इसलिए पहले इनके बीच कंबल, कपड़े और अन्य जरूरी सामान बांटे गए। तात्कालिक उपाय के बाद मिशन के लोगों ने शिक्षा जैसे बुनियादी मुद्दे पर काम करना तय किया। उन बच्चों पर पहले ध्यान केंद्रित किया गया जिनकी उम्र अभी विद्यालय जाने की थी। छोटे बच्चे, जो विद्यालय नहीं जा रहे थे, उन्हें नजदीकी सरकारी विद्यालयों में प्रवेश दिलवाया गया। फिर इन सभी बच्चों के लिए विशेष प्रकार के अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र खोले गए। गाडि़या लोहारों की प्रत्येक बड़ी बस्ती के साथ खोले गए इन केन्द्रों के संचालन की जिम्मेदारी मुख्यत: गाडि़या समुदाय के ही युवकों को दी गई। इस समय यहां गणित, विज्ञान और अंग्रेजी जैसे विषय पढ़ाने के लिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुछ पूर्व छात्र भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इन केंद्रों पर स्कूली पाठ्यक्रम के साथ-साथ बच्चों के स्वाभिमान और संस्कार पक्ष को मजबूत करने पर विशेष ध्यान दिया जाता है। पालम, तिमारपुर, आजादपुर, भजनपुरा, उत्तम नगर, मंगलापुरी, मानसरोवर पार्क, नंदनगरी, मोतीनगर, बुराड़ी, मायापुरी, किशनगंज, गोकलपुरी सहित 30 जगहांे पर ये कैन्द्र हैं।
मिशन द्वारा चलाए जा रहे अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र किसी भवन में नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्थानों जैसे फ्लाईओवर के नीचे की जमीन या पार्क आदि में चल रहे हैं। महामना मालवीय मिशन की इन्द्रप्रस्थ इकाई के महासचिव शक्तिधर सुमन कहते हैं, ''पहला केंद्र पालम फ्लाईर्ओवर के पास खोला गया था। शिक्षा की इस शुरुआत में बच्चियां शामिल नहीं हुई थीं, लेकिन समय के साथ यह बंधन भी टूटा है। धीरे-धीरे इन कक्षाओं में बच्चियों की संख्या बढ़ रही है। एक नई संभावना जन्म लेे रही है, शिक्षा का नया सूरज उग रहा है।'' महामना मालवीय मिशन बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बी.एच.यू.) के पूर्ववर्ती छात्रों द्वारा स्थापित संस्था है। -अरुण कुमार सिंह
कौन हैं गाडि़या लोहार?
महाराणा प्रताप ने मुगलों को कड़ी चुनौती दी थी। हल्दी घाटी की लड़ाई के बाद यद्यपि चित्तौड़ हाथ से निकल गया, फिर भी उनका संघर्ष जारी रहा। इस संघर्ष में जिन लोगों ने महाराणा प्रताप का साथ दिया, उनमें गाडि़या लोहारों के पूर्वज भी थे। उन्होंने महाराणा प्रताप के साथ प्रतिज्ञा की थी कि जब तक मेवाड़ को मुगलों से मुक्त नहीं करा लेंगे तब तक वे न तो अपना स्थायी घर बनाएंगे और न ही मेवाड़ वापस लौटेंगे। समय कभी रुकता नहीं, लेकिन दुर्भाग्यवश गाडि़या लोहारों के लिए तो समय जैसे ठहर गया। वे मेवाड़ की सरहदों से दूर अपने परिवार के साथ भटकते रहे, बैलगाडि़यां ही उनका घर बन गईं। विडंबना देखिए कि जिस समाज की रक्षा के लिए गाडि़या लोहारों के पूर्वजों ने इतना बड़ा बलिदान दिया, वह समाज भी आज उन्हें भूल-सा गया है। सैकड़ों वर्ष पूर्व गाडि़या लोहारों के पूर्वजों ने अपनी आजीविका के लिए लोहे की कारीगरी को अपनाया था। आज भी इस समुदाय के लोग लोहे के घरेलू उपकरणों और औजारों के सहारे ही रोजी-रोटी चलाते हैं। पर आज उनका यह पेशा संकट में है। बड़े-बड़े कारखानों में बने सुघड़ और सस्ते उत्पादों ने इनकी कमाई पर करारी चोट की है। ऐसे में इन्हें आज समाज के संबल की जरूरत है। ल
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