इच्छाशक्ति और समन्वय से होगा समाधान
July 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

इच्छाशक्ति और समन्वय से होगा समाधान

by
Jan 25, 2016, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 25 Jan 2016 14:52:59

 

जान को जोखिम में नहीं डाल सकते तो समस्या से कभी नहीं लड़ सकते। बीचमें एक समय ऐसा आ गया था कि मुठभेड़ हो या न हो, कोई मरना नहीं चाहिए। यह कैसे संभव है, यदि पहले ही से यह तय हो जाएगा तो फिर लड़ा कैसे जाएगा?

प्रकाश सिंह

सवाल है कि हम माओवादी समस्या का कैसे सामना करें? इसमें केन्द्र और राज्यों का समन्वय काफी अहम है। इसके अभाव में या यूं कहिए जितना समन्वय होना चाहिए वह देखने को नहीं मिलता है। इस कारण यह समस्या और ज्यादा बढ़ती जा रही है। माओवादी समस्या से निपटने के लिए अभी तक कोई राष्ट्रीय नीति नहीं बनाई गई है। ऐसा क्यों हुआ, यह नहीं मालूम। यह समस्या सबसे पहले 1971 में शुरू हुई थी। यदि तब से देखें तो 45 वर्ष तो हो ही चुके हैं। इतना समय पर्याप्त था देश में माओवादी समस्या को दूर करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई नीति बन जानी चाहिए थी, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका। करीब दो वर्ष पहले मैं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार समिति का सदस्य था। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मैंने पूछा था कि माओवाद से लड़ने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई नीति क्यों नहीं बनाई गई? प्रधानमंत्री ने तभी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को इस संबंध में कार्रवाई के लिए कहा, लेकिन उस पर ठंडा पानी डाल दिया गया। फिर कुछ समय बाद मेरा कार्यकाल समाप्त हो गया।
नीति इसलिए आवश्यक है क्योंकि हर सरकार के कार्य का तरीका अलग-अलग होता है। हर सरकार की समस्या से निपटने की अलग शैली होती है। गृहमंत्री के रूप में शिवराज पाटील आए तो और वनवासियों को भाई-बहन बताया और माओवादी अपनी शक्ति को बढ़ाते रहे। इसी तरह शिंदे साहब आए। उनकी क्या नीति रही, यह पता नहीं लगा और उनका कार्यकाल भी बीत गया। चिदम्बरम जी आए तो उन्होंने कोई नीति तो नहीं बनाई, लेकिन तीन शब्द बहुत बार कहे- 'क्लिअर, होल्ड एंड डेवलप'।  इन तीन शब्दों का अर्थ काफी महत्वपूर्ण था। किसी क्षेत्र को पहले माओवादियों से साफ कर दिया जाए, फिर वहां प्रशासन मजबूती से काबिज हो और फिर विकास किया जाए, आर्थिक प्रगति की जाए। इसकी शुरुआत करते हुए उन्होंने बड़े पैमाने पर सुरक्षाबलों को माओवादी क्षेत्रों में भेजा। दुर्भाग्य से कुछ समय तक तो स्थिति ठीक चलती रही, लेकिन कुछ समय बाद लगा कि कोई चिदम्बरम साहब को पीछे से खींच रहा है। एक बार गृहसचिव श्री पिल्लै से मिलना हुआ तो उनसे मैंने पूछा कि आखिर मामला क्या है, शुरू तो डंके की चोट पर हुआ और अब इतना ढीला क्यों हो रहा है। वे कहने लगे कि 'कभी मेरे दफ्तर, आओ,' मैं उनके दफ्तर तो नहीं गया, लेकिन उनकी बात से लगा कि कुछ अंदर ही अंदर खिंचाव हो रहा था। किसी ने यह कहा या मुझे लगा कि यदि चिदम्बरम साहब इस योजना में सफल हो गए तो कहीं प्रधानमंत्री पद के दावेदार न हो जाएं, जबकि दावेदार तो हमारे राजकुमार हैं। कुछ लोगों ने सोनिया गांधी को भी कहा कि कार्रवाई से कहीं नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से वोट बैंक कांग्रेस के हाथ से न निकल जाए। उसके बाद से कोई योजना अभी तक नहीं आई है, हो सकता है कि उसका खाका तैयार हो चुका हो। दुर्भाग्य से यहां पर जो चीजें फाइलों में दबी रह जाती हैं, वह दब ही जाती हैं। कभी हमें ही महत्वपूर्ण चीजें देखने को नहीं मिल पाती हैं।  'सभी की अपनी-अपनी डफली, अपने-अपने राग हैं।' हर मुख्यमंत्री का अपना दृष्टिकोण है, नीतीश बाबू ने पूछने पर कहा कि माओवादियों के साथ सख्ती कैसे हो सकती है, इस समस्या से जीतने का एकमात्र उपाय है कि आप इनका आर्थिक विकास कीजिए, उससे यह समस्या स्वत: समाप्त हो जाएगी। केन्द्र राज्यों में अभियान के लिए अपना सुरक्षाबल भेजता है और राज्य अभियान चलाते नहीं हैं। ममता बनर्जी ने सत्ता में आने पर माओवादियों को अपना साथी कहा, धीरे-धीरे जब तृणमूल और माओवादियों में टकराव होने लगा तो उन्होंने सुरक्षाबलों को ढील दी कि जाकर माओवादियों को मार गिराओ। उन्होंने पुलिस, सुरक्षाबल और गुप्तचर विभाग को नक्सल का सफाया करने की पूरी छूट दी। उसी का असर है कि पश्चिम बंगाल से माओवादियों के पांव      उखड़ गए। झारखंड में वर्तमान सरकार आने के बाद से स्थिति ठीक है। केन्द्र और राज्य सरकार में कोई मतभेद देखने को नहीं मिला, दोनांे में समन्वय है। इससे पहले शिबू सोरेन के रहने तक माओवादियों के प्रति ढुलमुल नीति थी। छत्तीसगढ़ सरकार से कभी भी समन्वय को लेकर दिक्कत नहीं रही, चाहे कोई भी सरकार रही हो। छत्तीसगढ़ में जो समस्याएं हैं, वे आंतरिक हैं। दरअसल मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने तो छूट दी हुई है, लेकिन प्रशासन मनमाना काम कर रहा है। नौकरशाही माओवाद को समाप्त करने में विश्वास नहीं रखती है। छत्तीसगढ़ मंे सुरक्षाबलों और राज्य में समन्वय का अभाव है। बीच में कुछ समय पूर्व पता लगा था कि केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के बीच समन्वय नहीं है।
मेरा मानना है कि अतिरिक्त  बल न होने की बात कहकर पल्ला झाड़ा जाता है। आप में जब खतरे से लड़ने की शक्ति नहीं है, जान को जोखिम में नहीं डाल सकते तो समस्या से कभी नहीं लड़ सकते। बीच में एक समय ऐसा आ गया था कि केन्द्र की नीतियां भी उसके लिए जिम्मेदार थीं। ऊपर से हुक्म थे, मुठभेड़ हो या न हो, कोई मरना नहीं चाहिए। यह कैसे संभव है, यदि पहले ही से यह तय हो जाएगा तो फिर लड़ा कैसे जाएगा? मुठभेड़ के दौरान कोई न मारा जाए, ये आदेश थे और काफी समय तक चले। जहां तक सुरक्षाबल की संख्या का सवाल है तो वह पर्याप्त है, उसके सही इस्तेमाल की आवश्यकता है। नये हथियार आते रहते हैं और केन्द्र सरकार ने कभी इस क्षेत्र में कमी नहीं छोड़ी है।
आखिरी बिंदु है इंटेलीजेंस। केन्द्र का राज्य और राज्य का दूसरे राज्यों से सूचनाओं का आदान-प्रदान। एक बार पश्चिम बंगाल और झारखंड वाले एक-दूसरे पर सूचनाओं का आदान-प्रदान न करने का आरोप लगा रहे थे। इस दृष्टि से कई खामियां हैं। इंटेलीजेंस की यदि बात की जाए तो उसमें आंध्र प्रदेश की एसआईबी का काम काफी सराहनीय रहा है, एसआईबी न केवल अपनी, बल्कि दूसरे राज्यों और कई बार राष्ट्रीय स्तर की सूचनाएं रखती थी। दिल्ली तक उन्होंने अपनी सूचनाएं पहंुचाई हैं। हर प्रदेश अलग ढंग से लड़ रहा है। किसी का बल प्रयोग तो किसी का आर्थिक प्रगति का दृष्टिकोण है। यही कारण है कि यह समस्या एक गांव से शुरू होकर आज 180 जिलों में फैल चुकी है। कोई सरकार चुनाव को ध्यान में रखकर माओवादियों से दोस्ती निभाती है। कई मुख्यमंत्रियों पर आरोप लग चुके हैं कि वे माओवादी नेताओं को अपने पक्ष में मतदान के लिए बोलते हैं। आंध्रप्रदेश में जिला स्तर पर जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक स्वयं अपने स्तर पर योजनाएं बनाकर गांव-गांव में लोगों से संपर्क साधते थे। खुद पुलिस अधीक्षक गांव में बच्चों के लिए खेल-कूद प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाते थे।
कई बार जिन परिवारों के बच्चे माओवादियों के संपर्क में आकर चले जाते थे, उनके परिवार के सदस्यों की पुलिस देखभाल करती थी। बीमार परिजनों के उपचार से लेकर उन्हें आर्थिक मदद मुहैया करवाई जाती थी। इसका असर यह हुआ कि माओवादियों का इस तरह की कार्यप्रणाली से हृदय परिवर्तन भी हुआ और यही वजह रही कि प्रशासन की चुस्ती के चलते आंध्र प्रदेश से माओवाद खत्म हो गया।
           (लेखक बीएसएफ के महानिदेशक रहे हैं)    

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

नहीं हुआ कोई बलात्कार : IIM जोका पीड़िता के पिता ने किया रेप के आरोपों से इनकार, कहा- ‘बेटी ठीक, वह आराम कर रही है’

जगदीश टाइटलर (फाइल फोटो)

1984 दंगे : टाइटलर के खिलाफ गवाही दर्ज, गवाह ने कहा- ‘उसके उकसावे पर भीड़ ने गुरुद्वारा जलाया, 3 सिखों को मार डाला’

नेशनल हेराल्ड घोटाले में शिकंजा कस रहा सोनिया-राहुल पर

‘कांग्रेस ने दानदाताओं से की धोखाधड़ी’ : नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी का बड़ा खुलासा

700 साल पहले इब्न बतूता को मिला मुस्लिम जोगी

700 साल पहले ‘मंदिर’ में पहचान छिपाकर रहने वाला ‘मुस्लिम जोगी’ और इब्न बतूता

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies