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अपनी बात -भावना पर छाए भ्रम को छांटें

by
Jan 25, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 25 Jan 2016 11:40:27

आज हमारा गणतंत्र 67 वें बरस में है। राजपथ पर तोपों की सलामियों और रंग-बिरंगी झांकियों के बीच वैश्विक आकलनों की आशाओं का नया केंद्र झिलमिला रहा है। सुगठित, सुसज्जित, सुदृढ़ भारत। ऐसे में हर भारतवासी के दिल का गर्व से भर उठना स्वाभाविक है। इस गौरव की अनुभूति के लिए ही तो स्वतंत्रता संग्राम में पुरखों ने जान की बाजी लगाई थी। लंबे संघर्ष के बाद मिली स्वतंत्रता को संजोने के लिए ही तो इस देश के भविष्य का सपना संविधान की स्थापना करते हुए बुना गया था। लाला जी (लाला लाजपत राय)का जन्मदिन गणतंत्र दिवस के दो दिन बाद पड़ता है लेकिन देश को स्वतंत्रता मिलने से कई साल पहले से ही लाला जी जैसे राष्ट्र नायकों के मन में इस देश के भविष्य की स्पष्ट कल्पना थी। आजादी का रास्ता किन जोखिमों से गुजरकर जाता है वे देख पा रहे थे। क्यों न आज राजपथ की झांकियों के साथ अतीत की उन कल्पनाओं को मिलाकर  देखा जाए?
क्या भारत वैसे ही बना-बढ़ा जैसा हमारे राष्ट्रनायकों ने इस देश के संविधान निर्माताओं ने सपना देखा था? बलिदानी पुरखों ने जिन खतरों के प्रति हमें आगाह किया हम उन आशंकाओं को कितना टाल सके? संविधान निर्माताओं ने जिस भावभूमि पर स्थिर रहकर इस देश को संविधान सौंपा हम उन पवित्र भावनाओं का कितना ध्यान रख सके?
बात संविधान की मूल भावना से शुरू की जा सकती है। यह ऐसी चीज है जिसका न तो संशोधन हो सकता है और जिने न ही नष्ट किया जा सकता है। 1947 में देश की संविधान सभा द्वारा स्वीकृत 'उद्देश्य प्रस्ताव' इस देश के संविधान की प्रस्तावना का आधार बना। लेकिन कुछ घटनाएं बताती हैं कि इस आधार पर टिके रहने की संविधान निर्माताओं की अपेक्षा की कई बार राजनीतिक कारणों से उपेक्षा हुई।
'उद्देश्य प्रस्ताव' भारत गणराज्य के क्षेत्रों- धरती समुद्रों और वायु पर उसके अधिकारों को सभ्य राष्ट्रों के नियमों के अनुसार सुरक्षित रखने की बात करता है। लेकिन सच यह है कि भारत की विस्तृत-विलक्षण द्वीप श्रृंखला की ठीक से सुध लेने की कोशिश तक नहीं की गई। तटीय क्षेत्रों से बहुमूल्य थोरियम चोरी के संगीन आरोप पिछली सरकार के राज तक लगे हैं। तट और द्वीपों की सुरक्षा तो तब हो जब संसाधनों को लेकर सजगता रही हो। कितने भारतीय जानते हैं कि इस देश के पास अपने 572 अनूठे-अनमोल द्वीप हैं!
लचीला रहते हुए भी ठोस बने रहने का गुण हमारे संविधान की दूसरी विशेषता है। संवैधानिक संशोधनों के मामले में यह ऐसी अनूठी बात है जो भारतीय संविधान को ब्रिटिश संविधान की तरह अत्याधिक नर्म या अमेरिकी संविधान की तरह ज्यादा कठोर होने से बचाती है। संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 369 के अंतर्गत जब संशोधन के विषयों का बंटवारा किया तब निश्चित ही उनकी मंशा नीति-निर्माताओं को ज्यादा से ज्यादा खुला हाथ देने की रही होगी। लेकिन वस्तु एवं सेवा कर विधेयक का क्या हुआ? शक्ति परीक्षण के तकनीकी प्रावधान की आड़ में उन लोगों द्वारा अड़चन राजनैतिक फच्चर फंसाने का काम हुआ जो जमीन पर लोगों का समर्थन और सियासी ताकत खो रहे हैं!
उद्देश्य प्रस्ताव अल्पसंख्यक, पिछड़े, आदिवासी जैसे वगार्ें को पर्याप्त सुरक्षा की बात करता है। इसे लेकर बातें तो बहुत हुईं परंतु क्या यह सच नहीं कि इन वगार्ें को राजनैतिक हितों के मोहरे की तरह इस्तेमाल किया गया। संसदीय प्रभुता और न्यायिक सवार्ेच्चता में समन्वय यह भारतीय संविधान का दूसरा गुण है। लेकिन शाहबानो मामले में क्या हुआ? 62 साल की उम्र में पांच बच्चों की मुस्लिम मां जब अपने पति द्वारा अन्यायकारी तरीके से तलाक दिए जाने के बाद देश के संविधान के तहत मुआवजे की गुहार लगाने पहुंची तो तुष्टिकरण पर पलने वाली राजनीति का दम फूल गया? राजनैतिक बहुमत को तुष्टिकरण के हथियार और सवार्ेच्च न्यायालय के फैसले पलटने वाले औजार के तौर पर आजमाया जा सके क्या हमारे संविधान निर्माताओं ने ऐसी कल्पना की होगी?
संविधान में 'पिछड़े और आदिवासी' के तौर पर संबोधित लोगों की सुरक्षा, सशक्तिकरण और इन्हें आगे बढ़ाने के सपने का जो-जैसा अर्थ राजनीति ने लगाया उससे सामाजिक कटुता, द्वेष और संघर्ष बढ़े हैं इससे कोई इनकार कर    सकता है?
पहाड़, पठार, जंगल, घाटियों में रहने वाले भोले-भाले लोगों के हाथों में हथियार थमाने वाले घाघ वामपंथी, महानगरों में बैठकर उन्हें उस क्रांति का दूत बताते हैं जिसका 'क' भी उन बेचारे वनवासियों को नहीं पता। क्या यह सच नहीं कि संरक्षण के हकदार सीधे-सरल लोगों और उनकी संस्कृति का खास तरह की वैचारिक भट्टी सुलगाए रखने के लिए ईंधन के तौर पर इस्तेमाल हुआ है?
गणतंत्र दिवस भारत द्वारा एक अनूठे संविधान को अंगीकार करने का उत्सव है। आज इस उत्सव की चमक को अपने पुरखों की कल्पना और शपथों की कसौटी पर परखने का वक्त है। गर्व के रंग समीक्षा से निखरते हैं मंद नहीं पड़ते।
पाञ्चजन्य के सभी पाठकों, वितरकों, विज्ञापनदाताओं एवं शुभचिंतकों को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं।
 

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